मन का मैल काटने में लगा हूँ

कुछ दिनों पहले तक बहुत अजीब हालात से गुजर रहा था, बैचेनी रहती थी, पता नहीं कैसे कैसे ख्याल आते थे, पुरानी बातें बहुत परेशान करती थीं, कभी कुछ अच्छा याद नहीं आता था, हमेशा ही बुरा ही याद आता था। ऐसा नहीं कि जीवन में अच्छा हुआ ही नहीं, या बुरा भी नहीं हुआ, परंतु होता क्या है कि हम हमारी याददाश्त में अच्छी चीजें कम सँभालकर रखते हैं और बुरी यादें हमेशा ही ज्यादा सँभालकर रखते हैं। हमारे जीवन की यही सबसे बड़ी परेशानी और समस्या है। ऐसा होना ही हमें मानव की श्रैणी में खड़ा करता है, हमें कहीं न कहीं मानसिक स्तर पर मजबूत भी करता है और हमें चालाक बनने में मदद भी करता है।

वैसे मैं व्हाट्सएप ग्रुप में आये वीडियो बहुत कम डाऊनलोड करता हूँ, परंतु पता नहीं 2-3 दिन पहले आये हुए एक वीडियो को देखने की क्या सूझी, और डाऊनलोड कर देख लिया। वह बनारस के एक मकान का वीडियो था, जिसमें कि लोग अपने जीवन के आखिरी दो सप्ताह गुजारने आते हैं, क्योंकि कहा जाता है जो काशी में परमात्मा में लीन होता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है, बस समस्या यही है कि उस मकान को 2 सप्ताह बाद खाली करना होता है और अब तक बीते वर्षों में कई हजारों लाखों लोग वहाँ जाकर मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं। वहाँ कई लोगों के अनुभव को केयरटेकर ने बताया कि अधिकतर लोग अपने जीवन के आखिरी समय में अपने पुराने झगड़े, जिन से जीवन में कहा सुनी हुई, सब सुलझाकर यहाँ से प्रस्थान करना चाहते हैं।

मैंने मन ही मन सोच लिया, कि अब मैं भी अपने मन का मैल काटूँगा, जाना तो हमको भी एक दिन है, भले हमें शायद थोड़ा ज्यादा समय हो, और जीवन में लोग इसी भोलेपन का फायदा भी उठाने लगें, लोग बेवकूफ भी समझने लगें, परंतु अपने खुद के लिये, अपने मन की शांति के लिये मन का मैल काटना बहुत जरूरी है। अभी तक बहुत से मन के मैल को अपनी तरफ से साफ कर चुका हूँ, और 2-3 दिनों से नींद बहुत अच्छी आ रही है, अब रह रहकर पुरानी बातें याद नहीं आती हैं, और आती भी हैं तो मन कसैला नहीं होता है।

सोचता हूँ कि जब तक मेरा भी परमात्मा में विलीन होने का वक्त आयेगा, शायद मैं अपने मन के सारे मैल काट चुका होऊँगा, जिससे मैं सुकुन से मृत्यु को प्राप्त हो सकूँगा। अब जो जीवन की राह है, मुझे समझ आ रहा है कि बहुत कठिन है, पर कितनी कठिन है, यह तो हमें वक्त ही बतायेगा, और इसका जीवन पर कितना असर होता है, यह भी धीरे धीरे ही पता चलेगा। हम अपनी ही कही बात पर कितना टिक पायेंगे, यह भी देखना जरूरी है। अगर इस पर कुछ बदलाव होता है, तो फिर से अपनी बात को मैं ब्लॉग पर लिखूँगा।

2 thoughts on “मन का मैल काटने में लगा हूँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-03-2017) को <a href= “सरस सुमन भी सूख चले” (चर्चा अंक-2922) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर…!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

  2. दृढ़ इच्छा शक्ति के बलबूते कुछ भी असंभव नहीं रह सकता। इंसानी फितरत है मन को मैला करते रहने का, समय रहते मन साफ़ रखने का ख्याल आ जाय और उस राह पर इंसान चल पड़े तो जन्नत यहीं मिल सकती है उसे

    बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

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