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देखते हैं कि अन्ना और जनता के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का कितना असर हुआ है (Now I have to check the Effect of Anna and public Movement against Corruption)

   अब बहुत दिनों बाद फ़िर सरकारी कार्यालय में चक्कर लगाना पड़ेगा, क्योंकि हमें अब ड्राईविंग लायसेंस बनवाना है, कल हमने इस बारे में पूछताछ की तो पता चला कि अगर हम सीधे आर.टी.ओ. दफ़्तर जायेंगे तो बहुत चक्कर लगवाये जायेंगे और अगर सुविधापूर्ण तरीके से लायसेंस बनवाना चाहते हैं तो किसी ड्रायविंग स्कूल वाले को पकड़ लें और आसानी से लायसेंस बनवा लें।

    हमने पूछा कि फ़िर तो ड्राईविंग स्कूल वालों का सुविधाशुल्क भी होगा, तो पता चला कि हाँ सुविधाशुल्क के नाम पर आर.टी.ओ. में रिश्वत का भी कुछ हिस्सा होता है।

    अब सोच रहे हैं कि सीधे आर.टी.ओ. जाकर अन्ना और जनता के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का असर देखा जाये और रिश्वत के बिना लायसेंस बनवाया जाये या फ़िर अपनी सुविधा का ध्यान रखते हुए सुविधाशुल्क देकर लायसेंस बनवा लिया जाये।

    वैसे भी कर्नाटक में कोई भी काम सरकारी कार्यालय में बिना रिश्वत के होता नहीं है, ये तो नारायण मूर्ती और विप्रो के प्रबंधन  भी बोल चुके हैं और इस पर सरकार की चुप्पी इस बात का समर्थन करती है।

    वैसे आजकल हम ट्रॉफ़िक पुलिस को ओल्ड एयरपोर्ट पर खड़े होकर गाहे बगाहे लोगों को परेशान करते हुए देखते हैं, और जबरन उगाही करते हुए दुनिया देखती है।

सेन्सोडाइन टूथपेस्ट विज्ञापन का बोलबाला (Effect of Advertisement – SENSODYNE Toothpaste)

    हर बार की तरह इस बार भी हायपरसिटी जाना हुआ सब्जियों और किराना लाने के लिये, तो वहाँ सेन्सोडाइन टूथपेस्ट से मुठभेड हुई। हमारी घरवाली बोली कि यह बहुत अच्छा टूथपेस्ट है, आजकल टीवी पर बहुत विज्ञापन आ रहा है और बहुत अच्छा बताया जा रहा है। हम हैरान परेशान कि बताओ हमें खबर ही नहीं है और ये सेन्सोडाइन हमारे घर में हमारे घर के लोगों के दिमाग में घुस गया।

sensodyne-gyaniz

    खैर हमने सोचा (लिखने के लिये, नहीं तो सोचने का मौका ही कहाँ मिलता है, आजकल), अब लेना तो है ही, देख लेते हैं कि कितने ग्राम का है और कितने रुपये देने हैं, और उत्पाद की एक्सपायरी दिनांक क्या है। पता चला कि यह तीन स्वाद में आता है और ८० ग्राम उत्पाद का भाव ७५ रुपये। साथ ही पता चला कि यह उत्पाद पहले भी बाजार में उपलब्ध था परंतु केवल तभी लिया जाता था जब डॉक्टर बोलते थे, इसीलिये उत्पाद पर चेतावनी भी है कि १२ वर्ष से छोटॆ बच्चे इस उत्पाद का उपयोग न करें। साथ ही बड़ों के लिये भी चेतावनी है कि अगर टूथपेस्ट से जलन होने लगे तो इसका उपयोग करना बंद कर दें।

    वैसे उत्पाद को खूबसूरती से पैक किया गया है पैकेट के दो तरफ़ सेन्सोडाइन फ़्रेश मिन्ट है और एक तरफ़ उत्पाद को कैसे उपयोग किया जाये, क्यों किया जाये, किन रसायनों का उपयोग यह टूथपेस्ट बनाने में किया गया है इसकी भी जानकारी दी गई है (अगर आम उपभोक्ता को समझ में आ जाये तो), उपभोक्ता सेवा का फ़ोन नंबर भी दिया गया है। उत्पाद सोलन हिमाचल प्रदेश में बनाया जाता है और ग्लेक्सोस्मिथकाईन कंपनी इसका बाजार में विज्ञापन कर रही है। ब्रांड इन्हीं का है। एक तरफ़ दाँत और मसूड़ों का फ़ोटो लगाया गया है, जिसके जरिये उपभोक्ता को ज्ञान देने की कोशिश की गई है और साथ ही ४ प्रश्नों के उत्तर भी हैं –

1. What is Tooth sensitivity?

2. Why have I got it ?

3. Why is Sensodyne right for me?

4. How does it work ?

अभी उत्पाद का उपयोग करना शुरु किया है और यह उत्पाद भी अन्य प्रतिस्पर्धी उत्पादों जैसा ही लग रहा है। पर हाँ यह उत्पाद जेब पर भारी जरुर है, तो सोच समझ कर खरीदियेगा, वैसे भी एक बार उपयोग करनें में कोई बुराई भी नहीं।

माइक्रोवेव में पॉपकॉर्न बनाना

हमने माइक्रोवेव लिया और उसे पर फ़िर तरह तरह के उपयोग भी शुरु हो गये।

माइक्रोवेव में पॉपकॉर्न बनाना – मक्का में २ चम्मच सरसों का तेल, नमक और हल्दी मिलाकर, टाईम्स ऑफ़ इंडिया के आधे पेज का लिफ़ाफ़ा बनाकर उसके अंदर मक्का डालकर लिफ़ाफ़ा बंदकर, माईक्रो में २ मिनिट चला दें, आपके पॉपकॉर्न तैयार। तेल को उसी समय काँच की प्लेट पर से साफ़ कर दें।

    फ़्रायम्स बनाना – पेपर नेपकीन लें और अगर नहीं हों तो अखबार भी चल सकता है और उस पर फ़्रायम्स रख कर माईक्रो मोड में ३० सेकण्ड्स रखें बस फ़्रायम्स बिना तले हो गया तैयार।

    पापड़ बनाना – कोई सा भी पापड़ हो उस पर थोड़ा सा पानी छिड़क लें और माईक्रो में ३० सेकण्ड से १ मिनिट पापड़ के अनुसार रखें बिना तेल के पापड़ तैयार।

    सैंडविच बनाना – सैंडविच समान के साथ तैयार करके, ग्रिल कर लें और २ मिनिट बाद पलट लें, पहला सैंडविच बनाने में ४ मिनिट लगेगें पर उसके बाद ३ मिनिट में हो जायेगा।

    केले बनाना – केले को छीलकर, लंबाई में दो फ़ाँकें कर लें और उस पर नमक नींबु अच्छे से लगाकर ग्रिल कर लें ३-४ मिनिट के लिये, बेहतरीन स्वाद मिलेगा।

और भी बहुत कुछ बनाते हैं अभी इतना ही… और हाँ अगर आप क्या बनाते हैं वह भी बतायें

ये अन्ना की जीत है, आम भारतीय की जीत अभी दूर है, क्या रिश्वत माँगते हुए उनकी रूह इस लोकापाल बिल से कांपेगी ?

    जो भी घटनाक्रम जंतर मंतर पर घटित हो रहा है, वह केवल और केवल अन्ना की जीत है, आम भारतीय की जीत तो अभी बहुत दूर है। अन्ना ने तो केवल आगाज किया है भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई का, शंखनाद किया है। लोकापाल बिल पर सरकार के द्वारा माँग मान भी ली गई हैं, परंतु अभी कुछ भी साफ़ नहीं है।

    क्या इस लोकापाल बिल से भ्रष्टाचारी डरेंगे ? क्या रिश्वत माँगते हुए उनकी रूह इस लोकापाल बिल से कांपेगी ?

    आम भारतीय चाहता है कि उसे रिश्वत न देनी पड़े और और ईमानदारी से कार्य हो जाये, परंतु कुछ सुविधाएँ तब भी ऐसी हैं जहाँ जनता खुद ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है, जिससे उन्हें आराम हो, या उनका काम जल्दी हो जाये।

   पहले आम भारतीय को तहेदिल से अपने को ईमानदार बनना होगा, तभी हम भारत को भ्रष्टाचार मुक्त देश बना सकते हैं।

    पर क्या आम भारतीय सुधरेगा ? हाँ मैं आज से प्रण करता हूँ कि मैं भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं दूँगा।

जय हिन्द !

भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिल पास होने के बाद सबसे पहले भ्रष्टों को हटाना होगा (Corruption and Corrupted ppls)

    अन्ना हजारे अनशन पर बैठे हैं, और पूरा भारत उनके समर्थन में उतर आया है। सरकार दबाब में हैं और शायद सरकार को अंदेशा भी है कि जनता जागरूक है और अब कुछ भी हो सकता है। यह अच्छी बात है कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध बिल पास हो जायेगा और हमें कुछ खामियों से युक्त ही सही पर एक सख्त कानून मिल जायेगा।

    कानून लागू करने वाले और कानून को मान्यता दिलाने वाले भी भ्रष्टाचार से मुक्त होने चाहिये, और इसके लिये पहले भ्रष्टों को उनकी गद्दियों से उतारना होगा।

    भ्रष्टाचार केवल सरकारी तंत्र में ही नहीं, यह हर जगह पाया जाता है और इस कानून की जद केवल सरकारी तंत्र तक ही रहने वाली है। कुछ भ्रष्टाचार ऐसे हैं जो कि किसी कानून के जरिये खात्मा नहीं किये जा सकते हैं, ऐसे भ्रष्टाचार केवल आमजन के जागरूकता से ही लगाम लगाई जा सकती है।

    अगले चुनाव पास ही हैं और हर शहर में भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चे खोले जा रहे हैं, उन्हीं में से एक अपना नेता चुनें जो कि ईमानदार हो या उसकी गारंटी देता है, क्योंकि जब सत्ता हाथ में आती है तो सब ईमानदारी गायब हो जाती है। और अपने नेता को अपने शहर से जिताने का संकल्प लें और उसके ऊपर अपना कंट्रोल भी रखें।

    अगर सरकारी तंत्र से ही भ्रष्टाचार गायब हो जाये तो हर गाँव और शहर का कायाकल्प ही बदल जायेगा, लोग गरीबी से बाहर निकलेंगे। बच्चों को स्कूल में शिक्षा दिलाने के लिये भारी भरकम दान नहीं देना पड़ेगा और हमारे बच्चे भ्रष्टमुक्त देश में सांस ले सकेंगे।

अन्ना हजारे के समर्थन में मैं ( I am supporting Anna Hazare.)

     भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लोकापाल बिल लाने के लिये सरकार पर दबाब बनाने के लिये अन्ना हजारे के अनशन को मैं पूरा समर्थन करता हूँ।

    अन्ना आज आम मध्यमवर्ग की आवाज हैं, अन्ना उन सबकी आवाज हैं जो कि भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं। आखिर कब तक हम भ्रष्टाचार सहते रहेंगे और रिश्वत देते रहेंगे। सरकार की निर्दयता और निडरता देखिये कि अभी तक सरकार पर कोई असर नहीं हुआ।

    लगता है कि सरकार को जनता की ताकत का अंदाजा नहीं है और सरकार को लग रहा है कि समर्थन में खुलकर बहुत कम लोग हैं, तो ऐसा नहीं है समर्थन में भारत का हर व्यक्ति है बस वक्त की बात है, नींद खुलने की बात है।

    हिन्दी के ३०,००० ब्लॉगरों का समर्थन अन्ना के साथ होना चाहिये। और रोज ही भ्रष्टाचार के विरोध में और अन्ना के अनशन के समर्थन में लिखना चाहिये। यह जनता का अधिकार है और हम जनता हैं, इसे हमें लेना ही होगा।

    भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से राजनैतिक लोगों को और राजनैतिक पार्टियों को दूर ही रखना होगा, क्योंकि सभी राजनैतिक लोग और राजनैतिक पार्टियाँ गले गले तक भ्रष्टाचार तक डूबी हुई हैं।

    आईये भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जो कि अन्ना हजारे ने शुरु किया है, उसका हिस्सा बनें, अपने अपने तरीकों से आंदोलन का हिस्सा बनें।

नहाने का ठंडा पानी

    नहाते तो रोज ही हैं, पर मौसम और जगह के अनुसार समय और पानी कैसा हो वह बदल जाता है। जैसे हमने एक दिन फ़ेसबुक पर स्टेटस डाला था कि “पूरे २४ घंटे हो गये नहाये हुए अब तो नहाना ही पड़ेगा ।” तो हमारे एक मित्र की टिप्पणी आई “पता नहीं लोग महीने महीने भर कैसे बिना नहाये रह लेते हैं, हमें तो २५ दिन में ही खुजली होने लगती है।”

    वैसे कई लोग होते हैं, जो बिना नहाये एक दिन तो क्या कई दिन रह लेते हैं, परंतु अपनी तो आदत ऐसी है कि अगर किसी दिन न नहाये तो ऐसा लगता ही नहीं कि दिन हुआ है, और आज तक ऐसा मौका भी बहुत ही कम आया है, या तो २४ घंटे से ज्यादा सफ़र पर रहे हों या फ़िर कभी तबियत खराब रही हो। कभी आलस में न नहाये हों, ये तो याद ही नहीं है। किसी दिन नहाने में भी देर हो जाये तो आँख खुलती नहीं और बहुत ही वाहियात लगता है, और तो और अपने ऊपर ही गुस्सा आता है।

    अब गर्मी का मौसम आ गया है, अब गीजर में पानी गर्म करना बंद कर दिया है, और ठंडे पानी से नहाने लगे हैं, ठंडा पानी से जब नहाने जाओ तो पहले तो ठंडे पानी की सोचकर ही सिहरन होने लगती है, फ़िर जब हिम्मत करके नहाने के लिये तैयारी भी कर लो तो पहले हाथ पर थोड़ा पानी डाल पानी की ठंडक महसूस करते हैं, फ़िर पैर पर जब लगता है कि अब और कोई तरीका नहीं है तो नहा लेते हैं।

    वैसे हमारे एक मित्र हैं उन्होंने ठंडे पानी से नहाने का विशुद्ध तरीका बताया था अगर घरवाले बिना नहलाये नहीं मानते हैं तो पहले स्नानघर की कड़ी अंदर से बंद कर लो और फ़िर थोड़े से पानी से अपने बाल गीले कर लो और फ़िर लोटे से पानी अपने सिर के ऊपर से पानी बस पीछे डालते जाओ, और हर हर गंगे बोलते जाओ “बहुत ठंडा पानी है”, इस तरह से घरवालों को लगेगा कि नहा लिये और खुद को पता है कि ठंडे पानी से स्नान में कितना मजा आता है।

    वैसे तो होली के बाद ठंडे पानी से नहाना शुरु हो जाता है और गर्मी का रौद्र रूप देखने को मिलने लगता है, इसलिये गर्मी में ध्यान रखें कि एकदम बाहर से आने के बाद यकायक न नहायें, थोड़ा समय दें अपने शरीर को घर के तापमान के अनुकूल होने तक और फ़िर नहायें और बोलें “हर हर गंगे”,  नहाने का तरीका कोई सा भी अपनायें, पर नहाने का मजा जरूर मिलेगा।

कुछ खत के नमूने जो मेरी यादों में हैं…

ये कुछ खत के नमूने हैं तो मेरी यादों में, जहन में हैं जो कभी मैं लिखा करता था,  क्या ऐसे ही कुछ नमूने आपको याद हैं… बताईये तो..

 

आदरणीय मम्मी जी एवं पापाजी,

सादर चरण स्पर्श,

आशा है कि आप कुशल होंगे,

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आपका पुत्र

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प्रिय बहन…..

सदा खुश रहो,

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तुम्हारा भाई

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प्रिय भाई

सदा खुश रहो

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तुम्हारा भाई

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प्रिय मित्र

सुनहरी यादें तुम्हारे साथ की,

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तुम्हारा अपना सच्चा साथी

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होली के बहाने होली है… होली है…

Holi

होली मौसम है रंग का, लाल पीले हरे नीले गुलाबी सभी रंगों का, जीवन में रंगों की लहलहाती फ़सलों को बाँटने का..

होली बहाना है भांग छानने का, मौका है तरन्नुम में जमने का, और तरन्नुम जमाने का,  बड़ों को भी बच्चा बनने का..

होली पर कितने ही पकवान बनते हैं, गुझिया, चकली, शक्करपारे, ठंडाई और सबसे बड़ा पकवान पकता है प्यार का, प्रेम का जो बरसों तक दिलों में रहता है..

होली के बहाने पता नहीं लोग क्या क्या करने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग दुश्मनी को दोस्ती में बदलते हैं तो कुछ लोग दोस्ती को दुश्मनी में..

होली प्यार का त्यौहार है, यारों की यारी निभाने का प्यार है, पर फ़िर भी कुछ लोग होते हैं जो यारों की यारी में बदमाशी करते हैं..

हैप्पी होरी कहते हैं हम भी होली के बहाने ओह सॉरी हैप्पी होली, फ़ाग के रंग में कड़ाई में डूबें और जम कर डुबायें..

होली है… होली है…

ऐश करना क्या होता है, जिंदगी की दौड़.. (What is Aish.. about life..)

    सब लोग कहते हैं ना कि ऐश करेंगे पर क्या किसी को पता है कि ऐश करना होता क्या है? नहीं तो चलो हम बताते हैं, हमें हमारे महाविद्यालय के प्रोफ़ेसर साहब ने बतायी थी।

    ऐश जो सिगरेट के आगे राख होती है जिसे हम कश लेने के बाद झटक देते हैं वह कहलाती है ऐश, समझ गये !! कि ऐश किसे कहते हैं, तभी तो ऐश को जिसमें रखा जाता है उसे कहते हैं ऐश ट्रे।

    जैसे सिगरेट जलती है तो जहाँ जलती है उसका तापमान लगभग १०० डिग्री होता है, और अगर उसे हाथ से पकड़ लेंगे तो निश्चित ही हाथ जल जायेगा, और फ़िल्टर से जहाँ से सिगरेट में कश मारते हैं, वहाँ उस गर्मी का अहसास नहीं होता है क्योंकि उस ऐश और फ़िल्टर के दरमियान इतना फ़ासला होता है, कि उस सफ़र को पूरा करने में आदमी को अपनी जिंदगी खर्च करना पड़ती है। शायद ही इतना महँगा सफ़र कोई ओर होता होगा, और शायद ही हम अपनी जिंदगी की गाड़ी को पूरी रफ़्तार से अपनी मौत की तरफ़ ले जाने की इच्छा रखते हैं, परंतु जो शौक रखते हैं वे मंजिलों की परवाह नहीं करते हैं, वे तो केवल सफ़र करते हैं।

    जब सिगरेट खत्म होती है तब तक उसका धुआँ शरीर की नस नस में अंदर फ़ेफ़ड़ों के अंदर बहुत अंदर तक घुस चुका होता है, साथ ही चाय की चुस्की या सिगरेट खत्म होने के बाद एकदम पानी पीते हैं, तो बस हम खुद ही उस रफ़्तार को और बड़ा लेते हैं जिसकी मंजिल मौत है। सिगरेट अधिकतर लोग सभ्य तरीके से पीते हैं पर जो वाकई नशा करते हैं उन्हें तो पता ही नहीं लगता कि कब फ़िल्टर आ गया और कब उसका फ़िल्टर भी जल गया और उसका धुआँ भी वे पी गये।

    जो लोग सिगरेट पीते हैं उन्हें पीने का मकसद पता नहीं होता है और साथ ही अपनी जिंदगी की मंजिलों का भी, क्योंकि उन्हें अपनी अंतिम मंजिल का भी पता नहीं होता जो कि मौत होती है। बस वे तो केवल खोखली शान में जिंदगी का कश बनाकर मौत को पिये जाते हैं।