आने वाले चुनाव के मद्देनजर यह तय है कि सोशल मीडिया में ऐतिहासिक सामाजिक युद्ध छिड़ने वाला है, जिसके साक्षी हम सभी होंगे और लगभग सभी को जाने अनजाने ही इसमें भाग लेना होगा। सोशल मीडिया में जितने भी जाने पहचाने दोस्त हैं उनमें से अधिकतर का पता है कि उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी और कितनी तल्ख होगी। परंतु कई लोग जो बीच बीच में छुपकर घुस आये हैं, वे इस युद्ध के विभीषण होंगे, वे यहाँ से वहाँ तक सारे रिश्तों की बखिया उधेड़ेंगे।
इस युद्ध में न कोई कृष्ण है न कोई अर्जुन और न ही कोई राम है, बस सब रावण ही रावण हैं, जो कि अपने स्वार्थ के लिये अपने स्वार्थी दस सर अलग अलग आईडी से निकालेंगे और जितनी भी भोली भाली जनता है, उनकी मारकाट करेंगे, जनता न मानी तो उन पर इस प्रकार से वार किया जायेगा कि वे खुद ही आहत होकर अपनी इहलीला या तो सोशल मीडिया से समाप्त कर लेंगे या फिर वे भी रावण का साथ देने को तैयार हो जायेंगे।
आज के युग में हम तटस्थ होकर कभी कुछ नहीं कर सकते, अब सब या तो मानसिक बीमार हैं जिन्हें राजनैतिक जोंबी कहा जा सकता है और दूसरी तरफ वे स्वस्थ मानसिकता वाले लोग हैं, जिन्हें अभी तक इस राजनैतिक जोंबी वाली मानसिकता के विषाणु ने अतिक्रमित नहीं किया है, वे अभी इस अतिक्रमण से दूर हैं। पर अतिक्रमण से बचने का कोई रास्ता सूझ नहीं रहा है, और इस पर बात किये बिना गुजारा भी नहीं है।
वे दोस्त मुझे अच्छे लगे जो कि राजनैतिक जोंबी होने के बावजूद अपने रिश्ते बरकरार रखे हुए हैं, भले उस अतिक्रमण और राजनैतिक समर्थन और लेखन से उन्हें कोई व्यक्तिगत फायदा हो रहा हो या नहीं हो रहा हो, परंतु रिश्ते आज भी वैसे ही हैं, आज भी जब हम मिलते हैं तो गले लगकर ही मिलते हैं और हँसी खुशी विदा होते हैं। आमने सामने कभी भी व्यवहार में हमें उनके व्यक्तित्व में राजनैतिक जोंबी नजर नहीं आया, परंतु जैसे ही कीबोर्ड हाथ में आता है, उनके अंदर का राजनैतिक जोंबी जाग उठता है।
बेहतर है कि हम आनेवाले दिनों में ऐसे अपने दोस्तों को जो कि खुद तो राजनैतिक जोंबी हैं ही, और दूसरों को भी इस विषाणु से अतिक्रमित करना चाहते हैं, उन्हें अनफॉलो कर दें। पढ़े लिखे होने का सारा गर्व धरा रह जाता है जब हम टाईप किये गये चंद शब्दों पर झगड़ा करने लगते हैं और पता नहीं कितने कूट शब्दों में गालियों की मूसलाधार बरसात करते हैं। फिर भी कुछ होते हैं बेशरम जो टिके ही रहते हैं, बेशरम कहना ठीक नहीं होगा, उन्हें हिम्मती कहना होगा, जो फ्रंटफुट पर ऐसे लोगों की सरेआम उन्हीं की सोशल मीडिया की दुकानों में घुसकर हमला करते हैं, और वे राजनैतिक जोंबी केवल तिलमिलाकर रह जाता है, कुछ कर नहीं पाता है।
आने वाले इस महान राजनैतिक सोशल मीडिया के युद्ध में आप किस तरह से हिस्सा लेने वाले हैं, और आप भी इस विषाणु के अतिक्रमण में आने वाले हैं या नहीं, यह तो देखने की बात है, दीगर यह होगा कि आपकी जो अभी की स्वच्छ विचारधारा है वह दूषित न हो।
यह ब्लॉगपोस्ट मैंने इसलिये लिखी है कि कहीं मैं भी राजनैतिक जोंबी न बन जाऊँ, तो कम से कम इसका दस्तावेजीकरण कर दिया जाये।
जोंबी – जोंबी मरकर एक तरह से जी उठे शव को कहते हैं जो इंसान का खून का प्यासा होता है और जिस इंसान का खून वह पी जाता है, वह भी जोंबी बन जाता है।
बहुत सही । “अब सब या तो मानसिक बीमार हैं जिन्हें राजनैतिक जोंबी कहा जा सकता है ” सहमत।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अकेले हम – अकेले तुम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ऋषिकेश मुखर्जी और मुकेश – ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।