Category Archives: महाकाल

पापाजी मम्मीजी के साथ महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन

जब से उज्जैन आये हैं हम तो कई बार महाकालेश्वर के दर्शन कर चुके हैं, और लगभग रोज ही शिखर दर्शन कर रहे हैं। पापाजी मम्मीजी की भी इच्छा थी कि वे भी महाकालेश्वर के दर्शन करें, परंतु ज्यादा चलना उनके बस का नहीं था। तब हमने महाकालेश्वर में पूछा तो पता चला कि व्हील चेयर मिल जाती है। यह भी देखा कि कार कैसे महाकालेश्वर मंदिर के पास तक जा पाये, जिससे उनको ज्यादा न चलना पड़े।

कार का रास्ता – गोपाल मंदिर से महाकाल घाटी की और जाते हुए, दायीं तरफ चौबिसखम्बा माता का मंदिर के रास्ते में मुड़ें, और फिर बायीं तरफ वाला रास्ता जो कि घाटी जैसा है, उस पर जायें, बस उसके बाद रास्ते पर चलते रहें, आप महाराजबाड़ा स्कूल पहुँच जायेंगे, जगह देखकर कर पार्किंग में लगा दें। अपना मोबाईल और चप्पल जूते कार में ही छोड़ दें।

महाकालेश्वर मंदिर में ₹250 का टिकट वाली विंडो पर जब हम पहुँचे तो उनसे कहा कि 3 टिकट चाहिये और 2 व्हील चेयर चाहिये, तो उन्होंने कहा कि आप गेट नम्बर 5 पर चले जाइये, अटेंडेंट साथ में जा सकते हैं। व्हील चेयर व उनके अटेंडेंट के लिये दर्शन फ्री हैं, कोई टिकट लेने की आवश्यकता नहीं है। हम गेट नम्बर 5 पर गये और हमें अंदर बैठने के लिये कह दिया गया। इस समय सुबह के 6.10 हो रहे थे। 5 मिनिट बाद ही 2 लोग आये और उन्होंने पापाजी मम्मीजी को व्हील चेयर पर बैठाया व दर्शन हेतु महाकालेश्वर मंदिर में चल दिये।

सुबह ₹1500 वाली लाइन भी लंबी थी, जिसमें महिलाओं को साड़ी व पुरुषों को धोती व बनियान पहनना होता है। हमें सीधे नंदी हाल के पीछे लगी रेलिंग के पास ले गये, वहाँ से पैदल जाकर बाबा महाकाल के दर्शन किये, और वापिस उसी रास्ते मंदिर के बाहर आ गए। दर्शन करने में लगा समय लगभग 15 से 20 मिनिट रहा। हम घर से सुबह 6 बजे निकले थे व वापिस 6.45 पर घर पर आ गये थे।

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#mahakal

महाशिवरात्रि पर उज्जैन का विश्व रिकॉर्ड

18 फरवरी वैसे तो हमेशा ही मेरे लिए बहुत विशेष दिन रहा है, क्योंकि मैं इसी दिन अपने वैवाहिक गठबंधन में बंधा था। कल देखते देखते इस गठबंधन को 21 वर्ष हो गये। जीवन के इस पड़ाव पर आते आते पता ही नहीं चला कि कब हम इतने अच्छे दोस्त बन गए और प्रगाढ़ता बढ़ती ही जा रही है।

राम घाट उज्जैन

हम बचपन से ही महाशिवरात्रि का व्रत रखते आए हैं। व्रत क्या हमारे लिए तो बहुत ही विशेष दिन होता है, क्योंकि इस दिन घर में व्रत की सामग्री से माल बनते हैं क्योंकि महाशिवरात्रि के दिन शिवजी की शादी हुई है। भोले बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में रहते हुए महाकाल में आस्था कब इतनी गहरी हो गई पता ही नहीं चला। हालांकि कल महाकालेश्वर में भीड़ के चलते हम दर्शन करने नहीं गए लेकिन पूरे दिन मन वही अटका रहा। यूट्यूब पर महाकाल के लाइव दर्शन करते रहे और महादेव को मन में भजते रहे।

घर के पास ही मंदिरों में महाशिवरात्रि पर्व की छटा देखते ही बनती थी। मंदिरों को बहुत ही बढ़िया सजाया गया था, कुछ मंदिरों में शिव जी का भांग से श्रृंगार किया गया था और दूल्हा स्वरूप बनाया गया था। उज्जैन में दिनभर भक्तों के लिए भंडारे खुले हुए थे, जिसमें साबूदाने की खिचड़ी, ठंडाई, पोहे इत्यादि सड़क पर ही स्टाल लगाकर बांटे जा रहे थे। कई जगह सड़क पर ही स्टेज लगाकर भजन संध्या चल रही थी, जिसमें कई जगह स्टेज पर भगवान शिव को दूल्हा स्वरूप और मां पार्वती को दुल्हन स्वरूप सजाकर बैठाया गया था वही जनता भक्ति में सड़क पर नृत्य कर रही थी। लोगों ने खुद ही ट्रैफिक मैनेजमेंट संभाला हुआ था जिससे जाम की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई।

हमने दोपहर को घर के पास ही नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन करके साबूदाने की खिचड़ी का प्रसाद प्राप्त किया और वहीं बैठे पंडित जी ने जो कि बालक थे उन्होंने हमारे माथे पर तिलक लगाया।

नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन के बाद
साबूदाने की खिचड़ी का प्रसाद

हम यूट्यूब पर लगातार खबर देख रहे थे और रामघाट का लाइव प्रसारण भी देख रहे थे। जहाँ मध्य प्रदेश शासन ने 21 लाख दिए प्रज्वलित कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की चेष्टा की थी। गिनीज बुक में द्रोन के माध्यम से चित्र खींचे व उनकी गणना की तथा 18 लाख 80 हजार दिए प्रज्वलित है इसका विश्व रिकॉर्ड कल उज्जैन के नाम हो गया। इसके पहले यह रिकॉर्ड 15 लाख से कुछ अधिक दियों का अयोध्या के नाम था। शाम को लगभग 9:00 बजे हम घर से निकले और रामघाट पहुंचे व इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने। हर तरफ सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे हर तरफ घाट पर दिए ही दिए दिखाई दे रहे थे।

रामघाट से हम मुंबई धर्मशाला होते हुए हरसिद्धि की तरफ पहुंचे और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के शिखर दर्शन किये। भक्तों का जोश देखते ही बनता था, कल महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए कम से कम 10 लाख लोगों का तांता उज्जैन में लगा हुआ था।

रामघाट और दत्त अखाड़ा क्षेत्र
रील जो बनाकर फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपलोड करी।

महाकाल में वीआईपी दर्शन VIP Darshan in Mahakal

वैसे मैं महाकाल की व्यवस्था पर लिखने से हमेशा ही बचता हूँ, क्योंकि लगता है कि इससे लोगों की आस्था कम होती है।

परंतु फिर भी इस पर आज लिख रहा हूँ, मैं हमेशा ही महाकाल में वीआईपी दर्शन करता हूँ, पहले इसका शुल्क 151 रूपये था और अब सुविधाओं के नाम पर इसे बढ़ाकर 250 रूपये कर दिया गया है। वीआईपी दर्शन इसलिये करता हूँ, कि इसमें दिया गया धन का दुरूपयोग नहीं हो सकता है, इसका हिसाब ऑडिट वगैराह में देखा जाता है, अगर दान पात्र में हम दान देते हैं तो हमें कोई सुविधा नहीं मिलती है एवं अगर पंडे पंडितों को सीधे देते हैं तो वह उनकी जेब में जाता है।

वीआईपी दर्शन का टिकट लेने के बाद वहीं पर जूते चप्पल स्टैंड पर हमने जूते उतारे, यहाँ पता चला कि अब ये जूता चप्पल स्टैंड केवल वीआईपी दर्शन के टिकट वालों के लिये ही है। दर्शन करने के बाद जब महाकाल से बाहर आने की बात आई तो पता चला कि बाहर जाने का एक ही रास्ता है, और वहाँ पर पैर न जलें इसके लिये कोई व्यवस्था नहीं है। हालत यह है कि मुझे और मेरे परिवार को अभी तक पैरों में जलन की तकलीफ सहन करना पड़ रही है।

जब वापिस जूते चप्पल लेने पहुँचे तो वहाँ पर सहायक प्रशासनिक अधिकारी का कार्यालय दिखा, हम पहुँचे वहाँ कि हमें शिकायत पुस्तिका दें, हमें शिकायत करनी है, तो हमें कहा गया कि यहाँ शिकायत पुस्तिका नहीं है, आपको 3 मंजिला महाकाल के प्रशासनिक भवन में जाना होगा। अधिकारी तो वहाँ थे नहीं, परंतु उनके बात करने के अंदाज से यह जरूर लगा कि बहुत से वीआईपी टिकट वाले लोग वहाँ आकर शिकायत करते हैं, परंतु शिकायत पुस्तिका के अभाव में बात सही जगह तक नहीं पहुँच पाती है। वहाँ बैठे सारे लोग अपने मोबाईल में सिर घुसाये मिले।

बाबा महाकाल के हम भक्त हैं, और महाकाल में प्रशासन के नाम पर लूटने वाले लोग और मानवीयता को शर्मसार करने वाले प्रशासनिक अधिकारी जो कि अपने अपने ए.सी. केबिन में बैठकर सुस्ताते रहते हैं, उम्मीद है कि वे भी महाकाल के भक्त होंगे और भक्तों की तकलीफ को समझेंगे। शिकायत पुस्तिका केवल महाकाल प्रशासनिक कार्यालय में ही क्यों उपलब्ध है, यह तो वीआईपी दर्शन के दरवाजे पर भी उपलब्ध होनी चाहिये, जहाँ टिकट मिलते हैं उस काऊँटर पर भी उपलब्ध होनी चाहिये।

वीआईपी काऊँटर पर लिखा हुआ है कि कार्ड से भी भुगतान स्वीकार किया जाता है, परंतु जिस समय हम पहुँचे तो काऊँटर क्लर्क किसी और को बैठाकर कहीं चला गया था और उन सज्जन को कार्ड की स्वाईप मशीन ही नहीं मिल रही थी, और हमें यह भी कहा कि उन्हें कार्ड की स्वाईप मशीन का उपयोग करना ही नहीं आता है। समझ नहीं आता कि महाकाल प्रशासन हर जगह महाकाल भक्तों से शुल्क वसूलने में लगा है, जैसे कि भस्मारती पर अब ऑनलाईन 100 रूपये और ऑफलाईन 10 रूपये का शुल्क वसूला जा रहा है। परंतु भक्तों को सुविधाओं के नाम पर केवल असुविधा ही मिल रही है।

महाकाल केवल अब वीआईपी लोगों के लिये ही सुविधाजनक है, सामान्य भक्त के लिये प्रशासन सारी मानवीय मूल्यों को भूल चुका है। उम्मीद है कि मेरी यह शिकायत महाकाल प्रशासक और उज्जैन कलेक्टर तक जरूर पहुँचेगी।

उज्जैन और सिंहस्थ 2016 के बारे में

उज्जैन विश्व के प्राचीन शहरों में है, और प्राचीन शहर ऊँगलियों पर गिने जा सकते हैं। उज्जैन सदियों से पवित्र एवं धार्मिक नगर के रूप में प्रसिद्ध रहा है। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने यहाँ शासन किया उनके नाम पर ही भारत में विक्रम संवत चलता है। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के नौ रत्न थे महाकवि कालिदास, वेताल भट्ट, वराहमिहिर, वररूचि, अमरसिंह, धनवंतरी, क्षपणक, शंकु और हरिसेना। अपने अपने क्षैत्र में सारे रत्न धुरंधर थे।

महाकवि कालिदास की प्रसिद्ध कृतियाँ हैं मालविकाग्निमित्रम, अभिज्ञान शाकुंतलम, विक्रमोवर्शीयम, रघुवंशम, कुमारसंभवम, ऋतुसंहारं, मेघदूतं जिनको पढना और समझना अद्भुत है। वराहमिहिर ज्योतिष के विद्वान थे उनकी प्रसिद्ध कृति है पंचसिद्धान्तिका। वररूचि संस्कृत व्याकरण के आचार्य थे। अमरकोष अमरसिंह की देन है। धनवंतरी आयुर्वेदाचार्य थे। हरिसेना संस्कृत के कवि थे। उज्जैन महर्षि सांदीपनि की तपोभूमि है तो राजा भृतहरि की योगस्थली, हरिशचन्द्र की मोक्षभूमि और भगवान श्री कृष्ण की शिक्षास्थली भी रहा है।

उज्जैन में Drive लेकर प्राचीन शनि मंदिर, राजा जयसिंह द्वारा बनवाई गई वेधशाला, चिंतामन गणेश मंदिर, हाशमपुरा जैन मंदिर, अवंतिनाथ पार्श्वनाथ जैन मंदिर, श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, बड़ा गणपति, सम्राट विक्रमादित्य का सिंहासन, हरसिद्धी देवी, रामघाट, गैबी हनुमान मंदिर, गोपाल मंदिर, अंकपात, कालभैरव मंदिर, गढ़कालिका मंदिर, भृतहरि गुफा, योगी मत्स्येन्द्रनाथ की समाधि, सिद्धवट, कालियादेह पैलेस, मंगलनाथ, अंगारेश्वर, महर्षि सांदीपनी आश्रम, इस्कान मंदिर, फ्रीगंज स्थित घंटाघर, सिंधिया प्राचीन अनुसंधान केन्द्र, वाकणकर शोध संस्थान, कालिदास अकादमी देखा जा सकता है।

उज्जैन के प्राचीन और ऐतिहासिक स्थानों की Design देखने योग्य हैं। भूतभावन श्री महाकालेश्वर मंदिर का बारह ज्योतिर्लिंगों में विशिष्ट स्थान है, श्री महाकालेश्वर शिवलिंग दक्षिणमुखी होने के कारण विशेष महत्व रखता है, महाकाल मंदिर के गर्भगृह की छत पर लगा रूद्र यंत्र विशेष दर्शनीय है और इसका वैज्ञानिक महत्व है। मंगलनाथ को भगवान मंगल का जन्म स्थान माना जाता है, कहते हैं कि यहाँ भातपूजा से मंगल का असर कुँडली पर विशेष प्रभाव डालता है, कर्क रेखा उज्जैन से गुजरती है इसी कारण राजा जयसिंह ने उज्जैन में वेधशाला का निर्माण करवाया था, जिसे जंतर मंतर भी कहा जाता है, सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, भित्ति यंत्र, दिगांश यंत्र और शंकु यंत्र को वैज्ञानिक तरीके से बनाया गया है और आज भी बहुत से लोग यहाँ पर शोध करने आते हैं।

उज्जैन बस, ट्रेन और वायु तीनों संसाधनों से Connect है, उज्जैन इंदौर से केवल 55 किमी की दूरी पर स्थित है, मुँबई, दिल्ली, चैन्नई और कलकत्ता से सीधे ट्रेन यहाँ के लिये उपलब्ध हैं, बसों से भी उज्जैन पहुँच सकते हैं। अगर आप वायुयान से यात्रा कर रहे हैं तो निकटतम हवाईअड्डा इंदौर है और लगभग सभी बड़े शहरों से सीधे फ्लाईट उपलब्ध है, इंदौर हवाईअड्डे से उज्जैन टैक्सी के द्वारा या बस के द्वार पहुँचा जा सकता है।

उज्जैन में 2016 में सिंहस्थ महापर्व होने वाला है जो कि 22 अप्रैल से 21 मई 2016 (30 दिनों) के दौरान होगा। सिंहस्थ को कुँभ मेले के नाम से भी जाना जाता है और यह बारह वर्षों में एक बार उज्जैन में लगता है, उज्जैन में यह महापर्व सिंह राशि में होता है इसलिये यह सिंहस्थ कहलाता है। इस बार सिंहस्थ का कुल क्षैत्र 3000 हेक्टेयर से ज्यादा होगा, सिंहस्थ को दौरान होने वाले स्नानों में स्नान करने का विशेष महत्व है।

उज्जैन Made of Great है, जीवन में एक बार उज्जैन आना आपके जीवन को सुकून से भरने के लिये पर्याप्त है।

पाँच काम बिल्कुल बेफिकर उमरभर करना चाहता हूँ

    हर कोई चाहता है कि हमेशा बेफिकर उमरभर रहे पर ऐसा होता नहीं है, सब जगह मारामारी रहती है, कोई न कोई फिकर हमेशा जान को लगी ही रहती है, और उस फिकर की फिकर में हम अपने जीवन में जो कुछ करना चाहते हैं, वो सब भूल जाते हैं या यूँ भी कह सकते हैं कि पेट की आग के आगे अपने शौकों को तिलांजली देनी पड़ती है । काश कि हम जीवनफर
बेफिकर रहें तो मैं ये पाँच काम बिल्कुल बेफिकर उमरभर करना चाहता हूँ, जिससे मुझे ये पाँच काम बहुत ही महत्वपूर्ण लगते हैं और ये मेरे लिये हमेशा ही प्राथमिकता भी रही है।
1. गैर सरकारी संगठन शुरू करना – महाकाल के क्षैत्र उज्जैन में एक गैर सरकारी संगठन की स्थापना करना, जिसकी मुख्य गतिविधियाँ हों – 
 
अ.     बच्चों की ऊर्जा को सकारात्मक रूख देना, जिससे बच्चे अपनी ऊर्जा का उपयोग अपनी मनपसंदीदा गतिविधियों में कर पायें और अपने शौक को पहचान कर जुनून में बदल पायें।
आ.  आधुनिक श्रम केक्षैत्र में हमारे आजकल के नौजवान खासकर गाँव के नौजवान जो इंजीनियरिंग या कोई और
पढ़ाई नहीं कर पाये, उनकी प्रतिभा को निखारकर उन्हें आधुनिकतम तकनीक के बारे में जानकारी देना और उनका मार्गदर्शन करना, जिससे वे अपने जीवन स्तर को उच्चगुणवत्ता के साथ जी पायें और समाज को नई दिशा दे पायें।
इ.   निजी वित्त से संबंधित परिसंवाद गाँव गाँव आयोजित करना जिससे छोटी जगहों के लोग भी आजकल बाजार में उपलब्ध जटिल वित्तीय उत्पादों में निवेश कर पायें और एजेन्टों द्वारा किसी भी तरह के उत्पादों के खरीदे जाने से बच सकें।

2. किताबें पढ़ना – किताबें पढ़ने के बहुत शौक है, हर वर्ष बहुत सारी किताबें खरीद लेता हूँ, और नई किताबें अधिकतर तभी लेती हूँ जब पास में रखी किताबें पढ़ चुका होता हूँ, कोशिश रहती है कि महीने में कम से कम एक किताब तो पढ़ ही ली जायें,
मुझे हिन्दी की साहित्यिक किताबें पढ़ना बहुत भाता है, अभी हाल ही में लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जीवनी
सरदार और आचार्य विष्णु प्रभाकर की जीवनी का प्रथम भाग पंखहीन पढ़ा है, अभी तक की पढ़ी गई किताबों में सर्वश्रेष्ठ किताब सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय की शेखर एक जीवनी लगी । 

3.   कहानी और नाटक लिखना लिखना अपने आप को अंदर से जानना होता है और जब कोई हमें पढ़ता है तो वह हमें अंदर तक जान लेता है, हम क्या बताना चाहते हैं, कैसे शब्दों को ढ़ालते हैं, पात्रों को कैसे रचते हैं, कैसे हम पाठक को अपनी भाषाशैली से और विभिन्न सामाजिक उदाहरणों से प्रभावित करते हैं, कई पाठकों के लिये कुछ किताबें उनके जीवन की धुरी हो जाती हैं, इस तरह की कहानियाँ और नाटक मैं अपने पाठकों के लिये लिखना चाहता हूँ। 
4. महाकाल की आरती के नित्य दर्शन करना – जब होश सँभाला तब पाया कि बाबा महाकाल की अनन्य भक्ति में कब मैं घुलमिल गया हूँ, कब ये मेरी जीवनशैली में इतना घुलमिल गया कि मैं उस भक्ति में पूरा डूब चुका हूँ, पता ही नहीं चला। मेरे जीवन के इस दौर में भी मैं भले ही उज्जैन से इतनी दूर हूँ पर बाबा महाकालेश्वर में मन इतना रमा हुआ है कि मैंने कब बाबा महाकाल का ब्लॉग बना दिया और फिर उस ब्लॉग पर फोटो भी गाहे बगाहे अपलोड करता रहता हूँ कि मेरे साथ ही साथ उनको भी दर्शन हों जो महाकाल से जुड़ना चाहते हैं। महाकाल की आरती बहुत ही भव्य और आनंदमयी होती हैं, मैं अपना तन मन सब भूल जाता हूँ, कई वर्षों पहले संझा आरती में लगभग रोज ही मैं बाबा महाकाल की आरती में घंटे बजाता था, और निश्चय ही यह सौभाग्य बाबा महाकाल की असीम कृपा के कारण ही मुझे प्राप्त हुआ होगा। हालांकि आजकल भक्तों को यह सेवा करना निषेध कर दिया गया है। 
5. हैकर बनना – जब डायलअप इंटरनेट का दौर था, तब हमने पहली बार हैकिंग की शुरूआत की थी, चुपके से दूसरे के घर से उसका आई.पी. लेते थे और फिर हमारे पास एक हैकिंग सॉफ्टवेयर था जिससे हम उसके कम्प्यूटर को नियंत्रित कर लेते थे, और हमारा मित्र बेबस सा देखता रह जाता था। हैकिंग में बहुत कुछ नया करने को है, जिससे हम आधुनिक सुरक्षा प्रणाली को और मजबूत बनाने में सहयोग कर सकते हैं। 
 

उज्जैन उज्जयिनी महाकाल महाकालेश्वर महामृत्युँजय जाप जल एवं दुग्ध अभिषेक भस्मारती दर्शन (Ujjain Mahakal Mahakaleshwar Mahamrityunjaya Jaap Bhasma Aarti)

    कालों का काल महाकाल के दर्शन करने उज्जैन दूर दूर से भक्त आते हैं, उज्जयिनी और अवन्तिका नाम से भी यह नगरी प्राचीनकाल में जानी जाती थी। स्कन्दपुराण के अवन्तिखंड में अवन्ति प्रदेश का महात्म्य वर्णित है। उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर को मंगल गृह का जन्मस्थान माना जाता है, और यहीं से कर्क रेखा भी गुजरती है। महाकालेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में दक्षिणमुखी होने के कारण प्रमुख स्थान रखता है, महाकालेश्वर मंदिर में अनेकों मंत्र जप जल अभिषेक एवं पूजा होती हैं। महाकालेश्वर में ही महामृत्युँजय जाप भी होता है।

महाकाल
महाकाल

 

महामृत्युँजय जाप –

    महामृत्युँजय जाप में महाकालेश्वर प्रशासन द्वारा 11,000 रू का शुल्क निर्धारित है, जिसमें पंडे 11 या 21 पंडितों से जाप करवाते हैं, मंत्र का जाप जिसके लिये किया जाता है उस व्यक्ति को या तो वहाँ उपस्थित रहना होता है या फिर फोन पर भी उस व्यक्ति से संकल्प ले लिया जाता है, जिस दिन सवा लाख मंत्र जाप पूरे होते हैं, उस दिन भी उस व्यक्ति से फोन पर ही जाप की पूर्णता करवा ली जाती है। जाप की पूर्णता के दिन पंडितों को दान दक्षिणा भी देना होती है। जब भी महामृत्युँजय जाप करवायें ध्यान रखें महाकाल मंदिर के काऊँटर पर ही रसीद कटवायें नहीं तो पंडे पुजारी आपकी जेब काट लेंगे।
 

महाकाल अभिषेक –

    जल एवं दुग्ध अभिषेक महाकालेश्वर को होते हैं, आप अपने साथ भी जल या दुग्ध ले जा सकते हैं या फिर मंदिर के पास ही दुकानों पर लोटों में जल व दुग्ध उपलब्ध रहता है, ध्यान रखें पोलिथीन की थैली से दूध या जल चढ़ाना मना है, इसलिये किसी बर्तन का ही उपयोग करें।
 

महाकाल भस्मारती दर्शन –

    महाकालेश्वर में रोज सुबह 4 बजे भस्मारती होती है, जिसमें भस्म से महाकाल ज्योतिर्लिंग को स्नान करवाया जाता है, पूरे ब्रह्मांड में राजा महाकाल ही भस्म से नहाते हैं, भस्मारती का उद्देश्य महाकालेश्वर का सुबह जागरण होता है, भस्मारती के लिये ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है जिसका कोई शुल्क नहीं है, भस्मारती के पहले हरिओम जल चढ़ाना है तो आपको शुद्ध होकर धोती पहनकर लोटे में जल लेकर जाना होता है, अगर बहुत भीङ है तो ध्यान रखें कि सुबह थोङा जल्दी लाईन में लगें, क्योंकि आजकल लगभग 2000 दर्शनार्थियों को प्रवेश दिया जाता है। कोशिश करें कि ऑनलाईन ही आप भस्मारती की बुकिंग करवा लें, अगर न करवा पायें तो मंदिर के काऊँटर पर फॉर्म जमा करवाकर भी भस्मारती का पास ले सकते हैं, ऑनलाईन बुकिंग के बाद पास का प्रिंट जरूर ले लें और साथ में अपना एवं साथ के दर्शनार्थियों के मौलिक (original) फोटो आई.डी. जरूर रख लें, भस्मारती में फोटो आई.डी. के बिना प्रवेश नहीं दिया जाता है।
महाकालेश्वर जायें और अगर भस्मारती के दर्शन नहीं किये तो ये जान लें कि महाकालेश्वर का जागृत स्वरूप देखने से आप वंचित रह गये।

देवाधिदेव भगवान महाकाल

ब्रहमाण्ड के तीन लोकों में जिन तीन शिवललिङ्गों को सर्वपूज्य माना गया है, उनमें भूलोक-पृथ्वी पर भगवान् महाकाल को ही प्रधानता मिली है –

आकाशे तारकं लिङ्गं, पातालं हाटकेश्वरम् ।

भूलोक च महाकालोः लिङ्गत्रय ! नमोस्तुते ।।

( आकाश में तारक-लिङ्ग, पाताल में हाटकेश्वर तथा भू-लोक में महाकाल के रूप में विराजमान लिङ्गत्रय, आपको नमस्कार है ।)

और पर्याप्त विशाल भूलोक में महाकाल शिवलिङ्ग कहाँ है ? इस जिज्ञासा की पूर्ति के लिए वराहपुराण में तैत्तिरीय श्रुति के प्रमाण से कहा गया है कि –

नाभिदेशे महाकालस्तन्नाम्ना तत्र वै हरः ।

(नाभिदेश में महाकाल नाम से वे शिव वहाँ विराजमान हैं। )

यह नाभिदेश उज्जयिनी ही है और यहाँ विराजमान भगवान महाकाल ही भूलोक के प्रधान पूज्य देव हैं। सृष्टि का प्रारम्भ महाकाल से ही हूआ यह भी स्पष्ट है –

कालचक्रप्रवर्तको महाकालः प्रतापनः ।

कालचक्र के प्रवर्तक महाकाल प्रतापशाली हैं और इस कालचक्र की प्रवर्तना के कारण ही भगवान् शिव महाकाल के रूप में सर्वमान्य हुए।

उज्जयिनी का गौरव महाकाल से है और महाकाल का गौरव है उज्जयिनी। परस्पर गौरव-साम्य होने पर भी महाकाल की महिमा अपूर्व ही है। और शिवपुराण (ज्ञानसंहिता 38) में द्वादश ज्योतिर्लिङ्गों की सूचि और उनकी कथाएँ प्राप्त होती हैं।

महाकाल स्थित श्रीनागचंद्रेश्वर नागपंचमी और हमारी यादें

    महाकाल स्थित तृतिय मंजिल पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है, जो कि ऐतिहासिक है और महाकाल जितना ही पुरातन है। नागचंद्रेश्वर की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वर्ष में केवल २४ घंटे के लिये याने के नाग पंचमी के दिन ही खुलता है।
    धार्मिक मान्यता है कि यहाँ तक्षक का वास है। और हमने कई लोगों के मुंह से सुना भी है कि उन्होंने सफ़ेद नाग का जोड़ा यहाँ देखा है, हर वर्ष किसी न किसी के मुंह से यह सुनते आये हैं, कहते हैं कि नागपंचमी के दिन सफ़ेद नाग का जोड़ा और एक सफ़ेद कबूतर यहाँ दर्शन करने को आते हैं और फ़िर अंतर्धान हो जाते हैं, पता नहीं कितनी सच्चाई है। लोग कहते हैं और धार्मिक मान्यता है इसलिये हम नकार भी नहीं सकते हैं।
    जब उज्जैन में थे तो लगभग हर वर्ष बिना नागा नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने जाते थे। कभी भी ५-६ घंटे की लाईन से कम में दर्शन नहीं हुए, पर हम हमेशा बहुत खुश रहते थे। आखिरी बार हम अपनी माताजी के साथ स्पेशल दर्शन का टिकट लेकर गये थे तो भी लगभग १ घंटा लग गया था।
   जब हम पढ़ते थे तो सभी दोस्त आपस में मजाक करते थे, और एक दूसरे के घर पर जाकर बाहर से आवाज लगाते थे “पिलाओ साँप को दूध”।
   नाग पंचमी के दिन सुबह से ही सँपेरों की लाईन लगी रहती थी और “पिलाओ साँप को दूध” की आवाजें सुनाई देती थीं।
    आज फ़िर नागपंचमी के अवसर पर हम अपने ब्लॉगर दोस्तों को आवाज लगाते हैं –  “पिलाओ साँप को दूध” ।

महाकाल बाबा की शाही सवारी १७ अगस्त को और महाकवि कालिदास का मेघदूतम में महाकाल वर्णन..

श्रावण मास के हर सोमवार और भाद्रपद की अमावस्या तक के सोमवार को महाकाल बाबा की सवारी उज्जैन में भ्रमण के लिये निकलती है, कहते हैं कि साक्षात महाकाल उज्जैन में अपनी जनता का हाल जानने के लिये निकलते हैं, क्योंकि महाकाल उज्जैन के राजा हैं। इस बार महाकाल बाबा की शाही सवारी १७ अगस्त को निकल रही है, राजा महाकाल उज्जैन में भ्रमण के लिये निकलेंगे। अभी विगत कुछ वर्षों से, पिछले सिंहस्थ के बाद से अटाटूट श्रद्धालु उज्जैन में आने लगे हैं। अब तो शाही सवारी पर उज्जैन में यह हाल होता है कि सवारी मार्ग में पैर रखने तक की जगह नहीं होती है।

महाकाल बाबा की सवारी पालकी में निकलती है, सवारी के आगे हाथी, घोड़े, पुलिस बैंण्ड, अखाड़े, गणमान्य व्यक्ति, झाँकियां होती हैं। महाकाल बाबा की सवारी लगभग शाम को चार बजे मंदिर से निकलती है, और रात को १२ बजे के पहले वापस मंदिर पहुँच जाती है। महाकाल बाबा के पालकी में दर्शन कर आँखें अनजाने सुख से भर जाती हैं।

हम इस बार ३ दिन की छुट्टियों पर उज्जैन जा रहे थे और १७ को वापिस आना था, फ़िर बाद में पता चला कि १७ अगस्त की महाकाल बाबा की शाही सवारी है तो सवारी के दौरान महाकाल बाबा के दर्शन करने का आनन्द का मोह हम त्याग नहीं पाये और २ दिन की छुट्टियाँ बड़ाकर उज्जैन जा रहे हैं।

महाकवि कालिदास ने “मेघदूतम” के खण्डकाव्य “पूर्वमेघ” में महाकाल के लिये लिखा है –

यक्ष मेघ से निवेदन करता है कि तुम वहाँ उज्जयिनी के महाकाल मन्दिर में सन्धयाकालीन पूजा में सम्मिलित होकर गर्जन करके पुण्यफ़ल प्राप्त करना

अप्यन्यस्मिञ्जलधर महाकालमासाद्य काले

स्थातव्यं ते नयनविषयं यावदत्येति भानु: ।

कुर्वन्सन्ध्याबलिपटहतां शूलिन: श्लाघनीया-

माम्न्द्राणां फ़लमविकलं लप्स्यसे गर्जितानाम ॥३७॥

अर्थात –

“हे मेघ ! महाकाल मन्दिर में अन्य समय में भी पहुँचकर जब तक सूर्य नेत्रों के विषय को पार करता है (अस्त होता है) तब तक ठहरना चाहिये। शुलधारी शिव की स्न्ध्याकालीन प्रशंसनीय पूजा में नगाड़े का काम करते हुए गम्भीर गर्जनों के पूर्ण फ़ल को प्राप्त करोगे।”

महाकाल बाबा की तस्वीरें देखने के लिये यहाँ चटका लगायें।

जय महाकाल बाबा, राजा महाकाल की जय हो।

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