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जुहु गोविंदा रेस्त्रां, समुद्र का किनारा, अमिताभ का घर और बुलेट ।

    सुबह मित्र को फ़ोन किया कि इस सप्ताहांत का क्या कार्यक्रम है, उनसे मैं शायद ३ वर्षों बाद मिल रहा था और ये मित्र मेरे आध्यात्मिक जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। ये आध्यात्म को इतने गहरे से समझना और किसी और की जरूरत को समझने वाले मैंने वाकई बहुत ही कम लोग देखे हैं। उन्होंने कहा कि मैं ऑफ़िस से सीधा आपको लेने आ रहा हूँ फ़िर जुहु इस्कॉन स्थित गोविंदा रेस्त्रां में आज दोपहर का भोजन ग्रहण किया जायेगा।

    दोपहर में बिल्कुल समय पर हमारे मित्र हमें लेने आ गये और फ़िर amitabhहम चल दिये जुहु, एक सिग्नल पर हमारे मित्र ने बताया कि यह सामने जो घर है युगपुरूष अमिताभ बच्चन का घर है, तो सहसा ही अमिताभ का चेहरा आँखों के सामने घूम गया और अभी हाल ही में आई फ़िल्म बॉम्बे टॉकीज के अमिताभ बच्चन के ऊपर फ़िल्माये गये दृश्य याद हो आये। फ़िर लगा व्यक्ति कितना भी सफ़ल हो, परंतु रहना तो उसे धरती पर ही है और रहना भी घर में ही है, बस वह जिन ऐश्वर्य का सुख भोग सकता है वह हर कोई नहीं भोग सकता ।

  iskcon-juhu-govindas-01  गलियों में से होते हुए हम गोविंदा रेस्त्रां की तरफ़ बड़ रहे थे, इतने में तेज बारिश आ गई, मौसम खुला हुआ था, तेज धूप निकली हुई थी। मुंबई में यही खासियत है कब बारिश आ जाये कोई भरोसा नहीं। हम गोविंदा रेस्त्रां पहुँच चुके थे, वहाँ दरवाजे पर हमारी और समान की सुरक्षा जाँच हुई और हम रेस्त्रां में दाखिल हुए, संगमरमर की सीढ़ियों से होते हुए एक विशाल हॉल में आये जहँ  बैठने के लिये सोफ़े लगे हुए थे, जिनसे यह प्रतीत होता था, कि यहाँ पर प्रतीक्षारत लोगों को बैठाया जाता है, जब रेस्त्रां में जगह नहीं होती होगी। यहाँ दोपहर का भोजन ३.३० तक होता है।

    रेस्त्रां अंदर से बहुत अच्छी तरह से सुसज्जित था और बहुत सारे लोग govinda-sभोजन से तृप्त हो रहे थे। यहाँ पर खाना बफ़ेट होता है, विभिन्न प्रकार के सलाद, पकोड़े, चाट  पनीर की सब्जियाँ, रोटी, चावल, रायता और मिठाईयाँ उपलब्ध थीं। खाना बहुत ही स्वादिष्ट था, साथ में फ़लों का रस, केहरी पना और मठ्ठा भी परोसा जा रहा था। खाने के बाद में आइसक्रीम का प्रबंध भी था। और इस सबके लिये एक व्यक्ति के खाने का खर्च ३५०/- खाने के हिसाब से हमें ठीक लगा । हालांकि अगर आजकल के आधुनिक बफ़ेट रेस्त्रां में और महँगा होता है परंतु यहाँ खाने का स्वाद, गुणवत्ता एवं इतने प्रकार की खाद्य पदार्थ के सामने  आधुनिक रेस्त्रां का टिकना मुश्किल है। खैर यह तो अपनी अपनी पसंद है।

    भोजन से तृप्त होकर हम बाहर निकले और हमारे मित्र ने पूछा कि जुहु बीच चलोगे, हमने कहा बिल्कुल चलो हमें लहरों की आवाज सुनने का सुखद आनंद लेना है, मचलती और वेगों से आती लहरों को देखना है, वहाँ से पैदल ही हम जुहु बीच की और चल दिये मुश्किल से ५ मिनिट में हम जुहु बीच पर थे, प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य को मानव किस तरह से नष्ट करता है, जुहु बीच इसका जीवंत उदाहरण है, बीच पर जहाँ तक देखो वहाँ तक कचरा और पोलिथीन बिखरे पड़े थे। जोड़े कहीं ना कहीं एकांत ढूँढ़ रहे थे। बहुत से युगल हाथों में हाथ डाल बीच पर समुद्र के किनारे टहल रहे थे। जो पहली बार आये थे समुद्र देखने वे और कुछ मनमौजी लोग समुद्र के पानी में भीगने गये हुए थे। पता नहीं इतने गंदे पानी में कैसे भीग सकते हैं, अगर समुद्र का पानी साफ़ हो तो नहाने का अपना अलग मजा है। बीच पर समुद्र के पास शांति से थोड़ा समय बिताने के बाद वापस जाना निश्चय किया गया।

    समय साथ में बिताना था, तो हम मित्र के फ़्लेट में उनके साथ ही चल दिये, खाने के बाद का नशा अब चेहरों पर दिखने लगा था, सोचा थोड़ा लोट लगा ली जाये और फ़िर बातें की जायेंगी, खैर बातें तो जारी ही थीं। थोड़ी देर आराम करने के बाद अचानक ही एक मित्र के बारे में बात होने लगीं, वे भी पास ही में रहते थे। उनसे फ़ोन पर बात की गई और उनके यहाँ जाने का निश्चय किया गया। हमारे मित्र ने हमसे कहा Bulletआप अब हमारी बुलेट से चलो, और आप ही बुलेट चलाओ। हमने कहा कि हमने तो वर्षों पहले बुलेट चलाई थी, तो पता नहीं चला पायेंगे या नहीं। हमारे मित्र बोले आप चिंता मत करो, आराम से चला पाओगे। हमने भी बुलेट की सवारी की और देखा कि बुलेट में भी बहुत सारे आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध करवा दी गई हैं। अब केवल बटन दबाने पर भी बुलेट शुरू हो जाती है और बुलेट की आवाज मन को सुहाती है। बुलेट की सवारी राजा सवारी कहलाती है। आदमी बुलेट पर ही असली जवाँ मर्द दिखता है, लोग उसी की और देखते हैं, बहुत सारे बदलाव बुलेट चलाने के दौरान महसूस हुए, पर वर्षों बाद ऐसा लगा कि वाकई बुलेट ही असली दोपहिया सवारी है।

    अपने दूसरे मित्र के घर पहुँचे जो हमारे पारिवारिक मित्र हैं, वहाँ बातों का जो दौर चला, समय का पता ही नहीं चला, हमने मित्रों से विदा ली, हमारे मित्र ने कहा इधर ही रुक जाओ, हमने कहा, नहीं हम जहाँ रुके हैं वह भी पास ही है तो हम वहीं जाते हैं। (जब हम खाना खाने के बाद मित्र के घर लोटने पहुँचे तो देखा कि उनके यहाँ गद्दे नहीं हैं, वे तो चटाई पर ही सोते हैं, वे पक्के भक्त आदमी हैं, हमारी परेशानी को समझ उन्होंने हमारे लिये उनके पास रखी रजाई को चटाई पर बिछाकर थोड़ा गद्देदार बनाने का प्रयास किया, हम भी लोट लिये, परंतु आरामतलब शरीर १० मिनिट से ज्यादा नहीं लेट सका) और हमने उनसे कहा कि कामना तो गद्दे पर सोने की ही है, इसलिये भी जाना ही चाहिये।

    इस प्रकार अपने मित्रों से मिलकर उनके साथ समय बिताकर आत्मा तृप्त हो गई।

पैसे पेड़ पर उगते हैं पता बता रहे हमारे बेटे लाल…

जब हम घर पर रहते हैं तो बेटेलाल को हम ही सुबह उठाते हैं, और कुछ संवाद भी हो जाते हैं, कुछ दिनों पहले महाराज अपनी एक किताब गुमा आये और अब बोल रहे हैं कि पैसे दे दीजिये हम नई किताब खरीद लायेंगे। अपनी आदत के अनुसार हमने कह दिया “पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं” और अब तो यह हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी पुष्ट कर दिया है।

हमने कहा बेटेलाल पहले जाकर अपनी किताब ढूँढ़ो जैसे डायरी गुमी थी और बाद में मिल गई वैसे ही वह भी मिल जायेगी, चिंता मत करो। पर ये महाराज आश्वस्त हैं नहीं मिलेगी। तभी हमने फ़िर से बोला बेटा पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं, तो हम तो इसके लिये पैसे नहीं देने वाले हैं।

पैसे का पेड़

हमें तभी बेटेलाल का जबाब मिला “हमें कुछ नहीं पता, हमें तो किताब लेनी है, और पैसे चाहिये!!!”, हमने फ़िर से कहा बेटा पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं, कहते हैं – “पैसे पेड़ पर उगते हैं”, हमने कहा फ़िर पता बताओ हम अभी वहीं से पैसे तोड़ लाते हैं और प्रधानमंत्री जी को भी बता देते हैं, बेटेलाल पूछते हैं कि ये प्रधानमंत्री जी कहाँ रहते हैं, हमने कहा दिल्ली में रहते हैं, बेटेलाल कहते हैं “उईई मैं तो इतनी दूर नहीं जा रहा उनको बताने कि पैसे का पेड़ कहाँ है”, हमने कहा अच्छा हमें तो बता दो।

बेटेलाल कहते हैं “वो पेड़ यहाँ बैंगलोर में थोड़े ही है, वह तो जयपुर में है, जयपुर में कांदिवली गाँव है, हमने कहा ओय्ये कांदिवली तो मुँबई में है, तो बेटेलाल कहते हैं अच्छा जयपुर की जगहों के नाम बताओ, हमने कहा हमें भी पता नहीं तो कहते हैं कि पुर्रपुर्रपुरम में है।

खैर यह संवाद तो इतना ही रहा, पर इतने संवाद में यह बात समझ में आ गई कि बेटेलाल को भी पता है कि पैसे का पेड़ नहीं है और कहीं उगते भी नहीं है, उनके लिये तो डैडी ही पैसे का पेड़ हैं, बस डैडी को हिलाओ और पैसे गिरने लगेंगे । मैं भी बेटे की मासूमियत भरी बातों को कहीं और से जोड़कर देखने लगा और अब सोच रहा हूँ कि काश मैं भी बच्चों जैसा पावन पवित्र मन वाला होता और इन बातों को यहीं खत्म कर कहीं किसी और काम में व्यस्त हो जाता ।

धूम्रपान कक्ष, खालिस उर्दू और विमान दल का देरी से आना जेद्दाह यात्रा भाग ३ (Smoking chamber, Urdu and Late Crew Jeddah Travel Part 3)

अपनी कॉफ़ी खत्म करने के बाद वापिस से कस्टम फ़्री के लंबे से हॉल में फ़िर से घूमने लगे, थोड़ी देर बाद थक गये तो सोचा चलो अपने दिये गये द्वार के पास ही बैठा जाये, बीच में एक जगह सिगरेट की कसैली गंध आ रही थी, आस पास देखा तो समझ नहीं आया कि कहाँ से आ रही है, फ़िर हमारे सहकर्मी जो कि हमारे बहुत अच्छॆ मित्र भी हैं, उन्होंने इशारे में सिगरेट की गुमटी जैसी चीज दिखाई, बस अंतर यह था कि यह गुमटी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डॆ के अंदर है, उसके पीछे ही काँच का एक केबिन बना हुआ है, जहाँ लगभग ६ बड़े ऐश ट्रे रखे हुए थे और उस छोटे से धूम्रपान कक्ष में कई लोग धूम्रपान कर रहे थे । लोगों ने अपने सुविधा अनुसार कैसी कैसी चीजें इजाद कर ली हैं ।

जहाँ हमारा द्वार था, वही एक कोने में ३ सीटें खाली थी, जिस पर हम दोनों जाकर पसर लिये, जब हम वहाँ बैठे तो उसी समय कुछ मलेशियन युवतियाँ भी उस सीट की और बढ़ीं थीं, परंतु हमे विराजमान होते देख दूसरी और मुड़ गईं । थोड़ी देर बाद ही एयर इंडिया की कोई फ़्लाईट उड़ने वाली थी तो एयर इंडिया का स्टॉफ़ वॉकी टॉकी लेकर नाम लेकर पुकार रहा था, हवाई अड्डे पर द्वार के पास यह आम बात है ।

उसी दिन से सऊदी में रमजान शुरू हो चुका था और भारत में एक दिन बाद शुरू होने वाला था, इसलिये उमराह करने वाले लोगों की संख्या ज्यादा थी, अधिकतर लोग सफ़ेद कपड़ों में दिखाई दे रहे थे, उमराह (एक तरह से तीर्थयात्रा) करने वाले लोग अपने कपड़ों में अलग ही नजर आ जाते हैं। चूँकि हमारी यह फ़्लाईट मुँबई से सीधी जेद्दाह की थी, इसलिये मुस्लिम धर्मालुओं की संख्या हमें ज्यादा ही दिखाई दे रही थी, बिजनेस के सिलसिले में हमें तो केवल २५-३० लोग ही जाते दिखे, बाकी सब उमराह करने वाले थे।

हमारी फ़्लाईट की उद्घोषणा हुई, उद्घोषणा पहले अंग्रेजी और फ़िर हिन्दी में हुई, हिन्दी में उद्घोषणा सुनकर बहुत खुशी हुई। अपना बोर्डिंग पास लेकर हम भी द्वार पर जा पहुँचे, बोर्डिंग पास का एक टुकड़ा अपने पास रखने के बाद और सुरक्षा टैग पर सील देखने के बाद हमें विमान की और जाने वाली एयरलाईंस की बस में चढ़ा दिया गया, और उसी रास्ते से वापिस हवाईपट्टी पर ले जाने लगे जिस रास्ते से शटल आई थी । और इस बस में बैठने के लिये मात्र ६-८ सीटें होती हैं और बाकी लोगों को केवल खड़ा होना होता है। हमने सोचा देखो जब इमिग्रेशन के लिये छोड़ा था तो कितनी इज्जत के साथ शटल से लेकर गये थे और अब बस में खड़ा करके ले जा रहे हैं।

बस में सब भेड़ बकरियों जैसे ठूँस दिये जाते हैं और कई लोग थे जो पहली बार ही हवाई यात्रा कर रहे थे और कई लोग थे जो पहली बार अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा कर रहे थे, अधिकतर उमराह वाले थे, बस में हमारे पास ही दो तीन परिवार खड़े थे जो कि फ़ोन पर अपनी सलामती की खबर दे रहे थे और लोगों की दुआ ले रहे थे क्योंकि वाकई मक्का जाना सबकी किस्मत में कहाँ होता है।

कई बार खालिस उर्दू ही कानों में सुनाई देती थी, उर्दू का अपना ही एक अदब है एक लहजा है और एक शालीनता है।

हवाई पट्टी पर हमारी बस पहुँच चुकी थी और हम बस से उतरने ही वाले थे कि पता चला कि अभी तक हवाई जहाज का उडानदल पहुँचा नहीं है, उडान दल भी हमारी बस में से आगे के दरवाजे से उतरा और हमें बताया गया कि  लगभग ५ मिनिट इंतजार कीजिये और दल ने हवाई जहाज में जाकर पहले आना समान रखा और जो भी प्राथमिक औपचारिकताएँ होती हैं वे पूरी करीं और फ़िर ग्राऊँड स्टॉफ़ को निर्देशित किया गया कि यात्रियों को भेजा जाये।

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जब सीढ़ियों से विमान में चढ़ रहे थे तो विमान के बड़े पंखे और बड़े प्रोपेलर देखते ही बनते थे, प्रोपेलर पर स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि प्रोपेलर के आगे किसी भी मानव का खड़ा होना निषेध है, अब अपन कोई वैज्ञानिक तो है नहीं, हो सकता है कि ये प्रोपेलर में इतनी ताकत होती हो कि वह मानव को अपने अंदर खींच ले । विमान में दोनों तरफ़ दरवाजे होते हैं, मतलब आगे और पीछे की तरफ़, परंतु उस दिन संसाधनों की कमी के वजह से एक ही दरवाजा आगे वाला खोला गया था।

विमान के अंदर पहुँचे तो विमान देखकर लगा कि यह तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सेवा नहीं है, क्योंकि इसके पहले भी हम वाया दुबई होकर एक यात्रा कर चुके थे, तो अब हम स्पष्ट रूप से अंतर कर सकते थे। खैर अपना समान रखा और अपनी खिड़की वाली सीट सँभाली, खिड़की वाली सीट का अपना ही एक महत्व होता है, चाहे बच्चा हो या वृद्ध सबको खिड़की वाली सीट ही चाहिये होती है।

थोड़ी देर बाद टीवी स्क्रीन अवतरित हुई जिसमें लगभग एक ही पंक्ति के १६ लोग देख सकते थे, और आवाज सुनने के लिये अपनी सीट पर हेडफ़ोन को लगाना था, और फ़िल्म “कहानी” शुरू हुई, हालांकि हमने फ़िल्म देखी हुई थी परंतु करने के लिये और कुछ था भी नहीं सोचा चलो एक बार और देख ली जाये, फ़िर खाना भी साथ में खा लिया गया। और फ़िल्म खत्म होने के बाद और कुछ करने के लिये था ही नहीं, तो मजबूरी में सो लिया गया।

रात ११.४० अरब समय से हम जेद्दाह पहुँच चुके थे और उस समय भारत में लगभग सुबह २.१० हो रहे थे, हमने तब तक अपनी अरब की सिम अपने मोबाईल में लगा ली थी और घर पर फ़ोन करके बता दिया कि हम सही सलामत पहुँच गये हैं।

हवाई अड्डे पर इंतजार और शटल जेद्दाह यात्रा भाग १ (Mumbai Airport & Shuttle Jeddah Travel Part 1)

इमिग्रेशन, सुरक्षा जाँच और अपने घर के परांठे जेद्दाह यात्रा भाग २ [Security, Immigration and Home made Parathe Jeddah Travel Part 2]

इमिग्रेशन, १२० की रफ़्तार, अलग तरह की कारें और रमादान महीना– जेद्दाह यात्रा भाग–४ (Immigration, Speed of 120Km, Different type of Cars and Ramadan Month Jeddah Travel–4)

इमिग्रेशन, सुरक्षा जाँच और अपने घर के परांठे जेद्दाह यात्रा भाग २ [Security, Immigration and Home made Parathe Jeddah Travel Part 2]

भाग १

शटल से मुंबई के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुँच गये, वहाँ कौन से गेट से हमें अंदर जाना है, कोई बताने वाला नहीं था, जब हम गलत गेट पर पहुँच गये तो वहाँ खड़े जवान ने बताया कि आप गलत गेट पर आ गये हैं, आपको तो पहले गेट पर जाना है, हम फ़िर से अपने सही गेट की ओर चल पड़े। बहुत सारे यात्री जो कि मस्कट और दम्माम जा रहे थे, वे भी उसी गेट की ओर चल पड़े क्योंकि वे भी हमारे साथ ही बस से उतरे थे।

मस्कट और दम्माम जाने वाले अधिकतर भारतीय अपनी वेशभूषा से कर्मचारी लग रहे थे, जिससे पता चल रहा था कि ये लोग अपने परिवार के लिये पैसे कमाने के लिये अपना देश छोड़कर दूसरे देश जाने को मजबूर हैं। कई बार न चाहते हुए भी अपने आप की तुलना उनसे कर बैठते थे, हम भी तो यही कर रहे हैं।

गेट पर हमारी सुरक्षा जाँच नहीं की गई केवल बोर्डिंग पास देखा गया, शायद शटल से आने के कारण हमें सुरक्षा जाँच से ढ़ील दे दी गई थी, उसके बाद हम जैसे ही इमारत में प्रविष्ट हुए वहाँ पहला हॉल इमिग्रेशन का था, जहाँ हमें हमारे कागजात अधिकारियों को दिखाने थे और भारत निकास की सील लगाई जाती है, वहाँ निकास पत्र भी भरना होता है जिसमें अपनी तमाम जानकारियाँ देनी पड़्ती हैं।

मुंबई में भी इमिग्रेशन में ज्यादा समय नहीं लगा, साधारणतया: लाईन का खेल होता है, और अधिकारी के ऊपर भी होता है कि उसे कितना तेज काम करना आता है और कितना आलस करना आता है, कुछ अधिकारी बेहद चुस्त होते हैं और फ़टाफ़ट अपनी पैनी निगाहों से सारी जाँच सतर्कता के साथ फ़टाफ़ट पूर्ण कर लेते हैं और कुछ अधिकारी तो कागजात ही पलट कर देखते रहते हैं, ऐसा लगता है कि इनको प्रशिक्षण ही नहीं दिया गया है और फ़िर बाद में यात्री को ही पूछते हैं कि यह कागज कहाँ है, और वह कागज अलग से दिखता रहता है,  बेहतर है कि ऐसे अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये, इस तरह के कारनामों से भारत का बहुत नाम रोशन होता है ।

इमिग्रेशन अधिकारी हमसे पूछते हैं, अरे आपका तो जन्मस्थान मध्यप्रदेश का है फ़िर आप मुँबई में कैसे, हमने कहा कि हम तो बैंगलोर रहते हैं और जाने की फ़्लाईट वाया मुंबई मिली है, तो कहते हैं अच्छा अच्छा, मतलब जन्म होने के बाद आप बैंगलोर चले गये, मन में आया अब इस बुडबक को क्या कहते कि कब गये और क्यों गये, हमने कहा नहीं जी नौकरी के लिये बैंगलोर में रहते हैं, वे बोले अच्छा अच्छा ! और हमें सुरक्षा जाँच पर जाने के हरी बत्ती दे दी गई, हमें अपने कागजात दे दिये गये और हमने अपने कागजात को जांचा और सुरक्षा जांच के लिये चल दिये।

उसी हाल में सुरक्षा जाँच के लिये थोड़ा लंबा चले तो वहाँ देखा कि बहुत भीड़ लगी हुई है, हम भी वहीं खड़े हो गये, तो एक विशिष्ट लाईन अलग से लगी हुई थी, सुरक्षा कर्मी ने हमें उस लाईन में लगने को कहा और हमने अपना जेब का सारा समान मतलब पर्स, घड़ी, सिक्के, मोबाईल और बेल्ट अपने हैंड बैग में रख दिया और लेपटॉप निकालकर ट्रे में रख दिया, फ़िर कई स्तरीय सुरक्षा जाँचों के मध्य से निकले।

जब अपना लेपटॉप बैग में रखने लगे तभी एक सुरक्षा कर्मी ने हम से एक बैग दिखाते हुए पूछा कि क्या यह बैग आपका है, हमने मना किया तो एक और व्यक्ति ने आकर दावा किया तो उन्हें वह बैग खोलने को कहा गया और उसमें लाईटर था, तो सुरक्षाकर्मी ने उनका लाईटर जब्त किया और एक रजिस्टर में उनका पूरा विवरण नोट कर लिया गया, बहुत आश्चर्य होता है कि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सुरक्षा जाँच में विवरण नोट करने के लिये आज भी रजिस्टर का उपयोग हो रहा है, क्यों नहीं इन चीजों का डिजिटलाईजेशन किया जा रहा है, जिससे एजेंसियों को जाँच करने में मदद मिलेगी और किसी छेड़ छाड़ की आशंका भी नहीं रहेगी।

सुरक्षा जाँच के बाद हम अंतर्राष्ट्रीय टर्मिनल के गेटों पर आ गये जहाँ कि गेटों की संख्या निर्देशित थी, और यात्री उन निर्देशों को देखकर अपने प्रस्थान द्वार पर जा सकते हैं। हमारे पास काफ़ी समय था, तो हम कस्टम फ़्री एरिया देखने के लिये निकल पड़े, क्योंकि जहाँ से हमारे फ़्लाईट थी वहाँ उस प्रस्थान द्वार के पास बहुत भीड़ थी, पहले हमने अपने घर के पराठे खाये और फ़िर चाय काफ़ी के लिये निकल पड़े। सभी चीजों के भाव देखकर हमें लगने लगा कि हम वाकई अब भारत के बाहर आ गये हैं और अंतर्राष्ट्रीय हो गये हैं, क्योंकि सारे भाव अंतर्राष्ट्रीय बाजार के ही लग रहे थे। फ़िर भी कहीं एक कोने में हमें ठीक ठाक भाव वाली कॉफ़ी मिल गई और हमने वहाँ से कॉफ़ी लेकर आराम से बैठकर पेय का आनंद लिया ।

वहीं पर एक प्रार्थना कक्ष बना हुआ था जिस पर कि सभी धर्मों के निशान बने हुए थे पर वहाँ केवल मुस्लिम धर्मावलम्बी अपनी प्रार्थना अदा कर रहे थे, और कोई दिख भी नहीं रहा था, पर हमें अच्छी बात यह लगी कि यहाँ किसी विशेष धर्म के लिये प्रार्थना कक्ष नहीं बना है, जबकि लगभग सभी जगहों पर हमने देखा है कि विशेष धर्म के निशान के साथ प्रार्थना कक्ष बना है। अंतर्राष्ट्रीय स्थलों पर सर्वधर्म समान समझना चाहिये और सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करना चाहिये।

प्रार्थना कक्ष

प्रार्थना कक्ष

मुंबई हवाई अड्डे पर

दुबई स्थित प्रार्थना कक्षधर्म विशेष प्रार्थना कक्ष

दुबई हवाई अड्डे पर                              सिंगापुर हवाई अड्डे पर

हवाई अड्डे पर इंतजार और शटल जेद्दाह यात्रा भाग १ (Mumbai Airport & Shuttle Jeddah Travel Part 1)

धूम्रपान कक्ष, खालिस उर्दू और विमान दल का देरी से आना जेद्दाह यात्रा भाग ३ (Smoking chamber, Urdu and Late Crew Jeddah Travel Part 3)

इमिग्रेशन, १२० की रफ़्तार, अलग तरह की कारें और रमादान महीना– जेद्दाह यात्रा भाग–४ (Immigration, Speed of 120Km, Different type of Cars and Ramadan Month Jeddah Travel–4)

हवाई अड्डे पर इंतजार और शटल जेद्दाह यात्रा भाग १ (Mumbai Airport & Shuttle Jeddah Travel Part 1)

इस बार की जेद्दाह यात्रा बहुत कुछ यादें और अपनी छापें जीवन में छोड़ गयी, एक अलग ही तरह का अनुभव था जो कि जीवन में पहली बार हुआ। इस बार २० जुलाई को बैंगलोर से दोपहर की जेट की फ़्लाईट थी और वाया मुंबई जेद्दाह जाना था, अच्छी बात यह थी कि मुंबई से सीधी फ़्लाईट थी।
बैंगलोर से मुंबई अंतर्देशीय हवाईयात्रा हुई परंतु चेकइन बैग बैंगलोर में ही जेद्दाह तक के लिये ले लिया गया। बैंगलोर में टर्मिनल पर जाने के लिये दो स्वचलित सीढ़ियाँ हैं जिसमें सीधी तरफ़ वाली सीढ़ी जो कि अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के यात्रियों द्वारा उपयोग में लायी जाती हैं, वही पास ही सऊदी एयर लाईन्स का काऊँटर है, जिनकी सीधी उड़ान जेद्दाह वाया रियाद है। वहाँ बहुत सारे मुस्लिम धर्मावलम्बी जो कि उमराह पर मक्का और मदीना जा रहे थे, लाईन में खड़े थे और सब के सब सफ़ेद कपड़ों में थे। ऊपर जहाँ से टर्मिनल के लिये रास्ता है वहाँ स्थित शौचालय में यही लोग नहा रहे थे और पूरा शौचालय इस तरह बन पड़ा था कि जैसे यह एयरपोर्ट का नहीं कोई आम शौचालय हो।
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अंतर्देशीय हवाईअड्डे से शटल में जाते हुए कुछ फ़ोटो
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बरबस ही मुंबई में ऑटो पर नजर गई तो फ़ोटो खींचने का लोभ संवरण ना कर सके।
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विरार से अलीबाग की टैक्सी और नवनिर्माणाधीन पुल (कुबरी)
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ये वही कॉफ़ी शाप है जहाँ इमिग्रेशन के बाद सबसे सस्ती कॉफ़ी मिली थी, और आराम करता हुआ एक विमान।
मुंबई समय से पहुँच गये और खराब बात यह थी कि जेट कनेक्ट की फ़्लाईट में खाना पीना फ़्री नहीं मिलता है, जबकि जेट एयरवेज की फ़्लाईट में खाना फ़्री होता है। दोपहर हो चली थी, खाना सुबह १० बजे घर से ही खाकर चले थे, साथ ही दूध में मले आटे के परांठे बँधवा लिये थे, जिससे अगर आगे भूख लगे तो उसे इन परांठे से शांत किया जा सकता है। मुंबई जाते समय फ़्लाईट में सॉफ़्टड्रिंक और सैंडविच खाया जिसके भाव आसमान के माफ़िक ही थे। परांठे इसलिये रख लिये गये थे कि अगर खाना न खाते बना तो परांठे खाने का आखिरी रास्ता होंगे।
मुंबई से अगली फ़्लाईट लगभग ५ घंटे बाद का था, अब हमें अंतर्देशीय से अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर जाना था। अंतर्देशीय हवाईअड्डे पर उतरने के बाद हम सबसे पहले शौचालय के लिये चल दिये, वहाँ देखा कि सफ़ाई का नामोनिशान नहीं था, कम से कम मुंबई के स्तर का तो नहीं था, लगता है कि हवाईअड्डे केवल शुल्क लेते हैं और बेहतर व्यवस्था के नाम पर अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेते हैं।
वहीं कन्वेयर बेल्ट पर लोगों के समान घूम रहे थे और उसी हाल के बीचों बीच में एक पिलर के पास अंतर्देशीय से अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे जाने के लिये शटल सेवा के लिये बोर्डिंग पास देखकर शटल के पास दिये जा रहे थे । जिसपर ON PRIORITY लिखा था और वहीं टीवी पर शटल का समय देखा तो पता चला कि अब अगली शटल आधे घंटे बाद है और यात्रियों की लाईन इतनी लंबी थी, कि हमने कई बार सोचा क्यों ना बाहर से टैक्सी करके चला जाया जाये। लोगों को वहीं खड़ा इंतजार करते हुए देख रहे थे, और लोग अपने पास पासपोर्ट और बोर्डिंग पास को बार बार चेक कर रहे हैं।
खैर ठीक ३० मिनिट से १० मिनिट पहले शटल आ गई, अच्छी खासी ए.सी. वोल्वो बस थी, शटल से बड़ी इज्जत के साथ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अंदर से ही ले जाया गया, जिसमें कि पास ही झुग्गी झोपड़ियों के लिये प्रसिद्ध धारावी दीवार से ही लगी थी, धारावी और अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बीच केवल फ़ेंसिंग थी, शायद उसमें करंट दौड़ रहा हो। अंतर्राष्ट्रीय मानकों के हिसाब से यह बिल्कुल भी मान्य नहीं होगा।

दलालों का शहर मुंबई (City of Brokers, Mumbai)

मुंबई छोड़े अब १ साल से अधिक हो गया है कुछ बातों में मुंबई की बहुत याद आती है और कुछ बातों से मुंबई से कोफ़्त भी होती है, जैसे कि दलालों का शहर मुंबई है। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है और रियल इस्टेट में हर जगह ब्रोकर याने कि दलालों का बोलबाला है। आजकल क्या मैं तो बरसों से मुंबई में देख रहा हूँ मुंबई में दल्लों का धंधा चोखा है।
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आपको फ़्लेट किराये पर लेना हो या खरीदना हो हरेक जगह ब्रोकरों का राज है। मुझे अच्छे से याद है जब मैंने मुंबई आखिरी बार फ़्लेट किराये पर लिया था तब तक ब्रोकर लोग किरायेदार से एक महीने का किराया ब्रोकर के रूप में लेते थे और ११ महीने का कान्ट्रेक्ट होता है। ११ महीने बाद अगर उसी फ़्लेट को रिनिवल करवाना है तो उसके लिये भी एक महीने का किराया ब्रोकरेज के रूप में देना पड़ता था।
आज ही छोटे भाई से बात हो रही थी तो पता चला कि अब ब्रोकरेज याने कि दलाली फ़्लेट लेने के लिये दो महीने की लेने लगे हैं और रिनिवल पर एक महीने का किराया ब्रोकरेज के रूप में लिया जा रहा है। वहाँ मुंबई में आम आदमी तो कमाने के लिये गया है और ये ब्रोकर बैठे हैं लूटने के लिये। प्रशासन भी आँख मूँदे पड़ा है। बेचारा बाहर का आदमी आयेगा तो उसे तो परिवार के रहने के लिये घर चाहिये ही, और सब अपने परिवार को अच्छी जगह पर रखना चाहते हैं, तो मजबूरी में ब्रोकरेज भी देते हैं।
अगर बात अब आंकड़ों में की जाये, १ बीएचके याने कि लगभग ४६५ स्क्वेयर फ़ीट का फ़्लेट का किराया कांदिवली पूर्व में लगभग १८,००० से २१,००० रूपये है, अब किरायेदार को ब्रोकरेज के तौर पर कम से कम ३६,००० रूपया तो ब्रोकर को ही देना है और यह एग्रीमेंट मकान मालिक के साथ ११ महीने का होता है, और एग्रीमेंट रजिस्टर्ड होता है, उस रजिस्ट्रेशन का खर्च आधा आधा मकान मालिक और किरायेदार को वहन करना होता है जो कि ब्रोकर लगभग ७,००० रूपया लेते हैं। तो आधा हो गया ३,५००। ११ महीने के बाद फ़िर से बड़े किराये के साथ ब्रोकर का ब्रोकरेज भी बढ़ जाता है।
और ब्रोकर तो मुंबई में कुकुरमुत्ते की तरह हैं, हर गली हर चौराहों पर ब्रोकर मिलेंगे, ये ब्रोकर हरेक तरह का सहारा लेते हैं और गुंडई करने से भी बाज नहीं आते।
हमने अनुमान लगाया था कि अगर ब्रोकर के पास कम से कम ऐसे १०० ग्राहक भी हैं तो उसकी वर्ष भर की कमाई कम से कम १८ लाख रूपये है, और अधिक तो अब क्या बतायें ये तो आप खुद अनुमान लगा लें।
पता नहीं कब सरकार चेतेगी और आम आदमी को मुंबई से ब्रोकर से मुक्ति मिलेगी। वैसे अब बैंगलोर में भी ब्रोकरों का धंधा काफ़ी अच्छा हो चला है, धीरे धीरे मुंबई की बयार यहाँ पर भी बह रही है। इसलिये हम तो ब्रोकरों का शहर कहते हैं मुंबई को।
ऐसे बहुत ही कम मकान मालिक हैं जो कि अपने फ़्लेट बिना किसी ब्रोकर की सहायता के देते हैं, ऐसे फ़्लेट सुलेखा.कॉम, मैजिकब्रिक्स.कॉम, ९९एकर्स.कॉम और ओएलएक़्स.इन पर ढूँढे जा सकते हैं, अगर किस्मत अच्छी हुई तो जिस समय आप फ़्लेट ढूँढ़ रहे हैं उस समय आपको कोई फ़्लेट इन वेबसाईट पर मिल जाये और आप अपनी गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा बचा सकें।

गोराई खाड़ी स्थित पैगोड़ा की यात्रा.. (Pagoda at Gorai Creek).

    बहुत दिनों से पैगोड़ा आने की तीव्रतम इच्छा थी, परंतु बहुधा कारकों से आ नहीं पा रहे थे, पर कल हमने आखिरकार पैगोड़ा यात्रा का मन बना ही लिया। पैगोड़ा बोद्ध धर्म संबंधित स्थान है, जहाँ विपश्यना यानि कि ध्यान की शिक्षा भी दी जाती है। यह पैगोड़ा एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा पैगोड़ा है।

    यह पैगोड़ा गोराई खाड़ी में स्थित है, और बोरिवली इसका नजदीकी रेल्वे स्टेशन है। बोरिवली से बेस्ट की बस (४६१, ३०९, २२६, २९४) से सीधे गोराई आगार पहुँच सकते हैं, और वहाँ से पाँच मिनिट चलने पर गोराई खाड़ी पहुँचा जा सकता है। बोरिवली रेल्वे स्टेशन से शेयरिंग ऑटो भी उपलब्ध हैं। गोराई खाड़ी पहुँचने के बाद वहाँ फ़ेरी का टिकट ३५ रुपये प्रति व्यक्ति है, जो कि आने जाने का है।

    और अगर सड़क मार्ग से जाना चाहते हैं तो मीरा – भईन्दर होकर एस्सेल वर्ल्ड आना होगा। जो कि थोड़ा लंबा रास्ता है। अब तो सुबह बोरिवली से एस्सेल वर्ल्ड की बेस्ट ने एक नई बस सेवा भी शुरु की है ७११ नंबर बस, जो कि सुबह ९ बजे बोरिवली स्टेशन से चलती है एस्सेल वर्ल्ड के लिये और फ़िर दिनभर वह गोराई बीच से पैगोड़ा के लिये चलती है, और शाम ७ बजे वापिस एस्सेल वर्ल्ड से बोरिवली स्टेशन आती है।

    पैगोड़ा, एस्सेल वर्ल्ड और वॉटर किंगडम तीनों आसपास हैं। हम फ़ेरी का टिकट लेने के बाद खाड़ी की ओर चल पड़े और वहाँ पर फ़ेरी की नाव चक्कर लगा रही थीं। बदबू भी आ रही थी, चारों ओर गंदगी का साम्राज्य था। पर पैगोड़ा जाने की उत्कंठा में सब भूगत रहे थे। पहली बार हमने देखा कि लोग अपनी मोटर साईकिल भी नाव में लेकर सवार हैं। नाव तक जाने में बहुत मजा आया, पहली बार हम खाड़ी के इस प्रकार के पुल पर चल रहे थे।

    इस फ़ैरी से पैगोड़ा के यात्री ही ज्यादा थे क्योंकि एस्सेल वर्ल्ड सुबह १० बजे से रात ८ बजे तक खुला रहता है, और दोपहर को जाने पर कोई पूरा नहीं घूम सकता है। पैगोड़ा पहुँचते पहुँचते मन अद्भुत तरीके शांत हो चुका था। शायद यह प्रकृति का चमत्कार है।

    पैगोड़ा में एक बड़ा हॉल बना हुआ है, जहाँ साधक विपश्यना करते हैं, मतलब साधना करते हैं ध्यान करते हैं। पर्यटकों के लिये अलग से कक्ष बनाया गया है जहाँ से वे हॉल के अंदर का दृश्य देख सकते हैं, जो कि काँच से बंद किया गया है, जिससे साधकों के ध्यान में खलल न पड़े। यहीं पर स्तंभ भी है, जैसा कि सारनाथ में है। यही पर भगवान बुद्ध की जीवनी पर एक चित्र प्रदर्शनी भी है, चित्रकार ने गजब के चित्र उकेरे हैं, क्या रंग संयोजन है।

    पैगोड़ा से बाहर निकलने के बाद हम पहुँच गये एस्सेल वर्ल्ड के प्रवेश द्वार पर, जहाँ कि टिकट खिड़की भी थी। वहाँ आकर्षित करने के लिये तरह तरह के पुतले थे जहाँ फ़ोटो खींचे।

और फ़िर वापिस फ़ैरी की ओर लौटते हुए, निकल पड़े घर की ओर..

फ़ैरी की ओर फ़ैरी की ओर दीवार पर विज्ञापन फ़ैरी के सहयात्री फ़ैरी से बाहर का एक दृश्य लौटती हुई फ़ैरी से पैगोड़ा का दृश्य

    बहुत ही अच्छा अनुभव रहा, और एक बात आज हमने बहुत दिनों बाद तादाद में केकड़े भी देखे जो कि गोराई खाड़ी में थे।

मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण..आगे..३ (श्रंखला पद्धति से टिकट मंगवाया गया) (Mumbai experience of Best Bus)

    आज घर से निकलने में तनिक १-२ मिनिट की देर हो गई, तो ऐसा लगा कि कहीं बस न छूट जाये, चूँकि  मुंबई की बस पीछे डिपो से बनकर चलती है, इसलिये हमेशा समय पर आती है। तो हम बिल्कुल मुंबईया तेज चाल से चलने लगे, जिससे बस मिल जाये और वाकई रोज जो दूरी हम ४ मिनिट में पूरी करते थे वह हमने लगभग ३ मिनिट में पूरी कर ली।

    बस स्टॉप से निकल चुकी थी, जैसा कि हमको अंदेशा था, परंतु हमको आता देख ड्राईवर ने आँखों से ही इशारा किया कि आगे के दरवाजे से ही चढ़ जाओ, पर हमें संकोच हुआ और हम पीछे के दरवाजे की ओर देखने लगे, तो ड्राईवर को लगा कि संकोच कर रहे हैं तो हाथों से इशारा कर बोला कि इधर से ही चढ़ जाईये।

    इतनी देर में हमें आगे से किनको चढ़ना चाहिये उसकी सूचना जो कि बस में लगी रहती है, आँखों के सामने घूम रही थी, पर फ़िर भी ड्राईवर जो कि अब हमें पहचानने लगा था क्योंकि रोज ही हम उनको नमस्ते करते थे, तो उन्होंने अपनी दोस्ती आज निभाई थी।

    फ़िर ध्यान आया कि मास्टर तो पीछे है, हमने जेब से पैसे निकाले और श्रंखला पद्धति से टिकट मंगवाया गया, तो हमें याद आया कि दिल्ली में भी डीटीसी की बस में ऐसे ही टिकट मंगवाते थे। आज हम जिस सीट के आगे खड़े थे वह थी अपंगों वाली सीट, थोड़ी देर में ही वह खाली हो गई, तो हम बैठ लिये कि अगर कोई सही उत्तराधिकारी आयेगा तो खुद ही उठ जायेंगे, आगे स्टॉप पर ही एक ज्येष्ठ सज्जन आये तो हम उठने लगे तो बोले नहीं बैठिये, हम बोले नहीं आप बैठिये, हालांकि ज्येष्ठ की परिभाषा बस में ६० वर्ष से अधिक उम्र की होती है, परंतु सफ़ेद बाल को देखकर हम उठ ही गये, हालांकि थोड़े थोड़े हमारे भी बाल सफ़ेद हैं, परंतु फ़िर भी उठ ही गये।

    उन सज्जन ने बैठते ही, अपनी पाकिट में से तीन गुटके निकाले पहले पढ़ा हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा फ़िर गौरी चालीसा (नाम ठीक से याद नहीं), हमारा भी साथ में हनुमान चालीसा हो गया, हालांकि उनका गुटका गुजराती में था, पर हमें याद था इसलिये कोई परेशानी नहीं हुई।

    ड्राईवर को फ़िर हँसते हुए नमस्ते करते हुए बस से उतर कर आज फ़िर बिल्कुल अपने समय से ऑफ़िस पहुँच गये। लालबागचा राजा के मन्नत के दर्शन करने के बाद हमारे क्यूबिकल के तीन लोग आये थे पूरे १७ घंटे लाईन में लगने के बाद उनको दर्शन हुए थे और वहाँ का प्रसाद भी हमें मिल गया।

मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण… आगे..२.. गरोदर स्त्रियाँ (Mumbai experience Best Bus)

    पिछली पोस्ट पर अरविन्द मिश्रा जी ने पूछा था कि गरोदर स्त्रियाँ कौन सी प्रजाति होती हैं, गर्भवती स्त्री को मराठी में गरोदर कहते हैं, सच कहूँ तो इसका मतलब तो मुझे भी नहीं पता था और न ही जानने की कोशिश की थी, परंतु अरविन्द जी ने पूछा तो ही पता किया।

    इसका मतलब जो स्त्रियाँ आगे के दरवाजे से बेस्ट की बसों में चढ़ती हैं, मतलब जवान स्त्रियाँ वे गरोदर होती हैं, बहुत कठिन है यह भी कहना, खैर सरकार ने जनता को सुविधा देने के लिये नियम बनाया है तो जो स्त्री गरोदर नहीं है वह भी आगे के दरवाजे से चढ़कर नियम तोड़ती हैं, बेचारा ड्राईवर भी क्या बोलेगा। नारी शक्ति से तो सभी का परिचय है। इसलिये पुरुष बेचारा अपनी शक्ति को छिपा लेता है।

    खैर छोड़िये नहीं तो अभी नारी शक्ति वाली आती होंगी काली पट्टी लिये और झाड़ू हाथ में लिये… हम क्या कहना चाह रहे हैं और वे क्या समझकर हमारी लू उतार दें।

    तो नियम केवल पुरुषों के लिये होते हैं, यह बात तो तय है, हमने बेस्ट की बस में चढ़कर जाना है। वैसे तो यह हम पहले से ही जानते हैं परंतु यह बात बेस्ट की बसों में चढ़कर कन्फ़र्म हो गई है।

    आज भी बस के लिये हम तो समय पर अपने स्टॉप पर पहुँच लिये परंतु बस थी कि आ ही नहीं रही थी, समय होता जा रहा था और बैचेनी बढ़ती जा रही थी, फ़िर १० मिनिट लेट बस आई, और हम चढ़ लिये, वैसे तो हमारे स्टॉप से चढ़ने वाले ३-४ लोग ही होते हैं, परंतु बस ठसाठस सी होती है, आखिरी में चढ़े यात्री को डंडा पकड़कर लटकना ही पड़ता है और १-२ मिनिट में ही बस के अंदर हो जाता है। आज आखिरी यात्री हम थे तो हमने जैसे ही डंडा पकड़ा देखा कि बेचारा डंडा भी जंग लगकर सड़ गया है तो उल्टे हाथ की तरफ़ वाला डंडा पकड़कर अंदर हो लिये।

    फ़िर वही राम कहानी सीट के पास खड़े होकर सफ़र करने की, मास्टर और ड्राईवर आज दोनों नये थे, ३-४ लड़के पास खड़े होकर बतिया रहे थे, और कहीं साक्षात्कार देने जा रहे थे। तो उनके डेबिट और क्रेडिट के सिद्धातों को सुन रहा था, बेचारे बोल रहे थे जो पढ़ा इतने साल सब पानी में, व्यवहारिक दुनिया में तो सब उल्टा होता है। अब बेचारा इंटर्व्यूअर भी क्या करे, जो उसे आता होगा वही तो पूछेगा ना, स्स्साले को क्या डेबिट और क्रेडिट भी नहीं पता होता है, और इतनी पढ़ाई करने के बाद हमें क्या समझा है कि हमें ये भी पता नहीं होगा। चल छोड़ न यार आज देखते हैं, कि आज के इंटर्व्यू में क्या होता है।

    तभी पीछे से एक लड़की धक्के मारते हुए आगे की ओर निकल गई और जबरदस्ती उल्टी हाथ की सीट की तरफ़ खड़ी हो गई, जबकि सीधे हाथ की ओर स्त्रियों की आरक्षित सीट होती है, और बड़ी आसानी से सीट मिल भी जाती है, कोई न कोई आरक्षित वर्ग उतरता रहता है और चढ़ता रहता है, और अगर नहीं होता है तो सीट बेचारी खाली ही जाती है, कोई नहीं बैठता, कब कौन कहाँ से आरक्षित वर्ग आ जाये कुछ बोल नहीं सकते।

    अब वह लड़की जहाँ खड़ी थी, थोड़े ही देर में वही सीट से बंदा उतर गया और आम आदमी की सीट आरक्षित वर्ग ने हथिया ली, और सीधे हाथ की एक सीट खाली पड़ी आरक्षित वर्ग के यात्री का इंतजार कर रही थी, हमें बहुत ही कोफ़्त हो रही थी, पर क्या करते चुपचाप शक्ति के आगे नतमस्तक थे, आखिर सरकार ने नियम बहुत सोच समझकर बनाया होगा।

    खैर जैसे तैसे करके अपना स्टॉप आया और बिल्कुल टाईम पर उतर गये, चले भले ही १० मिनिट लेट थे परंतु पहुँच समय पर ही गये, ड्राईवर ने क्या गाड़ी भगाई, बस मजा ही आ गया।

    ऑफ़िस पहुँचे तो सहकर्मियों से बात हुई, बताया गया कि वे लोग लालबागचा राजा के दर्शन करके आये हैं, शनिवार की रात को, और एक सहकर्मी से सिद्धिविनायक का प्रसाद भी खाने को मिला। दिन बढ़िया रहा।

मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण… आगे …१..सीट पर कब्जा कैसे करें (Mumbai Experience of Best Bus)

पिछली पोस्ट को ही आगे बढ़ाता हूँ, एक सवाल था “कंडक्टर को मुंबईया लोग क्या कहते हैं।” तो जबाब है – “मास्टर” ।

अगर कभी टिकट लेना हो तो कहिये “मास्टर फ़लाने जगह का टिकट दीजिये”, बदले में मास्टर अपनी टिकट की पेटी में से टिकट निकालेगा, पंच करेगा और बचे हुए पैसे वापिस देगा, फ़िर बोलेगा “पुढ़े चाल” मतलब आगे बढ़ते जाओ।

जैसे हमारे देश में आरक्षण है वैसे ही बेस्ट बस में आरक्षण को बहुत अच्छॆ से देखा जा सकता है, ४९ सीट बैठने की होती है, जिसमें उल्टे हाथ की पहली दो सीटें विकलांग और अपाहिज और फ़िर उसके बाद की दो सीट ज्येष्ठांचा लोगों के लिये आरक्षित होती हैं, सीधे हाथ की तरफ़ तो महिलाओं के लिये ७ सीटें आरक्षित होती हैं। याने कि लगभग ५०% आरक्षण बस में, जैसे हमारे देश में।

अनारक्षित सीटों पर महिलाओं और ज्येष्ठ लोगों को बैठने से मनाही नहीं है, अब बेचारा आम आदमी इस आरक्षण में पिस पिस कर सफ़र करता रहता है।

अभी कुछ दिनों पहले एक ए.सी. बस में चढ़े तो अनारक्षित सीटों पर महिलाएँ काबिज थीं और महिलाओं की आरक्षित सीटें खाली थीं, सब महिलाएँ भी पढ़ी लिखी सांभ्रांत परिवार की थी जिन्हें शायद महिलाओं के लिये चिन्हित सीटों की समझ तो होगी ही, परंतु फ़िर भी न जाने क्यों, आम आदमी की सीट पर कब्जाये बैठी थीं, हमारे जैसे ३-४ आमजन और खड़े थे, मास्टर को बोला कि इन आरक्षण वर्ग को इनकी सीटों पर शिफ़्ट कर दें तो हम भी बैठ जायेंगे, बेचारा मास्टर बोला कि इनको कुछ बोलने जाऊँगा तो ईंग्रेजी में गिटीर पिटिर करके अपने को चुप करवा देंगी, और ये तो रोज की ही बात है।

अब बताईये महिला शक्ति से कोई उलझता भी नहीं, वे सीटें खाली ही रहीं जहाँ तक कि हमें उतरना था, और उन सीटों पर बैठना हमें गँवारा न था, कि कब कौन सी महिला कौन से स्टॉप पर चढ़ जाये और अपनी आरक्षित सीट की मांग करने लगे, इससे बेहतर है कि खड़े खड़े ही सफ़र करना।

जब महिलाओं को समान अधिकार दिये जा रहे हैं, तो ये आरक्षण क्यों, फ़िर भले ही वह सत्ता में हो या फ़िर बस में या फ़िर ट्रेन में…। खैर हम तो ये मामला छोड़ ही देते हैं, भला नारी शक्ति से कौन परिचित नहीं है.. और फ़िर इस मामले में सरकार तक गिर/झुक जाती हैं… तो हम क्या चीज हैं।

बेस्ट की बस में निर्देशित होता है कि आगे वाले दरवाजे से केवल गरोदर स्त्रियाँ, ज्येष्ठ नागरिक और अपंग ही चढ़ सकते हैं। वैसे कोई कुछ भी कहे बेस्ट की बसें और उसकी सर्विस बेस्ट है।

यह वीडियो देखिये जिसमें प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि बेस्ट की बसों में कैसे सीट पर कब्जा किया जाये –