Category Archives: यात्रा

The Taj Mahal: A Monument of Love

Shah Jahan was the fifth Mughal emperor of India, who ruled from 1628 to 1658. He was a great patron of art and architecture, and he built many beautiful buildings and gardens in his empire. But his most famous and beloved creation was the Taj Mahal, a white marble mausoleum that he built in memory of his wife Mumtaz Mahal.

Mumtaz Mahal was Shah Jahan’s second wife, whom he married in 1612. She was his constant companion and confidante, and he called her “the chosen one of the palace”. She bore him 14 children, but died in 1631 while giving birth to their last child, Gauhara Begum. Shah Jahan was heartbroken by her death, and decided to build a magnificent tomb for her as a symbol of his eternal love.

He commissioned the best architects, craftsmen, and artists from India, Persia, the Ottoman Empire, and Europe to design and construct the Taj Mahal. The project started in 1632 and took about 22 years to complete. The mausoleum is located on the right bank of the Yamuna river in Agra, Uttar Pradesh. It is surrounded by a complex of buildings and gardens, which include a mosque, a guest house, a main gateway, and a crenellated wall.

The Taj Mahal is considered to be the finest example of Mughal architecture, which is a blend of Indian, Persian, and Islamic styles. The mausoleum is made of white marble that reflects different colours depending on the time of the day and the season. It is decorated with intricate carvings, calligraphy, floral patterns, precious stones, and geometric designs. The dome of the mausoleum is 73 meters high, and is flanked by four minarets that are 40 meters high each. The interior of the mausoleum contains the cenotaphs of Mumtaz Mahal and Shah Jahan, which are enclosed by an octagonal marble screen. The actual graves are located in a lower chamber.

The Taj Mahal is not only a masterpiece of art and engineering, but also a testament of love and devotion. It is one of the most iconic monuments in the world, and attracts millions of visitors every year. It was declared a UNESCO World Heritage Site in 1983, and was voted as one of the New Seven Wonders of the World in 2007. The Taj Mahal is also known as “the jewel of Muslim art in India” and “the illumined or illustrious tomb

कलसी,जगतग्राम, सुमनक्यारी, नैनबन्ध

विकासनगर किसी कारण से 2 दिन रुकना पड़ा, कारण बाद में बताएंगे। तो आज दोपहर तक हमारे पास विकासनगर में समय था, Vikas Porwal जी ने मार्गदर्शन किया और कहा कि आप कलसी में सम्राट अशोक का शिलालेख देख लें, जो कि उत्तराखंड में एकमात्र शिलालेख पाया गया है। और दूसरी जगह जगतग्राम जहाँ अश्वमेध यज्ञ के होने के प्रमाण पाये गये हैं।

हमने विकासनगर से कलसी और जगतग्राम का इरिक्शा ₹300 में कर लिया, रिक्शेवाले को कलसी के सम्राट अशोक के शिलालेख के बारे में पता था, पर जगतग्राम के बारे में पता नहीं था। हम सम्राट अशोक के शिलालेख देखने के लिये गये, तो देखा कि चट्टान पर प्राकृत व लिपी ब्राह्मी में लिखा हुआ है, जो कि शांति का संदेश बताया गया है। जिस प्रकार की मूर्तियां साँची के स्तूपों में हैं, लगभग वैसी ही यहाँ भी पाई गई हैं, और यह पुरातत्व विभाग संरक्षित साइट है।

जगतग्राम में अश्वमेध यज्ञ के होने के प्रमाण पाए गए हैं यह भी भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण की साइट है यहां पर राजा शीलबर्मन ने तीसरी शताब्दी में अश्वमेध यज्ञ करवाए थे, इसके प्रमाण मिले हैं, हालांकि जाने का रास्ता बिल्कुल ठीक नहीं है लगभग 300 मीटर आम के बगीचे में से निकलना पड़ता है जो कि बिल्कुल कच्चा है वहाँ रिक्शा नहीं जा सकता, वहां केवल suv गाड़ियां या फिर ट्रैक्टर ही जा सकते हैं। मैं ज्यादा देर रुक भी नहीं पाया क्योंकि आ जाना ही मौसम बहुत खराब हो गया और तेज हवा चलने लगी थीं। पर फिर भी वहाँ बने प्लेटफार्म पर खड़े होकर यज्ञ की साइट को देखा।

लगभग 4 बजे हम विकासनगर से यमनोत्री धाम की यात्रा पर निकले और 6 बजे के लगभग हम सुमनक्यारी, नैनबन्ध में रुक गये हैं, यहाँ हमने गुरुकृपा होमस्टे देखा और कमरा ठीक लगा, हम 3 लोगों के ₹600 चार्ज किये हैं, बाथरूम लगा हुआ है, अभी यह होमस्टे नया बना है, तो गीजर अभी तक नहीं लगा हुआ है, तो होमस्टे वाली मैम हमें सुबह गर्म पानी नहाने के लिये दे जायेंगी। पास ही 2-3 रेस्टोरेंट हैं, खाना ठीक लगा।

#tripfrombangalore

#yamnotridham

भीमबेटका

भोजपुर मंदिर से निकलते हुए सोचा चलो एक एक नींबू सोडा पी लें, परंतु एक भी दुकान पर न मिला, तो सोचा एक एक चाय हो जाये, वहीं गूगल मैप पर भीमबेटका की दूरी लगाकर देखी जो कि लगभग 49 मिनिट्स की ड्राइव दिखा रहा था और रास्ता 26 किमी का था। चायवाले भैया से पूछा कि यह रोड कैसी है, तो उसने बताया ये रोड अभी बन ही रही है, काफी हिस्सा बन रहा है, 10 किमी बाद तो वैसे भी आपको हाइवे मिल जायेगा। बस हम वापिस भोपाल लौटने की जगह भीमबेटका चल दिये। दीदी को फोन लगाकर कहा कि अभी हम भीमबेटका जा रहे हैं और आने में थोड़ा और समय लगेगा।

भीमबेटका का सड़क वाकई बहुत बढ़िया बनाई गई है, जहाँ सड़क मिली रफ्तार 80 से कम नहीं की, कुछ जगह बीच बीच में जहाँ काम चल रहा था, ऑफ़रोडिंग का अनुभव लिया। भीमबेटका के लिये हाइवे से ही सीधे हाथ का टर्न है, खतरनाक होते हैं ऐसे टर्न जहाँ हाइवे पर 80 से 140 की रफ्तार में वाहन जा रहे होते हैं। भीमबेटका के लिये मुड़ने के साथ ही वहॉं मध्यप्रदेश टूरिज्म का रीट्रीट होटल है, जहाँ खा भी सकते हैं और रुक भी सकते हैं। वहीं मुड़ने के बाद रेलवे क्रॉसिंग बंद थी, तो याद आया कि पुरातत्व संस्थान में हमारे एक मित्र जबलपुर हैं, उनसे कहा कि हम भीमबेटका आये हैं, तत्काल ही उन्होंने हमारा गाड़ी नम्बर मंगवा लिया, और 2 मिनिट बाद ही भोपाल सर्कल से फोन आ गया, एक दम हम अतिसाधारण से विशिष्ट की श्रेणी में आ गये।

फारेस्ट गेट का टिकट 75 रु है, और फिर आगे की ड्राइव अति मनमोहन है, हम भीमबेटका पहुँचे, और अंदर घूमने निकल गये, वहाँ की भित्तिचित्रों को देखकर लगा कि आदिमानव भी रचनात्मक था और जो सामने देखता था, उसने वह चटटानों पर उकेर दिया। घोड़ों को बनाने के लिये उन्होंने पहले डमरू आकृति बनाई और उसे घोड़े का आकार दे दिया। ऐसे ही जानवरों के चित्रण किये गये हैं। देखकर ही लगता है कि आदिमानव की ऊँचाई भी कम से कम 8 या 9 फिट तो रही ही होगी, डॉक्टर वाकणकर ने खुदाई में एक कंकाल पाया जिसकी ऊँचाई 7.5 फिट थी। कंकाल भी इसलिये मिला क्योंकि वे लोग उस समय नमक का सेवन नहीं करते थे, नमक इतना खतरनाक है कि हड्डियों को भी गला देता है, यह अहसास हुआ। बताया गया कि यहाँ लगभग 10000 मानव रहा करते थे, वहीं एक और गुफा पाई गई है जो बंद है, और उसका हॉल इतना बड़ा है कि इसमें 10000 से ज्यादा लोग खड़े हो सकते हैं।

हमारी मानवीय सभ्यता को देखने के लिये काम ही लोग उत्साहित होते हैं और वहीं बाहर देशों के लोग आकर इनको देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। हमारी इस ऐतिहासिक धरोहर को देखने भारतवासियों को जरूर जाना चाहिये।

पापाजी मम्मीजी के साथ महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन

जब से उज्जैन आये हैं हम तो कई बार महाकालेश्वर के दर्शन कर चुके हैं, और लगभग रोज ही शिखर दर्शन कर रहे हैं। पापाजी मम्मीजी की भी इच्छा थी कि वे भी महाकालेश्वर के दर्शन करें, परंतु ज्यादा चलना उनके बस का नहीं था। तब हमने महाकालेश्वर में पूछा तो पता चला कि व्हील चेयर मिल जाती है। यह भी देखा कि कार कैसे महाकालेश्वर मंदिर के पास तक जा पाये, जिससे उनको ज्यादा न चलना पड़े।

कार का रास्ता – गोपाल मंदिर से महाकाल घाटी की और जाते हुए, दायीं तरफ चौबिसखम्बा माता का मंदिर के रास्ते में मुड़ें, और फिर बायीं तरफ वाला रास्ता जो कि घाटी जैसा है, उस पर जायें, बस उसके बाद रास्ते पर चलते रहें, आप महाराजबाड़ा स्कूल पहुँच जायेंगे, जगह देखकर कर पार्किंग में लगा दें। अपना मोबाईल और चप्पल जूते कार में ही छोड़ दें।

महाकालेश्वर मंदिर में ₹250 का टिकट वाली विंडो पर जब हम पहुँचे तो उनसे कहा कि 3 टिकट चाहिये और 2 व्हील चेयर चाहिये, तो उन्होंने कहा कि आप गेट नम्बर 5 पर चले जाइये, अटेंडेंट साथ में जा सकते हैं। व्हील चेयर व उनके अटेंडेंट के लिये दर्शन फ्री हैं, कोई टिकट लेने की आवश्यकता नहीं है। हम गेट नम्बर 5 पर गये और हमें अंदर बैठने के लिये कह दिया गया। इस समय सुबह के 6.10 हो रहे थे। 5 मिनिट बाद ही 2 लोग आये और उन्होंने पापाजी मम्मीजी को व्हील चेयर पर बैठाया व दर्शन हेतु महाकालेश्वर मंदिर में चल दिये।

सुबह ₹1500 वाली लाइन भी लंबी थी, जिसमें महिलाओं को साड़ी व पुरुषों को धोती व बनियान पहनना होता है। हमें सीधे नंदी हाल के पीछे लगी रेलिंग के पास ले गये, वहाँ से पैदल जाकर बाबा महाकाल के दर्शन किये, और वापिस उसी रास्ते मंदिर के बाहर आ गए। दर्शन करने में लगा समय लगभग 15 से 20 मिनिट रहा। हम घर से सुबह 6 बजे निकले थे व वापिस 6.45 पर घर पर आ गये थे।

#ujjain

#mahakal

आज की सुबह की सैर

घर से निकलने में ही आज 7.40 हो गये, फिर भी हमने सोचा देर से ही सही पर घूम तो आते ही हैं वरना दिन भर फिर समय ही नहीं मिलेगा। सुबह मौसम ठंडा रहता है पर फिर भी हम हाफ टीशर्ट में घूमने निकल पड़ते हैं और दुनिया अपने बच्चों को छोड़ने स्कूल जा रही होती है वे सब जरकिन पहने हुए होते हैं। घर से निकलते ही थोड़ी दूर के बाद नागेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर पड़ता है जोकि जैन मंदिर है। और जैन धर्मावलंबी सुबह 6:00 बजे से ही अपना शोला पहनकर दर्शन के लिए जाते हैं। आज जब तक हम पहुंचे तब तक सब दर्शन करके जा चुके थे।

फिर जैसे ही हम पिछले सिंहस्थ पर बने हैं नई सड़क पर घूमने निकले तो सामने ही सूरज भाई ने पूरे 60 डिग्री पर हमें दर्शन दिए, झट से हमने फोटो खींच लिया और फेसबुक पर डाल दिया। पहले कभी यहां पर हीरा मिल हुआ करती थी, जहां पर मजदूरों की साइकिलें लाइन से खड़ी होती थी और हीरा मिल का गेट हुआ करता था। जहां पर कपड़ा बना करता था, आज वहां रोड बनी हुई है तो कोई कितना भी घमंड कर ले, एक ना एक दिन उसका समाप्ति का दिन आ ही जाता है, इसलिए घमंड स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

इसी सड़क पर आगे बढ़ते हुए जो उज्जैन की नई इनर रिंग रोड बनाई गई है, वह आ जाती है। उसके पहले सीधे हाथ पर हीरामल की चाल है, जो पहले भी थी और अभी भी है, उनकी बरसों से यही मांग है कि यह घर उनके नाम कर दिया जाए पर कोई सुनवाई नहीं हुई है। वहीं पर ही सीधे हाथ पर 2-3 मंदिर बना दिए गए हैं उल्टे हाथ पर एक महावीर हनुमान जी का मंदिर है, थोड़ा सा आगे चौराहे पर जाने पर महादेव का मंदिर बना हुआ है, उसी के पास एक तालाब है, जिसमें गणपति विसर्जन होता है।

यहीं से दाई और मुड़ने पर फ्रीगंज जाने के लिए पुल आ जाता है, जो कि पिछले सिंहस्थ में बनाया गया था और पुल में ऐसा लगता है कि आधा ही पैसा लगाया गया। क्योंकि पुल बहुत ही संकरा है, पुल पर चलते रहने पर पुल की दीवाल पर स्वच्छ मध्य प्रदेश और स्वच्छ उज्जैन के नारे लिखे हुए देखे जा सकते हैं, परंतु उसी नारे के नीचे जमी धूल उन नारों का मखौल उड़ाती हुई देखी जा सकती है।

थोड़ा आगे जाने पर रेलवे लाइन का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है जिसमें आज एक मालगाड़ी आते-आते रोक दी गई इसे आउटर कहा जाता है और बहुत ही लंबी मालगाड़ी थी जिसका दूसरा चोर दिखाई नहीं दे रहा था, वहीं आसपास बस्ती में एक बड़ा सा कुआं है जिसमें से एक व्यक्ति कुए से बाल्टी से पानी निकाल रहा था और एक व्यक्ति ही खड़ा होकर मछलियों के लिए कुछ खाने की चीजें भेज रहा था। इंसान में भी कितना मतभेद होता है, परंतु फिर भी कोई लड़ाई नहीं कोई झगड़ा नहीं कोई हाइजीन नहीं, सब अपने तरीके से जी ही रहे हैं। हालांकि उसका कोई छायाचित्र नहीं लिया। पर आप लिखे हुए ऐसे दृश्य को अपनी आंखों में उकेर सकते हैं।

इस पुल के बन जाने से फ्रीगंज का रास्ता अच्छा हो गया है और दूरी कम हो गई है। जब ब्रिज खत्म होने आ जाता है, तो उल्टे हाथ पर दो-तीन बड़े बड़े अस्पताल खुले हुए हैं, और उनके पहले दारु की दुकान है और फर्स्ट फ्लोर पर बढ़िया बैठ कर पीने की जगह भी है वह ब्रिज से ही दिखाई देता है। वहीं पर एक ही होती अपने कुत्ते को लेकर घूम रही थी और स्वच्छ उज्जैन की ऐसी तैसी कर रही थी। पुल खत्म हुआ और वापस जाने के लिए फुल क्रॉस करके दूसरी तरफ आ गए। वहीं पर एक ठेले पर सुबह सुबह नाश्ते की खुशबू आ जाती है वह पोहे जलेबी पकोड़े और चाय बनाता है। थोड़ा आगे आने पर उज्जैन रेलवे स्टेशन की तरफ का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।

पुल उतरते ही राजनेताओं के बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे, कोई लोकल नेता कांग्रेस कमेटी का मेंबर चुन लिया गया था। तो दुनिया भर के छुटभैया नेता और बड़े नेताओं के फोटो लगे हुए थे, पर सबसे बड़ा फोटो उन्हीं का था जिनको यह सदस्यता हासिल हुई थी। और इस तरह थोड़ी देर में ही हमारी यह सैर खत्म हो गई।

परेशानी, शेयर बाजार कमाई और सीखने की चाहत

आज बड़ी परेशानी हुई, ऑफिस का लेपटॉप अचानक ही क्रेश हो गया, मतलब कि लेपटॉप चार्ज ही नहीं हो रहा था और कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट बनाने थे, जिस पर एक बड़ी मीटिंग शेड्यूल थी। डॉक्यूमेंट में आलमोस्ट सारी चीजें अपडेट कर चुके थे, और onedrive पर सिंक हो गई, यह एक बढ़िया बात रही। हमने क्रेश होने के बाद मोबाइल पर onedrive डाऊनलोड करा और अपने सहकर्मियों को शेयर कर दिया। जिससे फायदा यह हुआ कि मीटिंग री शेड्यूल नहीं करना पड़ी। हाँ अपने बॉस को जरूर अपडेट कर दिया था और कंपनी के IS टीम के साथ टिकट खोला और फिर पता चला कि वे कुछ नहीं कर सकते, लेपटॉप अभी वारंटी में है तो लेपटॉप कंपनी से टिकट ओपन किया गया और अब वो हमारे घर पर आकर कुछ पार्ट बदलेगा।

बाद में लेपटॉप कंपनी वालों का फोन आया, और उन्होंने बताया कि हम मोबाईल के सी टाइप चार्जर से भी चार्ज करके देख सकते हैं, हमने मोबाईल के चार्जर से चार्ज करके देखा तो थोड़ा बहुत चार्ज हो गया। पर चार्जिंग बहुत ही धीमी हो रही है। अब लेपटॉप कम्पनी वाला परसों आयेगा और लेपटॉप का चार्जिंग पोर्ट बदलेगा। तब तक मोबाईल के चार्जर से ही काम चलाना पड़ेगा। लेपटॉप का सी टाइप चार्जर मिल जाये, इसका जुगाड़ भी जारी है। वहीं अगर यह काम नहीं हुआ तो कंपनी डॉकिंग स्टेशन भेजेगी।

पर एक छोटी सी चीज खराब होने से बहुत ही समस्या हो जाती है, और दिनभर का शेड्यूल बिगड़ जाता है, बहुत सारा काम था, पर दिमाग में काम की बजाय यही चल रहा था कि अब काम कैसे चलेगा। ऐसी परेशानियों को झेलना मुश्किल होता है।

वहीं परसों मंथली एक्सपायरी है और एक डील गलत होने से अपना 4% का प्रॉफिट चला गया, फिर भी 1% प्रॉफिट इस महीने का रहेगा। अब शेयर बाजार में यह सब तो चलता ही रहता है। अब vix जब थोड़ी ज्यादा होगी तो ऑप्शन की प्रीमियम भी ज्यादा बेचने को मिलेगी। फेसबुक पर एक मित्र ने अपनी पोस्ट में ऑप्शन बेचने का लिखा था, हमने उनकी पोस्ट पर कमेंट किया कि You are on right track, just use 3 months support and resistance and sell strangle for safe side, vix is important factor. No need to learn from anywhere, just do your paper trade. And soon you will be able to earn minimum 3 to 6% monthly on your capital with risk management.

अब उनको सीखने में मदद भी कर रहा हूँ, देखते हैं कि हम कितना सिखा पाते हैं और वे कितना सीख पाते हैं। मुझे ऐसे लोग पसंद आते हैं जो सीखने की कोशिश करते हैं, न कि टिप्स के पीछे भागते हैं। कल ही एक मित्र को कह रहा था कि कोई अगर 10 लाख से यह काम शुरू करे तो 30 हजार रुपये हर महीने के आराम से रिस्क मैनेज करके कमा सकता है, बस सीखना पड़ेगा और बाजार स्व कमाने की जल्दीबाजी न करे। वहीं इससे ज्यादा कमाई का सोचा तो रिस्क मैनेज नहीं कर पायेंगे। साल का 40% रिटर्न अपने कैपिटल पर बहुत बढ़िया होता है। पर पब्लिक को तो रातों रात अमीर बनना होता है, और फिर शेयर बाजार को सट्टा बाजार कहते हैं, उन पर तरस आता है।

निराशा, जीवन और भूल जाना

जीवन में निराशा कभी आ जाये तो जीवन थोड़ा ढीला और धीमा हो जाता है। निराश कदमी को लगता है कि वो ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो कुछ नहीं कर पाता, वरना तो दुनिया उसके आगे ही है। और वह व्यक्ति हमेशा भाग्य को कोसता रहता है। पर भला कोसने से कभी कुछ होता है, जो होना होगा वह तो होकर ही रहेगा। जीवन में सोच ही व्यक्ति के प्रारब्ध का निर्माण करती है। पर कभी सोचता हूँ कि कोई ज्योतिष गुरू मेरी इस विचारधारा को सुनकर कहीं न कहीं मुझे धिक्कार ही देगा। वे हमेशा कहेंगे कि फलाने ग्रह और फलाने योग में यह सब होता है। शायद उनकी बातें सत्य भी होती हों। पर जीवन की निराशा में मौसम का भी बहुत हद तक हाथ होता है और अगर शरीर में निराशा प्रकार के रसायनों का बोलबाला हो तो जीवन चलना जटिल हो जाता है।

कल जब मोबाईल पर स्क्रीन गार्ड लगवाने के लिये एक दुकान के सामने कार रोकी, तो देखा दुकान पर कोई नहीं था, तभी देखा एक बंदा दुकान की ओर दौड़ता आ रहा है जिसके हाथ में मोबाईल है औऱ कान में कनकव्वा लगा हुआ है। दुकान में घुसते ही उसने हमारा स्वागत किया और हमने अपने आने का कारण बताया। बंदे ने सबसे पहले रेडी रेकनर टाइप का पेज निकाला और मोबाईल का मॉडल देखकर उसके स्क्रीन गार्ड का डब्बा निकाला। फिर एक drawer में देखने लगा, इससे यह तो पता चल गया कि इन भाईसाहब को कुछ पता नहीं है। 2 – 4 मिनिट नाटक करने के बाद बोला कि स्टाफ को पता होगा कि कहाँ रखा है, आप बाद में आइयेगा।

केवल इसी चक्कर में अपन पिछले 15 वर्षों से रेस्टोरेंट नहीं खोल पाये। काम अपन वही करना चाहते हैं जो खुद कर पायें, जिस काम में डिपेंडेंसी हो वह काम करना बहुत मुश्किल होता है। अगर स्टाफ गायब हो जाए तो अपनी दुकान बंद, तो ऐसी दुकान खोलने का कोई मतलब नहीं।

कई वर्षों बाद उज्जैन आया हूँ, तो बहुत से चेहरे जाने पहचाने हैं जिनके बाल काले थे, वे अब सफेद दिखने लगे हैं और चेहरे भी बदल गए हैं। मुझे देख कर पहचानने की कोशिश करते हैं और कभी कभार मैं भी पहचानने की कोशिश करता हूँ, पर अब ऐसी कोशिशें कामयाब नहीं हो पाती हैं, शायद उम्र का असर है। मैं अक्सर ही चीजें भूल जाता हूँ, फिर तो यह शक्ल है जिन्हें में 5 साल बाद देख रहा हूँ। हाँ इस बार बहुत दुख हुआ कई लोगों को मिल नहीं पाया, क्योंकि वे अब इस दुनिया में ही नहीं हैं।

महाशिवरात्रि पर उज्जैन का विश्व रिकॉर्ड

18 फरवरी वैसे तो हमेशा ही मेरे लिए बहुत विशेष दिन रहा है, क्योंकि मैं इसी दिन अपने वैवाहिक गठबंधन में बंधा था। कल देखते देखते इस गठबंधन को 21 वर्ष हो गये। जीवन के इस पड़ाव पर आते आते पता ही नहीं चला कि कब हम इतने अच्छे दोस्त बन गए और प्रगाढ़ता बढ़ती ही जा रही है।

राम घाट उज्जैन

हम बचपन से ही महाशिवरात्रि का व्रत रखते आए हैं। व्रत क्या हमारे लिए तो बहुत ही विशेष दिन होता है, क्योंकि इस दिन घर में व्रत की सामग्री से माल बनते हैं क्योंकि महाशिवरात्रि के दिन शिवजी की शादी हुई है। भोले बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में रहते हुए महाकाल में आस्था कब इतनी गहरी हो गई पता ही नहीं चला। हालांकि कल महाकालेश्वर में भीड़ के चलते हम दर्शन करने नहीं गए लेकिन पूरे दिन मन वही अटका रहा। यूट्यूब पर महाकाल के लाइव दर्शन करते रहे और महादेव को मन में भजते रहे।

घर के पास ही मंदिरों में महाशिवरात्रि पर्व की छटा देखते ही बनती थी। मंदिरों को बहुत ही बढ़िया सजाया गया था, कुछ मंदिरों में शिव जी का भांग से श्रृंगार किया गया था और दूल्हा स्वरूप बनाया गया था। उज्जैन में दिनभर भक्तों के लिए भंडारे खुले हुए थे, जिसमें साबूदाने की खिचड़ी, ठंडाई, पोहे इत्यादि सड़क पर ही स्टाल लगाकर बांटे जा रहे थे। कई जगह सड़क पर ही स्टेज लगाकर भजन संध्या चल रही थी, जिसमें कई जगह स्टेज पर भगवान शिव को दूल्हा स्वरूप और मां पार्वती को दुल्हन स्वरूप सजाकर बैठाया गया था वही जनता भक्ति में सड़क पर नृत्य कर रही थी। लोगों ने खुद ही ट्रैफिक मैनेजमेंट संभाला हुआ था जिससे जाम की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई।

हमने दोपहर को घर के पास ही नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन करके साबूदाने की खिचड़ी का प्रसाद प्राप्त किया और वहीं बैठे पंडित जी ने जो कि बालक थे उन्होंने हमारे माथे पर तिलक लगाया।

नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन के बाद
साबूदाने की खिचड़ी का प्रसाद

हम यूट्यूब पर लगातार खबर देख रहे थे और रामघाट का लाइव प्रसारण भी देख रहे थे। जहाँ मध्य प्रदेश शासन ने 21 लाख दिए प्रज्वलित कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की चेष्टा की थी। गिनीज बुक में द्रोन के माध्यम से चित्र खींचे व उनकी गणना की तथा 18 लाख 80 हजार दिए प्रज्वलित है इसका विश्व रिकॉर्ड कल उज्जैन के नाम हो गया। इसके पहले यह रिकॉर्ड 15 लाख से कुछ अधिक दियों का अयोध्या के नाम था। शाम को लगभग 9:00 बजे हम घर से निकले और रामघाट पहुंचे व इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने। हर तरफ सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे हर तरफ घाट पर दिए ही दिए दिखाई दे रहे थे।

रामघाट से हम मुंबई धर्मशाला होते हुए हरसिद्धि की तरफ पहुंचे और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के शिखर दर्शन किये। भक्तों का जोश देखते ही बनता था, कल महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए कम से कम 10 लाख लोगों का तांता उज्जैन में लगा हुआ था।

रामघाट और दत्त अखाड़ा क्षेत्र
रील जो बनाकर फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपलोड करी।

मुंबई से उज्जैन एक कूपे में 6 सीटों पर 14 लोगों की यात्रा

जब मुंबई में रहते थे, तो हम कुछ मित्र किराये का एक फ्लेट लेकर रहते थे, और अधिकतर उज्जैन या इंदौर के थे, और लगभग हर सप्ताह हम बोरिवली से उज्जैन की ट्रेन शाम 7.40 पर पकड़ते थे, ट्रेन का नाम है अवंतिका एक्सप्रेस, ट्रेन शनिवार सुबह 7 बजे उज्जैन पहुँच जाती थी और रविवार शाम को फिर से शाम 5.40 पर यह ट्रेन बोरिवली के लिये चलती थी, तो बोरिवली सोमवार सुबह 5 बजे पहुँच जाते थे। थोड़ी देर सोकर फिर तैयार होकर ऑफिस निकल जाते थे। यह बात है लगभग 2007 की, उस समय अवंतिका एक्सप्रेस में रिज़र्वेशन आसानी से तो नहीं मिलता था, पर ऑनलाइन रिज़र्वेशन के कारण आसानी थी। और जैसे ही 3 महीने बाद का रिज़र्वेशन खुलता था, हम लोग आने जाने का रिज़र्वेशन करवा लेते थे।
 
त्योहार के दिनों में हम लोग ज़्यादा लोग होते थे, तो मैं हमेशा ही एक टिकट पर मिलने वाली 6 सीटें रिज़र्व कर लेता था, क्योंकि हमारे एक मित्र हैं वे बहुत दयालु हैं, हमारे पास जब सीटें लिमिटेड होती थीं तो हम चुपचाप अपनी सीट पर बैठ जाते थे, और ये महाशय पूरी ट्रेन में प्लेटफ़ॉर्म पर घूमकर जिनके पास वेटिंग टिकट होता था, उनको अपनी सीट पर आमंत्रित कर आते थे, हमें खैर ग़ुस्सा तो बहुत आता था, पर उनकी दरियादिली देखकर अपनी मित्रता पर गर्व भी होता था। ऐन समय पर ऐसे बहुत से मित्र मिल जाते थे जिनके पास कन्फर्म टिकट नहीं होता था, पर हमारे पास ज़्यादा सीटें होने से हम 1 कूपे में हर सीट के हिसाब से 2 और बीच में बची जगह पर, जहाँ पैर रखते हैं, वहीं 2 लोग सो जाते थे, इस हिसाब से 14 लोग एक कूपे में आ जाते थे।
 
कई बार उन मित्र से बहुत ख़फ़ा भी रहा, वो चुपचाप रहते हमें मनाते रहते, खैर आज याद करता हूँ तो बहुत अच्छा लगता है।
 
ऐसे ही कई किस्से जो ट्रेन के हैं, याद आते रहते हैं, लिखता रहूँगा।

महाकाल में वीआईपी दर्शन VIP Darshan in Mahakal

वैसे मैं महाकाल की व्यवस्था पर लिखने से हमेशा ही बचता हूँ, क्योंकि लगता है कि इससे लोगों की आस्था कम होती है।

परंतु फिर भी इस पर आज लिख रहा हूँ, मैं हमेशा ही महाकाल में वीआईपी दर्शन करता हूँ, पहले इसका शुल्क 151 रूपये था और अब सुविधाओं के नाम पर इसे बढ़ाकर 250 रूपये कर दिया गया है। वीआईपी दर्शन इसलिये करता हूँ, कि इसमें दिया गया धन का दुरूपयोग नहीं हो सकता है, इसका हिसाब ऑडिट वगैराह में देखा जाता है, अगर दान पात्र में हम दान देते हैं तो हमें कोई सुविधा नहीं मिलती है एवं अगर पंडे पंडितों को सीधे देते हैं तो वह उनकी जेब में जाता है।

वीआईपी दर्शन का टिकट लेने के बाद वहीं पर जूते चप्पल स्टैंड पर हमने जूते उतारे, यहाँ पता चला कि अब ये जूता चप्पल स्टैंड केवल वीआईपी दर्शन के टिकट वालों के लिये ही है। दर्शन करने के बाद जब महाकाल से बाहर आने की बात आई तो पता चला कि बाहर जाने का एक ही रास्ता है, और वहाँ पर पैर न जलें इसके लिये कोई व्यवस्था नहीं है। हालत यह है कि मुझे और मेरे परिवार को अभी तक पैरों में जलन की तकलीफ सहन करना पड़ रही है।

जब वापिस जूते चप्पल लेने पहुँचे तो वहाँ पर सहायक प्रशासनिक अधिकारी का कार्यालय दिखा, हम पहुँचे वहाँ कि हमें शिकायत पुस्तिका दें, हमें शिकायत करनी है, तो हमें कहा गया कि यहाँ शिकायत पुस्तिका नहीं है, आपको 3 मंजिला महाकाल के प्रशासनिक भवन में जाना होगा। अधिकारी तो वहाँ थे नहीं, परंतु उनके बात करने के अंदाज से यह जरूर लगा कि बहुत से वीआईपी टिकट वाले लोग वहाँ आकर शिकायत करते हैं, परंतु शिकायत पुस्तिका के अभाव में बात सही जगह तक नहीं पहुँच पाती है। वहाँ बैठे सारे लोग अपने मोबाईल में सिर घुसाये मिले।

बाबा महाकाल के हम भक्त हैं, और महाकाल में प्रशासन के नाम पर लूटने वाले लोग और मानवीयता को शर्मसार करने वाले प्रशासनिक अधिकारी जो कि अपने अपने ए.सी. केबिन में बैठकर सुस्ताते रहते हैं, उम्मीद है कि वे भी महाकाल के भक्त होंगे और भक्तों की तकलीफ को समझेंगे। शिकायत पुस्तिका केवल महाकाल प्रशासनिक कार्यालय में ही क्यों उपलब्ध है, यह तो वीआईपी दर्शन के दरवाजे पर भी उपलब्ध होनी चाहिये, जहाँ टिकट मिलते हैं उस काऊँटर पर भी उपलब्ध होनी चाहिये।

वीआईपी काऊँटर पर लिखा हुआ है कि कार्ड से भी भुगतान स्वीकार किया जाता है, परंतु जिस समय हम पहुँचे तो काऊँटर क्लर्क किसी और को बैठाकर कहीं चला गया था और उन सज्जन को कार्ड की स्वाईप मशीन ही नहीं मिल रही थी, और हमें यह भी कहा कि उन्हें कार्ड की स्वाईप मशीन का उपयोग करना ही नहीं आता है। समझ नहीं आता कि महाकाल प्रशासन हर जगह महाकाल भक्तों से शुल्क वसूलने में लगा है, जैसे कि भस्मारती पर अब ऑनलाईन 100 रूपये और ऑफलाईन 10 रूपये का शुल्क वसूला जा रहा है। परंतु भक्तों को सुविधाओं के नाम पर केवल असुविधा ही मिल रही है।

महाकाल केवल अब वीआईपी लोगों के लिये ही सुविधाजनक है, सामान्य भक्त के लिये प्रशासन सारी मानवीय मूल्यों को भूल चुका है। उम्मीद है कि मेरी यह शिकायत महाकाल प्रशासक और उज्जैन कलेक्टर तक जरूर पहुँचेगी।