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उसल पोहा इंदौर

मालवा आओ और पोहे न खाओ तो बस आपका मालवा आना बेकार है, कई जगह पोहा जलेबी के साथ खाते हैं तो कई जगह उसल के साथ, आज हम इंदौर हैं, तो पलासिया पर हेड साहब के उसल पोहे खाये गये, जिसमें पोहे के ऊपर प्याज, छोले और चटपटी तरी व नमकीन, चटपटापन कम करने के लिये ऊपर से दही भी डाल सकते हैं।

पहले हम जेल रोड, इंदौर में उसल खाने जाया करते थे, वो जबरदस्त मिर्ची वाले उसल होते थे।

अगर कभी आयें तो इंदौर में उसल को मिस न करें।

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बुनियादी सुविधाओं में स्वास्थ्य, शिक्षा व भोजन

अब जब हम ख़बरें पढ़ते हैं तो विश्वास ही नहीं होता है कि सरकार हमारे लिये याने जनता के लिये क्या इतना सा नहीं कर सकतीं, जहाँ इतना सारा पैसा पता नहीं कैसी कैसी योजनाओं में खर्च किया जाता है वहीं कुछ पैसा क्या जनता के लिये नहीं लगाया जा सकता था। कुछ बुनियादी सुविधायें जो कि हर जन को मिलनी ही चाहिये वे भी उपलब्ध नहीं है, हम बहुत ही निम्नतम स्तर पर जी रहें हैं। बुनियादी सुविधाओं में स्वास्थ्य, शिक्षा व भोजन ही आता है।

स्वास्थ्य के लिये तो एक बढ़िया सी स्वास्थ्य पॉलिसी को रोल आउट किया जा सकता है, किया भी था, परंतु इस कोरोना के काल में उनके बारे में जानने पर पता चला कि जो बीमा लिया भी गया था, वह किसी काम का नहीं था, बीमा कंपनियों ने यह कहकर टरका दिया कि इसके लिये अस्पताल जाने की ज़रूरत ही नहीं थी, इसके लिये आपका इलाज घर पर ही हो जाता, तो बीमा कंपनियों ने बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं डॉक्टरों के निर्णय पर, अस्पताल में भर्ती होना या न होना, हमारे नहीं डॉक्टर के कहने पर निर्भर होता है। क्यों सरकार इसका जबाब नहीं दे रही। और यह समस्या केवल सरकारी अस्पतालों के बीमा निराकरण केसों में ही है, जैसा कि रिपोर्ट में बताया जा रहा है, वहीं निजी अस्पतालों के बीमा केस पास हो रहे हैं।

शिक्षा का स्वरूप ही बदल गया है, कहाँ कक्षा में शिक्षा होती थी, और अब कहाँ ऑनलाइन, पहले जो शिक्षक बच्चों व अभिभावकों को कहते थे कि मोबाईल व लेपटॉप से बच्चों को दूर रखें, आँखें ख़राब होती हैं, दिमाग़ ठिकाने नहीं रहता। अब वही शिक्षक ऑनलाइन पढ़ने के लिये प्रेरित कर रहे हैं। जो अभिभावक मोबाईल या लेपटॉप की क़ीमत ही अफोर्ड नहीं कर सकते हैं, उनके लिये बहुत कठिन समय है, अब हर किसी के लिये तो सोनू सूद आ नहीं सकता और न ही हर किसी की कहानी वाईरल हो सकती है।

इस कोरोनो काल में सरकारों को ह्रदय द्रवित होना चाहिये, व समझना चाहिये कि सरकार जनकल्याण के लिये होती है व कि किसी कंपनी की तरह प्रॉफिट में लाने के लिये। सरकार को तो इस समय चीजों को सस्ता कर देना चाहिये, हर जगह जहाँ लोगों की सुविधाओं के लिये काम हो रहा है, वहाँ त्वरित निर्णय लेते हुए कठोर नियम लागू कर देना चाहिये, जिससे जनता को न स्वास्थ्य के लिये परेशान होना होगा, न शिक्षा के लिये भागना होगा न ही भोजन के बिना रहना होगा। ऐसा नहीं है कि काम नहीं हो रहा, परंतु जितना हो रहा है वह नाकाम है, यह वक़्त मीटिंग करने का नहीं है, सरकारी अमले को सड़क पर उतर कर एक्शन लेने का वक़्त है।

इतिहास जब लिखा जाता है तब इतिहासकार की कलम किसी को नहीं छोड़ती, यह सत्य हमेशा ही देखा जा सकता है, तो दंभ करने की ज़रूरत नहीं।

आम का अचार

आम का अचार

आम का अचार डालने का बहुत दिनों से नहीं वर्षों से सोच रहे थे, परंतु हो ही नहीं पाया, जब गुड़गाँव में थे तो वहाँ अचार का मसाला रेडीमेड बाज़ार से ही मिल जाता था, जहाँ पुराने गुड़गाँव की सब्जीमंडी में सब्ज़ी लेने जाते थे, वहीं से कैरी कटवाकर ले आते थे, और दीदी को दे देते थे, दीदी अचार डालकर रख देती थीं, बस फिर हम उनके यहाँ से ले आते थे। एक बार रेडीमेड अचार के मसाले से भी अचार डाला, बढ़िया लगा, परंतु दीदी के हाथ के अचार की बात ही कुछ ओर थी। उस अचार के मसाले का अचार डालने से ज़्यादा हमें उस मसाले के पराँठे खाने बढ़िया लगते थे।

जब से बैंगलोर आये हैं, तो यहाँ अचार या तो मोल ही लेना पड़ता है। फिर गुड़गाँव वाली दीदी भी थोड़े समय के लिये बैंगलोर आ गई थीं, तो बस फिर से उनसे ही अचार डलवा लेते थे, या उनसे ही ले आते थे। अब यहाँ बैंगलोर में अचार का मसाला रेडीमेड वाला नहीं मिलता है। तो अब सारे मसालों का अनुपात ख़ुद ही पता होना चाहिये। अब दिल्ली में ट्विटर वाली दी से हमने लिया और इस बार आम का अचार डाला। जी हाँ हमने सोशल मीडिया से भी कई रिश्ते कमाये हैं। केवल ब्लॉगर कम्यूनिटी ही नहीं, बल्कि फ़ेसबुक और ट्विटर से भी। दी की माँ अच्छा अचार डालती थीं, फिर उन्होंने अपनी छोटी भाभी से पूछकर सारे मसाले की सूचि भेजी।

आम का अचार डालने का तरीक़ा –

पहले कैरी अचार के लिये काट लें और सुखा लें।

25 कैरी के लिये यह मसाला बताया है, अगर कैरी ज़्यादा या कम लें तो उसी अनुपात में मसाले बढ़ा लें या कम कर लें।

आम का अचार का मसाला –

मिर्च75 Gram
हल्दी60-70 Gram
सौंफ100-125 Gram
मैथी50 Gram
हींगअंदाज से एक डली
राईदाल (छोटी वाली)750 Gram
लौंग10 Gram
कालीमिर्च10 Gram
तेल1 Liter
नमक125 Gram
आम का अचार का मसाला

पहले तेल को खूब गर्म कर लें (जब धुआँ जैसा छोड़ने लगे) और फिर इतना ठंडा कर लें कि उसमें मसाले भुन जायें।

एक बड़ी थाली में सब मसाले अलग अलग रख लेना है फिर उस तेल को ( उतना गर्म होना चाहिए जिससे मसाले सिक पाएं )

थाली में सबसे पहले मेंथी लौंग और कालीमिर्च पर तेल डालने की शुरआत करिये, इसके बाद हल्दी मिर्च सौंफ और राई पर तेल डालना तेल गर्म इतना रहे कि ये मसाले सभी सिकते जाएं और सबको मिलाते जाना चम्मच से। सबसे आख़िरी में नमक डालिये ( जब मसाले ठंडे हो जाएं तब )

अब इन मसालों में कटी हुई कैरी मिलाकर, एक डब्बे में रख दीजिये, धूप में न रखें, छाँव में ही पकाना है। तेल कम लगे तो फिर से तेल गर्म करके ठंडा होने पर मिला दें।

हमने तो कल अचार डाला था, और आज से ही खाना शुरू कर दिया, बढ़िया स्वाद है। फ़ोटो भी वही लगा दे रहे हैं जो दी ने हमें भेजा था।

आप भी अगर अचार डालें तो स्वाद कैसा आया, ज़रूर बतायें। और अपने मित्रों तक भी इस लिंक को ज़रूर पहुँचायें।

मोटापा कम कैसे करें

मोटापा कम कैसे करें

जब पिछला ब्लॉग लिखा तो बहुत से मित्रों का आग्रह था कि मोटापा कम कैसे करें, इस पर भी लिखें। दरअसल मैं अपने ही मोटापे से बहुत परेशान हूँ, शायद यह मेरे शरीर की प्रकृति है कि थोड़ी सी खानपान में ढ़ील दो और मोटापा वापिस से शरीर पर हावी होने लगता है। जब मोटापा शरीर पर चढ़ता है तो बहुत सारी तकलीफ़ें भी साथ में लेकर आता है, जैसे कि उच्चरक्ताचाप, मधुमेह, मुझे उच्चारक्ताचाप है, जब मैं अपनी ज़बान पर कंट्रोल रखता हूँ तब कई बार तो डॉक्टर ने ख़ुद ही मेरी बीपी की दवाई बंद कर दी थी। पर वजन बढ़ने पर फिर से बीपी की दवाई शुरू हो जाती है। खर्राटे शुरू हो जाते हैं। दिनभर अपना पेट ऐसा लगता है कि फूले ही जा रहा है, कुल मिलाकर कोई बहुत अच्छा नहीं लगता है।

मोटापा कंट्रोल करना इतना मुश्किल भी नहीं पर उतना आसान भी नहीं। मैं अपना तरीक़ा बता सकता हूँ कि मैंने कैसे मोटापे को कंट्रोल किया था।

खानपान पर संयम –

क्या नहीं खाना है – डेयरी उत्पाद बिल्कुल भी नहीं लेने हैं, दूध, दही, घी, पनीर।

डब्बाबंद पोलीथीन वाली चीजें नहीं खानी है – चिप्स, नमकीन, मिठाई, बिस्कुट

खाना क्या है – सलाद, फल, अंकुरित खाने में 70% कच्चा याने कि सलाद 30% पका हुआ।

पेट को साफ़ करने के लिये – एक महीने तक तीन समय पानी से एनिमा लेना है।

शरीर को हल्का रखने के लिये – दिन में कम से कम दो बार यानि कि सुबह और शाम नहाना है, हो सके तो तीन बार याने कि दोपहर में भी नहाना है।

16 घंटे का व्रत रोज़ रखना है, जिसमें पानी भी नहीं पीना है, कुछ खाना भी नहीं है। मतलब अगर शाम 8 बजे खाना खा लिया फिर उसके बाद अगले दिन दोपहर 12 बजे तक कुछ नहीं खाना पीना है। इसे आजकल की आधुनिक भाषा में इंटरमिटेंट फास्टिंग भी कहा जाता है।

दोपहर 12 बजे पहले थोड़ा थोड़ा पानी पियें, फिर अगर हो सके तो हरी पत्तियों के रस का सेवन करें लगभग 300ml, उसमें पालक, धनिया, पुदीना, एक नींबू, 4 आँवले डालना है, इस रस में आप हर वो पत्ती डाल सकते हैं जिसका फल हम खा सकते हैं, जैसे कि आम, अमरूद, चीकू, सहजन फली की पत्तियाँ इत्यादि।

फिर जब भी भूख लगे आप फलों का सेवन करें, मौसमी फलों का उपयोग करें, जो भी बाज़ार में सबसे सस्ते मिलते हैं वही मौसमी फल होते हैं। जैसे अभी खरबूज, तरबूज़ का मौसम है, फिर आम का मौसम आ रहा है। फल जितना खा सकते हैं उतना खायें कोई रोक टोक नहीं, केवल केले व चीकू पर संयम रखें क्योंकि इनमें शक्कर की मात्रा ज़्यादा होती है और 12 महीने उपलब्ध होते हैं।

दोपहर को फलों के बाद आप भरपूर मात्रा में सलाद का सेवन करें, जैसे ककड़ी, गाजर, टमाटर (टमाटर के बीज निकाल दें), शिमला मिर्च इत्यादि।स्वाद न आये तो हरी चटनी बनाकर रखें और उसके साथ खायें। नींबू निचोड़े सकते हैं।

शाम को फिर से फल या सलाद खा सकते हैं, रात्रि भोजन में 70% सलाद और 30% पका हुआ, उस 30% में भी आधे से अधिक भाग आपका पकी हुई सब्ज़ी व दाल का होना चाहिये, केवल एक या दो रोटी या फिर थोड़े से चावल साथ में लें।

दिनभर पानी पीते रहें, कम से कम 3 लीटर पानी पीना है।

शुरू में आपको कच्चे फलों व सलाद में स्वाद नहीं आयेगा, क्योंकि हमें हर चीज में शक्कर या नमक या मसाले डालकर खाने की आदत हो गई है।पर धीरे धीरे स्वाद ग्रंथियों को अपना ओरिजनल स्वाद याद आ जायेगा। हमने अपनी ज़बान को तला गला मसाले वाला खिलाखिलाकर इतना ख़राब कर दिया है कि हमें फल व सब्ज़ियों में स्वाद ही नहीं आता। जब आप यह शुरू के 15 दिन करेंगे तो आपको ख़ुद ही सब्ज़ियों के स्वाद का पता चलने लगेगा। आपको सलाद व फल अच्छे लगने लगेंगे। पेट कम खाने में ही भर जायेगा।

इससे वजन तो आश्चर्यजनक रूप से कम होगा ही, साथ ही आप अपनी नींद की क्वालिटी में सुधार देखेंगे, दिनभर इतनी ऊर्जा आपके पास आ जायेगी कि आपको ख़ुद ही आश्चर्य होगा। आपका मन अपने कार्य में अच्छे से लगेगा।

इन सबका लाभ लेते हुए अगर सुबह 30 मिनिट का ध्यान करें तो वह सोने पर सुहागा होगा।

यह पढ़ना जितना आसान है, इसे करना उतना ही कठिन। कुछ प्रश्न हों तो कमेंट में पूछियेगा।

समय बहुत भयावह है, संयम रखें, ज़बान और दिमाग़ पर भी

समय बहुत भयावह है, संयम रखें। सबका नंबर आयेगा, अगर अब भी न सुधरे तो। कुछ दिन अपनी ज़बान पर लगाम दो, अपने फेफड़ों को मज़बूत करो, ठंडी चीजें मत खाओ पियो, ज़बान का स्वाद यह गर्मी के लिये रोक लो, इस गर्मी अपने शरीर को थोड़ा कष्ट दे लो। आप जितनी ज़्यादती अपने फेफड़ों के साथ करोगे, ऐन वक़्त पर फेफड़े आपको दगा दे जायेंगे। कोशिश करें कि साधारण तापमान का ही पानी पियें, ठंडे पानी को, बर्फीले शर्बत को न पियें। फेफड़ों को ज़्यादा तकलीफ़ न दें।

केवल फेफड़े ही नहीं, जितनी ज़्यादा काम आप अपने शरीर के अंगों से करवायेंगे, उतना ही ज़्यादा समस्या है। कुछ लोग इस बात को हँसी में लेंगे, पर दरअसल उन्हें पता ही नहीं कि हम प्लेट प्लेट भर खाना खाने वाले इंसानों को मुठ्ठीभर खाना ही ऊर्जा के लिये काफ़ी होता है। खाने में ऊर्जा नहीं होती, यह हमारे मन का वहम है। जैसे सुबह हम कहते हैं कि नाश्ता नहीं किया तो ऊर्जा कहाँ से आयेगी, पर वहीं दिन का खाना या रात का खाना खाने के बाद आप शिथिल क्यों हो जाते हो। जब भी कुछ खाओ तो उस हिसाब से तो हमेशा ही ऊर्जा रहनी चाहिये। पर यह तर्क भी लोगों को समझ में नहीं आता।

जब भूख लगे तभी खाओ, यह नियम ज़िंदगी में बना लेंगे तो हमेशा खुश रहेंगे। हम क्या करते हैं कि खाने के समय बाँध लेते हैं, सुबह ८ बजे नाश्ता करेंगे, ११ बजे फल खायेंगे फिर १ बजे दोपहर का भोजन करेंगे, ४ बजे शाम का नाश्ता करेंगे, ७ बजे खाना खायेंगे। कुछ लोग तो शाम को दो बार भी नाश्ता कर लेते हैं और फिर कहते हैं आज तो कुछ खाया नहीं फिर भी पेट भरा हुआ है, अब रात का खाना थोड़ा ओर देर से करेंगे। इस तरह हमने अपना हाज़मा भी बिगाड़ रखा है, और अपनी जीवनशक्ति के साथ हम खिलवाड़ करते हैं।

मुझे जब भी भूख लगती है, तो सबसे पहले मैं बहुत सारा पानी पीकर चेक करता हूँ कि वाक़ई मुझे भूख लग रही है या फिर दिमाग़ खाने का झूठा सिग्नल भेज रहा है, क्योंकि दिमाग़ को तो ज़बान ने कह दिया कि कुछ खाने का इंतज़ाम करो बढ़िया सा, जिसमें बढ़िया स्वाद हो, ताकि यह समय बहुत अच्छा निकले, तो दिमाग़ को खाने का झूठा सिग्नल भेजा जाता है, परंतु अगर मन अपना वश में रखें और स्वादग्रंथियों को पानी का एक लीटर स्वाद चखने को मिल जाये, फिर पेट भी सिग्नल भेजता है, कि अब कुछ ओर रखने के लिये जगह नहीं है, यहाँ मामला फ़ुल है। तो बस ज़बान निराश हो जाती है और चुपचाप रहकर कुछ ओर समय का इंतज़ार करती है। उस समय ज़बान फिर नाटक करेगी, ज़बान कसैली या स्वादहीन हो जायेगी, जिससे आर्टीफीशियली दिमाग़ को लगेगा, इससे शरीर को तकलीफ़ हो सकती है तो दिमाग़ भी सिग्नल देगा, कुछ तो खा लो, भले चुटकी भर कोई चूरण खा लो, ये ज़बान बहुत परेशान कर रही है।

पूरी प्रक्रिया यही है, लिखने को तो बहुत कुछ है, परंतु अब अगले ब्लॉग में, अगर इन स्वाद ग्रंथियों ओर शरीर के इन अवयवों पर कंट्रोल कर लिया तो हम ज़्यादा सुरक्षित हैं। हालाँकि इसके लिये दिमाग़ को वैसा ही पढ़ने लिखने के लिये साहित्य भी देना होगा, साथ ही अपने आसपास का वातावरण भी ऐसा हो सुनिश्चित करना होगा।

फुरसती आदमी

बेटेलाल से अक्सर बहुत सी बातें होती रहती हैं, और वे खुलकर अपने विचार लगभग हर मुद्दे पर रखते हैं, हाँ अभी परिपक्वता नहीं है, पर समय के साथ वह भी आ ही जायेगी, परंतु इतना तो सीख ही लिया है कि अपनी राय किस तरह बनाना चाहिये व अपनी बात को दमदार तरीक़े से कैसे रखा जाये। यही आज के दौर में ही नहीं हमेशा ही ज़रूरी रहा है। हर चीज में नैसर्गिक प्रतिभा हो ज़रूरी नहीं, परंतु कुछ प्रतिभा तो हर किसी में होती हैं, बस हमें उन्हें ढूँढना होता है और फिर निखारना होता है। कई विषयों पर बात हो सकती है, कुछ ऐसे भी विषयों पर बात होती है जिसके बारे में हमें पता नहीं होता, तो हम उनकी बात सुनते रहते हैं और जब सवाल पूछते हैं तो बेटेलाल इधर उधर देखने लगते हैं। अधिकतर बार उनके पास जबाब नहीं होता, तो अगली बार ज़्यादा तैयारी के साथ आते हैं।
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ऐसे ही खाना पकाने पर बेटेलाल के साथ बात चल रही थी, कि किस तरह से खाने में बेहतर स्वाद लाया जा सकता है। जब से लॉकडाऊन लगा है तब से बेटेलाल पाककला में रूचि लेने लगे थे, क्योंकि बाहर से तो कुछ आ नहीं सकता है, खैर हमने तो अब तक बाहर से खाना नहीं मँगवाया, तो घर में ही पिज़्ज़ा, बर्गर, पास्ता और भी जाने क्या क्या बनाने लगे, अब हालत यह है कि वे कहते हैं कि रेस्टोरेंट से अच्छा खाना तो मैं घर में बना लेता हूँ, अब क्यों बाहर जाकर खाना खाना, या बाहर से मँगवाकर खाना, अब तो हम ही पकायेंगे। पर समस्या यह है कि अभी पढ़ाई में भी बहुत समय देना होता है, क्योंकि यही एक दो वर्ष जीवन की दशा दिशा तय करेंगे, तो अब उनको खाना बनाने के लिये हम मना करते हैं, कि तुम पढ़ाई कर लो, खाना बनाने का शौक़ बाद में पूरा कर लेना।
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बात करते करते अचानक ही बेटेलाल बोल पड़े, कौन इतना फुरसती आदमी रहा होगा, जिसने पहले गेहूँ दाल चावल ढूंढें होंगे, फिर पकाने का तरीका, फिर सब्जी मसाला, मतलब कि कच्चा ही खा लेते। उदाहरण के तौर पर रोटी के लिये बोले, पहले गेहूँ उगाओ फिर उसके दाने निकालो, फिर पीसकर आटा बनाओ, फिर पानी मिलाकर आटा गूंथो, फिर बेलकर रोटी बनाओ फिर आग पर पकाओ, इतनी लंबी प्रोसेस बनाने या ढूँढने में कितना लंबा समय लगा होगा।
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ऐसे ही मटर पसन्द नहीं हैं तो कहते हैं कि कौन फुरसती आदमी था जिसने फली छीलकर खाई होगी, और फिर पकाकर भी खाई होगी, अगर वो छीलकर न खाई होती तो ये जंगली फली ही रहती।
लखनवी समोसे

लखनवी समोसे

लखनवी समोसे
लखनवी समोसे

जब से लॉकडाऊन लगा है, तब से हम यूट्यूब पर ज्यादातर वीडियो खाने पीने व ट्रेवलिंग के वीडियो बहुत देखने लगे हैं। खाने पीने के वीडियो ज्यादा देखने का एक मूल कारण यह भी है कि लॉकडाऊन के चलते बाहर का खाना लगभग बिल्कुल ही बंद है। बेटेलाल अपनी परीक्षा के बाद बोर होने लगे थे, तो खाना बनाने में रूचि जागृत हुई, हम उन्हें रसोई में जाने की इजाजत नहीं देते थे, परंतु सोचा कि चलो अब लॉकडाऊन के चलते अपनी देखरेख में रसोई में काम करने की इजाजत दे देते हैं।

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हम तो वैसे कई प्रकार के वीडियो देखते हैं जैसे कि एक्सेल के फंक्शन को उपयोग करने के तरीके, पॉवरपॉईंट प्रेजेन्टेशन को किन तरीकों से ओर बेहतर बनाया जा सकता है, नई चीजों को सीखना, जैसे कि टैब्ल्यू, पॉवर बीआई इत्यादि।
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खैर हम आते हैं अपने लखनवी समोसे पर, फोटो नहीं खींच पाये, कल रात को ही यूट्यूब पर रनवीर बरार शेफ के चैनल से सीखा था, रनवीर लगता है कि हमउम्र ही होंगे, पर उनका बोलने का तरीका, खाना बनाने का सिखाने का तरीका, बिल्कुल ही अलग अंदाज है। हमें बहुत अच्छा लगता है उनका देसी तरीका जब वे खाने के मसालों के बारे में बताते हैं या फिर उस डिश से जुड़ी कोई कहानी, या उसकी दास्तान सुनाते हैं। देखिये खाने में कोई धर्म नहीं होता है, इसलिये खाने को खाने की दृष्टि से ही सोचना व देखना चाहिये, यह रनवीर का कहना है। एक बात ओर हर वीडियो में वे कहते हैं, ध्यान से देख लीजिये, या समझ लीजिये यह गड़बड़ी हो जायेगी ओर फिर आप कहेंगे कि रनवीर ने यह तो बताया ही नहीं, तो रनवीर ने आपको यह बता दिया है। तो सबकी अपनी अपनी सिग्नेचर टोन या वाक्य होते हैं, यह रनवीर का सिग्नेचर वाक्य है।
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लखनवी समोसे में नजाकत होती है, मिर्च नहीं होती है, उबले हुए आलू लेने हैं, हाथ में ही चाकू से छोटो छोटे टुकड़ों में काट लेना है, क्योंकि लखनवी समोसे हैं, नजाकत का हर समय ध्यान रखना है। फिर एक पैन में एक चम्मच घी, जीरा, सौंफ, बारीक कटी हुई अदरक, कूटा हुआ सूखा हरा धनिया डाल लें और फिर इसमें कटे हुए आलू मिला लें, अच्छे से आलुओं को चला लें, ऊपर से थोड़ा सा अजवाईन, स्वादानुसार नमक मिला लें। तो यह तो तैयार हो गया लखनवी समोसे का  मसाला।
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अब बारी आती है समोसे की परत बनाने की, तो उसके लिये मैदा, थोड़ा अजवाईन व मौन के लिये घी, थोड़ा नमक और इसे मलना है बर्फ के ठंडे पानी से। समोसे का आटा थोड़ा सख्त रखें, आटा होने के बाद थोड़ी देर कपड़े से ढ़ँककर छोड़ दें।
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बस अब आटे से चकले पर रोटियों जैसे बेल लें और उसे बीच से काटकर किनारों पर थोड़ा पानी लगाकर समोसे के आकार में ढ़ालकर थोड़ा थोड़ा आलू का मसाला भरते जायें, ध्यान रखें समोसे छोटे बनायें। जब सारे समोसे भर जायें तब मीडियम तेज आँच पर समोसों को तल लें, ध्यान रखें कि अगर ज्यादा तेज गर्म तेल होगा तो समोसे पर फफोले पड़ जायेंगे। समोसे पर फफोले न पड़ें इसके लिये तेल बहुत ज्यादा तेज गर्म न हो, समोसे तलने में समय ज्यादा लगेगा।
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समोसे तैयार हो जायें तो इन लखनवी समोसे को आप हरी व लाल मीठी चटनी के साथ परोसें।
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हम अपनी जबान पर कंट्रोल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, परंतु घर के घर में अब 10 महीने हो गये हैं, कुछ तो एक्साईटेड होना चाहिये, तो खाने पीने में ही सही।
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बताईये आप घर में बंद होकर बोर तो हो ही रहे होंगे, आप कैसे इस समय का सदुपयोग कर रहे हैं, व नया क्या सीख रहे हैं।

कच्चे आम का मौसम और हिन्दू नववर्ष

हर वर्ष मराठी नववर्ष मनाने के लिये गृहणियाँ घर के मुख्य दरवाजे पर एक अलग सा कुछ सजाती हैं, जो कि आम की पत्तियों, नीम की पत्तियों और मिश्री  से बनाया गया होता है। नववर्ष को मनाने के लिये परिवार सबसे पहले इन्हीं चीजों को इकठ्ठा करता है। पर इसके अलावा भी वे बहुत सी चीजें अपना दिनचर्या में करते हैं, वो है दिन का भोजन। और भोजन की मुख्य सामग्री होती है – कच्चा आम।

गुड़ीपड़वा
गुड़ीपड़वा

तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मराठी नववर्ष मार्च या अप्रैल में पड़ता है, जब आम के मौसम की पहली खेप आती है। और इसी कारण से आम को पूरे दिन के भोजन में शुमार किया जाता है। गुड़ीपड़वा उत्सव इस रविवार को मनाया जा रहा है, जो कि मराठियों का नववर्ष है, और प्रांत के लोग स्थानीय बाजार में सबसे बढ़िया आम की खरीददारी करते पाये जा सकते हैं। उत्सव के दिन का विशिष्ट भोजन में मिठाई और स्वादिष्ट कच्चे आम के पन्ना को जरूर शामिल किया जाता है।

कच्चा आम पना
कच्चा आम पना

पना बनाने के लिये कच्चे आम को उबाला जाता है और उसमें इसके गूदे को हाथ से दबाकर निकाल लिया जाता है, फिर इसमें गुड़ और पानी मिलाया जाता है जब तक कि यह शरबत जैसा न हो जाये, और इसे श्रीखंड पूरी, और आलू की सब्जी के साथ परोसा जाता है।

अम्बयाची दाल
अम्बयाची दाल

भीगी और पिसी हुई चना दाल में जीरा और हरी मिर्च से अम्बयाची दाल व्यंजन बनाया जाता है, जिसे कि राई और करी पत्ते का छौंक लगाया जाता है, और साथ ही सबसे जरूरी कसा हुआ कच्चा आम अच्छी मात्रा में मिलाया जाता है। इस व्यंजन को उत्सव पर बधाई देने वालों के लिये नाश्ते के तौर पर परोसा जाता है।

चित्नना
चित्नना

वैसे ही कच्चा आम को उगादी में विविध प्रकार से उपयोग में लाया जाता है, उगादी जो कि कन्नड़ और तेलुगु में नववर्ष के त्यौहार को कहा जाता है। चामराजनगर, कर्नाटक में माविनकायी  चित्रन्ना नाम का विशिष्ट व्यंजन बनाया जाता है, इसमें बहुत से तरह के चावलों का उपयोग होता है, पके हुए चावल, नमक को मिलाकर ठंडा होने रख देते हैं, फिर थोड़ा सा तेल गर्म करके, उसमें राई, चना दाल, मूँगफली, कटी हुई प्याज, अदरक, और कसा हुआ कच्चा आम डालते हैं। यह सब पक जाने के बाद उसे ठंडा होने देते हैं और इसको चावल में मिला दिया जाता है, चित्रन्ना को हमेशा ही सामान्य तापमान पर परोसा जाता है, जैसे कि लेमन राईस को परोसा जाता है।

पाचादि
पाचादि

उगादी पाचादि आंध्रप्रदेश और तेलंगाना का मुख्य व्यंजन है। यह मीठा, तीखा, खट्टा, कड़वी चीजों को मिश्रण होता है, इसके पीछे माना जाता है कि जैसे जीवन में ये सारे रंग होते हैं और हमेशा ही बहुत सी बातें होती हैं, जिनसे हम सम्मत हों या न हों पर हमारा जीवन इन्हीं के मिश्रण से बना है। पाचादि में प्रत्येक का एक कप कसा हुआ कच्चा आम, केला और गुड़ तीनों का डाला जाता है, चौथाई कप इमली का पानी, दो चम्मच नीम के फूल, एक चम्मच हरी मिर्च और स्वादानुसार नमक मिलाया जाता है। इस व्यंजन को रसेदार रखा जाता है, कच्चा आम और इमली को इसी मौसम का होना चाहिये। यह पहला व्यंजन है जो कि नववर्ष में चखा जाता है।

तमिलनाडु थाली
तमिलनाडु थाली

तमिलनाडु में कच्चे आम की पाचादि नववर्ष के उत्सव में मुख्य व्यंजन होता है, इस व्यंजन को नववर्ष के मौके पर भोजन में केले के पत्ते पर खिलाया जाता है, साथ ही कोट्टू, करी, वाडाई, चावल, पोरुप्पु, साँभर, रसम और पायसम भी होता है।

पाचादि व्यंजन की विधि को अपने परिवार के पुरखों से सीखते आये हैं। कच्चे आम की पाचादि को 6 स्वाद में बनाया जा सकता है।

MTR (मवाली टिफिन रूम्स) बैंगलोर

बहुत दिनों से चिकपेट जाने का कार्यक्रम बन रहा था, पर जा ही नहीं पा रहे थे, 2 सप्ताह पहले भी गये थे, पर रास्ता भटकने की वजह से वापिस आ गये। इस बार फिर से कार्यक्रम कल सुबह बना, अपने सारे कार्य निपटाकर चल पड़े, भोजन का समय था MTR(मवाली टिफिन रूम्स) अपने खाने के लिये बहुत प्रसिद्ध है। हम वैसे भी कई बार MTR के भोजन का आनंद ले चुके हैं, परंतु हर मौसम का अपना अलग आनंद होता है। सर्दियों के शुरूआत होने से मीठा अलग हो जाता है।

पार्किंग के लिये MTR के आसपास बहुत से निजी पार्किंग उपलब्ध हैं, सड़क पर गाड़ी न खड़ी करें, एकदम मुस्तैद पुलिस गाड़ी टो करके ले जायेगी। पार्किंग MTR के बिल्कुल सामने ही पार्किंग कर सकते हैं या फिर 3-4 दुकान छोड़कर बिल्कुल कोने पर भी एक पार्किंग बनी है, वहाँ पार्किंग कर सकते हैं।

दोपहर के भोजन का समय 3 बजे तक ही है, इसके बाद ये लोग भोजन याने कि थाली नहीं परोसते, शनिवार और रविवार को रात्रि भोजन भी उपलब्ध रहता है, यह कल मैंनें MTR में पढ़ा था। अगर और किसी समय जा रहे हों तो डोसा, बिसिबेला भात जरूर खायें। खाने के विविध व्यंजन उपलब्ध हैं।

MTR की थाली खाना भी अपने आप में बहुत बड़ी बहादुरी है, हमने तो एक नियम बना रखा है कि कोई भी चीज दोबारा नहीं लेते हैं, तब जाकर सारी चीजें खा पाते हैं। MTR में घुसने के बाद सबसे पहले काऊँटर पर आप अपना बिल पे कर दें, प्रीपैड काऊँटर है। और उसके बाद पहली मंजिल पर चले जायें, जहाँ आपको अपना बिल दिखाना होता है, और वहाँ मौजूद स्टॉफ आपको एक नंबर देगा, क्योंकि इंतजार यहाँ कम से कम 10-20 मिनिट का होता है। हम भी इंतजार कर रहे थे, तब हम बात कर रहे थे कि यह रेस्टोरेंट 92 वर्ष पुराना हो चुका है, और पता नहीं कितने लोग कहते हैं कि विश्व का सबसे अच्छा डोसा यहीं मिलता है।

हमारा नंबर आ चुका था, इस रेस्टोरेंट की खासियत है कि यहाँ गंदगी का नामोनिशान नहीं मिलेगा, सफाई का हर जगह, हर तरफ ध्यान दिया जाता है। सबसे पहले हमें अंगूर का जूस सर्व किया गया और फिर थाली जिसमें कि खुद की ही कटोरियाँ हैं, दी गई और साथ ही चम्मच भी दी गई।

angoor ka juice
angoor ka juice

सबसे पहले नारियल चटनी सर्व की गई, फिर आलू की सब्जी, हलवा (मूँग का हलवा लग रहा था), सलाद (किसा हुआ गाजर और भीगी हुई मूँग दाल), बादाम हलवा, सब्जी (जिसमें हमें लगा कि कच्चे मसाले हैं और थोड़ी तेल स्वाद के लिये मिलाया गया है), मूँग बड़ा औऱ डोसा। यह पहला राऊँड था।

worlds best dosa at MTR
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दूसरा राऊँड – इसके बाद पूरी दी जाती है।

poori at MTR
poori at MTR

तीसरा राऊँड – बिसिबेला भात, रायता, चिप्स और अचार।

bisibela bhat at MTR
bisibela bhat at MTR

चौथा राऊँड – सादा चावल, सांभर।

chawal sambhar at MTR
chawal sambhar at MTR

पाँचवा राऊँड – सादा चावल, रसम।

rasam at MTR
rasam at MTR

छठा राऊँड – दही चावल।

curd rice at MTR
curd rice at MTR

सातवाँ राऊँड – पान।

pan at MTR
pan at MTR

आठवाँ राऊँड – फ्रूट आईसक्रीम।

fruit icecream at MTR
fruit icecream at MTR

खाना अनलिमिटेड है, पान और फ्रूट आईसक्रीम लिमिटेड है।

खाने का भरपूर आनंद उठायें, और अपने पेट का भी ध्यान रखें।

बच्चों के शरीर के विकास के लिये न्यूट्रिशियन्स

लगभग सभी माता पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हरेक चीज में आगे हैं फिर चाहे वह पढ़ाई लिखाई हो या खेल हो। यह बात मुझे अच्छी तरह से तब समझ में आई जब मैं पिता बना। बच्चों को अपनी उम्र के मुताबिक, बच्चों के शरीर के विकास के लिये न्यूट्रिशियन्स सही मात्रा में मिलें, हमें इसका ध्यान रखना जरूरी है। बच्चों का शारीरिक विकास ठीक तरीके से हो रहा है उसके लिये कुछ चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि शारीरिक विकास के पड़ाव, इन्फेक्शन से लड़ने के लिये इम्यूनिटी (शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता) और उम्र के हिसाब से होने वाली सक्रियता। तो बच्चों को चाहिये एक सम्पूर्ण स्वस्थ आहार जो कि शारीरिक क्रियाकलापों की सक्रियता में मदद करे।

एक सम्पूर्ण स्वस्थ आहार जिससे बच्चे को सही मात्रा में कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन्स, फैट्स और विटामिन मिलते हैं। वैसे भी छोटे बच्चों के लिये घर में बना भोजन ही न्यूट्रीशियन्स का मुख्य स्रोत होता है। परंतु आजकल लगभग सभी माता पिता की यही शिकायत होती है कि बच्चा कुछ चुनी हुई चीजें ही खाता है, हमारी आधुनिक जीवन के जीने के तरीका भी बच्चों को चुनी हुई चीजों को खाना सिखलाता है जैसे कि आजकल की भागती दौड़ती जिंदगी में हम जंक फूट, रेडी टू ईट फूड खाते हैं, खाने की क्वालिटी के साथ समझौता करते हैं, मिलावटी खाना खाते हैं, वह सभी चीजें खाते हैं जो नहीं खाना चाहिये और इसी कारण बच्चों को सही मात्रा में न्यूट्रीशियन्स नहीं मिल पा रहे हैं।

बच्चों को सारी चीजें खाने की आदत डालनी चाहिये खासकर घर में बनी चीजों की चाहे जैसे कि रोटी दाल, दाल चावल, दाल खिचड़ी, हरी सब्जियाँ, बिरयानी, दाल बाटी, लिट्टी चोखा। साथ ही बच्चों को ज्यादा कैलोरी वाली चीजें भी खिलानी चाहिये जैसे कि पनीर, मिठाईयाँ, काजू करी, हरेक चीज में घी दीजिये, अंडा पीली बॉल के साथ खाना है। क्योंकि बच्चे ज्यादा खेलते हैं तो उनको ज्यादा कैलोरी की जरूरत भी होती है। आप देख सकते हैं अपने बच्चों को कि वो एक जगह तो बैठेंगे ही नहीं और हमेशा इधर से उधर घूमते ही रहेंगे।

अगर बच्चा खाने में मीनमेख निकालता है तो इसका मतलब भी यही है कि वह कुछ चीजें या तो खाना ही नहीं चाहता है या फिर उनको उस समय खाने से बचना चाहता है। इसके लिये बच्चों को अपने साथ बातों में लगाकर उनको खाना खिलायें, हो सके तो कभी कभार अपने हाथों से खिलायें, प्यार से बात करके खिलायें। हर बार डाँटने या मारने से काम नहीं चलेगा।

एक बात और ध्यान रखें कि केवल खाने से ही सब कुछ बच्चों को नहीं मिल जायेगा, उसके लिये उन्हें कुछ अतिरिक्त चीजें सीमित मात्रा में भी साथ में देनी होंगी, सप्लीमेंट जैसे कि हॉर्लिक्स ग्रोथ + जो कि बच्चों को शारीरिक विकास में न्यूट्रीशियन्स की कमी को पूरा कर भरपूर सहयोग करता है।

पर ध्यान रखें सप्लीमेंट केवल भोजन में न मिलने वाले न्यूट्रीशियन्स की कमियों को पूरा करता है। सप्लीमेंट को भोजन के रूप में नहीं खाया जा सकता है। हमें यह भी नहीं भूलना नहीं चाहिये कि सबसे ज्यादा न्यूट्रीशियन्स घर के खाने में ही मिलते हैं, बाजार के खाने में नहीं मिलते हैं। सप्लीमेंट को हमेंशा डॉक्टर की सलाह से ही लेना ठीक रहता है।