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पूर्वाग्रह होना अच्छा या बुरा

पूर्वाग्रह होना अच्छा या बुरा कैसा होता है, यह सभी लोग सोचते हैं क्योंकि यह एक बहुत अच्छी आदत नहीं, बल्कि बुरी आदत है। पहले अगर यह समझ लें कि पूर्वाग्रह क्या होता है तो बेहतर होगा, हम किसी के बारे में पहले से ही उसके आचरण, व्यवहार या कार्य के प्रति कोई भावना बना लें, वह पूर्वाग्रह कहलाता है। कई बार हम बिना मिले ही किसी के बारे में पढ़कर उसके बारे में सोच समझ लेते हैं, परंतु जब हम बात करते हैं, या मिलते हैं तो पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं और कई बार हमारा पूर्वाग्रह गलत साबित होता है।

पूर्वाग्रह को हम घर में ही देख सकते हैं, अगर घर में दो बच्चे हैं एक अगर जल्दी समझ जाता है और ढंग से काम भी कर लेता है तो हम उसे होशियार की उपाधि दे देते हैं वहीं दूसरा बच्चा अगर उसी कार्य को देरी से समझकर करता है तो हमें उसे बेवकूफ या देर से समझनेवाले की उपाधि दे देते हैं। अगली बार कोई भी कार्य हो तो हम पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर पहले बच्चे को ही कहेंगे, जबकि हर व्यक्ति की अपनी विशेषता होती है, हो सकता है कि वह दूसरा बच्चा किसी ओर चीज में अच्छा हो जहाँ पहला बच्चा अच्छा न कर पाये।

पूर्वाग्रह हम लगभग हर रिश्ते में देख सकते हैं अपनी प्रोफेशनल लाईफ़ में भी देख सकते हैं, कई बार पूर्वाग्रह हम किसी की एक बात को पकड़कर बैठ जाते हैं और उसके आधार पर हम किसी भी व्यक्ति के साथ एक अजीब तरह का व्यवहार करने लगते हैं। यह भी तो हो सकता है कि जो आपको पूर्वाग्रह हो वह सही न हो, और उस व्यक्ति ने कार्य सीख लिया हो या फिर अपना व्यवहार ठीक कर लिया हो। परंतु हम मौक़ा ही नहीं देते, और हमेशा इस तरह के संवाद सुनने को मिलते हैं –

“मैंने तो पहले ही कहा था कि इसके बस की बात नहीं”

“मैंने तो पहले ही कहा था कि ये कुछ कर ही नहीं सकता”

“मुझे लगा ही था कि ये कुछ गड़बड़ कर सकता है”

“सोच ही रहा था कि अगर यह कार्य उसको देता तो सही प्रकार से हो जाता”

“काम देने के पहले ही लग रहा था कि तुम बहुत ढीले हो”

“तुम तो बेवकूफ हो बेवकूफ ही रहोगे, पता नहीं कब काम करना सीखोगे”

और भी पता नहीं क्या क्या संवाद हम अपने दैनिक जीवन में सुनते ही रहते हैं, कुछ संवाद शायद आपको अपनी याददाश्त में भी आ जायें और आप अपनी यादों में खो जायें।

कहने का मतलब केवल इतना ही है कि पूर्वाग्रह से ग्रसित न होकर हम एक बार ग़लत करने पर, उन्हें समझायें कि कैसे इस कार्य को अच्छे से कर सकते थे, या क्या गलती कर दी। और हमेशा ही दूसरा, तीसरा, चौथा …. मौक़ा देते रहें। नहीं तो सभी लोग वह कार्य कर ही नहीं पायेंगे, भले यह निजी जीवन की बात हो या प्रोफेशनल जीवन की।

आप भी टिप्पणी करके अपने विचार रखिये।

सोनू सूद

काश हमारा हर अभिनेता सोनू सूद होता

हम लोग बचपन से फ़िल्में देखकर बड़े हुए, फिर टीवी के धारावाहिक देखे, फ़िल्मों और धारावाहिकों से हमारे मन और व्यवहार पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इतने अभिेनेता अभिनेत्री हमारे फ़िल्म जगत में हैं, टीवी जगत में हैं, उनसे कई बार हम लोग इतनी चीजें सीखे। परंतु असल ज़िंदगी में वे लोग हमें सिखाने में असफल रहे। काश कि हमारा हर अभिनेता अभिनेत्री सोनू सूद जैसा बल रखता, मदद करने की इच्छा अंदर से होती है। अगर अभिनेता लोग अपने सेलिब्रिटी स्टेटस का उपयोग करते हैं तो बहुत से संसाधनों को जुटाना बहुत आसान हो जाता है।

दरअसल एक बात ओर है कि मदद करने की इच्छा सभी की नहीं होती, पर बस केवल एक ही अभिनेता सोनू सूद ही क्यों आगे आया, यह समझ से परे है, अभिनेता जो कि फ़िल्म स्क्रीन पर विलेन की भूमिका निभाता है, विलेन जो कि हमारे जीवन में बुरा कार्य करते हैं, पर असल जीवन में वही विलेन वाक़ई हीरो है, और बाक़ी के सारे हीरो, हीरोईन असल ज़िंदगी में विलेन लगने लगे हैं।

ये जो पर्दे के हीरो हैं वे केवल सरकार के पक्ष में ही हमेशा ट्विटर हो या समाचार का माध्यम हो, बोलते हैं। आज जब जनता के लिये बात करोगे तभी जनता को ख़ुशी होगी, केवल सरकार का पक्ष हमेशा रखने से तो किसी समस्या का समाधान नहीं होने वाला, इस तरह से असल में आप हीरो हीरोईन लोग विलेन का रोल अदा कर रहे हैं। देखते हुए लग रहा है कि आप जनता को प्यार नहीं करते, अपने चाहने वालों को नहीं चाहते, आपके लिये केवल पॉवर और पैसा ही सबकुछ है। आपके पास जो कुछ है वह चला न जाये उससे डरते हैं।

बस यही चाहत थी कि काश हमारा हर अभिनेता सोनू सूद होता, वह तो किसी फ़िल्मी ख़ानदान से भी नहीं है, अपने दम पर फ़िल्मों में अपना कैरियर बनाया, शायद सोनू सूद ही खरा सोना है। काश कि हमारे भारत में ऐसी आपदा के समय में हर क्षैत्र से सोनू सूद आते और सरकार की इस कमी को पूरा करते।

सोनू सूद के ट्वीट छोटे होते हैं परंतु ऊर्जा से भरे होते हैं, जिस तरह से वे लोगों की मदद करते हैं, उससे बहुत आशा बंधती है –

कुछ ट्वीट यहाँ बताता हूँ –

sonu sood@SonuSood·दिल टूटा है .. हौंसला नहीं।

Can’t sleep.. In the middle of night when my phone rings, all I can hear is a desperate voice pleading to save his/her loved ones. We are living in tough times but tomorrow is going to be better, just hold your reigns tight. Together we will win. Just we need some more hands.

Will be done. Your baby is our responsibility. – इस तरह की ट्वीट से विश्वास ओर बढ़ता है।

15 अगस्त को देशभक्ति दिखाने वालों के लिए संदेश ; देश के लिए कुछ करने और देशभक्ति दिखाने का इससे ज़रूरी समय कभी नहीं आएगा

सिनेमा हाल में टिकट्स की ब्लैक होते हुए देखा था। अब जान बचाने के लिए दवाइयों और ऑक्सीजन की ब्लैक होते देख रहा हूं।

मुट्ठी खोल के तो देख.. शायद तेरी हाथ की लकीरों में किसी की जान बचाना लिखा हो।

प्लेटफार्म पर राजनीति होती है। और जमीन पर काम

समय बहुत भयावह है, संयम रखें, ज़बान और दिमाग़ पर भी

समय बहुत भयावह है, संयम रखें। सबका नंबर आयेगा, अगर अब भी न सुधरे तो। कुछ दिन अपनी ज़बान पर लगाम दो, अपने फेफड़ों को मज़बूत करो, ठंडी चीजें मत खाओ पियो, ज़बान का स्वाद यह गर्मी के लिये रोक लो, इस गर्मी अपने शरीर को थोड़ा कष्ट दे लो। आप जितनी ज़्यादती अपने फेफड़ों के साथ करोगे, ऐन वक़्त पर फेफड़े आपको दगा दे जायेंगे। कोशिश करें कि साधारण तापमान का ही पानी पियें, ठंडे पानी को, बर्फीले शर्बत को न पियें। फेफड़ों को ज़्यादा तकलीफ़ न दें।

केवल फेफड़े ही नहीं, जितनी ज़्यादा काम आप अपने शरीर के अंगों से करवायेंगे, उतना ही ज़्यादा समस्या है। कुछ लोग इस बात को हँसी में लेंगे, पर दरअसल उन्हें पता ही नहीं कि हम प्लेट प्लेट भर खाना खाने वाले इंसानों को मुठ्ठीभर खाना ही ऊर्जा के लिये काफ़ी होता है। खाने में ऊर्जा नहीं होती, यह हमारे मन का वहम है। जैसे सुबह हम कहते हैं कि नाश्ता नहीं किया तो ऊर्जा कहाँ से आयेगी, पर वहीं दिन का खाना या रात का खाना खाने के बाद आप शिथिल क्यों हो जाते हो। जब भी कुछ खाओ तो उस हिसाब से तो हमेशा ही ऊर्जा रहनी चाहिये। पर यह तर्क भी लोगों को समझ में नहीं आता।

जब भूख लगे तभी खाओ, यह नियम ज़िंदगी में बना लेंगे तो हमेशा खुश रहेंगे। हम क्या करते हैं कि खाने के समय बाँध लेते हैं, सुबह ८ बजे नाश्ता करेंगे, ११ बजे फल खायेंगे फिर १ बजे दोपहर का भोजन करेंगे, ४ बजे शाम का नाश्ता करेंगे, ७ बजे खाना खायेंगे। कुछ लोग तो शाम को दो बार भी नाश्ता कर लेते हैं और फिर कहते हैं आज तो कुछ खाया नहीं फिर भी पेट भरा हुआ है, अब रात का खाना थोड़ा ओर देर से करेंगे। इस तरह हमने अपना हाज़मा भी बिगाड़ रखा है, और अपनी जीवनशक्ति के साथ हम खिलवाड़ करते हैं।

मुझे जब भी भूख लगती है, तो सबसे पहले मैं बहुत सारा पानी पीकर चेक करता हूँ कि वाक़ई मुझे भूख लग रही है या फिर दिमाग़ खाने का झूठा सिग्नल भेज रहा है, क्योंकि दिमाग़ को तो ज़बान ने कह दिया कि कुछ खाने का इंतज़ाम करो बढ़िया सा, जिसमें बढ़िया स्वाद हो, ताकि यह समय बहुत अच्छा निकले, तो दिमाग़ को खाने का झूठा सिग्नल भेजा जाता है, परंतु अगर मन अपना वश में रखें और स्वादग्रंथियों को पानी का एक लीटर स्वाद चखने को मिल जाये, फिर पेट भी सिग्नल भेजता है, कि अब कुछ ओर रखने के लिये जगह नहीं है, यहाँ मामला फ़ुल है। तो बस ज़बान निराश हो जाती है और चुपचाप रहकर कुछ ओर समय का इंतज़ार करती है। उस समय ज़बान फिर नाटक करेगी, ज़बान कसैली या स्वादहीन हो जायेगी, जिससे आर्टीफीशियली दिमाग़ को लगेगा, इससे शरीर को तकलीफ़ हो सकती है तो दिमाग़ भी सिग्नल देगा, कुछ तो खा लो, भले चुटकी भर कोई चूरण खा लो, ये ज़बान बहुत परेशान कर रही है।

पूरी प्रक्रिया यही है, लिखने को तो बहुत कुछ है, परंतु अब अगले ब्लॉग में, अगर इन स्वाद ग्रंथियों ओर शरीर के इन अवयवों पर कंट्रोल कर लिया तो हम ज़्यादा सुरक्षित हैं। हालाँकि इसके लिये दिमाग़ को वैसा ही पढ़ने लिखने के लिये साहित्य भी देना होगा, साथ ही अपने आसपास का वातावरण भी ऐसा हो सुनिश्चित करना होगा।

भैया का जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है

कोरोना में बहुत से अपने जा रहे हैं, कभी कोई बहुत करीबी तो कभी कोई जान पहचान वाला, तो कभी किसी दोस्त की जान पहचान वाला, दुख यही है कि सब जा रहे हैं। जाने से कोई रोक भी नहीं सकता, क्योंकि यह बीमारी है ही ऐसी ख़तरनाक, लोग फिर भी जान से क़ीमती कुछ ओर समझ रहे हैं, अपना ध्यान न रखकर खुलेआम बाज़ार में घूम रहे हैं, काश कि सभी लोग इस गंभीरता को समझें। कल अपने मित्र के व्हाट्सएप के स्टेटस से पता चला कि भैया अचानक ही कोरोना का ग्रास बन गये।

हालाँकि यादें धुँधली हैं, परंतु फिर भी मुझे याद आता है कि भैया से पहले मुलाक़ात धार में एकलव्य में हुई थी, और हम लोग वहाँ उनके एकलव्य के ऑफिस में जाकर कभी किताबें पढ़ा करते थे तो कभी कोई विज्ञान का कोई प्रयोग सीखा करते थे, बहुत सी बातें वहाँ से सीखीं, पर एक बात ओर पता चली कि व्यवहारिक विज्ञान सीखने में बहुत से लोगों की रुचि नहीं थी। हमें एकलव्य केवल इसलिये अच्छा लगता था कि वहाँ वैज्ञानिक गतिविधियों के साथ ही कुछ किताबें भी पढ़ने को मिलती थीं।उन्होंने ही बर्ड वाचिंग के बारे में बताया, कई बार उनके साथ गया और पक्षियों को जाना, तब पता चल कि बर्ड वाचिंग भी एक शौक़, एक विधा होती है।

जो किताबें वहाँ पढ़ने को मिलती थीं, उस तरह की किताबें बाज़ार में कहीं भी पढ़ने के लिये उपलब्ध नहीं थीं, ख़ासकर चकमक जिसमें हर तरह की विधा का समावेश हुआ करता था, भैया का छोटा भाई विष्णु मेरा अच्छा मित्र रहा और है, इस कारण उनसे पारिवारिक संबंध भी रहे, जब हम धार से झाबुआ चले गये तो यह बातचीत का दौर लगभग ख़त्म सा हुआ था, परंतु बीच बीच में उज्जैन आना जाना लगा रहता था, तब भैया उज्जैन में ही रहने आ गये थे, तब मैं कई बार उनसे मिलने उनके घर चला जाता था, वे तथा उनका परिवार बहुत ही आत्मीय थे, हैं। भैया का जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है, जिसे भरा नहीं जा सकता। यह आघात सहने का उनके परिवार को असीम बल मिले, और आत्मा को शांति मिले, यही प्रार्थना है।

लिखने में बहुत तकलीफ़ होती है, लिखते नहीं बनता, जब कोई बहुत आत्मीय चला जाता है, परंतु अब दौर इस प्रकार का आ गया है, कि हम जाने वाले के लिये कुछ कर नहीं सकते, जो लोग जीवित हैं, उनका बचाया जाना जरुरी है, ख़ुद को बचाना ही आज की सबसे बड़ी मानवता है, अगर आपने ख़ुद को बचा लिया तो यह समझ लीजिये कि आपने समाज के कम से कम 50 लोगों को बचा लिया।घर में रहिये सुरक्षित रहिये, बाहर जाना भी पड़े तो सुरक्षा के सारे उपाय जरुर अपनायें।

दिल्ली पुलिस के पास दंगों से निपटने के लिये क्या बढ़िया रणनीति नहीं थी?

मुझे तो लगता था कि पुलिस कर पास दंगों से निपटने की बढ़िया रणनीति होती है, और समय समय और उन रणनीतियों का रिव्यू भी होता है, तो पुलिस को इस स्थिति को बहुत अच्छे से निपट लेना चाहिये था। वैश्विक पटल पर दिल्ली पुलिस भी अपने आपमें एक ब्रांड है।

मैं जब दिल्ली में था तब fm पर कई बार लय में सुना था, दिल्ली पुलिस दिल्ली पुलिस आपकी सुरक्षा में।

समझ ही नहीं आया, भरोसा भी न हुआ कि जिस दिल्ली पुलिस के पास राजधानी की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, वे अपनी रणनीति में फेल हो गयी? सही बताऊँ तो मानने को दिल ही नहीं करता।

पुलिस के वे सारे वीडियो जो दिख रहे हैं, जिनमें वे दंगाईयो का साथ दे रहे हैं, दिल मानता ही नहीं कि वे पुलिस के लोग हैं। आख़िर पुलिस दंगाईयों का साथ कैसे दे सकती है? हो ही नहीं सकता, खैर यह भी जाँच का विषय है।

अब अगर कोर्ट को आकर दिल्ली पुलिस को कार्यवाही करने को कहा जा रहा है, तो भई सही बात तो यही अब लगती है कि दिल्ली पुलिस से बदला लेना है तो दिल्ली सरकार के अधीन कर दो, सारी दिल्ली पुलिस सुधर जायेगी। क्यों लोग दिल्ली सरकार को कोस रहे थे, जबकि सबको पता है दिल्ली पुलिस केन्द्र सरकार के अधीन है, और अंतत: गृह मंत्री को ही मामला अपने हाथ में लेना पड़ा, वह भी यह कहकर कि दिल्ली पुलिस व्यवस्था को ढंग से सँभाल नहीं पाई, यह ख़ुद दिल्ली पुलिस पर एक दाग़ है।

अगर ऐसी पुलिस के हाथों दिल्ली याने देश की राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था है तो खुद ही समझ जायें कि भारत सुरक्षित नहीं है, क्योंकि राजनैतिक सत्ता दिल्ली से ही चलती है, और लंबे दौर इस तरह के चलते रहे तो यही सब नासूर बनकर अर्थव्यवस्था पर गम्भीर संकट बनकर आयेंगे।

किसी को तो ठीक होना जरूरी है, कौन ठीक होगा यह तो भविष्य ही बतायेगा।

मन का मैल काटने में लगा हूँ

कुछ दिनों पहले तक बहुत अजीब हालात से गुजर रहा था, बैचेनी रहती थी, पता नहीं कैसे कैसे ख्याल आते थे, पुरानी बातें बहुत परेशान करती थीं, कभी कुछ अच्छा याद नहीं आता था, हमेशा ही बुरा ही याद आता था। ऐसा नहीं कि जीवन में अच्छा हुआ ही नहीं, या बुरा भी नहीं हुआ, परंतु होता क्या है कि हम हमारी याददाश्त में अच्छी चीजें कम सँभालकर रखते हैं और बुरी यादें हमेशा ही ज्यादा सँभालकर रखते हैं। हमारे जीवन की यही सबसे बड़ी परेशानी और समस्या है। ऐसा होना ही हमें मानव की श्रैणी में खड़ा करता है, हमें कहीं न कहीं मानसिक स्तर पर मजबूत भी करता है और हमें चालाक बनने में मदद भी करता है। Continue reading मन का मैल काटने में लगा हूँ

पीने का पानी बचाओ Save Water

पानी को बनाया नहीं जा सकता, न पैदा किया जा सकता है क्योंकि पानी प्राकृतिक स्रोत है और हमें यह प्रकृति का वरदान है। जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है, धरती पर पीने के पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। पीने का पानी आने वाले कल में सोने से भी महँगा होगा, यह आने वाला कल का सोना है। यह भी हो सकता है कि आने वाले कल में इसकी ट्रेडिंग शुरू हो जाये, आने वाले कल में ज्यादा पानी पीना भी प्रतिष्ठा का प्रतीक बन जाये। हर इंसान को अपनी रोजमर्रा के कामों के लिये रोज कम से कम 20 लीटर पानी चाहिये।

पानी बचाना है (Save Water) तो पहल भी हमें ही करनी होगी, हमें अपनी आदतें बदलनी होंगी, सब से पहले पीने के पानी को बचाना होगा। हम हमेशा ही पानी पीने के पहले पूरा गिलास पानी भरते हैं, और आधे से भी ज्यादा बार पूरा पानी नहीं पिया जाता है, वह बचा हुआ पीने का पानी बहा दिया जाता है। हमें सबसे पहले तो अपनी आदत में यह शुमार करना होगा कि हम पूरा गिलास पानी की जगह, आधा गिलास या उससे कम पानी लें, और पानी की जरूरत है तो वापिस लिया जा सकता है, परंतु एक बार पानी पीने के बाद यानि के झूठा होने के बाद बचा हुआ पानी बर्बाद ही होना है।

वैसे ही जब हम बाहर किसी भी रेस्टोरेंट या होटल में खाना खाने जाते हैं तो भी होटल को पानी का पूरा गिलास भर कर देने की जगह आधा या आधे से कम गिलास भरकर देना चाहिये, जिससे पानी की बहुत बचत हो सकती है, जैसे मैं कभी भी खाना खाते समय पानी नहीं पीता और अगर होटल फिर भी मेरे गिलास में पानी भर देता है तो मेरे खाना खाने के जाने के बाद वह पानी कोई और नहीं पियेगा, वह पानी बर्बाद हो जायेगा, होटल का वेटर उस पानी को फेंक देगा, बहा देगा। वैसे ही अगर आधा गिलास पानी दिया जायेगा ओर प्यास लगेगी या पानी की जरूरत होगी तो प्यासा कह ही देगा।

पानी बचाना यानि #CuttingPani आज हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिये, और हमें इसका जोरशोर से प्रचार भी करना है, और व्यक्तिगत स्तर पर भी भरपूर कोशिश करना है। अगर आप किसी को ऐसा करते हुए देखते हैं, तो टोकने से न चूकें, आपको टोकने से हम प्रकृति की धरोहर आने वाली पीढ़ी के लिये बचा सकते हैं, नहीं तो जितनी आसानी से हमें पीने का पानी उपलब्ध है, उन्हें नहीं होगा।

आप Livpure द्वारा चलायी जा रही मुहीम में इस याचिका को साईन करके भी जागरूकता फैला सकते हैं।

याचिका के लिये लिंक – https://www.change.org/p/cuttingpaani

हम भाड़ की जनरेशन और आज की ग्रिल की जनरेशन

हम अपने बचपन के दिनों को याद करते हैं तो हमें भाड़ का महत्व पता है, और तभी भाड़ की बहुत सी कहावतें भी याद आती हैं। भाड़ में बहुत सी चीजें पकाई जाती हैं, जिन्हें हम खाने के काम में लेते हैं, और हमारे लिये वे ही व्यंजन था, जैसे भाड़ के चने, भाड़ के आलू। ये भी कहा जा सकता है कि ये गँवई शौक थे जो कि ठंड के मौसम में बड़े काम आते थे। हमारी जनरेशन और हमसे पहले वाली याने पिताजी, दादाजी वाली जनरेशन भाड़ की थी। जैसे भाड़ में पकने में समय लगता था, उसी के कारण शायद यह कहावत बनी होगी कि भाड़ में जाओ। जो भाड़ के कारीगर होते थे याने कि जो भाड़ में भूनते थे, वे कहलाते थे भड़बुजे, आजकल न भाड़ है न भड़बुजे।

एक कहावत और याद आती है एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, खैर इसका मतलब नि:संदेह ही यह रहा होगा कि एक अकेला व्यक्ति कभी क्रांति नहीं ला सकता है, क्योंकि एक अकेला क्या एक हजार चने भी होंगे तो वे भी भाड़ नहीं फोड़ पायेंगे। वैसे तो भाड़ में केवल चने ही नहीं और भी अनाज को पकाया जाता था, भाड़ के पके अनाज का स्वाद बिल्कुल अलग ही होता है, जो बिना चखे नहीं जाना जा सकता है।

वैसे ही आजकल की जनरेशन है जो केवल ग्रिल ही पसंद करती है, कोई चीज हो बस ग्रिल कर दो। परंतु समस्या यह है कि ग्रिल में अधिकतर माँस को ही पकाया जाता है या फिर आलू, पनीर। और कुछ ग्रिल हो नहीं सकता है, कोई और अनाज ग्रिल हो नहीं सकता, क्योंकि ग्रिल और भाड़ दोनों की बनावट ही अलग है, कार्य पद्धति भी बिल्कुल अलग है। यह तुरत फुरत वाला काम है।

भाड़ के लिये ज्यादा जगह चाहिये, पर ग्रिल तो एक तसले में भी बनाया जा सकता है। हमारी जनरेशन ने शायद धरती पर जितनी खाली जगह और प्राकृतिक स्त्रोत देखे हैं, उतने हमारी आने वाली जनरेशन नहीं देख पायेगी। इसी कारण से सारी चीजें सिकुड़ती जा रही हैं और समय की कमी के चलते सब फटाफट चीजें आ रही हैं।

ये ग्रिल की जनरेशन वाले भाड़ की मानसिकता को नहीं समझ पायेंगे और हम लोग भाड़ की जरनेशन वाले ग्रिल का जनरेशन की मानसिकता को नहीं समझ पायेंगे।

आप कैसा व्यवहार करते हैं

आप कैसा व्यवहार करते हैं और कैसे दूसरे से बातें करते हैं, यह आपका खुद का आईना होता है। कभी यह परवरिश का नतीजा होता है तो कभी यह हमारे प्रोफेशन में होने वाली कठिनाईयों का नतीजा होता है। हम व्यवहार में सामने वाले से कैसे बातें करते हैं, उसकी कितनी इज्जत करते हैं, Continue reading आप कैसा व्यवहार करते हैं

सुबह के मन का आलस या जिद बहुत खतरनाक होते हैं।

हर रोज हम जो काम करते हैं, वह निरंतर करने की इच्छा कभी कभी नहीं होती है, हम उस क्रम को किसी न किसी बहाने तोड़ना चाहते हैं। सुबह के मन का आलस या जिद बहुत खतरनाक होते हैं। सुबह उठकर कई बार ऐसा लगता है कि आज फिर काम पर जाना है, खाना बनाना है या स्कूल जाना है। मतलब कि जो भी काम हम नियमित रूप से कर रहे हैं, उस क्रम को हम तोड़ना चाहते हैं। इसे आलस कहें या जिद कहें, पर यह होता सबको है। यकीन मानिये कि आपको अगर यह नहीं होता तो आप असाधारण मानव है। Continue reading सुबह के मन का आलस या जिद बहुत खतरनाक होते हैं।