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अपने अपने खतरे और iskcon मंदिर

स्वास्थ्य ठीक रखना हम सबका अपने शरीर के प्रति सबसे प्रथम कर्तव्य है, परंतु हम इसमें बहुत लापरवाही बरतते हैं। हम हमेशा ज्ञान तो बहुत देते हैं, लेकिन पिछले 3 सालों से लगातार लापरवाही चल रही है। जिसके चलते वजन ज्यादा बढ़ गया है और बीपी भी अभी कंट्रोल में नहीं है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि मैं हार्ट अटैक के बाद हॉस्पिटल में आईसीयू में भर्ती हूँ, और सारे परिवार जन मुझे लेकर चिंतित हैं। उसी समय मेरी निद्रा टूट जाती है और फिर से मैं संकल्प ले लेता हूं कि अब तो ठीक हो कर ही रहूँगा।

अपने ना रह पाने की स्थिति में अपने परिवार जनों के चेहरे देख पाना बहुत मुश्किल लगता है, परंतु जीवन इसी का नाम है यह चलता ही रहता है। वैसे तो अपने आप को वित्तीय क्षेत्र में थोड़ा बहुत समझदार मानते हैं परंतु फिर भी कई बार ऐसा लगता है कि बहुत सारी चीजों से अनजान हैं, पर सब कुछ जान लेना भी संभव नहीं है। इसलिए जितना हो सके इतना तो जान ही लेते हैं और परिवारजनों को भी उसकी जानकारी दे देते हैं। सभी को अपने ऐसेट ओर लायबिलिटी की जानकारी अपने परिवार जनों से शेयर करनी चाहिए, जिससे आकस्मिक परिस्थिति में उनको सहायता हो सके और वह आगे का जीवन ठीक से गुजार सकें

पिछले 3 दिनों से घूमना बंद था काम का लोड ज्यादा था, पर आज फिर यह विचार आते ही वापस से सुबह 3 किलोमीटर घूम आए साथ ही तीन बार एनिमा भी ले लिया। जिससे तत्काल ही बीपी कंट्रोल में आ गया है। अब अपना वजन कम करना है, जिससे कि बीपी कंट्रोल में रहे और वजन कम हो सके। सुबह घूमने के अनुभव पर एक अलग ब्लॉग लिखने का मन है इसलिए यहां पर नहीं लिख रहा हूँ।

एनिमा लेना सुबह और शाम जारी रखेंगे, जिससे एकदम से बीपी में आराम मिलेगा, साथ ही मुँह पर भी टेप चिपकाकर कंट्रोल करेंगे। पर आज भी हो नहीं पाया, सुबह iskcon मंदिर गये थे और दर्शन करने के बाद निकलते समय उनकी केंटीन में गरमा गरम समोसे आये थे, तो अपने आपको कैसे रोकते, और खा लिये। गरम गरम समोसे खाते हुए ग्लानि भी हो रही थी, पर स्वाद बढ़िया था।

जुहु गोविंदा रेस्त्रां, समुद्र का किनारा, अमिताभ का घर और बुलेट ।

    सुबह मित्र को फ़ोन किया कि इस सप्ताहांत का क्या कार्यक्रम है, उनसे मैं शायद ३ वर्षों बाद मिल रहा था और ये मित्र मेरे आध्यात्मिक जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। ये आध्यात्म को इतने गहरे से समझना और किसी और की जरूरत को समझने वाले मैंने वाकई बहुत ही कम लोग देखे हैं। उन्होंने कहा कि मैं ऑफ़िस से सीधा आपको लेने आ रहा हूँ फ़िर जुहु इस्कॉन स्थित गोविंदा रेस्त्रां में आज दोपहर का भोजन ग्रहण किया जायेगा।

    दोपहर में बिल्कुल समय पर हमारे मित्र हमें लेने आ गये और फ़िर amitabhहम चल दिये जुहु, एक सिग्नल पर हमारे मित्र ने बताया कि यह सामने जो घर है युगपुरूष अमिताभ बच्चन का घर है, तो सहसा ही अमिताभ का चेहरा आँखों के सामने घूम गया और अभी हाल ही में आई फ़िल्म बॉम्बे टॉकीज के अमिताभ बच्चन के ऊपर फ़िल्माये गये दृश्य याद हो आये। फ़िर लगा व्यक्ति कितना भी सफ़ल हो, परंतु रहना तो उसे धरती पर ही है और रहना भी घर में ही है, बस वह जिन ऐश्वर्य का सुख भोग सकता है वह हर कोई नहीं भोग सकता ।

  iskcon-juhu-govindas-01  गलियों में से होते हुए हम गोविंदा रेस्त्रां की तरफ़ बड़ रहे थे, इतने में तेज बारिश आ गई, मौसम खुला हुआ था, तेज धूप निकली हुई थी। मुंबई में यही खासियत है कब बारिश आ जाये कोई भरोसा नहीं। हम गोविंदा रेस्त्रां पहुँच चुके थे, वहाँ दरवाजे पर हमारी और समान की सुरक्षा जाँच हुई और हम रेस्त्रां में दाखिल हुए, संगमरमर की सीढ़ियों से होते हुए एक विशाल हॉल में आये जहँ  बैठने के लिये सोफ़े लगे हुए थे, जिनसे यह प्रतीत होता था, कि यहाँ पर प्रतीक्षारत लोगों को बैठाया जाता है, जब रेस्त्रां में जगह नहीं होती होगी। यहाँ दोपहर का भोजन ३.३० तक होता है।

    रेस्त्रां अंदर से बहुत अच्छी तरह से सुसज्जित था और बहुत सारे लोग govinda-sभोजन से तृप्त हो रहे थे। यहाँ पर खाना बफ़ेट होता है, विभिन्न प्रकार के सलाद, पकोड़े, चाट  पनीर की सब्जियाँ, रोटी, चावल, रायता और मिठाईयाँ उपलब्ध थीं। खाना बहुत ही स्वादिष्ट था, साथ में फ़लों का रस, केहरी पना और मठ्ठा भी परोसा जा रहा था। खाने के बाद में आइसक्रीम का प्रबंध भी था। और इस सबके लिये एक व्यक्ति के खाने का खर्च ३५०/- खाने के हिसाब से हमें ठीक लगा । हालांकि अगर आजकल के आधुनिक बफ़ेट रेस्त्रां में और महँगा होता है परंतु यहाँ खाने का स्वाद, गुणवत्ता एवं इतने प्रकार की खाद्य पदार्थ के सामने  आधुनिक रेस्त्रां का टिकना मुश्किल है। खैर यह तो अपनी अपनी पसंद है।

    भोजन से तृप्त होकर हम बाहर निकले और हमारे मित्र ने पूछा कि जुहु बीच चलोगे, हमने कहा बिल्कुल चलो हमें लहरों की आवाज सुनने का सुखद आनंद लेना है, मचलती और वेगों से आती लहरों को देखना है, वहाँ से पैदल ही हम जुहु बीच की और चल दिये मुश्किल से ५ मिनिट में हम जुहु बीच पर थे, प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य को मानव किस तरह से नष्ट करता है, जुहु बीच इसका जीवंत उदाहरण है, बीच पर जहाँ तक देखो वहाँ तक कचरा और पोलिथीन बिखरे पड़े थे। जोड़े कहीं ना कहीं एकांत ढूँढ़ रहे थे। बहुत से युगल हाथों में हाथ डाल बीच पर समुद्र के किनारे टहल रहे थे। जो पहली बार आये थे समुद्र देखने वे और कुछ मनमौजी लोग समुद्र के पानी में भीगने गये हुए थे। पता नहीं इतने गंदे पानी में कैसे भीग सकते हैं, अगर समुद्र का पानी साफ़ हो तो नहाने का अपना अलग मजा है। बीच पर समुद्र के पास शांति से थोड़ा समय बिताने के बाद वापस जाना निश्चय किया गया।

    समय साथ में बिताना था, तो हम मित्र के फ़्लेट में उनके साथ ही चल दिये, खाने के बाद का नशा अब चेहरों पर दिखने लगा था, सोचा थोड़ा लोट लगा ली जाये और फ़िर बातें की जायेंगी, खैर बातें तो जारी ही थीं। थोड़ी देर आराम करने के बाद अचानक ही एक मित्र के बारे में बात होने लगीं, वे भी पास ही में रहते थे। उनसे फ़ोन पर बात की गई और उनके यहाँ जाने का निश्चय किया गया। हमारे मित्र ने हमसे कहा Bulletआप अब हमारी बुलेट से चलो, और आप ही बुलेट चलाओ। हमने कहा कि हमने तो वर्षों पहले बुलेट चलाई थी, तो पता नहीं चला पायेंगे या नहीं। हमारे मित्र बोले आप चिंता मत करो, आराम से चला पाओगे। हमने भी बुलेट की सवारी की और देखा कि बुलेट में भी बहुत सारे आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध करवा दी गई हैं। अब केवल बटन दबाने पर भी बुलेट शुरू हो जाती है और बुलेट की आवाज मन को सुहाती है। बुलेट की सवारी राजा सवारी कहलाती है। आदमी बुलेट पर ही असली जवाँ मर्द दिखता है, लोग उसी की और देखते हैं, बहुत सारे बदलाव बुलेट चलाने के दौरान महसूस हुए, पर वर्षों बाद ऐसा लगा कि वाकई बुलेट ही असली दोपहिया सवारी है।

    अपने दूसरे मित्र के घर पहुँचे जो हमारे पारिवारिक मित्र हैं, वहाँ बातों का जो दौर चला, समय का पता ही नहीं चला, हमने मित्रों से विदा ली, हमारे मित्र ने कहा इधर ही रुक जाओ, हमने कहा, नहीं हम जहाँ रुके हैं वह भी पास ही है तो हम वहीं जाते हैं। (जब हम खाना खाने के बाद मित्र के घर लोटने पहुँचे तो देखा कि उनके यहाँ गद्दे नहीं हैं, वे तो चटाई पर ही सोते हैं, वे पक्के भक्त आदमी हैं, हमारी परेशानी को समझ उन्होंने हमारे लिये उनके पास रखी रजाई को चटाई पर बिछाकर थोड़ा गद्देदार बनाने का प्रयास किया, हम भी लोट लिये, परंतु आरामतलब शरीर १० मिनिट से ज्यादा नहीं लेट सका) और हमने उनसे कहा कि कामना तो गद्दे पर सोने की ही है, इसलिये भी जाना ही चाहिये।

    इस प्रकार अपने मित्रों से मिलकर उनके साथ समय बिताकर आत्मा तृप्त हो गई।

इस्कॉन बैंगलोर मंदिरों में अलग अनुभव जैसे धार्मिक बाजार (Different experience in Iskcon Bangalore like bazzar)

बहुत दिनों बाद बैंगलोर में ही कहीं घूमने निकले थे, आजकल तपता हुआ मौसम और झुलसाती हुई गर्मी है, बैंगलोर की तपन ऐसी है जैसे कि निमाड़ की होती है अगर धूप की तपन में निकल गये तो त्वचा जल जायेगी और अलग से पता चल जायेगा त्वचा ध्यान न देने की वजह से जली है। मालवा में दिन में तपन तो बहुत होती है परंतु मालवा में रातें ठंडी होती है, रात में पता नहीं कहाँ से ठंडक आ जाती है।

घर से लगभग ३० कि.मी. दूर बैंगलोर इस्कॉन जाना तय किया, सोचा कि एक वर्ष से ज्यादा बैंगलोर में हो गया है परंतु अब तक कृष्ण जी के दर्शन नहीं हो पाये, चलिये आज कृष्ण जी के दर्शन कर लिये जायें। इस देरी का एक मुख्य कारण था हमारा मन, जब मुंबई से बैंगलोर आये थे तब हम श्री श्री राधा गोपीनाथ मंदिर जो कि गिरगाँव चौपाटी पर स्थित है और ग्रांट रोड इसका नजदीकी रेल्वे स्टॆशन है, जाते थे और आते समय बताया गया कि इस्कॉन का कोर्ट केस चल रहा है और इस्कॉन बैंगलोर  मंदिर इस्कॉन सोसायटी ने बहिष्कृत कर रखा है। अगर आप वहाँ जायेंगे तो कृष्ण भक्ति नहीं आयेगी मन में, बल्कि आपका मन, भावना और भक्ति दूषित होगी। इस्कॉन बैंगलोर में अगर आप सदस्य हैं तो उस सदस्यता का लाभ दुनिया के किसी भी मंदिर में इसी कारण से नहीं मिलेगा, किंतु इस मंदिर को छोड़ आप किसी और मंदिर के सदस्य हैं तो आपको सदस्यता का लाभ मिलेगा।

हम तो ह्र्दय में कृष्ण भावना रखकर गये थे कि हमें तो भगवान कृष्ण के दर्शन करने है और जीवन में प्रसन्नता लानी है। मन से ऊपर लिखी हुई बात हम अपने ह्र्दय से से निकाल कर गये थे, नहीं तो ह्र्दय कृष्ण में लगाना असंभव था।

बिना किसी पूर्वाग्रह के महाकालेश्वर की असीम कृपा से हम सुरक्षित इस्कॉन मंदिर लगभग १ घंटे में पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर पहले जूते ठीक स्थान पर रखे गये और फ़िर कृष्ण जी के दर्शन करने चल दिये। जैसे ही थोड़ी दूर चले वहाँ एक लाईन लगी थी, जहाँ लगभग १०८ पत्थर लगे हुए थे और महामंत्र “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम, राम राम हरे हरे” का उच्चारण हर पत्थर पर करना था, इसका एक फ़ायदा भीड़ नियंत्रण करना था और दूसरा फ़ायदा दर्शनार्थियों को था उन्हें १०८ बार महामंत्र बोलना ही था या सुनना ही था, रोजमर्रा जीवन में इतना समय भी व्यक्ति के पास नहीं होता कि १०८ बार महामंत्र बोल ले। महामंत्र ऐसे बोलना चाहिये कि कम से कम आपके कानों तक आपकी आवाज पहुँचे तभी महामंत्र बोलने का फ़ायदा है। पत्थर सीढ़ीयों पर भी लगे हुए थे, पहला मंदिर प्रह्लाद नरसिंह अवतार का है उसके बाद दूसरा मंदिर श्रीनिवासा गोविंदा का आता है।

प्रह्लाद नरसिंहश्रीनिवास गोविंदा

अब आता है मुख्य मंदिर जहाँ महामंत्र से वातावरण अच्छा बन पड़ा था, और यहाँ पहली प्रतिमा श्रीश्री निताई गौरांग की दूसरी याने कि मध्य प्रतिमा श्री श्री कृष्ण बलराम की और तीसरी प्रतिमा श्री श्री राधा कृष्ण चंद्र की है। मंदिर का मंडप देखते ही बनता है, बहुत सुन्दर चित्रकारी से उकेरा गया है।

राधा कृष्णकृष्ण बलरामनिताई गौरांग

मंदिर में आप अपने हाथ से प्रसाद पंडित जी को नहीं दे सकते हैं, प्रसाद आपको काऊँटर पर जमा करना है और पर्ची दिखाकर दर्शन करने के पश्चात आप प्रसाद की थैली ले सकते हैं। विशेष दर्शन की व्यवस्था है जिसका लाभ कोई भी २०० रुपये में उठा सकता है, विशेष दर्शन में भगवान के थोड़ा और पास जाकर दर्शनों का लाभ लिया जा सकता है। जैसे ही दर्शन करके आप सामने देखते हैं तो मंदिर में ही किताबें और सीडी के विज्ञापन दिखते हैं, जो शायद ही किसी ओर मंदिर में आपको दिखें। जैसे ही दर्शन करने के बाद बाहर के रास्ते जाने लगते हैं तो कतारबद्ध दुकानों के दर्शन होते हैं, पहले बिस्किट, केक और मिठाई फ़िर अगरबत्ती, किताब, कैलेडर, मूर्तियाँ, सीनरी, सॉफ़्ट टॉयज, कुर्ता पजामा, टीशर्ट और वह सब,  मंदिर में जो जो बिक सकता है वह सब वहाँ कतारबद्ध दुकानों पर उपलब्ध है। उसके बाद खाने पीने के लिये एक बड़ा हाल आता है जहाँ कि कचोरी, समोसे, जलेबी, खमन, तरह तरह के चावल, भजिये, केक, कुल्फ़ी, लेमन सोडा, बिस्किट्स इत्यादि उपलब्ध है। हमें तो स्वाद अच्छा नहीं लगा। और ऐसा पहली बार हुआ है कि इस्कॉन में खाने का स्वाद अच्छा नहीं लगा।

यहाँ हर किसी को पार्किंग से लेकर जूता स्टैंड तक पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जबकि किसी भी इस्कॉन मंदिर में ऐसा नहीं होता।

मंदिर गये थे परंतु ऐसा लगा ही नहीं कि मंदिर में आये हैं ऐसा लगा कि किसी धार्मिक बाजार में हम आ खड़े हुए हैं। हाँ बेटे के लिये जरूर अच्छा रहा वहाँ एक मिनि थियेटर भी बना हुआ है जिसमें कि आप एनिमेशन फ़िल्म सशुल्क देख सकते हैं, जो कि एक छोटे से कमरे में एक बड़ा टीवी लगाकर और थियेटर साऊँड सिस्टम लगाकर बनाया गया है।

जब हम मंदिर से निकले तो हमारे मन और ह्र्दय में महामंत्र नहीं चल रहा था, न ही मंदिर में स्थित भगवान के चेहरे आँखों के सामने थे, बस जो भी नजर आ रहा था वह था, वहाँ स्थित भव्य बाजार।

वैसे एक बात फ़िर भी आश्चर्यजनक लगी कि दर्शन के लिये कोई टिकट नहीं था, जबकि दक्षिण में अधिकतर सभी मंदिरों में दर्शन के लिये टिकट है और अर्चना एवं प्रसाद चढ़ाने के लिये भी टिकट की व्यवस्था होती है, इसलिये यहाँ बैंगलोर में आकर मंदिर जाने का मन बहुत ही कम होता है, मंदिर जाकर अगर मन को ऐसा लगे कि आप मंदिर में नहीं किसी व्यावसायिक स्थान पर खड़े हैं, तो अच्छा नहीं लगता।

लूट तो हरेक जगह है, हर मंदिर में है फ़िर वो क्या उत्तर और क्या दक्षिण, और लूट भी रहे हैं वो पुजारी और पंडे जो कि भगवान की सेवा में लगे हैं, और भगवान भी उन पंडों और पुजारियों पर खुश है और उन पर अपनी सेवा करने की असीम कृपा बनाये हुए है।

हे कृष्ण! हे गिरधारी! कब इस कलियुग में तुम्हारे पंडे और पुजारी की इस लूट से आम जनता बच पायेगी।

समय प्रबंधन के लिये त्रिपल एस फ़ॉर्मुला (Tripple “S” Formula for Time Management)

आज मैं BG 15-5 जो कि गोपीनाथ चंद्र प्रभू ने इस्कॉन गिरगाँव चौपाटी पर १ जनवरी २०१० को यह वक्तृता दिया था, सुन रहा था। जिसमॆं उन्होंने समय प्रबंधन के लिये Tripple “S” फ़ॉर्मुला बताया जो मुझे बहुत अच्छा लगा।

कार्य हमारी जिंदगी में चार प्रकार के होते हैं –

१. अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण

२. अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण

३. अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं

४. न ही अत्यावश्यक और न ही महत्वपूर्ण

१. अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण – जैसे कि छात्र अपनी परीक्षा की तैयारी करता है, क्योंकि छात्र को परीक्षा के समय पढ़ाई से ज्यादा अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण कार्य कुछ और नहीं होता है।

२. अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण – जैसे कि पढ़ाई अगर सतत की जाये तो निश्चित ही परीक्षा में अच्छॆ अंक आयेंगे और परीक्षा के समय पढ़ाई अत्यावश्यक नहीं रहेगी। जैसे अपने स्वास्थ्य के लिये अगर रोज व्यायाम करेंगे तो यह भी अत्यावश्यक नहीं है परंतु महत्वपूर्ण है।

३. अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं – जैसे कि फ़ोन कॉल अत्यावश्यक है परंतु महत्वपूर्ण नहीं, हो सकता है कि केवल टाईम पास करने के लिये किसी मित्र ने ऐसे ही फ़ोन लगाया हो। किसी को सिगरेट पीना है तो उसके लिये यह अत्यावश्यक है परंतु महत्वपूर्ण नहीं। नई फ़िल्म जैसे ही टॉकीज में लगती है दौड़ पड़ते हैं देखने के लिये, क्या यह तीन महीने बाद नहीं देखी जा सकती, क्या है यह, यह अत्यावश्यक कार्य है परंतु महत्वपूर्ण नहीं। जिन विचारों पर मन का नियंत्रण नहीं होता।

४. न ही अत्यावश्यक और न ही महत्वपूर्ण – जैसे की फ़ालतू में सोते रहना, टाईम पास करना, ओर्कुट या फ़ेसबुक पर रहना, ऐसे ही सर्फ़िंग करते रहना।

समय प्रबंधन का Tripple “S”  फ़ॉर्मुला है –

पहला “S”  – पहले प्रकार के कार्यों की कमी (अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण) करना जिससे हमें कभी गुस्सा नहीं आये । जो लोग दूसरे प्रकार के कार्य नहीं करते हैं वे ही पहले प्रकार को आने की दावत देते हैं, अगर समय पर सब कार्य कर लिया जाये तो पहले प्रकार (अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण) की नौबत ही नहीं आयेगी।

दूसरा “S” – तीसरे प्रकार के कार्यों (अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं) को मना करना, जो कि केवल हम मन को खुश करने के लिये करते हैं या कुछ क्षणों के सुख के लिये करते हैं, हमे हमेशा दूसरे प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहना चाहिये।

तीसरा “S” – चौथे प्रकार के कार्यों से हमेशा बचना चाहिये, केवल दूसरे प्रकार (अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण) के कार्य में व्यस्त रहना चाहिये।

पूरा वक्तृता सुनने के लिये यहाँ चटका लगाईये।

भगवान और गूगल – रिश्ते इंटरनेट युग में (God & Google – Relationships in Internet Age)..

बहुत दिनों बाद मुझे कल मुंबई लोकल से सफ़र करने का सुअवसर मिला, मौका था एक सेमिनार में जाने का “God & Google – Relationships in Internet Age”, जो इस्कॉन चौपाटी राधा गोपीनाथ मंदिर में था और वक्ता थे इडाहो (idaho, USA) से आये  राधिका रमण प्रभु याने कि डॉ. रवि गुप्ता। वो पूरी दुनिया में सबसे युवा भारतीय विद्वान हैं जिन्होंने मात्र २१ वर्ष की उम्र में डॉक्टरेट पूरा किया, हैं, जिन्हें मानव मनोविज्ञान और व्यवहार का बहुत गहरा ज्ञान है।

सेमिनार में भगवान और गूगल में अंतर बताया गया क्योंकि आज दोनों ही सर्वव्यापी हैं, जैसे भगवान सब जगह है वैसे ही गूगल भी सभी जगह है, परंतु फ़िर भी गूगल भगवान क्यों नहीं है और इस इंटरनेट युग में अपने सामाजिक संबंधों को कैसे मजबूत बनायें, कैसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करें।

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अगर आपको भी इस सेमिनार का आडियो सुनना है तो यहाँ चटका लगाईये।

ISKCON में भक्ति के रंग

ISKCON में भक्ति के रंग अगर आप देखना चाहते हैं तो आप आइये ग्रांट रोड, मुंबई ईस्कान मंदिर में, जहाँ भागवतम व गीता जी की गंगा प्रवाहित होती है व कृष्ण भक्ति के अलग अलग रंग देखने को मिलते हैं ।