आज सुबह ऑफ़िस के लिये निकले तो कम से कम १५-२० ऑटो वालों को हाथ देकर पूछा होगा, फ़िर एक ऑटो वाला तैयार हुआ। और भी यात्री खड़े हुए थे, और कोस रहे थे इन ऑटो वालों को कि इनको तो ऑटो पर प्लेट लगाकर चलना चाहिये जैसे बस पर लगी होती है, कि इधर ही जायेंगे।
ऑटो में बैठने के बाद थोड़ी आगे जाने पर अचानक ही ऑटो वाले ने पूछा कि “भैयाजी आप लोग १२ अगस्त को क्या करने वाले हो?”
हम बोले – “तुम लोग जैसे कहीं जाने को तैयार नहीं होते हो, इसके लिये यात्रियों का विरोध है।”
ऑटोवाला – “फ़िर कैसे जायेंगे”
हम बोले – “बाईक पूलिंग, कार पूलिंग और बस का उपयोग करेंगे पर ऑटो का उपयोग नहीं करेंगे ।”
ऑटोवाला – “आप लोगों को ही परेशानी होगी, और अगर हमको सवारी नहीं मिली तो हम भी एक दिन की छुट्टी मना लेंगे, एक तो पहले ही इतनी महँगाई हो गई है, पहले जो तेल १०० रुपये का पड़्ता था अब पूरे २०० रुपये का पड़ता है, गरीब आदमी की तो हर जगह मुसीबत है”
हम बोले – “आप खुद ही बोलो कि जाने को मना क्यों करते हो, मनपसंद जगह की सवारी को ही क्यों ले जाते हो?, अगर सबको ले जाओ तो ये सब लफ़ड़ा ही नहीं हो !!, बात रही गरीब की तो इसका मतलब यह हुआ कि जब आप लोग ऑटो में ले जाने से मना करते हो तब आप लोग अपनी गरीबी भूल जाते हो, नहीं?”
ऑटोवाला – “अब हम क्या बतायें, हम तो कभी भी मना नहीं करते हैं। देखते हैं १२ अगस्त को नहीं तो छुट्टी और क्या !!”
भाई हमें भी समझ नहीं आया 12 अगस्त का चक्कर?
12 अगस्त का चक्कर समझने के लिये ये वाली पोस्ट पढ़िये ।
मुंबई में यात्रियों का बदला १२ अगस्त को ऑटो और टेक्सीवालों से (Revenge of the Commuters)
ये दिल्ली वाली बीमारी मुंबई वालों को कब से लग गई ।
पहले तो ऐसा नहीं था ।
डॉ दराल साहब – ये बीमारी दिल्ली की नहीं मुंबई की है, और यहाँ के कुछ जागरुक युवाओं ने यह अभियान शुरु किया है।
खैर शुरु कहीं से भी हो परंतु अभियान का मकसद पूरा होना चाहिये।
विवेक जी , ऑटो वालों की बात कर रहा हूँ । ऐसा तो दिल्ली में होता है कि ऑटो वाला कहीं जाने से मना करे । मुंबई में तो ऐसा सुना नहीं था ।
यहाँ पर भी होता है डॉ. साब, जब तक १५-२० ऑटो टैक्सी वालों को हाथ न दो तब तक ऑटो नहीं मिलता, बुरी हालत है हमारे देश की, कहने को तो गरीब हैं, पर जब गाड़ी की गद्दी पर बैठते हैं तब शायद इनसे अमीर कोई नहीं होता ।
अजी अमीर की बात नही, इन्हे वापिसी की सवारी नही मिलती इस लिये यह मना करते है, दिल्ली मै मुझे एक आटॊ वाले ने मना किया, तो मैने भी पूछा भाई क्या तुम्हे पेसे बुरे लगते है, तो बोला बाबू जी हम तो कमाई करने के लिये ही चलाते है, लेकिन जब बचत की जगह घाटा हो तो, अगर आप आने जाने की बात करे तो मै तेयार हुं…
ऑटो वाले न हुये, शोले की बसन्ती हो गये।
ये बीमारी तो बैंगलोर के ऑटो वालों की भी है, बड़ी दिक्कत होती है इससे..वैसे यहाँ तो ये भी एक उपाय है की अगर कोई ऑटो वाला कहीं जाने से मना करे तो आप उसकी शिकायत कर सकते हो, लेकिन ये शिकायतें को कौन गंभीरता से लेता है..
12 अगस्त की पोस्ट पढ कर आते हैं।