सुबह से मौसम कुछ ठीक था, मतलब की बारिश दिनभर रुकी हुई थी पर बादल सिर पर मँडरा ही रहे थे और बादल सामान्यत: बहुत ही नीचे थे। शाम के समय हमें उज्जैन जाने के लिये ट्रेन पकड़ना थी, और छ: बजे से ही वापिस से मुंबई श्टाईल में जोरदार बारिश शुरु हो गई। बोरिवली जाने के लिये हम ऑटो अपनी ईमारत के अंदर ही बुलवा लाये। जिससे कम से कम यहाँ तो न भीगना पड़े।
बोरिवली स्टेशन जाते समय पश्चिम द्रुतगति मार्ग (Western Express Highway) से होते हुए जाना होता है और हमने द्रुतगति मार्ग की जो दुर्गति देखी हमें ऐसा लगा कि हमारा हिन्दुस्तान और यहाँ के इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने वाले कभी सुधर ही नहीं सकते। इतने गड्ढ़े देखकर हमें फ़िल्म “खट्टा मीठा” याद हो आई। जिसमें भ्रष्टाचार का खुला रुप दिखाया गया है। यह संतोष है कि जहाँ पर भी कांक्रीट की सड़कें बनी हुई हैं, कम से कम वे तो ठीक हैं, क्योंकि वो देखने पर लगता है कि १२-१४ इंच की बनती हैं, पर डामर की सड़कें तो सुभानअल्लाह, जहाँ थोड़ा पानी बरसा और सड़कें गड्ढ़े से सारोबार। गाड़ी चलाते समय खुद को बचा सको तो बचा लो नहीं तो बस अपनी जान पर आफ़त ही समझो, इसको ऐसा कह सकते हैं कि जान हथेली पर लेकर चलना।
बोरिवली पहुँचते पहुँचते ऐसे बहुत से गड्ढों से गुजरना पड़ा, और कई जगह तो सड़कों पर १-२ इंच तक पानी जमा था । हम सोच रहे थे कि अगर इतनी बरसात अपने शहर में हो जाये तो वहाँ पर तो छूट्टी का माहौल बन जाता, पर ये मुंबई है यहाँ कुछ भी हो जाये पर मुंबई रुकती नहीं है। यहाँ मुंबई में जिंदगी की रफ़्तार इतनी तेज है कि और कोई भी चीज उसके आगे मायने ही नहीं रखती।
घर से जरा जल्दी निकल चले थे कि कहीं बारिश के कारण ट्राफ़िक में ही न फ़ँस जायें। प्लेटफ़ार्म पर पहुँचे तो पता चला कि १ घंटा जल्दी पहुँच गये, और अपने कोच के लोकेशन पर जाकर इंतजार करने लगे। भीड़ तो इतनी थी कि बस देखते ही बन रहा था, क्योंकि हमारी ट्रेन के पहले मुंबई-जयपुर एक्सप्रेस का भी समय रहता है। और रक्षाबंधन पर सब लोग अपने घर की ओर अग्रसर थे और जल्दी से जल्दी पहुँचने के चक्कर में थे।
क्रमश:-
शुभकामनाएं।
यहाँ…दिल्ली का भी यही हाल है…यहाँ पर भी खड्ढे ज्यादा और सड़क कम नज़र आती है…
बहुत बढ़िया पोस्ट.बधाई
स्थिति सच में खराब है, हर जगह।
शुभकामनाएं जी , वेसे भारत मै हर तरफ़ यही हाल है, पता नही क्यो??
ऐसा देश है मेरा, ।
आप तो एक घंटा जल्दी पहुँच गए पर कुछ लोग जो जाम में फंस कर समय से नहीं पहुँच पाए उनको तो अपना कार्यक्रम रद्द ही करना पड़ गया …
अच्छा ही है ऐसे में घंटा भर पहले पहुँच जाना…क्या पता कब ट्रेफिक उलझ जाये और भागते हुए ट्रेन पकड़ना पड़े…
रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ.
जी हा मुम्बई कि यही तो परेशानी है यहाँ अंधी आये तूफान देरी के लिय उसका बहाना नहीं बना सकते है तेज से तेज बारिश में भी लोग अपना कोई काम नहीं रोकते है छोटे छोटे बच्चे भी कितनी भी बारिश हो स्कुल के लिए निकल पड़ते है | हम लोग जब छोटे थे तो बस बादल को देख कर ही कह देते थे कि आज तो बारिश होगी और स्कुल में तो रेनी डे हो जायेगा | बारिश होते ही लोग किनारे किसी छाव में खड़े हो जाते थे बरसात के बंद होने के बाद आगे बढ़ते है | पर यहाँ तो कोई एक मिनट के लिए भी नहीं रुकता है | खड्ढे कि तो बात ही मत कीजिए गाड़ी कि ये हालत होती है कि उसे लेकर बाहर निकलने कि हिम्मत नहीं होती है |
रक्षा बंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
रक्षाबंधन की ढेरों शुभकामनाए !!
मेरे भैया …..रानीविशाल