(२) उपादान लक्षणा या अजहतस्वार्था – लक्षण-लक्षणा में मुख्यार्थ को बिल्कुल तिरस्कृत कर दिया जाता है, लेकिन उपादान लक्षणा में लक्ष्यार्थ के साथ मुख्यार्थ का सम्बन्ध भी रहता है; उदाहरणार्थ –
‘’बढ़ी आ रही हैं तोपें तेजी से किले की ओर।’
तोपों के साथ तोपों के चालक भी किले के ओर आ रहे हैं – यह स्वयं सिद्ध बात है अत: तोपें आने (मुख्यार्थ) के साथ तोप चालक (लक्ष्यार्थ) का भी सम्बन्ध स्पष्ट है।
(अ) सारोपा शुद्धा उपादान लक्षणा – निम्न उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगा –
‘कर सोलह श्रंगार चली तुम कहाँ परी-सी?’
उक्त पंक्ति में ‘तुम’ पर ‘परी’ होने का आरोप होने के कारण सारोपा और ‘परी’ में मुख्यार्थ भी सुरक्षित होने और उसका ‘श्रेष्ठतम सुन्दरी’ लक्ष्यार्थ से सम्बन्ध होने के कारण उपादान लक्षणा है।
(ब) साध्यवसाना शुद्धा उपादान लक्षणा –
‘अरे हृदय को थाम महल के लिए झोपड़ी बलि होती है।’
‘महल’ और ‘झोपड़ी’ आरोप्यमाण का ही कथन होने के कारण यहाँ साध्यवसाना है, साथ में ‘महल’ और ‘झोपड़ी’ अपना मुख्यार्थ भी सुरक्षित रखते हैं तथा महलों के वासी अमीरों तथा झोपड़ी में रहने वाले गरीबों के लक्ष्यार्थ को भी स्पष्ट करने के कारण यहाँ उपादान लक्षणा भी है।
मम्मट ने ‘काव्यप्रकाश’ में इन्हीं भेदों का वर्णन किया है।
पहले के भाग यहाँ पढ़ सकते हैं –
“रस अलंकार पिंगल [रस, अलंकार, छन्द काव्यदोष एवं शब्द शक्ति का सम्यक विवेचन]”
काव्य में शब्द शक्ति का महत्व – रस अलंकार पिंगल
शब्द शक्ति क्या है ? रस अलंकार पिंगल
शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – रस अलंकार पिंगल
शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – 1 – रस अलंकार पिंगल
शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा– 2 – रस अलंकार पिंगल
गोले चलते हैं तो तोपचालक भी होंगे..
कोई नहीं चलाता पर तीर चल रहे हैं।