शब्द शक्ति क्या है ? – बहुत पहले ही सुप्रसिद्ध आचार्य भामह ने ‘शब्दार्थों काव्यम’ कहकर काव्य में शब्द और अर्थ की महत्ता तथा उनके परस्पर सम्बन्ध में प्रकाश डाला था। वास्तव में शब्द और अर्थ भिन्न-भिन्न नहीं हैं। श्रेष्ठ काव्य में शब्द और अर्थ की सत्ता अभिन्न रहती है। महाकवि तुलसीदास ने शब्द और अर्थ की इसी अभीन्नता पर निम्न पंक्तियों में बड़ा सुन्दर संकेत किया है –
‘गिरा अर्थ जल-बीचि सम कहियत भिन्न न भिन्न ।’
वास्तव में शब्द और अर्थ मिलकर ही काव्य की सृष्टि करते हैं। दोनों में परस्पर बहुत दृढ़ सम्बन्ध है और इस सम्बन्ध को जिस शक्ति द्वारा जाना जा सकते हैं, उसे ही ‘शब्द-शक्ति’ कहते हैं। चूंकि काव्य में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ से ही काव्य बोधगम्य होता है, अत: शब्द के अर्थ को समझने में सहायक-शक्ति ही ‘शब्द-शक्ति’ कहलाती है।
शब्द-शक्ति के भेद – शब्द-शक्ति के तीन भेद माने जाते हैं –
(१) शक्ति, (२) लक्षणा और (३) व्यंजना ।
एक अन्य विद्वान ने भी शब्द-शक्ति के तीन भेद – (१) अभिधा, (२) लक्षणा और (३) व्यंजना – माने हैं। प्राय: सभी आचार्य शब्द-शक्ति के उपर्युक्त तीन भेद ही मानते हैं।
(१) अभिधा
अभिधा शक्ति द्वारा शब्दों के मुख्यार्थ अथवा अप्रत्यक्ष संकेतिक अर्थ का बोध होता है। एक विद्वान अभिधा की व्याख्या इस प्रकार करते हैं –
‘संक्तितार्थस्य वोधनार्दाग्रमाभिधा ।’
अर्थात साक्षात सांकेतिक अर्थ की बोध शक्ति को ‘अभिधा’ कहा जाता है। साक्षात सांकेतिक अर्थ से तात्पर्य सामान्यत: लोक में प्रसिद्ध कोशसम्मत अर्थ से है। लोग अथवा कोश में एक शब्द के एक से अधिक अर्थ भी प्रचलित होते हैं, उन सबको वाच्यार्थ (अभिधा-युक्त) कहा जाता है। एक से अधिक अर्थ वाले शब्द का कौन-सा अर्थ लिया जायेगा, यह प्रसंग पर निर्भर करता है। जैसे –
‘कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय जग या पाये बौराय ॥’
इन पंक्तियों में ‘कनक’ (धतुरा), कनक (सोना), मादकता (नशा आदि) सभी शब्दों का कोश-सम्मत एवं लोक में प्रचलित अर्थ लिया जाता है, इसीलिए यहाँ पर अभिधा शक्ति मानी जायेगी। अभिधा शक्ति से युक्त बाधक शब्द के तीन भेद आचार्य नागेश आदि विद्वानों ने माने हैं –
(१) रूढ़ि शब्द,
(२) यौगिक शब्द और
(३) योगारूढ़ि शब्द ।
१ – रूढ़ियुक्त शब्द वे हैं जिनसे पूरे शब्द से केवल एक अर्थ का बोध होता हो। इनके अवयव नहीं किये जा सकते, वे व्युत्पत्ति रहित और अभेद्य होते हैं। जैसे पैर, घोड़ा आदि ।
२ – यौगिक शब्दों का प्रकृति और अवयवों की सहायता से अर्थ का बोध होता है। जैसे – ‘भूपति’ शब्द में ‘भू’ और ‘पति’ दो अवयव हैं, ‘भू’ अर्थात पृथ्वी और ‘पति’ अर्थात स्वामी यानि कि पृथ्वी का स्वामी ‘राजा’ अर्थ हुआ। इसी प्रकार हिमकर, जलधर आदि शब्द बने हुए हैं।
३ – योगारूढ़ि शब्दों में यौगिक शब्द के समान अवयवों के समुदाय से अर्थ का बोध होता है लेकिन ये शब्द यौगिक होते हुए भी रूढ़ि शब्दों की भांति एक विशेष अर्थ के लिए प्रसिद्ध हो जाते हैं। जैसे – ‘गिरिधर’ ‘गिरि’ और ‘धर’ दो अवयवों के मिश्रण से बना यौगिक शब्द है। लेकिन इसको प्रत्येक गिरि धारण करने वाले के लिये प्रयोग न करके केवल भगवान श्रीकृष्ण के अर्थ में ही प्रयुक्त किया जाता है और श्रीकृष्ण के अर्थ में ही यह शब्द रूढ़ हो गया है। पंकज, वारिज आदि शब्द इसके उदाहरण हैं।
पहले के भाग यहाँ पढ़ सकते हैं –
“रस अलंकार पिंगल [रस, अलंकार, छन्द काव्यदोष एवं शब्द शक्ति का सम्यक विवेचन]”
काव्य में शब्द शक्ति का महत्व – रस अलंकार पिंगल
शब्द शक्ति क्या है ? रस अलंकार पिंगल
शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – रस अलंकार पिंगल
शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – 1 – रस अलंकार पिंगल
शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा– 2 – रस अलंकार पिंगल
बहुत ध्यान से पढ़ रहे हैं।
हिन्दी पखवाड़े की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
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बहुत सुन्दर प्रविष्टी!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (16-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएं |शब्द के तीन प्रकार समझ में आगे |ऐसे ही ज्ञान वर्धन करते रहें |
आशा
इन पंक्तियों में ‘कनक’ (धतुरा), कनक (सोना), मादकता (नशा आदि) सभी शब्दों का कोश-सम्मत एवं लोक में प्रचलित अर्थ लिया जाता है, इसीलिए यहाँ पर अभिधा शक्ति मानी जायेगी। अभिधा शक्ति से युक्त बाधक शब्द के तीन भेद आचार्य नागेश आदि विद्वानों ने माने हैं -कृपया धतूरा कर लें .
व्यंजना का इक उदाहरण देखिए -किसी को काणा न कह समदर्शी कह दिया जाए बोले तो सब को इक ही आँख से देखने वाला .किसी को बे -वकूफ न कहके "मूढ़ धन्य "कह दिया जाए बोले तो विजय दिग .
इक उदाहरण श्लेष का भी देखिए –
मेरी भाव बाधा हरो ,राधा नागर सोय
जा तन की झाईं परे ,श्याम हरित द्युति होय .
जिस राधा नागरी की परछाईं पड़ने मात्र से श्याम वर्णी कृष्ण प्रमुदित हो जातें हैं ,वही राधा नागरी (नगर वासिनी ,इटली वासिनी श्री मनमोहन जी की बाधा हरो ).मेरी सांसारिक बाधाओं को दूर करें .
बहुत सुन्दर!