आज बहुत दिनों बाद फिल्म देखने का मूड बना और हम केबल पर शुरु होने वाली फिल्म टेक्सी नं. ९ २ ११ देखने बैठ गये फिल्म शुरु हुई, १५ मिनिट तक तो नाना पाटेकर का चरित्र ही दिखाते रहे कि अब वो टेक्सी ड्राइवर का काम कर रहा है लेकिन घर पर उसकी पत्नी यही जानती है कि वो इंश्योरेंस कंपनी में पॉलिसी बेचता है, टेक्सी घर से २ किलोमीटर दूर पार्क कर घर पैदल ही जाता है, जिससे घर पर पता न चले, और फिर बिना जरुरत के एक अपारिवारिक दृश्य नाना पाटेकर अपनी वही पुरानी स्टाईल में अपनी बीबी के ब्लाउज में घुस जाते हैं, वैसे नाना का यह सिलसिला बहुत पुराना है याद करें तो वो मनीषा कोईराला, मधु ओर भी बहुत सी हीरोइनों के ब्लाउज में घुस चुके हैं, पता नहीं ये फिल्मवाले क्यों नहीं समझते कि उनकी फिल्में आज भी परिवार साथ में बैठकर देखता है, बस फिर क्या था हमने झट से एक माहिर दर्शक की तरह चैनल चेंज कर आज की ताजा खबर देखने लगे, क्या हम नई फिल्में परिवार के साथ बैठकर नहीं देख सकते …..
मेरे ख्याल मे तो ना सिर्फ़ फ़िल्म बल्कि कोई भी चेनल चाहे म्यूजिक, सीरियलस, आदि कुछ भी परिवार के साथ देखने योग्य नही हैं.
समीर लाल
हे हे …यह फिल्म मैं अपने दोस्त के साथ सिनेमा हाल में देखने गया था…
मैं तो यह सोच सोच कर हँस रहा था की….”वह तो गाय जैसी सीधी है”.
हा हा हा …अगर वह सीधी है…तो टेढे लोग कैसे होंगे ?
हंस हंस कर आंखों से आंसू निकल आये थे मेरे….
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