जैसे पहले राजशाही राजघराने हुआ करते थे वैसे ही अब लोकतांत्रिक राजघराने हुआ करते हैं, पहले राजा रजवाड़ों का प्रजा बहुत सम्मान करती थी, जब रियासतें भारत में विलीन हुईं, तो राजघराने राजनीति में आ गये, और वहाँ पर भी अपनी गहरी पेठ बना ली जैसे सिंधिया परिवार, कर्ण सिंह, जसवंत सिंह और भी बहुत, पर रियासतों के अंत के बाद लोकतांत्रिक राजघरानों का उदय हुआ और यह भी खानदानी काम हो गया, लोकतांत्रिक घरानों में गांधी परिवार, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह इत्यादि, सबसे बड़ी बात कोई बड़ा नेता मर जाये तो कंपनसेशन में उसके परिवार के किसी सदस्य को वह सीट दे दी जाती है, जैसे सुनिल दत्त की सीट प्रिया दत्त , पायलट की सीट उनके पुत्र को दी गई, तो उन सबने अपने लिये सतह तैयार कर ली है, जब कोई नेता लोकतांत्रिक राजघराने बनाने की ओर कदम बढाते हैं तो उनकी संपत्ति कितनी होती है, महज चंद रुपये पर अगर ५ साल के लिये मंत्री बन गये तो अघोषित रुप से उनकी संपत्ति करोड़ों रुपये कैसे हो जाती है, पर लोकतांत्रिक घराने भी तभी लंबे राजनैतिक जीवन में रह पायेंगे, जब तक कि वो अपनी वोट बैंक को सहेज कर रख सकते हैं, ये लोग भी तो लगातार अपना वजूद बचाने के लिये लगातार संघर्ष कर रहे हैं,