अंग्रेज तो १९४७ में भारत छोड़कर चले गये पर उनकी हुकुमत आर्थिक रुप से अभी तक चलती है, जिसका प्रभाव भारत के शेयर बाजार पर हम साफ साफ देख सकते हैं हमारी सरकार अभी तक मानसिक रुप से उनकी गुलाम है, उन विदेशी संस्थागत निवेशकों पर लगाम न कस कर उन्हें और सुविधाएँ देना इस तथ्य को सिद्ध करता है हमारे फाइनेंस मिनिस्टर पी. चिदम्बरम कैसे कैसे बयान देते हैं जैसे कोई प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढा रहे हों, बयान भी निति संगत होने चाहिये, न कि किसी नौसिखिये नेताओं जैसे १२००० सेन्सेक्स छू लेने के बाद सभी विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बाजार में इस प्रकार का भ्रम उत्पन्न किया कि बस भारत की आर्थिक व्यवस्था विश्व में अपना अग्रणी स्थान बनाती जा रही है और फिर एक दिन उनके मन का लुटेरा जागृत हो गया और अपने निवेश बेचकर, अपना लाभ कमाकर बाजार को इतिहास बनने के लिये छोड़कर अपने देश चल दिये बेचारा भारतीय सीधा साधा, अपना पूरा धन बाजार में लगाकर धन्य था कि वह भी अब तक के उच्चतम स्तर को छूने वाले इंडेक्स के इतिहास का भागीदार था हमारी सरकार तो पैसे खाकर बैठ गयी है, उसे क्या मतलब निवेशकों से, सरकार के ठेकेदारों ने तो अपनी जेबें भर ली हैं अगर सही तरीके से बाजार की स्थिती का आकलन किया जाये, तो निवेश गुरु मार्क फेबर की बात सही प्रतीत होती है कि भविष्य में बाजार का रुख ६००० से ८००० तक हो सकता है, तो अब आम भारतीय निवेशक क्या करे, और उसके हितों की रक्षा कौन करेगा ये भारत सरकार को निश्चित करना है, देखते हैं कि सरकार का क्या रुख होता है और बाजार का क्या रुख होता है निवेशकों मनन करो और अभी गर्मी की छुट्टियाँ मनाओ बाकी सब विदेशी संस्थागत निवेशकों पर छोड़ दो
छोटे निवेशकों की रक्षा कैसे की जा सकती है, इस पर आपने अपने विचार नहीं लिखे?