अभी परसों ही में ट्रेन में यात्रा कर रहा था तो जिस केबिन में मेरी सीट थी, उस केबिन में एक परिवार जो कि नागपुर से सफ़र कर रहा था और उनका एक ६ साल का बेटा भी था। साइड लोअर व साइड अपर में एक नवविवाहित दंपत्ति थे। जो कि सबके सामने बड़ी ही अभद्र हरकतें कर रहे थे, खुलेआम एक दूसरे को चूम रहे थे और अश्लीलता की हरकतें कर रहे थे। परंतु बोले कौन ! क्योंकि कोई भी बोलना नहीं चाहता, मैं भी नहीं। क्योंकि इन लोगों को समझाने का कोई मतलब ही नहीं है।
जो परिवार मेरे पास बैठा था वो भी कनखियों से ये सब देख रहा था और बच्चे को अपने में बिजी रख रहे थे ताकि वो उनकी हरकतों पर ध्यान न दें परंतु वो बच्चा तो बड़ी गौर से वही सब देख रहा था और कुल मिलाकर वातावरण प्रदूषित हो रहा था। उस परिवार के सज्जन मुझसे बोले ये लोग क्यों थर्ड एसी में आये यही सब करना था तो सेकंड एसी में जाते कम से कम वहाँ पर्दा रहता है जो भी करते ये लोग उस पर्दे के पीछे कम से कम हमें तो दर्शक नहीं बनना पड़ता वो भी जबरदस्ती।
इस परिस्थिती ने वाकई यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर आप शादी के बाद घूमने (हनीमून) जा रहे हो तो बाहर नैतिकता से रहें और जो कुछ करना है वो पर्दे की पीछे करें, सार्वजनिक न करें।
bhut achchha likha hai aap ne
अनियंत्रित होते युवा का एक और उदाहरण क्या यही कार्य वो अपने घर वालों के सामने कर सकते थे
yah problem hame bhi pareshan karti hai.lekin kya karen? BADE, SATTADHARI LOG, jab tak khud prabhavit na ho tab tak kuchh nahi karte. yahi samasya hai. iske liye sanskari logon ka organisation jaruri hai. KUCHH LOG JO SABKE SAMNE ASHLIL HARKATEN KARTE HAI USME UNKA DOSH NAHI HAI BALKI UNKE PARANT BHI UNKE SAMNE YAHI SAB KARTE HONGE ISLIYE UNHE ACHCHHA LAGTA HAI.
sahi likha hai jab tak parda hai, achaa hai… Sahi baat raise ki hai aapne. Bahut log aisa hi sadak par bhi karte dikh jate hain… phir kahate hain ki lagoin ne commnet pass ka diya.
आजादी अच्छी चीज है, मगर आसपास का ध्यान रखना ही चाहिए.
thanks for posting a comment on this post
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/06/pda-pda.html
the law permits PDA by married people so its all legitimate and even police cant do any thing
Rachna
बतमीज लोग हर तरफ़ मिलते है, जो इसे आजादी समझते है, जब कि इन्हे आजादी का मतलब बिलकुल भी मालुम नही,
बहुत अच्छा लिखा इन का ईलाज जब होता है तो लोग चिलाते है
बहुत ही अशोभनिय कृत्य है, क्या ये अपने मा बाप या परिवार जनों के समक्ष यह सब करेंगे? यह कुंठित दिमाग युवा हैं.
रामराम.
जो करना हो करो पर ध्यान रखो कि आस पास के लोग असहज न महसुस करें…
दूसरों का ख्याल रखना बहुत जरूरी है
विवेक जी जो बात अब आप बता रहे है …..अगर आप थोडा सा साहस दिखाते तो आप को ये सब झेलना नहीं पड़ता …….आप जेसे कायर/डरपोक लोगो की वजह से ……ये सब हुआ ….कुछ साहस दिखाते पुलिस /टी.टी. की मदद से ये मसला सुलझाते …
मगर आप ने एसा कुछ नहीं किया क्योकि आप को भी ब्लू फिल्म देखने में मजा आ रहा था.
@राजीव जी – आप शायद सही कह रहे हैं कि ये सब मेरे कायर होने की निशानी है, हाँ मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं कायर हूँ क्योंकि मैं शादीशुदा हूँ और परिवार का जिम्मेदार मुखिया हूँ। यह कायरता शादी के बाद पता नहीं कैसे घर कर गई। नहीं तो जब मैं छ्ड़ा था तो कतई इस तरह की हरकत बर्दाश्त नहीं कर सकता था और कानून अपने हाथ में ले लेता था तब उस समय आप जैसे लोग कहते थे कि देखो गुंडागर्दी कर रहा है।
राजीव जी एक ही चीज के दो मायने कैसे हो सकते हैं आप खुद अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिये फ़िर बताइये।
कायर मैं हूँ मैं तो मान रहा हूँ पर पूरे समाज और उसकी रखवाली पुलिस के बारे में क्या कहेंगे आप ?
सही कहा है आपनें पर ऐसी हरकतें अब आम हो चली हैं .