नवभारत टाइम्स हिन्दी मुम्बई संस्करण के मुख्य पृष्ठ पर हिन्दी की गल्तियां अब रोज ही होने लगी हैं, पता नहीं इसके एडिटर क्या एडिट करते हैं।
अभी हाल ही की गलती देखिये शनिवार २० जून २००९ की, मुख्य पृष्ठ पर एक समाचार छपा था – “सिर्फ़ ३० दिनों के लिये बचा है पानी”। इसमें दूसरे पैराग्राफ़ में लिखा है “महाराष्ट्र के कोंकण बेल्ट में ७ जून को मौसम ने दस्तखत दे दी, लेकिन उसकी गति थम गई।“, अब भला बताईये क्या यह सही है क्या इसे ऐसा नहीं होना चाहिये था – “महाराष्ट्र के कोंकण बेल्ट में ७ जून को मौसम ने दस्तक दे दी, लेकिन उसकी गति थम गई।“
अब ब्लाग पर तो हम भाषा को सही तरीके से लिखने का प्रयत्न करते हैं पर क्या एक जिम्मेदार अखबार की जिम्मेदारी नहीं है सही हिंदी लिखने की।
इन अखबारों की भाषाई गल्तियाँ खोजने में अगर लग गये तो हो चुकी ब्लॉगिंग. कैसे समय निकालोगे? 🙂
भूलना नहीं चाहिए कि नवभारत टाइम्स टाइम्स ओफ इंडिया परिवार का सिंड्रेला अखबार है। वहां उसे दोयम दर्जा ही प्राप्त है। संभव है कि उसके संपादक आदि को टाइम्स ओफ इंडिया के संपादक के वेतन और पर्क्स का शतांश ही प्राप्त होता हो। इससे वे डीमोरलाइस्ड हो तो आश्चर्य नहीं। यह भी हो सकता है कि नवभारत टाइम्स का संपादक हिंदी का जानकार न होकर टाइम्स ओफ इंडिया का ही कोई वरिष्ठ अंग्रेजी पत्रकार हो। टोओआई नवभारत टाइम्स को इसलिए जिलाए हुए है क्योंकि उसे उससे विज्ञापनों से काफी धन मिलता है। वरना उसने उसे कबका बंद कर दिया होता, जैसे उसने, धर्मयुग, पराग आदि का गला घोंट दिया था।
नवभारत टाइम्स के पाठकों को इस अखबार का बहिष्कार कर देना चाहिए और दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, सहारा टाइम्स आदि अन्य विशुद्ध हिंदी अखबारों को अपना समर्थन देना चाहिए।
पर यह पता नहीं इन विशुद्ध हिंदी अखबारों की हिंदी कितनी विशुद्ध है।
जो भी हो, आपने नवभारत टाइम्स की हिंदी की गलतियां दिखाकर अच्छा किया है। यह काम जारी रखें और अन्य अखबारों, ब्लोगों और पत्रिकाओं को भी न बख्शें। हो सकता है कि इससे स्वच्छ हिंदी लिखने की अभिरुचि बढ़ेगी।
अब मौसम भी दस्तखत करने लगा है !!
हा हा हा संगीताजी की बात पढ़कर हंसी आ गई.
हा-हिन्दी
माफ कर दो.. आज सम्पादकिय पेज पर था "राजनितिक विधवाऐं".. कोई बता सकता है इसका मतलब..?
chalo kam se kam hum blogger to in galtiyon se CHABE hue hai… aur main to kabhi bhi galtiyan nahi MARTA hoon !!
🙂
अब तो हिंगलिश का जमाना है
आप सही कह रहे हैं..ये निश्चित रूप से अच्छी बात नहीं है..और यदि गलती नियमित रूप से दोहराई जा रही है तो गंभीर बात है..मैंने भी ऐसी गलतियां और कई अन्य राष्ट्रीय हिंदी दैनिकों देखी है…प्रिंट में यदि कोई कमी आती है तो मुझे हार्दिक कष्ट होता है क्यूंकि मुझे लगता है की कहें न कहीं पत्रकारिता की मूल भावना अभी सिर्फ प्रिंट में ही बची हुई है ..हाँ रंजन भाई ..राजनितिक विधवा ..उन दलों के लिए एक उपमान के रूप में प्रयोग किया जा रहा है..जो हाशिये पर चली गयी हैं…आलेख सामयिक और सार्थक लगा..
“सिर्फ़ ३० दिनों के लिये बचा है पानी”
ismen kya galat hai,
darasal yah mujhe sahi lag rahaa hai. kripya batayen,
main samajh paane men asamarth hoon.
dhanyavaad.
aapke lekh bilkul hi sahi hai.
@उड़न तश्तरी जी – अखबार के लिये समय निकालना बहुत जरुरी है क्योंकि आसपास की छोटी बड़ी घटनाओं का पता इन्हीं से चलता है।
@बालसुब्रमण्यम जी – अगर इनकी गलतियों को देखा जाये तो NBT तो बहुत सारी गलतियां करता है, आप उन्हें ढूँढ़ते हुए थक जायेंगे पर गलतियां खतम होने का नाम नहीं लेंगी। मैं भी हिन्दी का कोई बहुत बड़ा ज्ञाता तो नहीं हूँ पर गलतियों को देखकर चुप भी नही रहा जाता है।
@संगीताजी – अब दस्तखत कौन कौन कर सकता है ये तो NBT ही बेहतर बता सकता है।
aa.gltiya nikalkar bhut acha kam kar rhe hai .logo ko pata chlna hi chahiye .