अब आज हम निकल पड़े कुल्लू और मनिकरण की सैर को। मनाली से हम लगभग ११ बजे निकल पाये हम वहीं व्यास नदी के किनारे पर बैठ कर उसके कल कल निर्मल जल को निहार रहे थे और हमारा बेटा उसकी लहरों के साथ अठखेलियां कर रहा था। पर थोड़ी देर बाद हमें निकलना ही पड़ा क्योंकि समय ज्यादा हो चला था और फ़िर एक दिन और था नदी के पानी के साथ खेलने के लिये।
थोड़ी दूर जाने के बाद एक ढाबे पर चाय नाश्ते के लिये टेक्सी रोकी और थोड़ी दूर जाने के बाद ही वैष्णोमाता का मंदिर पड़ा, वहां पर मंदिर तो बहुत ही भव्य बन रहा था, लगभग ४ मंजिला अलग अलग भगवानों के मंदिर बना रखे थे और लंगर भी चल रहा था, कहते हैं कि पार्वती जी ने यहां तपस्या की थी जब उनका नाम उमा था। पर मंदिर का नाम वैष्णोमाता के नाम पर क्यों था हमें पल्ले नहीं पड़ा तो जितने भी पुजारी थे हमने सबसे यही सवाल पूछा कि यहां का महात्म्य क्या है, एक पुजारी तो गुस्सा हो गये कि आपने यह सवाल पूछने की हिमाकत कैसे की, पर बाकी सभी पुजारियों के एक ही रटे रटाये जबाब थे कि एक बाबाजी ने तपस्या की थी और उन्हें वहां पर वैष्णो देवी ने दर्शन दिये थे। पर हमारे मन को और दिल को यह मंदिर बिल्कुल नहीं जमा, ऐसा लगा कि धर्म की दुकान में आ गये हैं।
फ़िर शाल के कारखानों पर टेक्सी रुकी जहां पर हमने पशमीने की शाल देखी, लग अच्छी रही थी पर असली और नकली की पहचान न होने के कारण हमने रिस्क लेना ठीक न समझा। वहीं पर एक कोल्डड्रिंक की दुकान थी जो १० रुपये का कोल्डड्रिंक १५ रुपये में बेच रहा था तो बस हमारा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उससे हड़्का कर पूछने लगे कि भाई ये क्या लगा रखा है क्या यहां भारत का कानून नहीं चलता है क्या जो सीधे इतना मुनाफ़ा कमाने के चक्कर में हो। पर वही एक जबाब लेना है तो लो नहीं तो आगे बड़ लो आखिर टूरिस्ट सीजन है न।
थोड़ी आगे जाने के बाद रिवर राफ़्टिंग पाईंट आने लगे थे। हमें पानी में जाने से डर लगता है इसलिये किनारे से ही दूसरे लोग रिवर राफ़्टिंग कर रहे थे, उन्हें निहार कर ही अपने मन को संतुष्ट कर रहे थे।
फ़िर चल दिये सीधे मनिकरण और साथ में चल रही थी व्यास नदी रास्ता बहुत ही खराब था हम लगभग ३.३० बजे पहुंच गये ये जगह मनाली से ८५ किमी दूर है। यहां पर गुरुद्वारा है और मंदिर हैं, यहां पर गरम पानी के दो स्त्रोत भी हैं जिनका तापमान क्रमश: ८४ एवं ९४ डिग्री है, जिनमें चावल, चने और दाल पकायी जाती हैं, एक कुँड में गुरुद्वारे के लंगर का खाना पकता है। जिसमें भक्त भी अपनी पोटली में अपने चने, चावल या दाल पका सकते हैं हमने भी चने पकाये लगभग ३० मिनिट में कच्चे चने बिल्कुल अच्छी तरह से खाने लायक हो गये थे।
यहां की कहानी शिवजी और पार्वती जी की है उन्होंने यहां पर ११,००० वर्षों तक तपस्या की थी और उसी समय पार्वती जी की अंगूठी वहां गिरकर खो गई, तो शिवजी के सारे गण भी उस अंगूठी को ढूंढने में नाकामयाब रहे तो शिवजी को गुस्सा आ गया और अपना तीसरा नेत्र खोल दिया प्रलय आने लगी, तक्षक ने अपना जहर उगलना शुरु किया जिसकी गर्मी से वहां उथल पुथल मच गयी और बहुत सारे मोती माणिक्य धरती पर आ गये, उसीमें पार्वती जी की अंगूठी भी मिल गई। उसी गर्मी से आज भी वहां ये दो स्त्रोत हैं वहां पर नंगे पैर चलना बहुत मुश्किल है क्योंकि इन गरम कुंडों के कारण पूरा फ़र्श बहुत ही गरम रहता है इसलिये वहां लकड़ी के पटिये लगा रखे है।
जय मनिकर्ण साहिब की। भोले बम कहते हुए हम वापिस मनाली की और लौट पड़े।
आपकी कुल्लू सैर का वृतांत रोचक है. लखनऊ के 44 डिग्री की लू में पहाड़ की तस्वीरें देख थोड़ी ठंडक का एहसास हुआ
बहुत अच्छा लगी आप की यह यात्रा, चित्र भी बहुत सुंदर लगे, यह जो गर्म पानी का स्रोत्र है जरुर नीचे कही जवाला मुखी होगा, जो अब शांत हो चुका है.
ओर हां अब भगवान भी चार मंजिला मंदिर मै रहने लगे, ओर सभी मिल कर रह रहे है:) बात भी ठीक है कोन सा भगत किस भगवान की मांग कर बेठे……..
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
अरे यह विडियो तो बहुत छोटा बना है,
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
अच्छा वृतांत ,अच्छी तस्वीरें .
बहुत रोचक विवरण. आपने पुरानी यादों को ताजा कर दिया.
रामराम.
मैं तो यही समझता था कि उमा और वैष्णोमाता एक ही व्यक्ति के दो अलग अलग नाम हैं। दोनो में कोई अन्तर नहीं है। इस लिये चाहे उमा मन्दिर कहें या फिर वैष्णोमाता का मन्दिर क्या फर्क पड़ता है उनमें से कौन सा नाम प्रयोग किया गया है।
@उन्मुक्तजी, आपका कहना सही है पर वहां पर वैष्णोमाता का नाम इसलिये दिया गया है कि धंधा अच्छा चल जाये और यह बात आप वहां जाकर महसूस कर सकते हैं, उमा के नाम पर उनका धंधा अच्छा नहीं चलता।
आपका आलेख पढकर मुझे भी अपनी मनाली यात्रा की याद ताज़ा हो गयी.
सुन्दर यात्रा वृतांत्।
ye bahut acchha anubhav raha maine yaha baithe baithe hi yatra ka anand anubhav kiya. kullu doston ke sath jane ki icchha hui he. JAI SHANKER KI
ye bahut acchha anubhav raha maine yaha baithe baithe hi yatra ka anand anubhav kiya. kullu doston ke sath jane ki icchha hui he. JAI SHANKER KI
ye bahut acchha anubhav raha maine yaha baithe baithe hi yatra ka anand anubhav kiya. kullu doston ke sath jane ki icchha hui he. JAI SHANKER KI
manikarn jaate samay jo nadi saath chalati hai wah 'PARVATI NADI' hai jo BHUNTAR me aa kar 'WYAAS' me milati hai.
यह पोस्ट पढ़कर कुछ साल पहले की मनाली यात्रा की यादें ताजा हो गयीं। व्यास नदी का पानी , मणिकर्ण और भी तमाम यादें!
अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर अपनी खास पहचान बनाने वाला हिमाचल प्रदेश का छोटा शहर ’मनाली’ प्राकृतिक दृश्य का एक नायाब खजाना है, और देश व विदेश के सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। मनाली मनुआलय से बना है। ’मनुयालय का अर्थ मनुऋषि का घर है। मान्यता है कि यहीं से महाऋषि मनु ने सुष्टि की रचना शुरू की। कुल्लू मनाली में चारों ओर हरे-भरे वन तथा हिमाच्छादित पहाड़ों की चोटियाँ हैं, चाहे कोई भी ऋतु हो मनाली कर मौसम में आकर्षण है।
http://www.aajkiawaaz.com/tour-and-travel/tour-and-travel-news/india-tour/775-manali-travel.html
अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर अपनी खास पहचान बनाने वाला हिमाचल प्रदेश का छोटा शहर ’मनाली’ प्राकृतिक दृश्य का एक नायाब खजाना है, और देश व विदेश के सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। मनाली मनुआलय से बना है। ’मनुयालय का अर्थ मनुऋषि का घर है। मान्यता है कि यहीं से महाऋषि मनु ने सुष्टि की रचना शुरू की। कुल्लू मनाली में चारों ओर हरे-भरे वन तथा हिमाच्छादित पहाड़ों की चोटियाँ हैं, चाहे कोई भी ऋतु हो मनाली कर मौसम में आकर्षण है।
http://www.aajkiawaaz.com/tour-and-travel/tour-and-travel-news/india-tour/775-manali-travel.html
सुन्दर यात्रा वृतांत्