हमारे एक मित्र इन्दौर में थे एक शाम छुट्टी के दिन बोर हो रहे थे तो बोले कि चलो टल्ले खाकर आते हैं जेल रोड तक। तो उनकी छोटी बिटिया उनके पीछे पड़ गई कि मुझे भी टल्ले खाना है मैंने आज तक टल्ले नहीं खाये हैं आप तो रोज अकेले अकेले ही टल्ले खाकर आ जाते हो। हमारे मित्र मुस्कराकर रह गये और अपनी छोटी बिटिया को साथ में लेकर निकल पड़े टल्ले खाने। एक घंटे बाद वापिस घर पर आये तो बिटिया ने अपनी मम्मी से शिकायत की, कि पापा ने मुझे टल्ले नहीं खिलवाये खुद तो रोज अकेले अकेले खाकर आ जाते हैं, तब उनकी मम्मी ने समझाया कि बेटी इसे ही टल्ले खाना कहते हैं उसने सोचा था कि पानी पुरी या भेल चाट से तो कुछ ज्यादा ही लाजबाब स्वाद होता होगा इस टल्ले का, तभी तो पापा अकेले याद दोस्तों के साथ टल्ले खाने जाते हैं।
मालवा में आमतौर पार टाइमपास के लिये घूमने को टल्ले खाना कहते हैं।
अपुन तो आज तक़ टल्ले ही खा रहे हैं।
हम्म…बहुत बढ़िया टल्ले खिलाए आज तो आपने.
bhut mast badhiya
🙂 pehli baar suna yah shabd
Agli baar jana, to hamen bhi batana.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
badhiya
वाह जी आप तो पूरे मालवी लगते हो. हर इंदौरी की आदत होती है टल्ले खाने जाने की. जैसे पान खाने जाता है.:) बहुत बढिया.
रामराम.
अरे वाह.. हमारे यहां भी लोग टल्ले ही खाते रहते हैं.. 🙂
अच्छा बता दिये, वरना हम तो इंदौर पहुँचने वाले थे ताऊ के आमंत्रण पर टल्ले खाने.
एक नया शब्द मिला,आभार.
मालवा ही नहीं जी,
यह हिन्द भर उपयोग किया जाता है और इस क्रिया को कहा जाता है- "टल्ले नवेसी" याने टाइम पास
🙂