महाकवि कालिदास के बारे में और भी किवदंतियां प्रचलित हैं-
एक किंवदन्ती के अनुसार इनकी मृत्यु वेश्या के हाथों हुई। कहते हैं कि जिस विद्योत्तमा के तिरस्कार के कारण ये महामूर्ख से इतने बड़े विद्वान बने, उसकी ये माता और गुरु के समान पूजा करने लगे। ये देखकर उसे बहुत दु:ख हुआ और उसने शाप
दे दिया कि तुम्हारी मृत्यु किसी स्त्री के हाथ से ही होगी।
एक बार ये अपने मित्र लंका के राजा कुमारदास से मिलने गये। उन्होंने वहाँ वेश्या के घर, दीवार पर लिखा हुआ, ’कमले कमलोत्पत्ति: श्रुयते न तु दृश्यते’ देखा। कालिदास ने दूसरी पंक्ति ’बाले तव मुखाम्भोजे कथमिन्दीवरद्वयम़्’ लिखकर श्लोक पूर्ण कर दिया। राजा ने श्लोक पूर्ति के लिये स्वर्णमुद्राओं की घोषणा की हुई थी। इसी मोह के कारण वेश्या ने कालिदास की हत्या कर दी। राजा को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने भी आवेश में आकर कालिदास की चिता में अपने प्राण त्याग दिये।
परन्तु कालिदास की रचनाओं का अध्ययन करने पर यह किंवदन्ती नि:सार प्रतीत होती है; क्योंकि इस प्रकार के सरस्वती के वरदपुत्र पर इस प्रकार दुश्चरित्रता का आरोप स्वयं ही खण्डित हो जाता है।
एक अन्य जनश्रुति के अनुसार कालिदास विक्रमादित्य की सभा के नवरत़्नों में से एक थे । इस किंवदन्ती का आधार ज्योतिर्विदाभरण का यह श्लोक है –
धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंहशकुर्वेतालभट्टं घटखर्परकालिदासा:।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपते: सभायां रत़्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य॥
वैसे तो कालिदास के काल के बारे में विद्वानों में अलग अलग राय हैं परंतु कालिदास के काल के बारे में एक तथ्य प्रकाश में आया है, जिसका श्रेय डॉ. एकान्त बिहारी को है। १८ अक्टूबर १९६४ के “साप्ताहिक हिन्दुस्तान” के अंक में इससे सम्बन्धित कुछ सामग्री प्रकाशित हुई। उज्जयिनी से कुछ दूरी पर भैरवगढ़ नामक स्थान से मिली हुई क्षिप्रा नदी के पास दो शिलाखण्ड मिले, इन पर कालिदास से सम्बन्धित कुछ लेख अंकित हैं। इनके अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि “कालिदास अवन्ति देश में उत्पन्न हुए थे और उनका समय शुड़्ग़ राजा अग्निमित्र से लेकर विक्रमादित्य तक रहा होगा।” इस शिलालेख से केवल इतना ही आभास होता है कि यह शिलालेख महाराज विक्रम की आज्ञा से हरिस्वामी नामक किसी अधिकारी के आदेश से खुदवाया गया था।
शिलालेखों पर लिखे हुए श्लोकों का भाव यह है कि महाकवि कालिदास अवन्ती में उत्पन्न हुए तथा वहाँ विदिशा नाम की नगरी में शुड़्ग़ पुत्र अग्निमित्र द्वारा इनका सम्मान किया गया था। इन्होंने ऋतुसंहार, मेघदूत, मालविकाग्निमित्र, रघुवंश, अभिज्ञानशाकुन्तलम़्, विक्रमोर्वशीय तथा कुमारसम्भव – इन सात ग्रंथों की रचना की थी। महाकवि ने अपने जीवन का अन्तिम समय महाराज विक्रमार्क (विक्रमादित्य) के आश्रय में व्यतीत किया था। कृत संवत के अन्त में तथा विक्रम संवत के प्रारम्भ में कार्तिक शुक्ला एकादशी, रविवार के दिन ९५ वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हुई। कालिदास का समय ईसा पूर्व ५६ वर्ष मानना अधिक उचित होगा।
कालिदास के बारे मे जानकारी मिली — अच्छा लगा.
बहुत अच्छा -कृपा कर संस्कृत के श्लोको का हिन्दी अनुवाद भी दिया करें -भले समय थोडा अधिक लगे . कालिदास कौन थे ,कहाँ के थे यद्यपि यह विवादास्पद है मगर उनकी रचनाओं की श्रेष्ठता और गुणवता में कहीं कोई विवाद नहीं है -हम निश्चिंत होकर उनकी रचनाओं का तो अवगाहन कर ही सकते हैं -आम खाने से मतलब है मेरा !
@अरविंदजी – आपका स्नेह बना रहे और श्लोकों का हिन्दी अनुवाद का अब आगे से ध्यान रखूँगा, वैसे तो मेरी कोशिश रहती है कि अनुवाद के साथ ही प्रकाशित किया जाये पर कई बार ऐसा नहीं हो पाता है।
bahut hi uttam jankari aap muhaiya karwa rahe hain……..dhanyawaad……….unke kuch khas charchit kavya ko hindi mein aur padhwa dein to hum aapke shukragujar honge.
सुंदर ज्ञानवर्द्धक आलेख !!
आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। साधुवाद।
Kali das g k bare mai jankar bahut achha laga. mujhe apna project tyar karne mai is se kafi help mili thanx.
कमले कमलोत्पत्ति: श्रुयते न तु दृश्यते
अर्थ – कमल में ही कमल का फूल खिलते नहीं देखा है.
बाले तव मुखाम्भोजे कथमिन्दीवरद्वयम़्
अर्थ – हमारा चेहरा भी तो कमल के सामान है और हमारे चहरे में ही ये आखें कमल के सामान खिल रहीं हैं…