कालिदास ने कितने ग्रन्थों की रचना की, यह भी एक विवादित प्रश़्न है। इस विवाद का कारण है संस्कृत साहित्याकाश में एक से अधिक कालिदासों का होना। राजशेखर (१० भीं शताब्दी ई.) तक कम से कम तीन
एकोऽपि जीयते हन्त कालिदासो न केनचित़्।
श्रृङ्गारे ललितोद़्गारेकालिदास्त्रयी किमु॥
यह निर्विवाद रुप से सिद्ध है कि सात रचनाएँ तो निश्चित रुप से उसी कालिदास की हैं जो अग्निमित्र के समय में थे, शेष रचनाएँ अन्य कवियों की हैं, जिन्होंने सम्भवत: कालिदास की उपाधि धारण की होगी। इन सात रचनाओं में तीन नाटक, दो महाकाव्य तथा दो गीति काव्य हैं। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
१. ऋतुसंहार – यह कालिदास की सर्वप्रथम रचना मानी जाती है; क्योंकि इसकी शैली उस स्तर की नहीं है, जिस स्तर की अन्य रचनाओं की है। वस्तुत: ऋतुसंहार का मुख्य उद्देश्य भारतवर्ष की ऋतुओं से परिचय कराना था, श्रृंगार की प्रधानता नहीं। इसमें छ: सर्ग और १४४ श्लोक हैं, जिसमें कवि ने बड़े ही मनोरम ढंग से ग्रीष्म से प्रारम्भ करके बसन्त तक छ: ऋतुओं का वर्णन किया है। शरद वर्णन निस्सन्देह ऋतुसंहार का श्रेष्ठ अंश है।
२. मेघदूत – मेघदूत कालिदास की एक सशक्त रचना है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यदि कालिदास की अन्य रचनाएँ न होतीं, केवल अकेला मेघदूत ही होता तो भी उनकी कीर्ति में कोई अन्तर न पड़ता। संस्कृत-साहित्य के गीति-काव्यों में सर्वप्रथम इसकी ही गणना होती है। कालिदास की कल्पना की ऊँची उड़ान और परिपक्व कला का यह एक ऐसा नमूना है, जिसकी टक्कर का विश्व में दूसरा नहीं है। मेघदूत ’मंदाक्रांता’ में लिखा हुआ १२१ श्लोकों का एक छोटा सा काव्य है। इसके दो भाग हैं – पूर्वमेघ और उत्तरमेघ।
३. कुमारसम्भव – यह महाकवि कालिदास का प्रथम महाकाव्य है। इसकी रचना ऋतुसंहार तथा मालविकाग्निमित्र के बाद तथा रघुवंश और अभिज्ञानशाकुन्तलम़् से निश्चित रुप से पहले की है। कुमारसम्भव के १७ सर्गों में शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय के जन्म तथा उसके द्वारा देवसेना का सेनापति बन कर तरकासुर के वध की कहानी वर्णित है। काव्यशास्त्रों में उदाहरण केवल आटः सर्गों तक ही मिलते हैं तथा नाम के अनुसार कुमार का जन्म अष्टम सर्ग में ही हो जाता है और यहीं काव्य का उद्देश्य भी पूर्ण हो जाता है। कुछ विद्वान तो केवल सप्तम सर्ग तक ही कालिदास की रचना मानते हैं; क्योंकि अष्टम सर्ग में कवि ने जगज्जननी माता पार्वती के सम्भोग श्रंगार का जितना सूक्ष्म वर्णन किया है, वैसा कालिदास जैसे कवि अपने आराध्य देव का नग्न चित्रण नहीं कर सकते थे। इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है कि श्रंगार के नग्न वर्णन के कारण पार्वती जी क्रुद्ध हो गयी थीं और उन्होंने कालिदास को शाप दे दिया था। इसी कारण यह ग्रन्थ अपूर्ण ही रह गया था। सच्चाई चाहे जो हो, परन्तु इस काव्य के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। कुमारसम्भव के सारे प्रेम का वेग मंगल-मिलन में समाप्त हुआ है।
४. रघुवंश – कुछ विद्वान रघुवंश को कालिदास की अन्तिम कृति मानते हैं। परन्तु ध्यान से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि अभिज्ञानशाकुन्तलम़् इनकी अन्तिम कृति थी और रघुवंश उससे पहली। इसमें १९ सर्ग हैं, जिसमें महाकवि ने सूर्यवंशीय राजा दिलीप से अग्निवर्ण तक २९ राजाओं का वर्णन किया है। रघुवंश एक चरित्र महाकाव्य है। इसमें दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम आदि राजाओं को आदर्श सम्राटों के रुप में चित्रित किया गया है। इसी प्रकार इन्दुमती, सीता, कुमुद़्वती आदि रानियों का भी वर्णन है। अलंकारों और रसों का पुष्ट परिपाक इस महाकाव्य में सर्वत्र देखने को मिलता है। कालिदास जिस श्लोक के कारण दीपशिखा कालिदास कहलाये वह श्लोक भी रघुवंश में ही इन्दुमती स्वयंवर में है। उपमा, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों की छटा के साथ वीर, करुण, वीभत्स, श्रंगार, आदि रसों की छटा भी दर्शनीय है।
एक बहुत बेहतरीन और उम्दा आलेख.
बहुमूल्य जानकारी!
अमूल्य !
बहुत सुंदर जानकारी.
रामराम.
अच्छी श्रृंखला चल रही है .. धन्यवाद !!
कालिदास जी के विषय में पहले से इतर जानकारी मिल रही है आपकी पोस्टों से। धन्यवाद।
बहुमूल्य जानकारी!!
धन्यवाद्!!
मेघदूत में छंद का नाम ठीक कर लें। मंदाक्रांता होना चाहिये।
कालिदास के ग्रंथों को लेकर विवाद तो है । जब हम लोग उज्जैन में पढ़ते थे तब डॉ. कमलेश दत्त त्रिपाठी के संस्कृत विभाग के छात्र कुमार सम्भव को विनोद मे कुमार सम्भोग कहते थे । आप्के द्वारा प्रदत्त यह परिचय महत्वपूर्ण है ।
सुन्दर जानकारी दी है आपने |
हिंदी मैं सबसे प्रमाणिक अनुवाद कौन सी है, ये भी बताते तो अच्छा रहता |
आप का दिल से धन्यवाद इस बहुमूल्य जानकारी के लिये, बहुत अच्छा लगा.
@रविकांतजी – मंदाक्रांता ठीक कर लिया गया है, धन्यवाद आपका मार्गदर्शन के लिये।
@शरद जी – मुझे जहाँ तक याद है अभी कुछ साल पहले तक कमलेशदत्त त्रिपाठी जी कालिदास अकादमी के अध्यक्ष थे, संस्कृत विभाग में सेवा देने के बाद, आपने उनका स्मरण करवा दिया, धन्यवाद आपको। विनोद तो छात्र ही करेंगे 🙂
@राकेशजी- हिंदी में सबसे प्रमाणिक अनुवाद कौन सा है, यह मैं अभी नहीं बता सकता क्योंकि मुझे भी पता नहीं है पर मैं इस पर शोध करने का प्रयत़्न करुँगा।
@राजजी – आप स्वस्थ होकर वापिस आये आपके स्वास्थ्य के लिये हमारी शुभकामनाएँ।