प्रेमाश्रु – ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी पर्वत को तपा डालती है तथा जब प्रथम वर्षा की बूँदें उस पर गिरती हैं तो उसमें से वाष्प निकलती है। आषाढ़ में लम्बे समय के बाद पर्वत जब मेघ से मिलता है, तो उसकी बूँदों से पर्वत से गर्म-गर्म वाष्प निकलती है। कवि ने कल्पना की है कि वे विरह के आँसू निकल रहे हैं।
पत्थरों से टकराने के कारण नदियों का जल हल्का व
स्वास्थ्यकारी माना जाता है।
इन्द्रधनुष वल्मीक के भीतर स्थित महानाग की मणि के किरण समूह से उत्पन्न होता है। कुछ इसे शेषनाग के कुल के सर्पों के नि:श्वास से उत्पन्न बताते हैं। वराहमिहिर ने इन्द्रधनुष की उत्पत्ति के विषय में इस प्रकार लिखा है – ’सूर्यस्य विविधवर्णा: पवनेन विघट्टिता: करा: साभ्रं वियति धनु:संस्थाना ये दृश्यन्ते तदिन्द्रधनु:।’ अर्थात जो सूर्य की अनेक वर्णों की किरणें वायु से बिखरी हुई होकर मेघ-युक्त आकाश में धनुष के आकार की दिखलायी देती हैं, उसे इन्द्रधनुष कहते हैं।
ग्रामीण स्त्रियाँ नागरिक स्त्रियों की अपेक्षा भोली-भाली होती हैं तथा वे कटाक्षपात आदि श्रृंगारिक चेष्टाओं से अनभिज्ञ रहती हैं।
आम्रकूट पर्वत – आम्रकूट नाम वाला पर्वत, इसका यह नाम सार्थक है, क्योंकि इसके आस-पास के जंगलों में आम के वृक्ष अधिकता में पाये जाते हैं। यह विन्ध्याचल पर्वत का पूर्वी भाग है। यहाँ से नर्मदा नदी निकलती है। आधुनिक अमरकण्टक को आम्रकूट माना जाता है।
विमखो न भवति – कोई भी व्यक्ति पहले किये गये उपकारों को नहीं भूलता है और फ़िर यदि कोई मित्र, जिसने उसके ऊपर उपकार किये हैं, उसके पास आता है तो वह उन पूर्व उपकारों को सोचकर उसका स्वागत करता है तथा यथासम्भव सहायता भी करता है।
बहुत बढ़िया श्रृंखला है यह..अच्छा लगा रहा है पढ़कर.
अमूल्य जानकारियों की श्रृंखला है यह । आभार ।
लाजवाब जानकारी परक श्रंखला के लिये बहुत धन्यवाद.
रामराम.
अमूल्य शव्दो का अर्थ बता कर आप हमारी जानकारी बढा रहे है, हमारा ग्याण बढा रहे है. इस के लिये आप का धन्यवाद