किरात आदि कुछ विशेष जातियाँ जंगल में घूमती रहती हैं। उनकी स्त्रियाँ लकड़ी, फ़ल, शहद आदि एकत्र करने के लिये इधर-उधर घूमती रहती हैं। वहीं जंगल में पत्तों की शय्या बनाकर कुंञ्जों में अपने पति के साथ रमण
करती हैं। यक्ष मेघ से उन कुञ्जों को देखकर आनन्द लेने का संकेत करता है।
मेघों की गति – मेघ जब जल से युक्त रहते हैं तो उनकी गति धीमी रहती है। वर्षा द्वारा जल बरसा देने पर वे हल्के हो जाते हैं और उनकी गति तीव्र हो जाती है।
रेवा – नर्मदा का ही दूसरा नाम रेवा है। यह आम्रकूट पर्वत से निकलती है। भारतवर्ष की पवित्र सात नदियों में से यह भी एक है। एक स्थल पर इस प्रकार कहा गया है – ’गंगा स्नानेन यत्पुण्यं रेवादर्शनेन च।”’ अर्थात गंगा स्नान करने जितना पुण्य रेवा के दर्शन करने मात्र से मिलता है।
नर्मदा जामुन के निकुञ्जों में होकर बहती है। आषाढ़ मास में जामुन के फ़ल पकते हैं। निकुञ्ज नर्मदा के वेग को मन्द कर देते हैं तथा जामुन का फ़ल उसके जल में मिश्रित हो जाता है, जिस कारण उसका जल स्वास्थ्यवर्धक हो जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार वमन करने के बाद कफ़ का शोषण करने के लिये लघु, कड़वा और कषाय पानी पिलाने से वात प्रकोप नहीं होता।
मानयिष्यन्ति – प्राय: पुरुष स्त्रियों का आलिंगन करने के लिये उतावले रहते हैं और वे ही अपनी ओर से पहल किया करते हैं। परन्तु जब मेघ की गर्जना को सुनकर भयभीत होकर स्त्रियाँ स्वयं ही अपनी ओर से पहल करके अपने प्रिय सिद्ध पुरुषों का आलिंगन करेंगी, तो सिद्ध पुरुष बहुत ही प्रसन्न होंगे। इस कारण मेघ को धन्यवाद देंगे और उसके कृतज्ञ होंगे।
शुक्लापाङ्ग – मोरों की आंखे के कोये (कोने) श्वेत होते हैं इसलिये इन्हें शुक्लापाङ्ग भी कहते हैं।
ऐसा भी प्रसिद्ध है कि वर्षा ऋतु में मयूर जब मस्त होकर नाचते हैं, तो उनकी आंखों से आँसू गिरते हैं, जिन्हें पीने से मोरनी गर्भवती हो जाती हैं।
मत्त मयूर-नर्तन से आँसू गिरें और उन्हें पीकर मोरनी गर्भवती हो – यह तो कालिदास की कल्पना का चमत्कार ही होगा ।
मोहक प्रविष्टि । आभार ।
रोचक
सुंदर जानकारी देता आलेख .. रोचक श्रृंखला चल रही है !!
ऐसा भी प्रसिद्ध है कि वर्षा ऋतु में मयूर जब मस्त होकर नाचते हैं, तो उनकी आंखों से आँसू गिरते हैं, जिन्हें पीने से मोरनी गर्भवती हो जाती हैं।
सही लिखा है। जिन्हें यकिन न हो प्राणी जगत के जानकारों से अवश्य संपर्क करें ।
शोधपरक रचना के लिए साधुवाद ।
badhiya jankari uplabdh karwa rahe hain…………..shukriya.
वाह, यहां पण्डा गंगा किनारे दान की बात करते रेवाखण्डे की बात भी करता है। जाने क्यों नर्मदा को भी याद करता है। वैसे ही जैसे आदिशंकर वारणसी में नर्मदा स्तुति कर रहे थे।
कालिदास के बहाने देश की एकता याद हो आई!
मानयिष्यन्ति – प्राय: पुरुष स्त्रियों का आलिंगन करने के लिये उतावले रहते हैं और वे ही अपनी ओर से पहल किया करते हैं। परन्तु जब मेघ की गर्जना को सुनकर भयभीत होकर स्त्रियाँ स्वयं ही अपनी ओर से पहल करके अपने प्रिय सिद्ध पुरुषों का आलिंगन करेंगी, तो सिद्ध पुरुष बहुत ही प्रसन्न होंगे। इस कारण मेघ को धन्यवाद देंगे और उसके कृतज्ञ होंगे।
रस्तोगी जी आप हमेशा ही हमे अच्छी अच्छी बाते कालिदास के गंथ से बताते है, लेकिन आज की यह बात बहुत अच्छी लगी, ओर आजमाई हुयी