करती थीं। वेश्याएँ अपने शरीर पर इत्र आदि सुगन्धित द्रव्य इतनी मात्रा में लगाती थीं कि जिससे उस पर्वत की कन्दराएँ सुगन्धित हो उठती थीं।
उज्जयिनी – उज्जयिनी प्राचीन काल में अवन्ति देश की राजधानी थी, यह शिप्रा नदी के तट पर स्थित है और यहाँ पर महाकाल शंकर का मन्दिर है। अनेक स्थलों पर इसे राजा विक्रमादित्य की राजधानी भी कहा गया है। इसे विशाला तथा अवन्ति भी कहते हैं। मोक्ष प्रदान करने वाली सात पुरियों में इसकी भी गणना की गयी है –
अयोध्या मथुरा मायाकाशी काञ्ची ह्मवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका:॥
इस प्रकार इस श्लोक से प्रकट होता है कि कालिदास का उज्जयिनी के प्रति विशेष झुकाव है; क्योंकि मेघ के सीधे मार्ग में उज्जयिनी नहीं आती है, फ़िर भी यक्ष उससे आग्रह करता है कि तू उज्जयिनी होकर अवश्य जाना, भले ही तेरा मार्ग वक्र हो जाये।
उज्जयिनी का वर्णन – उज्जयिनी की सुन्दरियाँ शाम को महलों पर खड़ी होती हैं या घूमती हैं। (यक्ष मेघ से कह रहा है -)जब तुम्हारी बिजली चमकेगी तो उनकी आँखें भय के कारण चञ्चल हो उठेंगी, अत: यदि तुमने इन दृश्य को नहीं देखा तो वास्तव में तुम जीवन के वास्तविक आनन्द से वञ्चित रह जाओगे।
कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ९
वेत्रवती – प्राचीन कालीन वेत्रवती को आधुनिक युग की बेतवा नाम से जाना जाता है और उसके किनारे विदिशा नगर था जो दशार्ण देश की राजधानी था। यह विन्ध्याचल के उत्तर से निकलती है तथा भिलसा (प्राचीन काल का विदिशा) में होती हुई कालपी के निकट यमुना नदी में मिल जाती है।
विदिशा नगरी में वेश्याएँ स्वच्छन्द विहार करती हुई, पर्वत की कन्दराओं में पहुँचकर वहाँ के नागरिकों के साथ रमण
कालिदास-मेघदूत की जानकारियों का धन्यवाद ।
बहुत आभार इस श्रृंखलाबद्ध जानकारी का!
बढियां चल रही है यह श्रृखला
बहुत ही सुन्दर जान्कारी दी है………………आभार्।