प्राप्त्तवानीरशाखम़् – ग्रीष्म ऋतु आने पर नदी का प्रवाह कम हो जाता है और किनारे छोड़ देता है, किन्तु फ़िर भी झुकी हुई बेंत की शाखायें उसका स्पर्श किये रहती हैं।
सलिलवसनम़् – यहाँ कवि ने कल्पना की है कि जिस प्रकार कोई प्रियतम नवयुवती के नितम्बों से वस्त्र खिसकता है और वह नवयुवती उस वस्त्र को अपने हाथों में पकड़ लेती है
उसी प्रकार मेघ ने अपनी प्रेयसी गम्भीरा के जल रुपी वस्त्र को उसके नितम्बों से हटा दिया है। उसका कुछ भाग ही गम्भीरा के हाथ में रह गया है। इस प्रकार यहाँ कवि ने मेघ में नायक का, गम्भीरा में नायिका का, वानीर शाखा में हाथ का, जल में नील वस्त्र का और तट में नितम्ब का आरोप किया है। (गम्भीरा नाम की एक छोटी सी नदी, जो कि मालव देश में ही बहती है और क्षिप्रा की सहायक नदी है।)
देवगिरी पर्वत – इस पर्वत पर भगवान कार्तिकेय स्थायी रुप से निवास करते हैं, वहीं कार्तिकेय का मन्दिर भी है।
व्योमगड़्गा – गंगा को आकाश, पृथ्वी, और पाताल तीनों लोकों में स्थिति मानी जाती है तथा क्रमश: देवता, मनुष्य और नागों का सन्ताप हरती है। इसलिये इसे त्रिपथगा भी कहते हैं तथा क्रमश: आकाश गंगा, भागीरथी गंगा और भोगवती गंगा भी कहते हैं।
नवशशिभूता – यहाँ नवशशिभूता शब्द का प्रयोग करके महाकवि ने पौराणिक कथा की और संकेत किया है, समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हलाहल का शिव ने पान किया था तथा उसके प्रभाव को शान्त करने के लिये समुद्र मंथन से निकले हुये चन्द्रमा को उन्होंने धारण किया था। इसलिये इन्हें नवशशिभूता कहते हैं।
वैदिक साहित्य में यद्यपि शिव और चन्द्रमा का उल्लेख है, परन्तु शिव द्वारा चन्द्रमा को धारण करने का उल्लेख नहीं है, वाल्मीकि रामायण में समुद्र मंथन की कथा है, परन्तु शिव द्वारा चन्द्रमा को धारण करने का वर्णन नहीं है। यह वर्णन विष्णुपुराण १/९/८२-९७ में वर्णित है।
उचित यह हुआ होता की पहले मेघदूत का सार संक्षेप आप अपने आडियेंस को बताते -फिर इन उद्धरणों को विस्तार से -अन्यथा ये प्रसंग से कटे कटे और संदर्भ हीन से लग रहे हैं उनके लिए जिन्होंने इस महान ग्रन्थ के बारे में पहली बार जाना है !
@अरविंदजी – कृपया यहाँ सार देखें
http://kalptaru.blogspot.com/2009/09/blog-post_02.html
अगर और भी जरुरत हो तो बताईये।
आप के इस ब्लाग से संस्कृत और संस्कृति को जानने का अवसर मिल रहा है। और कालिदास के कृतित्व को समझने का भी।
बहुत सुंदर और सराहनिय प्रयास. शुभकामनाएं.
रामराम.
bahumoolya jankari uplabdh karwa rahe hain……….shukriya.
भाई बहुत ही सुंदर काम कर रहे है, इअतने कठीन शव्दो का अर्थ हमे समझा कर, कभी कालिदास ओए शकुंतला के बारे भी लिखना.
धन्यवाद
वाह…वाह….।
अद्भुत, अभिनव प्रयोग।
हिन्दी-दिवस की शुभकामनाएँ!
सराहनिय प्रयास…!!