शाड़र्गिण: वर्णचौरे – कृष्ण के धनुष का नाम शाड़र्ग है, इसलिये उसे शाड़र्गी कहते हैं। कृष्ण का वर्ण श्याम है तथा मेघ का वर्ण भी श्याम है; अत: उसे कृष्ण के वर्ण को चुराने
गगनतय: – दिव्य सिद्ध गन्धर्व आदि कुछ देव योनियाँ आकाश में विचरण करती है; अत: उनके लिये गगनगति कहा गया है।
कवि ने कल्पना की है कि जब आकाश में विचरण करने वाले मेघ चर्मण्वती के प्रवाह को देखेंगे तो ऐसा प्रतीत होगा कि मानो वह पृथ्वी का मोतियों का हार हो, जिसमें बीच में इन्द्रनील मणि पिरोया गया हो।
कुन्द्पुष्प श्वेत होता है और भ्रमर उसके पीछे मतवाले हो जाते हैं। यदि कोई कुन्द की शाखा को हिला दे तो भ्रमर भी शाखा के पीछे-पीछे दौड़ते हैं। मेघ के दर्शन से दशपुर की स्त्रियों के नेत्र ऐसे लग रहे हैं जैसे श्वेत कुन्द पुष्प के साथ-साथ भ्रमर चल रहा हो।
दशपुर – यह रन्तिदेव की राजधानी थी। इसकी स्थिती के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ इसे आधुनिक धौलपुर दशपुर मानते हैं और कुछ आधुनिक मन्दसौर मानते हैं।
ब्रह्मवर्त – मनुस्मृति के अनुसार सरस्वती और दृष्दवती नदियों के बीच स्थित स्थान को ब्रह्मवर्त कहा जाता है।
छायया गाहमान: – यक्ष मेघ को निर्देश देता है कि वह छाया द्वारा ही ब्रह्मवर्त में प्रवेश करे, शरीर से नहीं; क्योंकि पवित्र स्थलों को लाँघना नहीं चाहिये। कहा भी है – “पीठक्षेत्राश्रमादीनि परिवृत्यान्यतो व्रजेत़्”। ब्रह्मवर्त भी पूजनीय प्रदेश है अत: इसी कारण उसे न लाँघने को कहा है।
क्षत्रप्रधनपिशुनम़् – कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में मारे गये मनुष्यों के रुधिर से वहाँ की भूमि अब भी लाल है। अब भी वहाँ मनुष्यों के कपाल, अस्थि आदि निकल आते हैं। इसलिये इसे युद्ध के चिह्नों से युक्त कहा गया है।
उत्तम ज्ञान प्रस्तुत हो रहा है यहँ । हम निरन्तर आस्वादन कर रहे हैं इसका । प्रविष्टि का आभार ।
आभार पुनः…हमेशा की तरह!!
ज्ञानदायिनी पोस्ट के लिए आभार!
विवेक जी
सादर वन्दे!
ये जानकर सुखद अनुभूति होती है कि ऐसे प्रयास मनीषियों द्वारा समय समय पर होते हैं जो हमारे वास्तविक ज्ञान को समृद्ध करते हैं, इसके लिए आपको बहुत-बहुत आभार.
रत्नेश त्रिपाठी
बहुत ही सुंदर. आप का धन्यवाद
adbhut jankari uplabdh karwa rahe hain……shukriya.
gyan bhari baaten batane ke liye apka bahut bahut dhanywaad…….