बलिनियमनाभ्युद्यतस्य विष्णो: – बलि प्रह्लाद का पौत्र तथा विरोचन का पुत्र था। वह असुरों का राजा था तथा दानशीलता के लिये प्रसिद्ध था। विष्णु वामन का अवतार लेकर ब्राह्मण के वेश में बलि के यहाँ पहुँचे और तीन पग पृथ्वी की याचना की और बलि के स्वीकार कर लेने पर पहले पग में पृथ्वी और दूसरे
पग में आकाश को नाप लिया। तीसरे पग के लिये जब कोई स्थान न रहा तब बलि ने अपना सिर विष्णु के समक्ष रख दिया। विष्णु ने तीसरे पग में उसे नापकर बलि को पाताल भेज दिया।
दशमुखभुजोच्छ्वासितप्रस्थसन्धे: – यहाँ महाकवि कालिदास ने वा.रा. के उत्तरकाण्ड सर्ग १६ की कथा की ओर संकेत किया है कि जब रावण अपने भाई कुबेर को जीतकर वापिस आ रहा था तभी उसका पुष्पक विमान रुक गया। रावण ने देखा वहाँ शिव के गण खड़े थे। उन्होंने रावण को पर्वत से होकर जाने को मना किया, जब गण नहीं माने तब रावण को बड़ा क्रोध आया और उसने कैलाश पर्वत को उखाड़ फ़ेंकना चाहा। तभी शिव ने पर्वत को अपने पैर के अँगूठे से दबा दिया। पीड़ा से वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा; इसलिये उसे रावण (रुशब्दे – रवीति इति रावण:) कहने लगे। तब उसने शिव की पूजा की तथा शिव ने प्रसन्न होकर चन्द्रहास खड़्ग दी।
त्रिदशवनितादर्पणस्य – कैलाश पर्वत इतना निर्मल है कि उसमें देवाड्गनाएँ अपना मुख देखकर प्रसाधन कर लेती हैं। इसीलिए इसको देवताओं की स्त्रियों का दर्पण कहा गया है। त्रिदश देवता को कहते हैं। इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार दी है – तिस्र: दशा: येषां ते त्रिदशा: अर्थात़् जिनकी तीन अवस्थाएँ शैशव, कौमार्य और युवावस्था होती हैं, उनकी वृद्धावस्था नहीं होती। दूसरे – तृतीया दशा येषां ते अर्थात जिसकी केवल तृतीय ही अर्थात़् युवावस्था ही होती है। तीसरे – त्रि:दश परिमाणमेषामस्तीति त्रिदशा: अर्थात़् तीन बार दश – तीस अर्थात ३० वर्ष की अवस्था वाले, देवता सदा तीस वर्ष की अवस्था के ही रहते हैं।
बहुत ही बढिया श्रृंखला चल रही है .. इतनी मेहनत के लिए आपको धन्यवाद !!
बहुत रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियाँ !
बहुत शानदार श्रंखला, शुभकामनाएं.
रामराम.
bahut hi badhiya jankari,tridash ke hi kitne arth bata diye hain……..adbhut.aage bhi jari rakhein.
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