हलभृत इव – बलराम गौरवर्ण के थे और वे नीले वस्त्र धारण करते थे। जब वे कन्धे पर नीला दुपट्टा रखते थे तो और भी सुन्दर प्रतीत होते थे। इसी की कल्पना कवि ने की है कि कैलाश पर्वत श्वेत है और उस पर काला मेघ बलराम की शोभा को धारण कर लेगा।
हेमाम्भोजप्रसवि – यह मान्यता है कि गंगा आदि के दिव्य जलों में स्वर्णकमल
उगते हैं, परन्तु यहाँ स्वर्णकमल कहने का अभिप्राय यह है कि उषाकाल में सूर्य की किरणों से उनकी छटा सुनहरी हो जाती है।
उगते हैं, परन्तु यहाँ स्वर्णकमल कहने का अभिप्राय यह है कि उषाकाल में सूर्य की किरणों से उनकी छटा सुनहरी हो जाती है।
कल्पद्रुम – कल्पवृक्ष पाँच देव वृक्षों में से है, ऐसी मान्यता है कि यह मन के अनुकूल वस्तुएँ प्रदान करने वाला वृक्ष है –
नमस्ते कल्पवृक्षाय चिन्तितान्न्प्रदाय च।विश्वम्भराय देवाय नमस्ते विश्वमूर्तये॥
लीलाकमलम़् – कमल का पुष्प जब क्रीड़ा के लिए हाथ में लिया जाता है तब उसे लीलाकमल कहते हैं। कालिदास ने कुमारसम्भव और रघुवंश में भी उसका उल्लेख किया है। कमल ग्रीष्म और शरद़् में खिलता है। कुन्द हेमन्त ऋतु में, लोध्र शिशिर में, कुरबक वसन्त में, शिरीष ग्रीष्म में खिलता है तथा कदम्ब वर्षा ऋतु के आने के साथ विकसित होता है। इस प्रकार वर्णन करके महाकवि ने यह दिखाया है कि अलकापुरी में छ: ऋतुओं की शोभा सदा रहती है।
लोध्र प्रसवरजसा – लोध्र पुष्प की धूलि से – यह मुख पर लगाने के लिये पाउडर की तरह प्रयुक्त होता है। इससे स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में भी स्त्रियाँ मुख पर पाउडर का प्रयोग करती थीं।
कितने कल्पनाशील और सृजनप्रेमी थे कालिदास !
अच्छा लगा पुनः पढ़कर.
waah………adbhut varnan.
इस सरलार्थ के लिये आप का धन्यवाद