कुसुमशरजात़् – कामदेव के धनुष का दण्ड इक्षु से बना माना जाता है तथा प्रत्यञ्चा काले काले भौरों की श्रेणी से तथा उससे छोड़े जाने वाले वाण पाँच माने जाते हैं
इष्टसंयोगसाध्यात़् – अलका निवासी ज्वरादि से पीड़ित नहीं होते थे और यदि वे किसी से पीड़ित होते थे तो काम जन्य सन्ताप से
और वह प्रिय मिलन से दूर हो जाता था।
प्रणयकलहात़् – प्रेमी पति के किसी अपराध के कारण पत्नी के रुठ जाने को प्रणयकलह कहा जाता है। यक्षों का पत्नियों से केवल मान के कारण ही क्षणिक वियोग होता था, किसी वैधव्य या प्रवास आदि के कारण नहीं।
वित्तेशानाम़् – वित्त का ईश अर्थात धन का स्वामी। वित्तेश कुबेर और यक्ष दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यक्ष चूँकि कुबेर के कोष की रक्षा करते हैं इसलिए उन्हें भी वित्तेश कहा जाता है।
यौवनात़् – यक्ष देवयोनि मानी जाती है, इसलिए उनमें वृद्धावस्था नहीं होती, वे सदा युवावस्था में ही रहते हैं।
मन्दाकिन्या: – गंगा के अनेक नाम हैं; जैसे – जह्नुतनया, जाह्नवी, भागीरथी, मन्दाकिनी आदि। गंगा स्वर्ग, मर्त्य और पाताल तीनों लोकों में अवस्थित है। स्वर्ग में रहने वाली गंगा को मन्दाकिनी, मर्त्यलोक में स्थित गंगा को भागीरथी तथा पाताल में स्थित गंगा को भोगवती कहते हैं। केदारनाथ से होकर बहने वाली गंगा की धारा को भी मन्दाकिनी कहते हैं। पौराणिक आख्यानों में हिमालय को देवताओं का वास स्थान बताया गया है। इसी कारण कैलाश में स्थित अलका की समीपवर्तिनी गंगा को मन्दाकिनी कहा जाता है।
कनकसिकतामुष्टिनिक्षेपगूडै: – यह एक देशी खेल है । इसमें एक बालक हाथ में मणि आदि को लेकर किसी रेत के ढेर में छिपाता है और दूसरे बालक एकत्रित किये गये रेत में उसे ढूँढते हैं। शब्दार्णव में इस खेल को गुप्तमणि या गूढ़्मणि नाम से पुकारा जाता है।
आप तो कालिदास शब्द कोश से हमें पारंगत कर देगें ! शुक्रिया !
bahut hi badhiya jankari di hai.
बहुत सुंदर प्रयास. शुभकामनाएं.
रामराम.