नीवीबन्धोच्छ्वसितशिथिलम़् – अधोवस्त्र की गांठ के खुल जाने के कारण ढीला। नीवी का अर्थ स्त्रियों के नीचे के वस्त्र की गांठ होता है तथा नीवी अधोवस्त्र को भी कहते हैं।
बिम्बाधराणाम़् – बिम्ब फ़ल के समान (लाल) ओष्ठ वाली स्त्री को बिम्बाधरा कहते हैं। अथवा प्रियतम के बार-बार चुम्बन
करने से अथवा दशनक्षत करने के काराण बिम्ब फ़ल के समान जिनके लाल ओष्टः हैं, वे बिम्बाऽधरा कहलाती हैं, अथवा शब्दार्णव के अनुसार स्त्री विशेष को बिम्बाऽधरा कहते हैं –
करने से अथवा दशनक्षत करने के काराण बिम्ब फ़ल के समान जिनके लाल ओष्टः हैं, वे बिम्बाऽधरा कहलाती हैं, अथवा शब्दार्णव के अनुसार स्त्री विशेष को बिम्बाऽधरा कहते हैं –
विशेषा: कामिनी कान्ता भीरुर्बिम्बाऽधराड़्गना।
विफ़लप्रेरणा – निष्फ़ल वेग वाली – अभिप्राय यह है कि जब रति क्रीड़ा के लिए प्रियतम अपनी प्रेमिकाओं के वस्त्र उतारते हैं तो वे प्रेमिकाएँ उनके सामने नग्नावस्था में लज्जा के मारे शर्म से गढ़ जाती हैं; अत: वे मणियों के प्रज्ज्वलित दीपकों को बुझाने का प्रयास करती हैं और उनके ऊपर मुट्ठी भरकर चूर्ण फ़ेंकती हैं, किन्तु वे दीपक नहीं बुझते; क्योंकि वे तेल के दीपक नहीं हैं वे तो मणिमय दीपक हैं। इस कारण उनका प्रयास निष्फ़ल रहता है। इस प्रकार यहाँ प्रेमिकाओं का मुग्धापन व्यञ्जित होता है, वे मुग्धा भोली-भाली नायिकाएँ हैं, जो प्रियतम के सहवास से लजाती हैं।
सततगतिना – निरन्तर गति करने वाली, वायु सदा संचरण करती रहती है; अत: निरन्तर गतिशील रहने के कारण वायु को सततगति कहते हैं।
विमानप्रभूमी – विमान – सात मंजिलों वाले ऊँचे भवनों को कहते हैं, अग्रभूमि ऊपर का भाग, छत, छज्जा, अटारी। यहाँ अग्रभूमि का अभिप्राय अटारी या सबसे ऊपर की मंजिल है।
shabdon ke arth to aapne diye hain par shlok bhee udhrit karate to aur achcha hota.
बहुत आभार विवेक जी इस श्रृंखला के लिए.
@आशाजी – आपको धन्यवाद नियमित पठन के लिये श्लोक को अगर मैं उद्धृत करता तो श्रंखला बहुत ही लंबी हो जाती इसलिये मैंने वह नहीं किया परंतु भविष्य में मेरी कोशिश होगी। यहाँ इस श्रंखला में केवल मैं वे शब्द या वृत्तांत जो हमारे पौराणिक हैं और जो लुप्तप्राय: हैं आज की भागती दौड़ती जिंदगी में, केवल उन्हें शामिल करने का एक प्रयास मात्र है।
वो श्लोक जरा लिखियेगा -तन्वी …श्यामा ..पक्वाधारोश्थी ..ठीक से याद नहीं आ रहा है !
@अरविंद जी – वह श्लोक है –
प्रसंग – यक्ष मेघ से अपनी प्रिया के रुप यौवन आदि का वर्णन करता हुआ कहता है कि –
तन्वी श्यामा शिखरिदशना पक्वबिम्बाधरौष्ठी
मध्ये क्षामा चकितहरिणीप्रेक्षणा निम्ननाभि:।
श्रोणीभारादलसगमना स्तोकनम्रा स्तनाभ्यां
या तत्र स्याद्युवतिविषये सृष्टिराद्येव धातु:॥
अनुवाद – वहाँ (भवन के अंदर) पहले शरीर वाली, नवयौवन वाली, नुकीले दाँतों वाली, पके हुए बिम्बफ़ल के समान नीचे के ओठ वाली, पतली कमर वाली, डरी हुई हरिणी के समान चितवन वाली, गहरी नाभि वाली, नितम्बों के भार के कारण मन्दगति वाली, स्तनों के कारण कुछ झुकी हुई, युवतियों के विषय में ब्रह्मा की मानो सर्वप्रथम रचना हो (उसे मेरा दूसरा प्राण समझना)।
badhiya jankari.