कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३१

कलबतनुताम़् – यहाँ कलभ को उपमान बनाया गया है; क्योंकि कलभ और मेघ दोनों में ऊँचाई तथा वर्ण की समानता है तथा मेघ इच्छानुसार रुप धारण करने वाला है। यहाँ तनु का अर्थ शरीर न लेकर छोटा लिया गया है। बत्तीस साल की उम्र वाले हाथी के बच्चे को कलभ



कहा जाता है।

तन्वी – संस्कृत काव्यों में तनुता को सौन्दर्य माना गया है। कोमलांगी, कृशांगी आदि के लिये भी तन्वी पद प्रयुक्त होता है।

निम्ननाभि: – कामसूत्र के अनुसार गहरी नाभिवाली स्त्री में कामवासना का आधिक्य होता है।

चकितहरिणीप्रेक्षणा – मुग्धा नायिका की आँखें डरी हुई हरिणी के समान होती हैं। आचार्य मल्लिनाथ ने इस पर टीका करते हुए लिखा है कि एतेनास्या: पद्मिनीत्व व्यज्यते। पद्मिनी का लक्षण इस प्रकार है –
भवति कमलनेत्रा नासिका क्षुद्ररन्ध्रा अविरलकुचयुग्मा चारुकेशी कृशाड़्गी।
मृदुवचनसुशीला गीतवाद्यानुरक्ता सकलतनुसुवेशा पद्मिनी पद्मगन्धा॥
स्त्रियों के चार भेद माने गये हैम – पद्मिनी, हस्तिनी, शड़्खिनी और चित्रिणी।

परिमितकथाम़् – पतिव्रता स्त्री पति के दूर चले जाने पर श्रृंगार आदि छोड़ देती है तथा आकर्षित करने वाले वस्त्रों का भी त्याग कर देती है और कम बोलती है। कालिदास की यह नायिका भी पतिव्रता हैं और इसको प्रेषितपतिका नायिका कहा है। याज्ञवल्क्य स्मृति में इस प्रकार की नायिका के लिए क्रीड़ा, हास्य आदि का निषेध किया है –
क्रीड़ां शरीरसंस्कारं स्माजोत्सवदर्शनम़्।
हास्यं परगृहे यानं त्यज्येत़् प्रोषितभर्तृका॥
चक्रवाकीम़् इव – यह प्रसिद्ध है कि चकवा – चकवी दिन के समय साथ साथ रहते हैं, परन्तु रात्रि में एक – दूसरे से बिछुड़ जाते हैं। रात्रि वियोग का कारण किसी मुनि का शाप बताया गया है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि वियोग का कारण है – इन्होंने सीता जी के वियोग में रोते हुए रामचन्द्र जी का उपहास किया था। संस्कृत साहित्य में इनका दाम्पत्य प्रेम आदर्श माना जाता है।

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