हम नगर से युद्धशाला की ओर चले। मैंने पिताजी से पूछा, “महाराज की आँखों को क्या हो गया है ?”
“वे अन्धे हैं, वत्स । और इसीलिए उनकी पत्नी राजमाता गान्धारी देवी भी समदु:खी होने के लिए आँखों पर पट्टी बाँधकर रहती हैं, जिससे कि यह संसार दिखाई न दे।“
“राजमाता गान्धारी देवी ?”
“हाँ ! युवराज दुर्योधन की माता। उनके निन्यानबे पुत्र और हैं । युद्धशाला में उन सबको तुम अभी देखोगे ही। महाराज पाण्डु के पुत्र पाण्डव भी तुमको इस समय देखने को मिलेंगे।“
“पाण्डव ?”
“हाँ ! इस राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी करुअवराज महाराज पाण्डु थे लेकिन उनकी अकाल-मृत्यु हो जाने के कारण यह राज्य उनके भाई महाराज धृतराष्ट्र को मिला। उन महाराज पाण्डु के पाँच पुत्र हैं, उन्हीं को नगरजन पाण्डव कहते हैं।“
“इसका अर्थ यह है कि कुरुवंश में कुल एक सौ पाँच युवराज हैं। पाँच पाण्डव और सौ धार्तराष्ट्र।“ मेरे मन में यह उत्सुकता जाग्रत हुई कि इतने युवराज आपस में कैसा व्यवहार करते होंगे !
“और दो महाराज और एक पितामह – पितामह भीष्म ।“ पिताजी बोले ।
“दो महाराज ? कौन-से ?”
“एक महाराज धृतराष्ट्र और दूसरे विदुर ।“
“विदुर महाराज कैसे हुए ? थोड़ी देर पहले तो आपने उनसे गुरुदेव कहा था ?”
“हाँ वत्स, गुरुदेव विदुर महाराज धृतराष्ट्र के भाई हैं, लेकिन उन्होंने राजसंन्यास ग्रहण कर लिया है ।“
“संन्यास ! संन्यास क्या होता है ?”
“संन्यास का अर्थ यह है कि इन्होंने सबका त्याग कर दिया है। यह राज्य, यह राजप्रासाद, यह वैभव- किसी पर भी उन्होंने अपना अधिकार नहीं जताया।“
“फ़िर वे यहाँ क्यों रहते हैं ?”
“अपने अन्धे भाई की राज्य-व्यव्स्था लँगड़ी न हो जाये, इसलिए । उनके प्रत्येक शब्द का यहाँ सम्मान होता है। उसी प्रकार पाण्डवों की माता-राजमाता कुन्तीदेवी का भी मान है।“
“राजमाता कुन्तीदेवी !” मैं कुछ प्रश्न करने जा ही रहा था कि इतने में ही पास के कुंज से एक कोकिल जोर से कुहू-कुहू करता हुआ अशोक के वृक्ष पर से सर्र से उड़ा और हमारे सिर के ऊपर से गुजर गया। मैंने उसकी ओर देखा। मुझको भगदत्त की याद आयी। उसने एक बार कहा था कि, “सप्तस्वरों में तान लेनेवाला कोकिल मादा कौआ के घोंसले में पलता रहता है, क्योंकि उसकी माँ ही उसको जन्म देकर मादा कौआ के घोंसले में रख आती है।“ कितना पागल है भगदत्त ! अरे, कोकिल कहाँ पलता है, यह जानकर क्या करना है ? उचित समय आते ही चतुर्दिक वातावरण को मुग्ध कर देनेवाली उसकी आवाज सुनाई देती है, यही पर्याप्त है ।
“सप्तस्वरों में तान लेनेवाला कोकिल मादा कौआ के घोंसले में पलता रहता है, क्योंकि उसकी माँ ही उसको जन्म देकर मादा कौआ के घोंसले में रख आती है।“ कितना पागल है भगदत्त ! अरे, कोकिल कहाँ पलता है, यह जानकर क्या करना है ? उचित समय आते ही चतुर्दिक वातावरण को मुग्ध कर देनेवाली उसकी आवाज सुनाई देती है, यही पर्याप्त है ।
वाह यह प्रेक्षण उस समय भी था ! यह तो महाभारत कथा बंटी जा आरही है प्रकारंतर से -अब भगदत्त के हाथी का भी जिक्र होगा ही कहीं !
बहुत सशक्त और महत्वपुर्ण कडी. शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत बढिया!धन्यवाद।
bahut badhiya jankari mil rahi hai ……….jari rakhein.
बेचारा कर्ण। काश कोकिल अपना बच्चा पाल लेती!