मैं उस भीड़ के बाहर हो आया । चारों ओर अखाड़े को ध्यान से देखने लगा। क्योंकि कल से मुझको यहाँ शिक्षा प्राप्त करनी थी। लेकिन एक ही प्रश्न बार-बार मेरे मन में चक्कर काट रहा था। मैं युवराजों के साथ क्यों नहीं शिक्षा प्राप्त कर सकता ? थोड़ी देर पहले गुरुदेव ने कहा था कि युद्धविद्या केवल क्षत्रियों का कर्तव्य है। क्षत्रिय का अर्थ आखिर क्या है ? मैं क्या क्षत्रिय नहीं हूँ ? और यदि नहीं हूँ तो क्या हो नहीं सकता हूँ ?
अपना नाम शाला में लिखवाकर हम उस भव्य महाद्वार से बाहर आये। मैंने पिताजी से पूछ ही लिया “पिताजी, मैं क्यों नहीं राजकुमारों के साथ शिक्षा प्राप्त कर सकता हूँ ?”
“क्योंकि तुम क्षत्रिय नहीं हो, वत्स !” वो बोले।
“क्षत्रिय ! क्षत्रिय का क्या अर्थ है ?”
“जो राजकुल में जन्म लेता है, वह क्षत्रिय । तुमने एक सूतकुल में जन्म लिया है, वत्स !”
“कुल ! राजकुल में जन्म लेनेवालों के क्या सहस्त्र हाथ होते हैं ? उन्हीं को इतना महत्व क्यों ?”
“यह तुम नहीं समझ पाओगे। कल से नियमित रुप से इस शाला में आया करना । जो-जो शिक्षा दी जाये, वह ग्रहण करना ।“
हम लोग राजप्रसाद लौटे । शोण उसी तरह कक्ष में बैठा हमारी प्रतीक्षा कर रहा था। उसके पास ही अमात्य वृषवर्मा खड़े थे।
“सूतराज क्या हुआ ? तुम्हारे पुत्र का नाम लिख गया न ?” अमात्य ने विश्वास के साथ पूछा।
“हाँ ।“ पिताजी ने इतना ही उत्तर दिया।
“ठीक है । जब किसी वस्तु की आपको आवश्यकता हो, उसकी सूचना बाहर के सेवक को दे दीजियेगा। मैं जाता हूँ अब।“ अमात्य चले गये।
मेरा मन यों ही अभ्यासवश युवराज दुर्योधन और अर्जुन, महाराज धृतराष्ट्र और गुरुदेव द्रोण, विदुर और युधिष्ठिर – इनकी तुलना करने का प्रयत्न करने लगा। लेकिन उनमें से किसी की भी एक-दूसरे से तुलना नहीं हो पा रही थी। सबों का अपना स्वतन्त्र और एकदम भिन्न अस्तित्त्व दिखा। इस संसार में कितने प्रकार और कैसे-कैसे स्वाभाव के लोग हैं, भगवान जानें ! किसकी कल्पना से उनका निर्माण होता है ? किस लिए उनका निर्माण होता है ? इस जगत का वह चतुर कारीगर अन्तत: है कौन ? उसने इतने सारे नमूने किस उद्देश्य से बनाये हैं ? क्योंकि यहाँ एक-जैसा दूसरा दिखाई नहीं देता है, और दिखाई दे भी जाये तो वह उस-जैसा होता नहीं है। छि:, इन प्रश्नों का तर्कसंगत उत्तर शायद कोई कभी नहीं दे पायेगा।
bilkul sahi prashn kaundh rahe hain karn ke man mein………uski rachna wakai adbhut hai.
बहुत बढिया, शुभकामनाएं.
रामराम.