मेरी तस्वीर जो केवल,
मेरे मन के आईने में नजर आती है,
दुनिया को कुछ ओर दिखता है,
पर अंदर कुछ ओर छिपा होता है,
मेरा स्वरुप पारदर्शी है,
पर आईने को सब पता होता है,
जैसा मैं हूँ वैसा मैं ,
तत्व दुनिया को दिखाता नहीं हूँ,
आईना आईना होता है,
पर वो अंतरतम में कहीं होता है,
तस्वीर चमकती रहती है,
जिसे दुनिया तका करती है।
बहुत गहन अभिव्यक्ति!!
बहुत अच्छा। प्रेरक। बधाई स्वीकारें।
बेहतरीन अभिव्यक्ति-बधाई
बेहतरीन अभिव्यक्ति-बधाई
अच्छी है रचना शुभकामनायें
Khubsoorat bhaav
बहुत गहरी बात कही आज तो. शुभकामनाएं.
रामराम.
गहरी रचना ……. आत्मचिंतन से लिखी रचना है ………
भई, तस्वीर में तो बहुत मेहनत की नज़र आ रही है।
रचना से सामंजस्य अच्छा है।
@ टी एस दराल – मैंने यह तस्वीर देख कर ही यह रचना की है।
धन्यवाद, बाकी सब तो सब के कह दिया, अब मै क्यो बार बार उन्ही बातो को फ़िर से दोहराऊ