क्या नारी ही गृहिणी हो सकती है, जब आज नारी समान अधिकार की बातें करती है तो फ़िर तो उसका उलट याने कि पुरुष को हाऊस हसबैंड भी मान सकती हैं। पर क्या ये नारी इसे पचा पायेंगी कि पुरुष क्या घर में बैठकर घर चलाता हुआ अच्छा लगेगा, घर संभालेगा, ये नारियां ही उसका और उसके परिवार का जीना दूभर कर देंगी।
केवल स्वांग है ये कि नारियों को समान अधिकार है, हाँ मैं मानता हूँ कि नारी को सम्मान देना चाहिये पर क्या नारी इसके उलट सोच का जबाब दे सकती है !!! कि आर्थिक रुप से घर नारी चलाये और सामाजिक रुप से घर पुरुष ।
जितनी भी नारियां अपने पैरों पर खड़ी हैं वे क्या ये बर्दाश्त कर सकती हैं कि उनके पति घर बैठें और उनकी कमाई खायें, क्या ये केवल दिखावा नहीं है, नारी मुक्ति का झंडा गाड़ने का।
विचारोत्तेजक!
बिलकुल उलटा हो जाए यह तो नारी आंदोलन भी नहीं कहता। हाँ बराबरी की बात जरूर है। दोनों काम करें और बराबरी से घर भी संभालें।
वैसे ऐसे भी बहुत जोड़े हैं जो ऐसा करते हैं और मजे में हैं। बस वे बच्चे पैदा नहीं कर सकते और उन्हें दूध नहीं पिला सकते।
@दिनेश जी – नारी आंदोलन यह नहीं कहता पर जो कथित प्रगतिशील नारियां कहती हैं, उसमें निहित अर्थ केवल पुरुष को नीचा दिखाने का ही होता है।
कुछ नहीं, बहुत सी स्त्रियाँ पुरुष को नीचा दिखाना चाहेंगी। लेकिन उन से कई गुना पुरुष रोज नारी को नीचा और हेय समझते हैं। पर उन की क्या परवाह करनी। दोनों मनुष्य हैं और गाड़ी के पहिए। बराबर न हो तों लंगड़ा कर ही चलेगी।
@दिनेशजी – ये हम आम भारतीय नारी की बात नहीं कर रहे हैं ये केवल प्रगतिशील नारियों के बारे में बातें कर रहे हैं।
अनुभव तो यही कहता है की जिन नारियों को मौका मिला उन्होंने पुरुष को कुंकडू कू दर्जा -हेन्पेक हसबैंड का आदर्जा देने में देर नहीं दिखाई ! पावर करप्ट्स और नारियों को ज्यादा ही करप्ट करता है -किसी ने कहा है !
नारी घर संभाले पुरुष बाहर तभी संतुलन है !
विवेक जी नारी समानता का अधिकार चाहती है मगर आप चन्द प्रगतिवादी नारियों का दृष्टीकोण सब पर नहीं लाद सकते। और न ही प्रकृ्ति के विधान से ये सम्भव है मगर घर के काम मे पुरुश और औरत एक दूसरे की सहायता कर भी दें तो क्या बुरा है नारी भी तो बराबर उसक्से आर्थिक सहयोग क रही है। अगर हर बात को पुरुष अंह का विश्य न बनाये तो कहीं कोई विरोध या मुश्किल नहीं है। समानता और आपस के सहयोग से दोनो के आत्मसम्मान से खिलवाड न हो बस यही आम औरत चाहती है। शायद आम औरत की आवाज़ खामोश है और कथित नारीवाद केवल कुछ औरतों की आवाज़ बन कर रह गया है।दशा और दिशा हीन । धन्यवाद्
दोनों मनुष्य हैं और गाड़ी के पहिए। बराबर न हो तों लंगड़ा कर ही चलेगी।
वैसे में श्री. अरविन्द जी से पूरी तरह सहमत हूँ .
कभी हो ही नही सकता ।
विवेक जी मुट्ठी भर विघ्न संतोषियों की चिंता छोड़ें .
i dont know how many of you know how many working women are doing work in this country?for example youcan see in your office .does they are nonefficient?
why you man are so egostic in every aspect?how many of you know any five star hotel have a female cook? does it means they are preparing bad quality food .i dont think so .
mr vivek suppose your wife is ill and she wants your help in coooking or washing some dishes does it make you shorter?
every working womne is doing double job?
mr mishra and mr.mahfooj ali are those male who sit behind computer but in the mind they are still "typical indian male mentality ".
समाज और परिवार में दोनों का अपना अपना स्थान है।
एक दूसरे का स्थान लेने का सवाल ही नहीं उठता।
हाँ, जीवन की गाड़ी सही चलती रहे , इसके लिए एक सामंजस्य होना ज़रूरी है।
"पुरुष क्या घर में बैठकर घर चलाता हुआ अच्छा लगेगा, घर संभालेगा, ये नारियां ही उसका और उसके परिवार का जीना दूभर कर देंगी।"
do you knoow how many husband is non working,alochlic,and bets there wives. have you seen some kaamvali or visit any jhuggi jhopdi in your life?
by the way how many working women are spending there own money by there will.STILL INDIA IS MALE DOMINATING SOCIETY whaether you belive it or not.
केवल स्वांग है ये कि नारियों को समान अधिकार है, हाँ मैं मानता हूँ कि नारी को सम्मान देना चाहिये पर क्या नारी इसके उलट सोच का जबाब दे सकती है !!! कि आर्थिक रुप से घर नारी चलाये और सामाजिक रुप से घर पुरुष ।
why not both run a house and doing work?whats harm in this ?
@तरन्नुम जी – यहाँ बात आम भारतीय नारी की नहीं हो रही है यहाँ बात प्रगतिशील भारतीय नारी की हो रही है आप बहस का मुद्दा न बदलें।
प्रगतिशील नारी जिसे घर में बैठना अच्छा नहीं लगता जिसे कोई बंधन अच्छॆ नहीं लगते, अगर कोई पुरुष उसके पहनावे पर कुछ बोल दे तो उन पर ही आक्रमण कर देना और भी न जाने क्या क्या।
आम भारतीय नारी के लिये यह पोस्ट लिखी ही नहीं गई है।
ओह!!शिखा के पोस्ट के बाद मुझे लगा…लोग अब 'नारी' को विषय बनाना लिखना छोड़…कुछ इतर विषयों पर लिखेंगे…पर यहाँ तो जो अलग अलग विषयों पर लिखते थे…वे भी ;इस 'विषय" पर लिखने का मोह नहीं संवरण कर पाए
दिनेशराय जी ने अपनी टिप्पणियों में सब कुछ कह दिया है….फिर भी विवेक जी..मैंने कई उदाहरण देखें हैं…जहाँ पुरुष अपनी Phd पूरी करने के liye घर पर ही रहता है….और नारी नौकरी करती है…कई बार कॉल सेंटर्स में या और जगह पुरुष की 'नाईट ड्यूटी' रहती है,वो दिन में घर पे रहता है और पत्नी नौकरी पर जाती है…दोनों स्थितियों में अच्छी tarah nirvaah hote dekha है.
विवेक भाई,
मेरे ख्याल से आपने इसमें दो मुद्दे उठाए हैं ,पहला ये कि क्या हाऊस हसबैंड होना चाहिए या नहीं
जहां तक मैं अपनी बात करूं तो जिस दिन मैंने अपने साथ कंधे से कंधा मिला कर काम करने वाली सहकर्मी से प्रेम विवाह किया था उसी दिन तय कर लिया था कि घर की जिम्मेदारियां भी अब उतनी ही मेरी होंगी जितनी मेरी श्रीमती जी की हैं । आज मुझे जानने वाले जानते हैं कि मुझ से अच्छा हाऊस हसबैंड होना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल अवश्य है । मैं वो हर काम बहुत ही अच्छी तरह से कर लेता हूं जो एक ग्रहणी के रूप में मेरी श्रीमती जी करती हैं । और इस बात की मुझे बहुत खुशी है ।
अब बात दूसरे मुद्दे की ..मुझे नहीं लगता कि हमारा समाज अभी इतना एकरूप हो पाया है कि हम कुछ व्यक्तियों के समूह को/उनकी आदतों/उनके व्यवहार/उनके रहन सहन को लेकर कोई आम धारणा बना सकते हैं । इस मामले में सबके अपने अपने अनुभव अपने परिवेश /अपने माहौल के अनुरूप ही होते हैं । तो इसमें कोई ठोस अवधारणा बनाना कठिन है । सौ बात की एक बात जैसा आप अपने घर में अपने आसपास की दफ़तर की /गली मोहल्ले की महिलाओं के प्रति जो भी नज़रिया बनाते हैं । उसी के अनुरूप भावनाएं सामने आती हैं ।
अब महिला-पुरुष ..इस विषय पर कुछ कहने का मन नहीं करता …मगर खुद को रोक नहीं पाया सो लिख दिया ।
तरन्नुम जी, आप एक पाठक के रूप में सक्रिय हो रही हैं अच्छी बात है ,,मगर अपने विचार पोस्ट के प्रति लेखक के प्रति नहीं ,,,,शायद ये ज्यादा उचित लगता है…आगे आपकी मर्जी …आखिरकार ब्लोग्गिंग है …॥
विवेक जी किसी जमाने में हमने भी यही सवाल नारी ब्लोग पर उठाया था। आज भी ये सवाल वैसे ही खड़ा है जैसे तब था। कमैंटस देख कर लगता है कि लोग रोजमर्रा की जिन्दगी में पतिदेव घर के काम में मदद करते हैं कि नहीं इसे मुद्दा समझ रहे हैं जब कि असली सवाल ये है कि अगर रोल रिर्वसल हो जाए तो पत्नियों को कैसा लगेगा और क्या वो इस बात को सहर्ष स्वीकार करेगीं? किसी मजबूरी में अगर नारी को घर की आर्थिक जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेनी पड़े और पति को घर की जिम्मेदारी तो हम समझ सकते हैं कि नारियां अपने पति का साथ देने से पीछे नहीं हटेंगी। लेकिन क्या कोई पढ़ी लिखी महिला जो अच्छी पोस्ट पर कार्यरत हो वो ऐसे आदमी से शादी करेगी जो पढ़ा लिखा हो घर के सारे काम कर सकता हो और इस के लिए तैयार भी हो और कहीं और काम न करता हो?
मुझे नहीं लगता कि जितनी आसानी से महिलाऐ पुरूषों के वर्चस्व वाले सारे क्षेत्रों में अपनी उपलब्धियों का ण्ंडा गाड रही हैं .. पुरूष महिलाओं के वर्चस्व वाले क्षेत्र में इतने सफल हो सकते हैं !!
.
.
.
"जितनी भी नारियां अपने पैरों पर खड़ी हैं वे क्या ये बर्दाश्त कर सकती हैं कि उनके पति घर बैठें और उनकी कमाई खायें?"
पूरी ईमानदारी से जवाब दूं तो जवाब होगा "नहीं"…
विस्तार से नहीं समझाउंगा…विवाद बढ़ जायेगा……:)
आप कि पोस्ट पर कुछ प्रश्न हैं
१ प्रगतिशील का अर्थ क्या हैं और पुरुष और स्त्री के सन्दर्भ मे क्या ये एक ही हैं ??
२ पति – पत्नी पूरक माने जाते हैं फिर कौन कमाने जाता हैं , कौन घर पर रहता हैं या दोनों कमाते हैं इस का फैसला करना उनका निज का मामला होता हैं , सार्वजानिक तब होता हैं जब पत्नी से ये अपेक्षा होती हैं कि वो अगर कमाती हैं तो क्या हुआ घर का काम करना उसका काम हैं ।
३ कितने पति हैं जिनकी पत्नी गृहणी होती हैं और हर दिन जब पति काम से लौटता हैं तो सुनती हैं " दिन भर क्या करती रही , सारा दिन घर मे रहती हो ये भी नहीं कर सकती " यानी पति बाहर जा कर कमाता हैं तो बड़ी बात हैं घर के काम का क्या ?? कोई मूल्य नहीं
४ अब ये प्रश्न क्या लडकियां पसंद करेगी कि पति बैठे और वो कमा कर लाये । आज भी भारत मे ना जाने कितनी औरते काम करती हैं और उनके पति घर मे शराब पीते हैं । लेकिन आप उन औरतो कि तो बात नहीं कर रहे आप तो प्रगतिशील औरतो कि बात कर रहे हैं , यानी वो नारिया जो अपने अधिकार कि बात करती हैं तो आप मुझे ये बता दे प्रतिभा पाटिल , सुषमा स्वराज , मीरा कुमार के पति क्या करते हैं ये कौन जानता हैं ??? बात प्रतिभा कि हैं अपनी प्रतिभा और क्षमता से जो आगे जायेगा वो पति हो या पत्नी कोई फरक नहीं पड़ता क्युकी पूरक का मतलब यही होता हैं
५ अब प्रश्न ये हैं कि किन क्या कोई पढ़ी लिखी महिला जो अच्छी पोस्ट पर कार्यरत हो वो ऐसे आदमी से शादी करेगी जो पढ़ा लिखा हो घर के सारे काम कर सकता हो और इस के लिए तैयार भी हो और कहीं और काम न करता हो? तो मुझे लगता हैं अनीता जी कि महिला अभी शोषण करना नहीं सीखी हैं जिस दिन सीख जायेगी जरुर करेगी । जितने भी पुरुष उन महिला से शादी करते हैं जो उनसे शिक्षा मे कम हैं , या कहीं नौकरी नहीं करती , या मानसिक रूप से दोनों एक दूसरे से बहुत दूर हैं वो केवल और केवल इस लिये अपने लिये एक गृहणी !!! खोजते हैं ताकि घर बसने के लिये सामान दहेज़ मे आ जाये और बिना वेतन के एक नौकरानी मिल जाये । औए इसी लिये वो बात बात मे पत्नी को ताना देते है " कमाने जाना पड़ता तो पैसे का मोल समझती "
जब तक काम का बटवारा लिंग आधारित होगा ये प्रश्न उठते रहेगे । जिस दिन काम का बटवारा क्षमता के हिसाब से होगा सब प्रश्न बेमानी हो जायेगे । बात हैं बराबरी कि और मूल प्रश्न समाज मे असमानता स्त्री पुरुष मे कोई भी काम कोई भी कर सकता हैं ये उसकी रूचि पर और क्षमता पर हैं रोल रिवेर्सल कि बात मिथ्या भ्रम हैं ताकि नारियों को अहसास दिलाया जा सके कि वो घर के लिये बनी हैं
अरे बाबा..
ये कहाँ आ गया!
यहाँ तो बड़ी गर्मागर्म बहस चल रही है!!
उलट-पुलट झाई
क्यों करते हो भाई
वक्त के बगोने में ज़िंदगी की दूध दोनों मिलकर उबालो
रोज काटो मस्ती की मलाई
उलट-पुलट झाई
क्यों करते हो भाई
यह टिप्पणी अनीता जी के लिए है
अनीता जी आज पुरुष विवाह करते वक्त यह शर्त रख रहे हैं की लड़की मेरे बराबर शिक्षित होनी चाहिए. अगर पुरुष देश से बाहर रहता है तब भारतीय भाषाओँ के अलावा २-४ विदेशी भाषाओँ का ज्ञान भी अनिवार्य है . सीधे कहा जाय तब हर तरह से मनेजेबल लड़की पर "नौकरी नही करनी होगी " के पुच्छ्ले के साथ ..तो अगर आपका सवाल सिर्फ यह है की अगर "हर प्रकार से योग्य पुरुष घर पर रहे और नारी कम करने जाय तो क्या नारी इसे स्वीकार करेगी ?"
तब मेरा जवाब है "हाँ" पर अयोग्यता कहीं से बर्दास्त नही होगी.
वैसे सबसे सटीक जवाब द्विवेदी जी ने दिया है. मैं भी यही कहूँगी आत्मनिर्भर होना मनुष्य ( नारी /पुरुष नही ) का सबसे पहला गुण है.
जो प्रगतिशील भारतीय नारी सच मै है उसे ऎसी बातो के लिये समय नही है, यह बाते ओर ऎसी सोच सिर्फ़ वोही नारिया रखती है जो सिर्फ़ दिखावे के लिये प्रगति शील बनी है, असल मै वो है नही, जब घर को चलाने के लिये दोनो पति पत्नी जरुरी है तो बहस किस बात की, ओर फ़िर घर मै इन दोनो मै से कोई भी बेकार निकले तो वो घर कभी घर नही बनता एक धर्म शाला बन जाती है,नारी आज किस जगह पुरुष से कम है? लेकिन जो कर्म करती है वो अपनी जगह खुश है, ओर जो कुछ नही करती बस आजादी आजादी चिल्लती है, अगर इन नारियो को आजादी आजादी चिल्लना ही है तो क्यो नही पहले उन मजबूर नारियो को उन कोठो से आजाद करवाती जो नरक की जिन्दगी जी रही है,क्यो कि इन्हे सिर्फ़ बोलना आता है मर्दो को बदनाम करना आता है आग उगलना आता है…………. ओर भी बहुत कुछ जो मै लिख नही सकता…
@ तरन्नुम….
तरन्नुम…. बस आप इतना बता दीजिये…. मैं आपकी कौन सी भैंस खोल ले गया हूँ….? जो आप मेरे पीछे पड़ गयीं हैं? आप एकदम अचानक से अवतरित हुईं हैं…. और …. एकदम से बम्ब लेकर तैयार हो गयीं हैं…. आपने यह पोस्ट भी नहीं पढ़ी…. और न ही समझीं…. सीधा AK-47….लेकर कूद पड़ीं….. आप…..और आप जैसीं फीमेल्स के पिछलग्गू मेल्स…. भी पहुँचते होंगे ….. आप लोगों कि तरफदारी करने…. कुछ मेल्स की आदत होती होती है…. सिटीयाबाज़ी की…. वो आप लोगों को सपोर्ट करते हैं….. तो चढ़ जातीं हैं आप लोग चने के झाड पर….. अब विवेक जी ने ऐसा क्या लिख दिया…. ? देखिये ज़रा इस पोस्ट को ध्यान से…. और उस पर से मुझे और अरविन्द जी के पीछे आप पिल पड़ीं बन्दूक लेके….. आप स्वस्थ बहस नहीं करतीं…. आप अचानक आई हैं…. और आपने यह फाल्स ब्लॉग बनाया है…..और आपको एक चीज़ और बता दूं….. आपको पूरे ब्लॉग जगत के लोगों ने पहचान लिया है…. पोस्ट को पढ़िए पूरी तरह समझिये…. फिर बोलिए…. ,मुझे खराब बोल कर आप को कुछ नहीं हासिल होगा… और जो मेल्स मुझे खराब बोलेंगे ….सिर्फ फीमेल्स के सपोर्ट में जाने के लिए…. तो ऐसे लोगों से निपटना मुझे आता है…. और आपको इतना बता दूं…. मुझे जो लोग खराब बोलते हैं….वो फिर सिर्फ मेरा खराब वाला रूप ही देखेंगे…. और वो रूप देखने से अच्छा है की SONY channel पे आहट सीरियल देख लें….. बेहतर यही है की आप स्वस्थ बहस करिए…. logic से बात करिए….जैसे की रचना जी और रश्मि रविजा जी ने कहा है…. मैं जब बोलूँगा तो सब कहेंगे ….बहुत बोलता है…. और आपसे इतना बता दूं…. कि मैं ब्लॉग पे और रियल में भी अपने दोस्तों की बुराई नहीं सुन सकता…. इस पोस्ट का जिस्ट समझिये…. और तब बात करिए…. प्यार करिए ….प्यार ….. प्यार मिलेगा…. और मैं तो वैसे भी बहुत प्यार करने वाला इंसान हूँ….. चाहे तो ब्लॉग पे ही वोटिंग करवा लीजिये…. अब यहाँ आप वो वाले प्यार (Girl fren/boyfren वाला) को मत ले लीजियेगा….. वो मैं वैसे भी बाँट कर अपना स्टॉक ख़त्म कर चुका हूँ… ..मैं इतना खराब सिर्फ इसलिए लिख रहा हूँ आपको…. क्यूंकि आपने बर्रे के छत्ते में हाथ डाल दिया है…… एक डाइलोग मार रहा हूँ…. क्यूंकि खुद पे बहुत घमंड है मुझे…… इस वक़्त मैं अमिताभ बच्चन हो गया हूँ…….. डाइलोग है…. ज़रा गौर फरमाइयेगा …. महफूज़ कि बराबरी करना …. चाहे वो कैसी भी बराबरी हो… मुश्किल ही नहीं ….. न-मुमकिन है…..
विवेक जी ने अच्छी पोस्ट लिखी है … इसको समझिये….. आपने अपनी फोटो हटा दी….? रहने देतीं न…. बहुत अच्छी थी….अगर वो आप ही कि फोटो थी…. तो माशा-अल्लाह ..आप ग़ज़ब कि खूबसूरत हैं…… और यकीन जानिये….अगर मैंने यह बात कही है….तो आपको खुश होना चाहिए…. अरे ! कहाँ चलीं आप….. ?
ओह! dressing टेबल के पास….. ? ठीक है…. शायद आपको अच्छी नींद आये आज……
डकार…… glurp…..glurp….
मैं अजय झा, रचना और रश्मि रविजा जी से पूरा इत्तेफाक रखता हूँ…. .
बात हाउस हसबेंड या हाउस वाईफ की नहीं वरन मानसिकता की है. हाउस वाईफ़ और आउट साईड आफ द हाउस की छवि वाला हसबेंड का मिथक टूटना ही चाहिये.
uff! yahan to baat bahut badh rahi hai……….chalo sabko bahas ka ek mudda to mila……… bas mahfooz ………be cool…………..ab sab itna kah rahe hain to ab kahne ko kuch bacha hi nhi.
हाय ये स्त्री विमर्श?? –
चलिए ज्ञान और तर्क की बत्ती बुझा दीजिये अँधेरा कायम हो जाये ताकि शान्ति हो जाये हा हा हा ….
अब देखिये न गया था टिप्पणी में बधाई देने वहां जो पढ़ा तो न चाहते हुए भी पोस्ट लिख बैठा. अब नर विमर्श का इंतज़ार है http://sulabhpatra.blogspot.com/2009/12/blog-post_21.html
जब तक नया साल नहीं आएगा मानो चर्चा चलती रहेगी ,
प्रगतिशील नारी किसे कहेंगे? कितने दिन से ब्लॉग पर नारियों को लेकर बहस चल रही है। हो सकता है कोई निष्कर्ष तक हम पहुँच पाये। किन्तु कुछ बाते जो दिनेश जी ने कही गलत नही है। न औरत आदमी का स्थान ले सकती है न आदमी कभी औरत का। दोनो अपने-अपने क्षेत्र में कामयाब है। यही सच है जितनी कुशलता से एक औरत घर का ध्यान रख सकती है,बच्चों पति माता-पिता की देखभाल कर सकती है पुरूष कभी चाह कर भी नही कर सकता। और नारी घर से बाहर कितनी ही उँची पोस्ट पर हो पुरूष के समान हर खतरा नही झेल पाती। यह तो सच है और रहेगा। परन्तु बात यहीं तक समाप्त नही हो जाती। यह मुद्दा उठा ही क्यों मुख्य बात तो यह है। जब-जब नारी पर अत्याचार हुआ,उसे घर में मालकिन की जगह दासी या नौकरानी बनाने की कोशिश की गई, या पुरूष ने अपनी कमाई का दबदबा बनाया उसे समझ आया की वो बेवकूफ़ तो नही। यह सब हुआ समाज की गंदगी के कारण। कुछ गलत असमाजिक तत्वो के कारण। क्या मै गलत हूँ, आप सभी बतायें। जैसे एक मछली सारा तालाब गंदा कर देती है वैसे ही कुछ पुरूष वर्ग तो कुछ नारी वर्ग अपनी मर्यादा भूल कर समाज परिवार के विघतन का कारण हैं। यदि नारी को घर परिवार में उचित मान-सम्मान मिलता तो शायद ही वह अपने दूध पीते बच्चों को छोड़ कर रोजी रोटी की तलाश करती। शायद ही घर के एशो आराम छोड़ कर दर-दर सड़को पर भटकती। यह सब होने का कारण कुछ और ही है। हमे इस बहस में न पड़ कर इस बात पर गौर करना चाहिये की किस तरह दोनो मे सामंजस्य पैदा किया जाये। कैसे परिवार के विघटन को बचाया जाये।
आज के हालात देख कर जहाँ दोनो कमाते हैं नारी पुरूष से यही अपक्षा करती है कि जब घर के लिये कमाने का काम दोनो ही करते हैं तो घर का काम भी बाँट ही लेना चाहिये। आज के बदलते युग को देख कर मुझे तो लगता है घर घर ही नही रहेगा। तो पुरूष या नारी नही घर में बस ताला ही रहेगा।
सुनीता जी ने एक सार्थक टिप्पणी दी
जो जिस काम में दक्ष हो वह वो काम करे। और किसी काम को कमतर न माना जाये!