आज सुबह हिन्दी समाचार पत्र “नवभारत टाईम्स” जब अपने फ़्लेट का दरवाजा खोल कर उठाया तो कुछ अलग लगा। साईड में एक विज्ञापन टाईप का बक्सा मुँह चिढ़ा रहा था, जिसका शीर्षक था – trendz2day. और क्या लिखा था आप भी पढ़िये –
“बदलते जमाने के साथ निखरती जिंदगी में सबसे खुशगवार महक है नई-नई सुविधाओं से लैस गैजेट्स, टेक्नोलॉजी और ट्रेंड्स की उतनी ही तेजी से बदलती दुनिया। इसी दुनिया की विविधताभरी दिलचस्प झलक अब आपको हम लगातार दिखाते रहेंगे, अपनी नई पहल trendz 2 day के जरिये । चूंकि इस दुनिया की सुविधाजनक भाषा इंग्लिश ही है, इसलिए इस हिस्से का किस्सा भी इंग्लिश में – खास आपके लिए।”
अब भला इन टाईम्स ग्रुप वालों को कौन समझाये कि भले ही आंग्लभाषा दुनिया की सुविधाजन भाषा है तो क्या हम भी उसे ही अपना लें अपनी मातृभाषा छोड़कर। अगर हिन्दी का समाचार पत्र है तो सभी चीजें केवल हिन्दी भाषियों के लिये ही होनी चाहिये, यहाँ सुविधा का ध्यान नहीं रखना चाहिये। जिसे इस तरह की चीजें पढ़ने का शौक होगा उसके लिये इस प्रकार का बहुत सारी सामग्री मौजूद है “दुनिया की सुविधाजनक भाषा में”। हाँ अगर टाईम्स यही पेज हिन्दी में शुरु करता तो एक सार्थक पहल होती कि हिन्दी भाषियों के लिये “दुनिया की सुविधाजनक भाषा” की सामग्री वह हिन्दी भाषा में उपलब्ध करवाता। शायद इसमें उसे बहुत मेहनत लगती और जो आदमी बेकार बैठे थे उनसे काम नहीं ले पाते और नये आदमियों को काम के लिये लेना नहीं पड़ा हो। पता नहीं क्या सोच है इसके पीछे।
हिन्दी समाचार पत्र प्रेमियों के लिये तो यह एक तमाचे से कम नहीं है, और मैं इसका विरोध करता हूँ।
चूंकि इस दुनिया की सुविधाजनक भाषा इंग्लिश ही है, सिर्फ़ इस अखबार के लिये, ओर कुछ सर फ़िरे गुलामो के लिये , इन मुर्खो को बोलो पहले युरोप के अन्य देशो मै जा कर तो देखो…..
इस विरोध मे आपके साथ हैं धन्यवाद नये साल की शुभकामनायें
विवेक भाई ये लोग कभी भी भाषा या लिपि के पक्ष या विरोध में नहीं रहे ये दुकानदार हैं जो दिखता है उसे बेच मारते हैं। ईमान,धर्म,नीतियां,निष्ठा,आस्था इन टाइम्स ग्रुप वालों ने सब बेच दिया है अगर वर्णसंकर भाषा का अखबार बेच रहे हैं तो क्या नया हुआ। आप और हमें यदि बुरा लगता है तो बहिष्कार कर दीजिये मत पढि़ये बस यही एक तरीका बचा है
इस जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
समझ नहीं आता की जो समाचारपत्र हमारी मादरे ज़बान की इज्ज़त उधेड़ने में लगा हो लोग उसे आखिर पढ़ते ही क्यों हैं? वो भी पैसे देकर!!!
agree with Dr Rupesh.
जिस तरह अंग्रेज़ी का द हिन्दुस्तान टाइम्स खत्म हो गया….उसी तरह से हिन्दी का नवभारत टाइम्स अब अपनी आखिरी साँसे गिन रहा है…. हार की मार से पगला गया है बेचारा सम्पादक… यह उठा पटक चलती ही रहती है ।
अजब सी बात है!!
मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.
नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
विवेक भाई,
कहीं ऐसा दिन न आ जाए पूरा हिंदी अखबार ही आंग्लभाषा में छपे और नीचे एक डिक्शनरी का नाम दे दिया जाए कि हिंदी में पढ़ना है तो यहां से मदद लें…
नया साल आप और आपके परिवार के लिए असीम खुशियां लाए…
जय हिंद…
बहुत सही .सन १९५७ से मैं नवभारत टाईम्स का पाठक रहा . और इन्हीं कारणों से ४ साल से उसे अपने पठन से निकाल दिया है .