बाकियों के बारे में तो पता नहीं, लेकिन मुझे तो सरकारी कर्मचारी नामक प्राणी को देखते ही हण्टर उठाने की इच्छा होने लगती है… जबकि इन्हीं कर्मचारियों के यूनियनबाज नेतागिरी करने वाले कर्मचारी एक जोंक नुमा लसूड़े जैसे लगते हैं… जिनका ऑपरेशन करने की तीव्र इच्छा होती है…
यह तो बीमारी है. सरकारी अफसर अपनी पोजीशन का फायदा उठाते हैं तो लाला अपनी. नेता मौज में. किसान मर रहा है. दाल सौ रुपये, चीनी चालीस रुपये, पांच वाली बैटरी नौ रुपये की. दवा कम्पनी खून चूस रही हैं. किस का क्या बताया जाये. कमोबेश हर आदमी के ऊपर हंटर की दरकार है
अरे यार सभी सरकारी कर्मचारी एक से ही नहीं होते मालूम नहीं आप ने अनुभव किया है या नहीं लेकिन ये मेरा खुद का अनुभव है बहुत से सरकारी कर्मचारी अपने काम के प्रति निष्ठाबान होते है हाँ ये बात और है की मैं केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों की बात कर रहा हूँ. आप लोग प्राइवेट कम्पनी के लोगो को सही कहते है . लेकिन मैं आप से पूछता हूँ की सरकारी बैंक के जो नॉन profitable अस्सेट्स है क्या उनका कारण यह प्राइवेट कम्पनी के लोग नहीं है जो लोन ले कर लोटाते नहीं है, ये नेता जो लोन माफ़ कर देते है. हम लोग बहुत समय से सरकारी बैंक के साथ अपना लेन- देन करते रहे है कभी कोई गंभीर समस्या नहीं आई , लेकिन आप aayi ki aayi ki aayi ke बैंक या किसी और निजी बैंक से लोन ले कर देखे आप पाएंगे की इससे तो अच्छा था की किसी सूदखोर से लोन ले लेते.आप की गाडी कब इन बैंक के गुंडों द्वारा उठा ली जाएगी आप को सपने में भी समझ में नहीं आएगा कब आपको लोन के repayment के लिए बेइज्जत कर दिया जायेगा आप नहीं बुझ सकते है. अब आईये निजी telephone कम्पनी पर आप ने जो कॉल नहीं भी किये होंगे उनका चार्ज आपसे बसूल कर लिया जायेगा और जब आप विरोध करेंगे तो पहले तो ये आपको डरायेंगे फिर कुछ कम करने को राजी हो जायेंगे. रही बात शासकीय स्कूल के शिक्षक की तो भाई आज कल बिचारे देश की जनसँख्या को माप रहे है क्या ये एक शिक्षक का कार्य है कितने नलकूप कितने हन्द्पम्प है इन्हें गिनना क्या शिक्षक का काम है ? चुनाव कार्य करना क्या यह भी शिक्षक का कार्य है ? यदि ये सब कार्य शिक्षक करेंगे तो भाई आप ही बता दो वो कब पढ़ाएंगे. सरकारी सेवा में आने वाले अधिकतेर युवा बुध्धिमान , परिश्रमी होते है यह तो आपको मानना पड़ेगा क्योंकि इतने आरक्षण के बाद इतने compition के बाद जब किसी को नौकरी मिलती है तो आप उसका स्तर खुद समझ सकते है . रही बात सरकारी काम में लेट लतीफी की तो भाई बहुत नियम कायदे बना रखे है सरकार ने अगर नियम से काम न करो तो नौकरी खतरे में . दुसरे लोग अपना papar वर्क सही से नहीं करते है फिर सरकारी कर्मचारी को कोसते है तो भाई किसी को कोसना गलत है उअसकी मज़बूरी देखो की कितने नियम कायदे सरकार ने बना रखे है इसे ही लाल फीता शाही कहते है . हाँ ये बात सही है की कुछ लोग काम चोर हो सकते है लेकिन सभी नहीं.
@ श्री अविनाश वाचस्पति कहावत में तो पांचों उंगली ही कहा गया है .आप कहते हैं तो मान लेते हैं चार होंगी . आप पढ़े लिखे आदमी हैं. सही कहा आपने "अंगूठा दिखलाते जायें इस तरह सबसे आगे बढ़ जायें।" आपण घर भरता जाए देश जाए भाड़ में. अंग्रेज चले गए अपने चौकीदार छोड़ गए जो इस देश के नागरिक होने के बावजूद अपने को दूसरों से अलग समझते हैं. एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी .
अरे बस करो भाई लोगो। आखिर हम भी सरकारी नौकर हैं। हमने तो सुरेश जी का फोटो ध्यान से देख लिया है। सच मानिये अगर इनसे १० % मिलता जुलता चेहरा भी दिखा तो उनसे दस कदम दूर ही रहेंगे। वैसे कोई रोहित की बात भी सुन रहा है की नहीं।
क्या आपको पता है, सिर्फ सरकारी नौकर ही तनख्वाह बाद में पाते हैं, टैक्स में एक एक पैसा पहले कट जाता है। अस्पताल में प्रोफ़ेसर तक को भी वो सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होती जो, प्राइवेट कंपनियों में एक इन्टर्न को मिलती हैं। एक सरकारी डॉक्टर को एक मरीज़ देखने के लिए सिर्फ डेढ़ मिनट मिलता है ओ पी डी में। अब कहाँ तक गिनाएं , छोडिये आप मस्त रहिये।
बंधू एक रिवाज़ बन गया है की सही को मत देखो और अपनी हांकते रहो. सरकारी कर्मचारी ही सबसे इमानदार टैक्स पेयर है . नहीं तो प्राइवेट में तो basic salary कम कर बाकि चीजो को ज्यादा कर दिया जाता है डी ए को fluctuate कर उसे टैक्स से बाहर कर दिया जाता है. सरकारी कर्मचारी किन परिस्तिथियों में काम करते है कभी सोचा है और प्राइवेट में काम करने बाले कितने आलिशान ऑफिस में काम करते है कितनी सुविधा होती है प्राइवेट ऑफिस में सरकारी ऑफिस के टोइलेट में आप घुसेंगे भी नहीं और प्राइवेट ऑफिस के टोइलेट में आप टाइम पास भी कर सकते है . काफी बांडिंग मशीन तो लगी ही होती है. किसी कॉल सेंटर में फ़ोन कीजिये आप अपना सर पीट लेंगे लेकिन आप को जरुरी जानकारी नहीं मिलेगी आतंकवादियों से देश को बचाने वाले भी सरकारी कर्मचारी ही होते है. ना की किसी होटल की सिक्यूरिटी में लगे प्राइवेट सिक्यूरिटी गार्ड जो की आप मुंबई में देख चुके है . मैं जिन सरकारी कर्मचारियों की बात कर रहा हूँ वो वो लोग है जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर इसे हासिल किया है ना की किसी की कृपा से.
लिख रहे हैं सकारी कर्मचारी को और प्रार्थना ईश्वर से कर रहे हैं…खैर, सरकारी कर्मचारी भी तो ईश्वर का खास दूत ही है..हा हा!!
विवेक भाई यह किसी ?
भास्कर दैनिक है
।
सरकारी कर्मचारी की महिमा
अपरंपार है
इससे पार भी सरकारी बाबू
ही पा सका है।
सरकारी कर्मचारी ही क्यों …
नेताजी क्यों नहीं …??
वैसे वाणी जी की बात में भी दम है.
हूँ !
यह इस देश की पुरानी बीमारी है और भ्रष्टाचार की जड़ भी यही है . एक बार सरकारी नौकरी मिली नहीं की पांचों उंगली घी में
@ डॉ. महेश सिन्हा
सिर कड़ाही में डालते डालते
क्यों गये थम
वैसे ऊंगलियां भी पांच नहीं
चार होती हैं
तो निम्नानुसार परिवर्तन अपेक्षित है :
चारों घी में
सिर कनस्तर में
और
अंगूठा दिखलाते जायें
इस तरह सबसे
आगे बढ़ जायें।
बाकियों के बारे में तो पता नहीं, लेकिन मुझे तो सरकारी कर्मचारी नामक प्राणी को देखते ही हण्टर उठाने की इच्छा होने लगती है… जबकि इन्हीं कर्मचारियों के यूनियनबाज नेतागिरी करने वाले कर्मचारी एक जोंक नुमा लसूड़े जैसे लगते हैं… जिनका ऑपरेशन करने की तीव्र इच्छा होती है…
यह तो बीमारी है. सरकारी अफसर अपनी पोजीशन का फायदा उठाते हैं तो लाला अपनी. नेता मौज में. किसान मर रहा है. दाल सौ रुपये, चीनी चालीस रुपये, पांच वाली बैटरी नौ रुपये की. दवा कम्पनी खून चूस रही हैं. किस का क्या बताया जाये. कमोबेश हर आदमी के ऊपर हंटर की दरकार है
सार्थक चिंतन।
——–
सुरक्षा के नाम पर इज्जत को तार-तार…
बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है ?
अरे यार सभी सरकारी कर्मचारी एक से ही नहीं होते मालूम नहीं आप ने अनुभव किया है या नहीं लेकिन ये मेरा खुद का अनुभव है बहुत से सरकारी कर्मचारी अपने काम के प्रति निष्ठाबान होते है हाँ ये बात और है की मैं केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों की बात कर रहा हूँ. आप लोग प्राइवेट कम्पनी के लोगो को सही कहते है . लेकिन मैं आप से पूछता हूँ की सरकारी बैंक के जो नॉन profitable अस्सेट्स है क्या उनका कारण यह प्राइवेट कम्पनी के लोग नहीं है जो लोन ले कर लोटाते नहीं है, ये नेता जो लोन माफ़ कर देते है.
हम लोग बहुत समय से सरकारी बैंक के साथ अपना लेन- देन करते रहे है कभी कोई गंभीर समस्या नहीं आई , लेकिन आप aayi ki aayi ki aayi ke बैंक या किसी और निजी बैंक से लोन ले कर देखे आप पाएंगे की इससे तो अच्छा था की किसी सूदखोर से लोन ले लेते.आप की गाडी कब इन बैंक के गुंडों द्वारा उठा ली जाएगी आप को सपने में भी समझ में नहीं आएगा कब आपको लोन के repayment के लिए बेइज्जत कर दिया जायेगा आप नहीं बुझ सकते है.
अब आईये निजी telephone कम्पनी पर आप ने जो कॉल नहीं भी किये होंगे उनका चार्ज आपसे बसूल कर लिया जायेगा और जब आप विरोध करेंगे तो पहले तो ये आपको डरायेंगे फिर कुछ कम करने को राजी हो जायेंगे.
रही बात शासकीय स्कूल के शिक्षक की तो भाई आज कल बिचारे देश की जनसँख्या को माप रहे है क्या ये एक शिक्षक का कार्य है कितने नलकूप कितने हन्द्पम्प है इन्हें गिनना क्या शिक्षक का काम है ? चुनाव कार्य करना क्या यह भी शिक्षक का कार्य है ? यदि ये सब कार्य शिक्षक करेंगे तो भाई आप ही बता दो वो कब पढ़ाएंगे.
सरकारी सेवा में आने वाले अधिकतेर युवा बुध्धिमान , परिश्रमी होते है यह तो आपको मानना पड़ेगा क्योंकि इतने आरक्षण के बाद इतने compition के बाद जब किसी को नौकरी मिलती है तो आप उसका स्तर खुद समझ सकते है .
रही बात सरकारी काम में लेट लतीफी की तो भाई बहुत नियम कायदे बना रखे है सरकार ने अगर नियम से काम न करो तो नौकरी खतरे में . दुसरे लोग अपना papar वर्क सही से नहीं करते है फिर सरकारी कर्मचारी को कोसते है
तो भाई किसी को कोसना गलत है उअसकी मज़बूरी देखो की कितने नियम कायदे सरकार ने बना रखे है इसे ही लाल फीता शाही कहते है .
हाँ ये बात सही है की कुछ लोग काम चोर हो सकते है लेकिन सभी नहीं.
हमे तो इसी जन्म मे ये सौभाग्य मिल चुका है वो भ्यी पंजाब सरकार का । सही मे मौज है सरकारी नौकरी। आपके लिये भी शुभकामनायें
@ श्री अविनाश वाचस्पति
कहावत में तो पांचों उंगली ही कहा गया है .आप कहते हैं तो मान लेते हैं चार होंगी . आप पढ़े लिखे आदमी हैं.
सही कहा आपने "अंगूठा दिखलाते जायें
इस तरह सबसे
आगे बढ़ जायें।"
आपण घर भरता जाए देश जाए भाड़ में.
अंग्रेज चले गए अपने चौकीदार छोड़ गए जो इस देश के नागरिक होने के बावजूद अपने को दूसरों से अलग समझते हैं. एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी .
अरे बस करो भाई लोगो। आखिर हम भी सरकारी नौकर हैं।
हमने तो सुरेश जी का फोटो ध्यान से देख लिया है। सच मानिये अगर इनसे १० % मिलता जुलता चेहरा भी दिखा तो उनसे दस कदम दूर ही रहेंगे।
वैसे कोई रोहित की बात भी सुन रहा है की नहीं।
क्या आपको पता है, सिर्फ सरकारी नौकर ही तनख्वाह बाद में पाते हैं, टैक्स में एक एक पैसा पहले कट जाता है।
अस्पताल में प्रोफ़ेसर तक को भी वो सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होती जो, प्राइवेट कंपनियों में एक इन्टर्न को मिलती हैं।
एक सरकारी डॉक्टर को एक मरीज़ देखने के लिए सिर्फ डेढ़ मिनट मिलता है ओ पी डी में।
अब कहाँ तक गिनाएं , छोडिये आप मस्त रहिये।
बंधू एक रिवाज़ बन गया है की सही को मत देखो और अपनी हांकते रहो. सरकारी कर्मचारी ही सबसे इमानदार टैक्स पेयर है . नहीं तो प्राइवेट में तो basic salary कम कर बाकि चीजो को ज्यादा कर दिया जाता है डी ए को fluctuate कर उसे टैक्स से बाहर कर दिया जाता है.
सरकारी कर्मचारी किन परिस्तिथियों में काम करते है कभी सोचा है और प्राइवेट में काम करने बाले कितने आलिशान ऑफिस में काम करते है कितनी सुविधा होती है प्राइवेट ऑफिस में सरकारी ऑफिस के टोइलेट में आप घुसेंगे भी नहीं और प्राइवेट ऑफिस के टोइलेट में आप टाइम पास भी कर सकते है . काफी बांडिंग मशीन तो लगी ही होती है. किसी कॉल सेंटर में फ़ोन कीजिये आप अपना सर पीट लेंगे लेकिन आप को जरुरी जानकारी नहीं मिलेगी
आतंकवादियों से देश को बचाने वाले भी सरकारी कर्मचारी ही होते है. ना की किसी होटल की सिक्यूरिटी में लगे प्राइवेट सिक्यूरिटी गार्ड जो की आप मुंबई में देख चुके है .
मैं जिन सरकारी कर्मचारियों की बात कर रहा हूँ वो वो लोग है जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर इसे हासिल किया है ना की किसी की कृपा से.
नहीं बनना अब सरकारी कर्मचारी… मै उकता चुका हूँ ..हा हा हा
@रोहित और डॉ दराल
काश सारे सरकारी कर्मचारी ऐसे ही होते यह देश कुछ और होता .
हमारा पाला नही पडा कभी इन लोगो से, इस लिये क्या कहे?