मैं जब भी उज्जैन जाता हूँ तो अपने मित्रों के साथ दोपहर की चाय पीना वो भी गुमटी पर खड़े होकर नहीं भूलता हूँ, सबको फ़ोन करके बुला लेते हैं और चाय की गुमटी पर दोपहर के निश्चित समय पर सारे दोस्त इकट्ठे हो जाते हैं चा-पान के लिये।
इस दौरान मैंने गुमटी की एक विशेषता देखी थी जो मैं अपने ब्लॉग पर लगाना चाहता था, इस बार फ़ोटू खींच ही लाया, देखिये
सोनू टी स्टॉल क्या स्टाईल में लिखा है।
और ये रहे सोनू जी स्टॉल चलाने वाले –
इस फ़ोटो में एक और मजेदार बात देखिये कि दूध के तपेले को कैसे ढ़का गया है, अखबार के द्वारा। जब हमने बोला कि भई दूध में उबाल आ गया है अब इसको ढ़ंक दो तो उसने झट से अखबार हमारे हाथ से लिया और दूध के तपेले पर ढ़ंक दिया।
तस्वीरें अच्छी लगी। लोहडी पर्व की शुभकामनायें
चित्र के माध्यम से टी स्टाल का परिचय देने का धन्यवाद !!
100नू दा जवाब नहीं..
लोहड़ी और मकर संक्रांति की बहुत-बहुत बधाई…
जय हिंद…
दिलचस्प संस्मरणात्मक विवरण.
२००९ मै जब मै व्यास गया तो लोटते वक्त सुबह की चाय हम ने ऎसे ही एक जगह पी थी, लेकिन अखवार से क्यो ढक्की है?
aji yahi mazaa he, apne shahro ka…kalaakaari vnha jyada basati he…, chaay-paan karna, gumati par khade hokar..apna alag aanand hota he..ji, ham to kabhi kabhi taras jaate he..to ynhi mumbai me kisi gumati ko dhhundhte he.., par ynha vo baat nahi…////
wah
यानि अखबार की खुशबू वाला दूध।
मजेदार।
भई वाह.
क्या १००नू ब्लोग तो नही लिखता . ऎसा इसलिये अखवार से एलर्जी दिखी
मेरी बचपन की यादों में उज्जैन के किसी मुहलले शायद बुधवारा या कुछ और में बीते पलों की आहटें हैं । उज्जैन का नाम सुनकर सब याद आ जाता है । सोनू ने जो प्रयोग किया है वो उज्जैन के लोग ही कर सकते हैं ।