हम बहुत दिनों से देख रहे हैं कि सारे चिट्ठाचर्चा वाले चर्चाकार शायद हमसे नाराज हैं क्यों, क्योंकि हमें लगता है कि सब हमसे नाराज हैं, क्योंकि हमारे ब्लॉग की लिंक ही नहीं दी जा रही है। हमें लगता है कि यह हमें नहीं कहना चाहिये पर फ़िर भी आज पता नहीं क्यों फ़िर भी कह ही रहे हैं। हाँ भई हम कोई प्रसिद्ध ब्लॉगर तो नहीं फ़िर भी ब्लॉगर तो हैं, कुछ हमारे रोज के पाठक तो हैं ही जो कि हमें ब्लॉग लिखने के लिये प्रेरित करता है, अब देखते हैं कि आखिर हमें ये चर्चाकार कब तक इग्नोर करते हैं।
ब्लॉगर भले ही उम्र में बढ़े होते हैं पर फ़िर भी हमेशा यही मन करता है कि हमारी चर्चा कहीं न कहीं हो, क्योंकि कहीं न कहीं मन बालसुलभ या हठी होता है। सोचा था कि कभी भी यह बात न बोलेंगे और चुपचाप ब्लॉगरी करते रहेंगे। पर पता नहीं आज जब विन्डोज लाईव राईटर खोला ब्लॉग लिखने के लिये तो अपने आप ही कीबोर्ड पर ऊँगलियाँ चलने लगीं और यह सब लिख दिया।
विवेक भाई चिंता मत करिये जिस दिन मैं चर्चा करना शुरू करूंगा आपको ज़रूर याद रखूंगा।आपको संक्रांति की बहुत बहुत बधाई।
तिळ गुळ घ्या आणी गोड़ गोड़ बोला,यानी तिल-गुड़ खाईये और मीठा-मीठा बोलिये।
आप अच्छा विषय चुनकर लिखते हैं .. चर्चा होने से भी कोई उस लिंक से पढने नहीं आता है .. इन सब बातों की चिंता न करें .. आप अपने ब्लॉग को प्रभावी बनाने की कोशिश करें .. आपके पोस्ट युगों युगो तक पढे जाएंगे .. हो सकता है अब चिट्ठाकारों काध्यान आपके ब्लॉग में जाए !!
मेरी तो शामत है विवेक भाई ,जब किसी की पोस्ट चर्चा में लगाता हूं तो शिकायत मिलती है , पढता टीपता हूं नहीं , बस चर्चा में लगा देता हूं । आपको नियमित पढता टीपता हूं तो शायद जाने अनजाने आपकी पोस्ट छूट जाती होगी, फ़ंस गया न । आज की आपकी शिकायत भी मेरी चर्चा के तुरंत बाद आ गई है और आपकी शिकायत को बाकायदा आज की चर्चा में ही दर्ज़ किया गया है , देख लीजीएगा ॥
अब बात चिट्ठाचर्चाकार के रूप में : – दूसरों का तो मैं नहीं कह सकता ,मगर मेरा तो सचमुच ही कोई criteria नहीं है , कोई दिन निश्चित नहीं , कोई ब्लोग ,कोई ब्लोग्गर,कोई पोस्ट ऐसी नहीं होती जिसके लिए मैं सोच के चलता हूं कि मुझे चर्चा में इसे शामिल करना ही होगा , और यही विश्वास दिलाता हूं कि जिस दिन ऐसा मन ऐसा पक्षपाती होगा, उस दिन से चर्चा बंद कर दूंगा , वो मैं वैसे भी अब अपनी चर्चा को विराम देना चाहता हूं ।क्योंकि चर्चाओं की कोई कमी नहीं रही है , फ़िर जैसा कि संगीता जी ने सही कहा कि चर्चा होने से भी कोई उस लिंक से पढने नहीं आता । हालांकि मैं खुद कई पोस्टें चर्चा में घुसने के बाद ही पढता हूं । अब इससे ज्यादा सफ़ाई में क्या कहूं
अजय कुमार झा
भाई आपको नियमित पध रहा हू.
टिपियाता नही हू आगे ध्यान रखून्गा
अच्छा लिखना छोड दोगे तो चर्चा भी हो जायेगी पर आप ऐसा करना मत.
पीड़ा कभी ना कभी प्रदर्शित हो ही जाती है
मैं तो नियमित पाठक हूँ, बस इतना ही कह सकता हूँ। चिट्ठाचर्चा ब्लॉग की बात तो नहीं कह सकता, किन्तु बाकी लोगों ने तो जानबूझ कर ऐसा नहीं किया होगा इतना तो आश्वस्त मैं हूँ
बी एस पाबला
विवेक भाई-हमने तो चार दिन पहले ही चर्चा प्रारंभ की है। अजय भाई का कहना सही है। चार दिन मे एक दो चर्चा मे तो आपके लिंक मिल जाएंगे। आप तलाश करिये। शायद उस चर्चा पर नही जा पाए होगें।
मै तो पुरा समय देता हुँ। जिसकी चर्चा करता हुं उसका ब्लाग भी पढता हुं, किंतु टिप्पनी करने का समय नही मिल पाता। बाकी अजय जी ने कह ही दिया है।
अरे जाने दीजिये जनाब ..न हो चर्चा, रहें अपनी चर्चा के साथ खुश ..हमारा, आपका धर्म है लिखना …बस लिखिए लोग पढ़ते हैं ,टिपियाते हैं काफी है हमारे लिए ..वैसे चर्चा करना कौन बड़ी तोप है. आज हम कर देते हैं एक शुरू, आपस में करते रहेंगे एक दुसरे के ब्लॉग की चर्चा..
अजय झा जी…हाय हाय!!
आईये, आंदोलन की राह पकड़ें. 🙂
ईंट से ईंट बजायें…
मजाक अलग…लेकिन आप कब से इस बात की चिन्ता करने लगे भई..आपको पाठकों की क्या कमी आन पड़ी. लिखिये….
अच्छा जी , हमारी ही हाय हाय ,नहीं जी एलियन जी का आंदोलन नहीं चलेगा , हम खुद इस आंदोलन को चलाएंगे , झाजी हाय हाय , पाजी हाय हाय , वैसे एलियन जी ,आपके यहां भी ईंट वैगेरह होती क्या ….
अजय कुमार झा
सबका नाम ले रहे थे तो एलियन भी हाय हाय कर ही डालते भाई..बहुत शर्माते हो आप…हा हा!!
ईंट यहाँ शो के लिए लगाते हैं मकान में नकली वाली…मगर बजाई तो जा ही सकती है. 🙂
क्या विवेक जी,,
आप भी ना…क्या बात ले बैठे….!!
अरे हम कहते हैं ..
जोन गाँव में मुर्गा नहीं बोलता का उहाँ बिहान नहीं होता है …??? हाँ नहीं तो…
चर्चा करेंगे तो ….उनके ब्लॉग की ही शोभा बढ़ेगी …
नहीं करेंगे तो …who the hell is the looser ???? Certainly not you ..!!!
मस्त रहिये….जिनको जानना चाहिए ..वो सबलोग जानते हैं ..आप बहुत अच्छा लिखते हैं….
और हाँ अब अब आप बोल दिए हैं ना…तो अभी चार दिन तक सारे पिरोग्राम आप द्वारा ही प्रायोजित होंगे …फिर वही टांय-टांय फिस..
nice
विवेक जी, इसमें परेशान होने की क्या बात है? चर्चामंच पर चर्चा और पोस्ट की गुणवत्ता में कोई सीधा संबंध नहीं होता। और ब्लाग भी अब तो इतने हैं कि चर्चाकारों की भी मजबूरी है। आप लिखते रहें जो आपको पढ़ते हैं वो आयेंगे ही, चाहे चर्चा हो या न हो।
विवेक भाई, किसी ब्लागिया चर्चा का मोहताज नही है आपका ब्लाग. आपके ब्लाग मे उपस्थित आलेखो की उपयोगिता सर्च इंजनो के द्वारा भी बनी रहेगी.
विवेक भाई आप मस्त ब्लोगिग करिए जैसे करते है।।।।।।
संजीव तिवारी जी की बात से सहमत…
आप लिखते रहें बस…
और आपसे किसने कह दिया कि चि्ठ्ठाचर्चाओं में अच्छे-अच्छे चिठ्ठे शामिल किये जाते हैं? आपने मेरा चिठ्ठा कब और कितनी चर्चाओं में देखा है, कभी शोध की्जियेगा…। अब सुन लीजिये खरी-खरी (हालांकि इससे कई पिछवाड़े सुलग सकते हैं) फ़िर भी आपने विषय छेड़ ही दिया है तो चिठ्ठा चर्चा में शामिल होने के विभिन्न क्राईटेरिया बता देता हूं…
1) अपना चिठ्ठा किसी खूबसूरत महि्ला के नाम और फ़ोटो के साथ बनाईये… तड़ से चर्चा में आयेगा…
2) आपस में दोस्तों का एक गुट बनाकर खुद ही चर्चाकार बन जाईये… एक गुट को दूसरे से भिड़ाते रहि्ये, कोई न कोई बिन्दु निकालकर आलोचना करते रहिये, एक-दूसरे के पोस्ट को बैकलिंक करते रहिये, शायद गूगल रैंक में पोस्ट ऊपर आ जाये… (इसे कहते हैं "गैंग" बनाना)
3) किसी विवादास्पद मुद्दे को लेकर जमकर भड़ास निकालिये, हो सके तो चर्चाकार को ही गरिया डालिये्…
4) एक-दूसरे की टांगखिंचाई, आपसी आलोचना, महिलाओं-नारी पर फ़ालतू सी टिप्पणी कीजिये, देश-दुनिया जाये भाड़ में, किसी भी फ़ोकटिया मुद्दे पर बहस चालू कीजिये…
उपरोक्त चार में से दो (विशेषकर प्रथम दो बिन्दु) पर भी अमल कर लेंगे तो नियमित रूप से चर्चा में शामिल रहेंगे… तथास्तु… 🙂
कल्पतरु तो सभी की इच्छा पूरी करता है…
आप कंहा उलझ गए.. जब ऐसा लगे तो दिल से पूछिए की "किसके लिए ब्लॉग लिख रहे हें?"
आपको सही सही और उत्तम राय सुरेश चिपलुणकर जी ने दे दी है जो हम देना चाहते थे.
आप स्वयम का एक चर्चा ब्लाग शुरु करें. बाकी सब काम अपने आप होजायेगा.
आपको इसके लिये अग्रिम शुभकामनाएं.
रामराम.
आपने अपनी बात जोरदार तरीके से उठाई। इसकी लीजिए बधाई।
चर्चाकार भी आदमी है। हमारी आप की तरह साधारण सा। यदि उसे आप इतनी ऊँचाई पर बैठा देंगे कि आपके ब्लॉगपोस्त की अच्छाई या कराबी का आइना ब जाय तो आपको निराशा हाथ लगने की पूरी सम्भावना है। भौतिक रूप से यह किसी एक व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है कि वो दस-बारह हजार चिट्ठों के रोज देखे फिर उन्हें पढ़कर अच्छा और खराब छाँटे और फिर उनकी वरीयता सूची बनाकर चर्चा लिखे और पोस्ट करे। निश्चित ही एक सामान्य अपरिचित ब्लॉगर की पोस्ट रैण्डम आधार पर ही चर्चा में स्थान पाती होगी। बिल्कुल लॉटरी माफ़िक।
इसके अतिरिक्त चर्चाकार की व्यक्तिगत पसन्द और नापसन्द पर पाबन्दी लगाने की चेष्टा भी बेमानी है। उसने अपना समय और श्रम दिया है, तो अपनी सोच और समझ के अनुसार ही चर्चा करेगा।
यह खुशी की बात है कि अब चर्चाकारों की संख्या बढ़ रही है। इसका लाभ हम चिट्ठाकारों को मिलना तय हैं।
एक बात और… मुझे तो लगता है कि आपकी पोस्ट पर टिप्पणी करने वाला प्रत्येक पाठक भी एक तरह से चर्चाकार ही है आपकी पोस्ट का। उन्हें धन्यवाद दीजिए और मस्त रहिए।
चर्चा पे चर्चा
विवेक जी लोग तो कहने पे परेशान होते हैं आप न कहने पर 🙂
(कुछ तो लोग कहेंगे के तर्ज पर)
गुणी जानो ने कई सुझाव दे दिये हैं चाहें तो आजमा सकते हैं .
दरअसल बात यह है की भारतीय मीडिया की तरह हिन्दी ब्लॉगिंग में भी विशेषज्ञ की अभी पहचान बननी बाकी है. ज्यादा लोग कवि या साहित्यकार हैं तो चर्चा उनकी ही ज्यादा होगी .
हाँ यह सही है लोग पढ़ तो लेते हैं लेकिन टिपियाने में कंजूसी कर जाते हैं . फिर वही भारतीय चरित्र .
आप तो गीता के संदेश पर चलते रहिए . कर्म कीजिये फल की चिंता मत करिये .
कुछ ज्यादा तो नहीं हो गया न !
भैय्या जी आपकी चर्चा कर आज हमने आपकी लिंक दी है . कृपया समयचक्र की चिट्ठी चर्चा जरुर देखा करें ..आपकी चर्चा मै हमेशा करता रहता हूँ पर लगता है आप ब्लॉग का अवलोकन नहीं करते है .
विवेक जी, लिखते रहिये। चर्चे तो अपने आप हो जाते हैं।
हम तो आपको पढ़ते हैं जी।
विवेक जी आप बहुत अच्छा और सार्थक लि्खते हैं, किसी प्रमाणपत्र की जरूरत ही नहीं। हम सिद्धार्थ जी की बात से सहमत हैं ।