हाँ हम भी इंसान हैं भले ही किसी से भी कितना भी प्यार करें पर बुरा तो लगता है भले ही वह बोले हमें या दुनिया का कोई ओर व्यक्ति।
कोई भी अपनी कमजोरियों को सुनना पसंद नहीं करता है और अपनी कमजोरियों को सब छुपाते हैं मैं कोई भगवान तो नहीं हूँ जो अपनी कमजोरियों के सामने आने पर असहज महसूस न करुँ। गुस्सा आना तो स्वाभाविक है, और ऐसे कितने लोग होंगे जो ऐसी परिस्थिती में अपने ऊपर काबू रख पाते होंगे। शायद कोई नहीं।
बढ़ती महत्वाकांक्षाएँ रिश्तों में दरारें भी ला सकती हैं और अपनापन खत्म भी कर सकती हैं, इंसान को अपनी इच्छाएँ सीमित ही रखनी चाहिये कि अगर कोई इच्छा अगर पूरी भी न हो तो ज्यादा दुख न हो।
हमने तो अपने जीवन के शुरुआत से कभी भी अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति ही नहीं की, जो मिलता गया बाबा महाकाल का आशीर्वाद से होता गया। और आज भी केवल उतनी ही चीजों की जरुरत महसूस होती हैं, जो कि जिंदा रहने के लिये बहुत जरुरी होती हैं। क्योंकि विलासिता का जीवन न हमें रास आया और भगवान न करे कि हमें विलासिता देखनी भी पड़े।
सभी बुराईयों की शुरुआत की लकीर विलासितापूर्ण जीवन से ही शुरु होती है, जब इंसान की आँखों पर पट्टी बँध जाती है, और वह केवल और केवल अंधे होकर भागता रहता है, जो कि उसका है ही नहीं, केवल क्षणिक सुख के लिये।
न साथ कुछ लाये हैं न लेकर जायेंगे, खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जाना है, फ़िर भी इस नश्वर संपत्ति का मोह, वो भी इतना अधिक नहीं होना चाहिये, अपने मन की इस गंदगी को अपने मन के खोह में ही छिपाकर रखना चाहिये, ऐसी खोह में जिसे कोई देख न सके।
केवल अपने पास इतना रखना चाहिये कि अपनी जिंदगी आराम से निकल जाये, ज्यादा मोह भी बुराई की जड़ है। हमेशा अपनी हद में रहना चाहिये, जिससे आप को पता रहे कि आप किसी का मन नहीं दुखा रहे हैं, और अपनी मर्यादा की सीमा का उल्लंघन भी नहीं कर रहे हैं।
"कोई भी अपनी कमजोरियों को सुनना पसंद नहीं करता है"
अपनी प्रशंसा से मुग्ध होना और अपनी आलोचना से क्षुब्ध होना मानवीय प्रकृति है। अपनी प्रकृति पर नियन्त्रण रख कर ही इनसे बचा जा सकता है।
आपका इस पोस्ट से बहुत ही अच्छा सन्देश मिल रहा है। धन्यवाद!
अध्यात्मिक पोस्ट है आत्म मंथन के लिए.
मन के थनों से करें चिंतन
अमली जामा पहनायें
तो सब समझ जायेगा
जीवन का स्तर उपर जायेगा।
स्वयं की कमजोरियों को चाहे हम दूसरों के मुख से सुनना पसन्द न करें लेकिन हमें स्वयं को अपनी कमजोरियों के बारे में ज्ञान जरूर होना चाहिए। तभी हम जान पाएंगे कि हमें क्या चाहिए? हमारा मन यदि विलासिता पूर्ण जीवन चाहता है और हम सादगी भरा जीवन जीते हैं तब हमें कभी भी शान्ति नहीं मिलेगी ऐसा ही सादगी पूर्ण जीवन की चाहना पर होता है। इसलिए अपनी कमजोरियों और अच्छाइयों के बारे में जरूर जानना चाहिए चाहे किसी और से या स्वयं से।
सही बातें कही हैं।
पर आज सुबह सुबह ऐसी आध्यात्मिक बातें !
सुहानी धुप खिली है बाहर, कई दिनों के बाद।
आनंद लें।
लेकिन क्या करियेगा,यथार्थ तो यही है न .
सहमत हूं।
I totally agree with you rastogi ji
बहुत अच्छी पोस्ट !!
बात तो सही है.
CHINTANIY UTTAM VICHAR…