यह बात में कई सालों से सोच रहा हूँ कि हमारा मन क्यों अशांत होता है जब कोई अपना हमसे रुठ जाता है। या कोई अपना बीमार होता है या उसे कोई परेशानी होती है।
हमें कोई परेशानी नहीं होती है परंतु फ़िर भी मन अशांत रहता है किसी कार्य में मन नहीं लगता है, स्वस्थ्य होते हुए भी शरीर अस्वस्थ्य जैसा लगने लगता है, दिल तो बैठ ही जाता है और किसी अनहोनी की आशंका से हमेशा धाड़ धाड़ हथौड़ा बजता रहता है।
हमारी कार्य करने की क्षमता अपने आप खत्म हो जाती है, भूख लगनी बंद हो जाती है, नींद नहीं आती है, सिर भारी रहने लगता है, उल्टी जैसा होता है और भी पता नहीं क्या क्या, सभी नहीं लिख पाऊँगा।
प्यार किसी अपने से हो यह जरुरी नहीं, जहाँ आत्मिक जुड़ाव होता है वहाँ पर भी यही होता है, वो आत्मिक जुड़ाव किसी इंसान से भी हो सकता है, किसी भौतिकवादी वस्तु से भी हो सकता है।
जिससे हम आत्मिक रुप से जुड़े होते हैं, जिससे हम सच्चा प्यार करते हैं, जिसे हम खुश देखना चाहते हैं, जो हमारी रग रग में बसा होता है, जिसे हमारा रोम रोम पुकारता है। यह सब उसके लिये होता है, क्योंकि कहीं न कहीं हमें कुछ खोने का डर होता है।
और जैसे ही वह डर खत्म हो जाता है, सब अपने आप ठीक हो जाता है, कार्य करने की क्षमता आ जाती है जोश के साथ कार्य करने लगते हैं, जोर से भूख लगने लगती है, गहरी नींद आती है।
आपके साथ भी ऐसा होता है क्या …..
मुझे लगता है यह सभी के साथ होता होगा.
क्यूंकि वे अपने होते हैं .. और अपनों के कष्ट से तो शरीर में असंतुलन आना ही है!!
विवेक से संत बनने की ओर अग्रसर। इसमें बहुत रस है। जीवन रस से पगी हुई पोस्ट। अत्युत्तम विचार।
बिलकुल.
हमारे साथ भी ऐसा ही होता है, तो शायद सभी के साथ होता हो।
हमारे साथ भी हमेशा ऐसा होता है. बढिया लेख
aisa to sabhi ke sath hota hay sir
ye ek lailaj bimari hay jo insanon me paai jati hay.
is bimari ke karan hin hum aur aap rishton ki gahraaiyon ko samajhne lagte hayn.
aapka alekh umda hay.
man ko chhune ke liye aapke shabd kafi hayn.
ये मन जो न कराये वो कम है
aisa to aaj mere sath subah se ho raha hai magar karan dhoondhe nhi mil raha………kahan khojein.
मानसिक स्थिति का शारीरिक प्रभाव तो पड़ता ही है।
इन्हें साइकोसोमातिक लक्षण कहते हैं।
यानि मनस्थिति की वज़ह से शरीर में कष्ट का आभास।
कई बार क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रिया भी होती है …देखा गया है कि विश्व की सर्वश्रेष्ठ कृतियाँ आपद काल में लिखी गयी हैं ….!!
ईमेल से प्राप्त –
जी हाँ ऐसा होता तो है. कारण शायद यह कि जिनके साथ अंतरंगता और प्रगाढ़ स्नेह होता है उनसे मानसिक-भावनात्मक तरंगें अनजाने ही जोड़े रखती हैं.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com