हम मनोरम प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हुए तिरुमाला पहुँच गये, हाँ एक बात और कहीं भी अपनी टैक्सी न रोकें क्योंकि सड़कें बहुत घुमावदार हैं, और दुर्घटना होने का बहुत डर रहता है। और एक बात जब तिरुपति टोल से निकलते हैं तो आपको अपना सामान कन्वेयर बेल्ट वाली एक्सरे मशीन से निकालना पड़ता है और अगर वहाँ के सुरक्षाकर्मियों को शक होगा तो वो समान की खोलकर तलाशी लेंगे।
तिरुपति पहुँचकर सबसे पहले हमने अब्दुल (टैक्सी ड्राईवर) का नंबर मोबाईल और कागज पर लिख लिया। यहाँ पार्किंग फ़्री है उसका कोई पैसा नहीं देना पड़ता है। हमें बाल देने थे तो हमने अब्दुल को बोला कि पहले हमें बता दो के बाल कहाँ देने हैं और मंदिर का शीघ्र दर्शनम टिकट कहाँ मिलेगा। उसने टैक्सी स्टैंड पर लगाकर हमें दिखाने आने लगा, तभी एक ठग टाईप का आदमी आया और कहने लगा कि आपको बाल देने हैं तो मैं सब बन्दोबस्त करवा देता हूँ, ढ़ाई सौ रुपये में बाल के साथ साथ तैयार होने के लिये कमरा भी दिलवा दूँगा। पर हमने उसे अपनी लठ भाषा बोलकर भगा दिया।
फ़िर हम चल दिये अब्दुल के पीछे पीछे, हम अपने साथ एक जोड़ी वस्त्र और नहाने का समान लेकर आये थे जिसे साथ में लेकर हम उसके साथ चल दिये। अब्दुल तकरीबन ६० से ज्यादा बार यहाँ आया हुआ था तो उसे बहुत ही अच्छॆ से सब चीजें पता थीं। उसने हमें बताया कि यहाँ देवस्थानम है, यहाँ मुफ़्त में बाल दिये जाने की व्यवस्था है, जो कि तिरुपति देवस्थानम की ओर से दी जाती है, वहाँ अपने जूते उतारकर जाना पड़ता है।
हम जैसे ही लाईन में लगे तो चलते ही गये, हाल के पहले हमें एक टोकन दिया गया और आधी ब्लेड, अंदर हाल में पहुँचे तो देखा कि बहुत सारे नाई वहाँ बैठे हुए हैं, और हमारे टोकन पर जिस नाई का नंबर लिखा हुआ था, हम भी उसके सामने लाईन में जाकर खड़े हो गये। तो उसे लगा कोई साहब आदमी आ गये हैं, उसने हमारे आगे वाले ५ लोगों को बाईपास कर हमें पहले बाल देने के लिये बैठा लिया, पानी से बाल गीले किये और जो आधा ब्लेड हमें दिया गया था, उससे हमारी हजामत बनाना शुरु कर दी, फ़िर हमसे पूछा कि दाढ़ी भी करनी है, हमने हाँ में अपनी गर्दन हिला दी, तो दाढ़ी भी बना दी गई। फ़िर धीरे से बोला पैसा दो न, हमने पहले घूरकर उसकी तरफ़ देखा, फ़िर भी बोला पैसा दो न, हमने चुपचाप अपनी जेब से दस रुपये का नोट निकाला और उसे थमा दिया, तो मुँह बनाते हुए उसने रख लिया। तभी देखा कि एक आदमी वहाँ आया और वे टोकन इकट्ठे करने लगा तो जितने भी नाई थे सबने अपने अपने टोकन दिये और साथ में दस दस के दो या तीन नोट भी रिश्वत के तौर पर पकड़ा रहे हैं। सबसे टोकन इकट्ठे करने के बाद हाल के बाहर एक कंप्यूटर लगा हुआ है जहाँ पर बारकोड रीडर से उन टोकनों को पंच किया जा रहा था, और जो दस दस के नोट बीच में से निकल रहे थे, उन्हें अपनी जेब में रखता जा रहा था। हम तो उन लोगों की बेशर्मी को देख रहे थे कि देवस्थान पर रिश्वत का नंगा नाच कर रहे हैं, और कोई भी इन लोगों के विरुद्ध बोलने वाला नहीं है। और अगर किसी को बोलो भी तो हिन्दी या अंग्रेजी न जानने का नाटक करने लगेंगे।
फ़िर वहीं से नीचे जाने का रास्ता था, जहाँ नहाने की व्यवस्था थी, महिलाओं और पुरुषों के लिये अलग अलग गुसलखाने बने हुए हैं और गरम पानी भी उपलब्ध था, क्योंकि तिरुपति में अच्छी खासी ठंड थी।
हम वहीं तैयार हुए और अपना समान लेकर चल दिये अपनी टैक्सी की ओर अपना समान रखने के लिये । वैसे वहाँ पर अमानती समान घर उपलब्ध है, वहाँ पर भी समान रख सकते हैं। पर हमें दर्शन करने के बाद फ़िर बहुत लंबा घूमकर इस स्थान पर आना पड़ता इसलिये हमने टैक्सी में ही हमने अपना समान रखना उचित समझा।
कुछ और चित्र देखिये –
पहले चित्र में देखिये बालाजी का मंदिर दिखाई देता है, और दूसरे चित्र में वहीं पास में ही एक मंदिर में चबूतरे पर बैठकर वहाँ की स्थानीय भाषा में भजन हो रहे थे, हालांकि हमें बोल समझ में तो नहीं आ रहे थे परंतु, बहुत ही आकृष्ट कर रहे थे।
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विधिवत दर्शन पूजन की तैयारी चल रही है …..
बहुत अच्छा लग रहा है आपके साथ साथ पहुँचते. जारी रहिये.
Waah, Sahaab aabhar vyakt karane ko shabd kam hai !! Pardes me bhi aapke madhyam se ishwar kripa ho gai…
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
rochak lga.
केशदान भी हो गया. वैसे यार कहा लाइन मे लगे रहते १० रुपये मे पूरी कटिन्ग.
रोचक यात्रा संस्मरण …
दस रूपये में कटिंग –सौदा सस्ता रहा।
कैसा लग रहा है , भगवन के घर में रिश्वत देखकर ?
वाह बहुत आनन्द आ रहा है इ यात्रा-कथा में. कई साल पहले गई थी तिरुपति, अब आप के संस्मरण के ज़रिये फिर से पहुंच पा रही हूं वहां.
'पर हमने उसे अपनी लठ भाषा बोलकर भगा दिया। '
जरा हमें भी तो सुनाइये ये लठ भाषा क्या होती है, उसका नमूना पेश किया जाए…॥:)
बहुत ही रोचक विवरण
बहुत ही रोचक विवरण .. आपके साथ हमलोग भी यात्रा का आनंद ले रहे हैं !!
आपने पाठकों को यह नहीं बताया कि बाल कटवाने के लिए वाराह स्वामी गैस्ट हाउस जाना पड़ता है। और वहां बड़े बड़े अक्षरों में कई भाषाओं में साफ साफ लिखा है कि नाइयों को बाल कटवाने के बाद पैसा नहीं दें…