लालच बुरी बला है सबको पता है फिर क्यों बला से गला मिला रहे हैं ?
नेट में जो आनंद है वो इन नोटों में कहां ? बेलालची बनिए और बनियों को शर्मिन्दा कीजिए। नेट के आनंद के आगे इन कागजी नोटों की क्या बिसात ? फिर भी अगर अपनी मेहनत से मिलते हैं तो बुरी बात नहीं है। ऐसे कई अरब पांच बरस पहले मुझे भी मिले थे, खूब चर्चा हुई थी। आफिस में किसको कितने कितने मिलेंगे, इसकी भी सूचियां तैयार हो गई थीं। बाद में सब टांय टांय फिस्स। मैंने भी सबको कह दिया था कि अगर वास्तव में भी मिलते हैं तो भी वास्तव में आप सब बांट लीजिए और सबसे कम हिस्सा मुझे दीजिएगा। जिसे मैं अपने से भी अधिक जरूरतमंदों में बांट दूंगा।
'अदा' जी ठीक कह रहीं हैं विवेक जी! आपको तो याद ही होगा कि कैसे एक बार मैं उनके घर तक जा पहुँचा था। ये फोटोग्राफ़ भी मैंने तब ही लिया था। इसी फोटोग्राफ़ को छुपाने के लिए तो 'अदा' जी ने साथ वाले गैरेज के नोट मुझे दे दिए थे! आपने तो सब गड़बड़ कर दी 🙂
Itniiiiiiiiiiii currency.. bhai main kisi ko nahin bataunga aur aap bhi mat bataiye lekin ye post jaldi se hata ke mera share bhi de diziye.. 😉
ऊपर उड़ने का नईं, वो बड़े बाप का माल है भीड़ू…
अब्बी अबू आजमी लन्दन गयेला है इस वास्ते ये पैसा अपुन ने उदर रखेला है. बैंक में नईं डाल सकता था, बैंक वाले के पास डाल दिया…
श्यानपंती नईं करने का नईं तो कम हो जायेगा…
अपना भी रेजिगनेशन फ़ाईनल समझिए ..कल से ही इस गरीब कुटिया का चौकीदार बन जाते हैं ..बस थोडे से ही नोट तो संभालने हैं
अजय कुमार झा
अजय जी के साथ
मै भी आऊँगा
आपको बातों में लगाऊँगा
और फिर —-
अरे… मुझे भी नॊट गिनने पर लगा लो भाई.या फ़िर रसोईया बगेरा ही बना लो
मैं भी वर्मा जी के साथ आऊंगा..
डॉलर और पाउण्ड, विदेशी हाथ लगता है ।
पराई सम्पत्ति पर नजर मत रखो, मन्ने वापस करो
Vivek ji…galat baat hai..
maine aapko apne garaaz ka foto dhikaya to aapne bana liya…
bahut hi galat baat hai…
haan nahi to…!!
विवेक भाई और बाकी सभी लालची साथियों।
लालच बुरी बला है सबको पता है
फिर क्यों बला से गला मिला रहे हैं ?
नेट में जो आनंद है वो इन नोटों में कहां ?
बेलालची बनिए और बनियों को शर्मिन्दा कीजिए। नेट के आनंद के आगे इन कागजी नोटों की क्या बिसात ? फिर भी अगर अपनी मेहनत से मिलते हैं तो बुरी बात नहीं है। ऐसे कई अरब पांच बरस पहले मुझे भी मिले थे, खूब चर्चा हुई थी। आफिस में किसको कितने कितने मिलेंगे, इसकी भी सूचियां तैयार हो गई थीं। बाद में सब टांय टांय फिस्स। मैंने भी सबको कह दिया था कि अगर वास्तव में भी मिलते हैं तो भी वास्तव में आप सब बांट लीजिए और सबसे कम हिस्सा मुझे दीजिएगा। जिसे मैं अपने से भी अधिक जरूरतमंदों में बांट दूंगा।
'अदा' जी ठीक कह रहीं हैं विवेक जी!
आपको तो याद ही होगा कि कैसे एक बार मैं उनके घर तक जा पहुँचा था। ये फोटोग्राफ़ भी मैंने तब ही लिया था।
इसी फोटोग्राफ़ को छुपाने के लिए तो 'अदा' जी ने साथ वाले गैरेज के नोट मुझे दे दिए थे!
आपने तो सब गड़बड़ कर दी 🙂
विवेक जी आपके यहाँ ड्राईवर की जगह खाली है क्या ?? 🙂
मुंह में पानी तो मेरे भी आ रहा है लेकिन ये नोट तो नकली लग रहे हैं। क्युं भाई साहब पहली एप्रिल तो अभी दूर है
साहब जी, नमस्ते..ताऊ पहेली में ३ महिने तक चौकीदारी का अनुभव है..पता कर लिजियेगा…तो कल से नौकरी पक्की समझूँ??
Sir
mujhe isee kamare men baitha kar blaaging kee izazat deejiye
आप को "आय कर" देने की भी ज़रूरत नही है क्यू की आप मुझे "पाये कर" देने वाले हो ! 🙂
तुम भी यार विवेक बैक की तिज़ोरी को झाडू लगाने अन्दर भेजा और मोवाइल से फोटो खीच लाये. अगे से मोबाल बाहर रख के जाया करो. हा नही तो…. (अदा जी से साभार)