आज सायंकालीन सैर के साथ हम सुन रहे थे गोविंद प्रभू का लेक्चर वैदिक स्टाईल ऑफ़ मैनेजमेन्ट। जिसमें उन्होंने क्षत्रिय और ब्राह्मण के गुण बताये हैं।
आज फ़िर सायंकालीन सैर के लिये हम निकल पड़े मरीना बीच की ओर, फ़िर वहाँ समुद्र के किनारे लहरों को देखते हुए घूम रहे थे और जहाँ जनता थोड़ी भी कम होती थी वहीं युगलों की जुगत जमी रहती थी और युगल समुन्दर के किनारे एक दूसरे के आगोश में, एक दूसरे की बाँहों में, और भी न जाने कैसे कैसे बैठे थे जिससे बस वह अपने साथी के ज्यादा से ज्यादा समीप आ सके। खैर यह तो सभी जगह होता है कोई नई बात नहीं है।
फ़िर जब वापिस आने को हुए तो लेक्चर खत्म हो चुका था और एफ़.एम. पर गाने सारे तमिल भाषा में आ रहे थे, जो कि अपनी समझ से बाहर थे तो अपनी एम.पी.३ लिस्ट पर नजर डाली तो गुलाल के गाने नजर आये, बस मन चहक उठा, “मन बोले चकमक ओये चकमक, चकमक चकमक”, “रानाजी मोरे गुस्से में आये ऐसे बलखाये आय हाय जैसे दूर देश के टॉवर में घुस जाये रे ऐरोप्लेन” ।
जैसे दूर देश के टावर मे घुस जाए रे एरोप्लेन का तमिल वर्जन सुनते ..दिव्य ज्ञान की प्राप्ति का सुख मिलता आपको विवेक भाई ..बहरहाल .बोल कुछ ऐसे होते उसके ..अईयो रप्पा ..रांगा तिल्लम पो ची कान्नला री …न हो तो खुदे गा के देखिए
अजय कुमार झा
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_26.html
लगत है सारा वजन मद्रास में उतार आयेंगे आप..बढ़िया है टहलिए और सुनिये.
आज कल वास्तविक मस्ती आपकी ही चल रही है.
क्या भैया, काहे को हमरे मदरास को आप बदनाम किये हुए हैं.. यहाँ मुंबई वाली बात आपको कहाँ देखने को मिलती होगी.. 😀