मैं एक छोटा सा अदना सा इंसान,
मुझसे कितनी उम्मीदें हैं,
इस दुनिया को,
खुद को,
अपनों को,
जिनका संबल हूँ मैं,
और जो मेरे संबल हैं,
रेत के महल खड़े करने की,
रोज कोशिश करता हूँ,
पर पूरा होने के पहले ही,
भरभरा कर गिर जाता है,
कब यह मेरा महल पूरा होगा,
और कब मैं आजाद होऊँगा,
मुझे आजादी चाहिये,
अपने विचारों की,
आहत मन को,
सँवारने की,
आहत दिल को,
दिलासे की,
आओ समय देखो,
हे गिरधारी देखो,
मैं कहाँ कौन से,
चक्रव्यूह में हूँ,
मुझे भी देखो…
बहुत सही मनोभाव उकेरे हैं आपने!!
सारे उत्तर से वहीं से ही आने हैं ।
वाह,अच्छी पुकार है.