रोज ही जिंदगी दौड़ती जा रही है, अपनी रफ़्तार से । कहने को तो मुंबई में रहते हैं, रफ़्तार जिंदगी की देखते ही बनती है, गर कभी रफ़्तार से छुट्टी मिल जाये तो मानो लॉटरी खुल गयी हो । सप्ताहांत पर पूर्ण विश्राम और अपने पारिवारिक मित्रों के साथ मेलजोल। पर एक बात है मुंबई में सामाजिक दायरा खत्म सा होता दिखता है, हमारे बहुत सारे मित्र हैं, जिसमें सभी श्रेणी के मित्र हैं जिगरी, लंगोटिया, नौकरी के दौरान जिनसे मन मिले इत्यादि।
अभी २ दिन पहले ही हमने अपने एक मित्र को फ़ोन लगाया तो पता चला कि उनका मोबाईल व्यस्त है और आवाज आ रही है “थोड़ा वेड़ानी काल करा”। मोबाईल भी करो तो अपना कॉल वेटिंग पर, बात हो जाये वही बहुत है, मिलना तो दूर की बात है, और फ़िर यहाँ की सभ्यता सीख गये हैं कि अगर मोबाईल व्यस्त है तो अपने आप ही काट दिया जाये और फ़िर याद रखकर बाद में वापिस से बात की जाये या फ़िर उसका फ़ोन आ जाये, पर फ़ोन आ जाये तो बहुत ही धन्य हैं आप कि आपके मित्र ने इतनी व्यस्तता के बीच आपसे बात करना जरुरी समझा, फ़िर एक बात यह भी है कि जब वह फ़्री हो और आप व्यस्त हों तो फ़िर अपन फ़ोन काटते हैं और एस.एम.एस. करते हैं कि “अभी व्यस्त हूँ, थोड़ी देर बाद कॉल करता हूँ” और वापसी में मित्र का एस.एम.एस. आ जाता है “ओके”। तो अपने मित्रता के संबंधों में भी बहुत सारी चीजें आ गयी हैं। पर फ़िर भी केवल दिल की बात है कि घनिष्ठता कम नहीं हुई है, क्योंकि हम लोगों ने मतलब मित्रों ने आपस में बहुत सारे ऐसे पल बिताये हैं जो कि हमें बहुत करीब ले आये हैं और एक दूसरे की परेशानी समझते हैं। इन छोटी सी बातों का हमारे मधुर संबंधों में कोई फ़र्क नहीं पड़ता है।
यहाँ मुंबई में रिश्ते भी समय सीमा के भीतर निपटा लिये जाते हैं जिससे दोनों पार्टी खुश, क्योंकि सभी का समय कीमती है।
हमारे जिगरी मित्र से फ़ोन पर बात हो रही थी अरे वोही जिनका मोबाईल व्यस्त आ रहा था, उन्होंने अपने ऑफ़िस से फ़ोन किया था हमारे मोबाईल पर। तो बस हम भी बेतकल्लुफ़ हो लिये क्योंकि अपने पैसे भी नहीं लग रहे थे और अपने मित्र से दिल की बात भी कर रहे थे। वैसे भी आजकल फ़ोन पर बात करना बहुत ही सस्ता हो गया है, पहले फ़ोन पर बात करने के पहले सोच लेते थे कि केवल ५ मिनिट ही बात करेंगे पर अब मोबाईल की कॉल दर सस्ती हो गईं हैं तो अब उतना सोचना नहीं पड़ता और हाँ अवश्य ही आमदनी भी इसका एक कारण है।
हमने मित्र को बोला कि आ जाओ शनिवार को हमारे यहीं रुकना और रविवार को निकल लेना। क्योंकि मिले हुए लगभग १ वर्ष से ज्यादा हो चुका है, महानगर में एक तरफ़ का समय किसी के यहाँ जाने का हमारे लिये तो कुछ ज्यादा ही लगता है, कि दूसरे शहर ही जा रहे हों। हमारा मानस जो दूसरे शहर का है वह तो बदल नहीं सकता है ना !!! हमारे मित्र बोले कि शनिवार को तो त्रैमासिक ऑडिट आ रहा है और रिव्यू भी है ४-५ मुश्टंडे हैडऑफ़िस से आ रहे हैं, सारी खबर लेने के लिये। तो शाम को ४-५ तो आराम बज जायेंगे, उसके बाद आ जाते हैं, हमने आगे रहकर मनाकर दिया कि अगर ८ बजे तक आओगे फ़िर क्या खाक करोगे यहाँ आकर, केवल खाना खाकर निकल लोगे, क्यों भला हम तुम्हें इतनी तकलीफ़ दें। क्योंकि रविवार को रुकने का पहले ही मना कर चुके थे, उनको उनकी श्रीमती को उनकी दीदी के घर ले जाना था, हमने सलाह दी थी कि अगले रविवार पर टलवा दिया जाये ये दीदी के यहाँ का कार्यक्रम तो हमारे मित्र बोले “दादा !!! पिछले ४-५ रविवार से यही कर रहा हूँ”, और अगर इस बार नहीं ले गये तो समझो कि शनिवार को ऑफ़िस में रिव्यू और रविवार को घर में !!!
फ़िर बात हुई कि चलो अब किसी और रविवार का कार्यक्रम बनाया जायेगा।
विशेष – कल डोमिनोज पिज्जा खाया गया था और वहाँ पर सभी को चोकोलावा केक बहुत पसंद आया, अगर चॉकलेट के शौकीन हों तो जरुर चखें।
अच्छी प्रस्तुति।
चलिये आप से एक शव्द सीख लिया**““थोड़ा वेड़ानी काल करा” धन्यवाद
अच्छी प्रस्तुति।
चोकोलावा…….मस्त नाम है।
आपने Recommend किया है तो अब जरूर चखना पड़ेगा 🙂
@सतीश जी – बिल्कुल चखियेगा, हम लोग तो इसके प्रेमी हो गये हैं, हमारे बेटे लाल ने तो ३ चोकोलावा उड़ायी थी, इच्छा तो हमारी भी थी मगर क्या करें कहने की जरुरत नहीं है, आप खुद ही समझदार हैं।
विवेक भाई,
आपकी पोस्ट पढ़ कर न जाने क्यों पेज थ्री का गाना याद आ रहा है…
कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पर…
जय हिंद…
सच है, आज की व्यस्त दिनचर्या में ये फोन ही है, जो रिश्तों को जोड़े हुए है. अच्छी पोस्ट.
विशेष: मुझे शिकायत है डोमिनोज से की जितनी बड़ी फोटो दिखाते हैं चॉको लावा केक की उससे कहीं छोटा होता है 🙁
चोकोलावा – जरूर देखी जायेगी कभी!
चेकोस्लोवाकिया की चीज है क्या?
यह भी अनोखा है,आभार.
कहते हैं बम्बई सात टापुओं को मिला के बना है। लेकिन अब तो हर आदमी यहां अपने आप मे एक टापू है जुड़े रहना मु्श्किल हो जाता है। सही कहा मोबाइल न होते तो शायद रिश्ते भी न बचते।
hahaha… V. nice.. 🙂