आज सुबह फ़िर एक नये सप्ताह की शुरुआत हुई, वो भी मानसून की बारिश के साथ, चारों ओर घनघोर बादल छाये हुए थे, और झमाझम बारिश हो रही थी। इसी बीच सुबह हम अपने बेटे को स्कूल बस पर छोड़ने गये तो वो जिद करने लगा कि छाता ले चलो, हमने उससे कहा कि छाते की जरुरत ही नहीं है, ज्यादा तेज बारिश नहीं है। बस हमने इतना कहा और बारिश जोरों की होने लगी, पहले तो पेड़ के नीचे शरण ली, पर बारिश कुछ ज्यादा ही झमाझम थी फ़िर हमने एक दुकान के नीचे शरण ली, जैसे ही बस आयी वैसे ही हम दौड़कर सड़क पर आ गये।
मुंबई में पहली बारिश नहीं है, दो दिन पहले आधी रात को जबरद्स्त बारिश थी, समय तो हम देख नहीं पाये, पर यहाँ पर प्रचलित फ़्रेंच विन्डो के कारण प्रकृति के आनंद ले लेते हैं। सोते हुए अपने पर कुछ हवा के साथ बूँदे उड़कर आयीं, तो एकदम पता चल गया कि बारिश आ गई है, जल्दी से उठे और विन्डो के काँच बंदकर वापिस से सो लिये।
आनंद बिल्कुल वैसा था जब अपने घर पर छत पर कभी कभार सो लिया करते थे, और रात को बारिश आ जाती थी, तो गद्दा तकिया चादर सब उठाकर भागते थे, घर में खटखटाते थे, किवाड़ खुलने पर पता चलता कि बारिश बंद हो गई है, तो फ़िर मन मारकर घर में ही सो जाते थे। यह सोचकर गुस्सा आता था कि बारिश को आना ही है तो जरा ज्यादा आये, हमारा बोरिया बिस्तर समेटने में इसको क्या मजा आता है।
बिस्तर पर लेटे लेटे ही रात में तारे गिन लो, खुली हवा का आनंद लो, यह सब आनंद अपने छत पर सोने में आते थे, अब यही सब आनंद मुंबई के छोटे से फ़्लेट में भी आते हैं, बस अंतर यह है कि ऊपर छत रहती है, यही तो फ़्रेंच विन्डो के आनंद हैं।
आज सुबह सुबह ही छाते की खोज हुई तो एक छाता अलमारी में लटका हुआ मिल गया, कि चलो अब तो मेरी सुध ली, फ़िर छाते को चेक किया गया, तो ठीक ठाक अवस्था में पाया गया। तय किया गया कि आज ही २ छाते ओर लाने होंगे, मानसून जो आ गया है।
वैसे हमारी आदत है कि हम छाते का उपयोग कम से कम करते हैं, क्योंकि बारिश प्राकृतिक है और उसका आनंद न लिया तो बस फ़िर ?
आजकल तो फ़िर भी छाते का उपयोग करने लगे हैं, नहीं तो पहले तो यह हालत थी कि हमारा रेनकोट डिक्की में ही पड़ा रहता था, और हम बारिश के आनंद लेते हुए घर पहुँचते थे [खामख्वाह में रेनकोट भीग जाता और फ़िर उसको सुखाने की जद्दोजहद में लगो] J ।
आप सबको भी मानसून की शुभकामनाएँ और बिना छाता और रेनकोट के बारिश को प्राकृतिक रुप में महसूस करके देखें, आनंद आयेगा।
इधर भी न भेजिए भाई तवे की तरह तप रहे हैं !
आज सुबह हमारी खोपोली में भी झमाझम बारिश हुई…पेड़ के पत्ते और हरे हो खूबसूरत लगने हैं और पहाड़ धुलने से साफ़…बस कुछ दिनों में खोपोली जन्नत होने वाला है…छत पर सोने की बात याद दिला कर आपने बचपन याद दिला दिया जब हलकी फुलकी बारिश आने के कारण बिस्तर समेट कर नीचे आना पड़ता था और उसके रुक जाने पर उमस और गर्मी में सोना पड़ता था…जाने कहाँ गए वो दिन…चलिए बीती बातों को छोडिये और मानसून के मज़े की तैय्यारी कीजिये…
नीरज
bhai sahab barish ko idhar bhi bhejna ka na, waat lagi hui hai, promise karta hu ki naa hi chhate ka upyog karunga aur na hi raincoat ka ( vaise bhi nai karta kabhi)
चलिये, गरमी से राहत हुई. आनन्द उठाईये बारिश का. अनेक शुभकामनाएँ.
उस अनुभूति का एक कतार इधर भी भिजवा दें. आभार.
बारिस की बधाई ।
आज दिल्ली में भी कुछ बूँदें गिरी हैं ।
बारिश आई बारिश आई छम छम छम ..,छाता लेकर न निकले हम:)
लीजिए बारिश के मजे लीजिए, अच्छी पोस्ट।
अहा…सारे मुंबई वाले आज बारिश पर ही लिख रहें हैं…सुन्दर शब्द चित्र खींचे हैं…सब कुछ आँखों के आगे साकार हो उठा..
हमने अभी तक छाते नहीं ढूंढें पता नहीं,कहाँ,किन हालातों में पड़े हैं…:(
इधर भी भेजिए …
आज तो पकोडे ओर गुलगुले खाईये जी
फुहारों की शुभकामनायें ।
Oh! Bombay bloggers aaj kal baarish ka swaagat kar rahe hain, I think hum bhi swaagat kar lein kahin aisa na ho ki barish hum se rooth jaaye aur idhar barse hi na…barish toh itni nahi hui par mausam kaafi suhana ho rahaa hai
विवेक भैया, छतरी तो हमें भी लेनी पड़ेगी…. पिछले साल एक छतरी मानखुर्द में गुमा आए थे… एक रिक्से में और एक बची थी जो ना मालूम घर के किस कोने में है….
🙂
क्योंकि बारिश प्राकृतिक है और उसका आनंद न लिया तो बस फ़िर ?मेरे दिल की बात कह गए आप.
क्योंकि बारिश प्राकृतिक है और उसका आनंद न लिया तो बस फ़िर ?मेरे दिल की बात कह गए आप.