वह बहुत तेजी से चावल खा रहा था, जिसमें शायद दाल और कुछ सब्जी मिली हुई थी, पीले रंग की पीतल की तश्तरी से बड़ा सा बर्तन था, उसके बाँहें जो कि साँवली नहीं नहीं काली ही थीं.. उसमें से मसल्स दिख रहे थे… गंदी मैली बनियान या शायद गंदे रंग की बनियान पहने हुआ.. और लुंगी को डबल कर मद्रासी श्टाईल में लपेट कर पहना हुआ था… चेहरे पर गजब का संतोष था.. समय शाम का था लगभग ६.३० बजे का.. चेहरे पर संतोष से ऐसा लग रहा था कि उसने आज जो भी काम किया है उससे वो संतुष्ट है और खुश है कि वह आज का कार्य पूरा कर सका। और यह तो शायद सभी ने महसूस किया होगा जिस दिन कार्य बराबर होता है तो भूख कुछ ज्यादा ही लगती है। दिमाग की किसी ग्रंथी का संबंध जरुर पेट से रहता है।
यह दृश्य अपने कार्यालय से घर लौटते समय ऑटो से १ मिनिट से भी कम समय में हमने किसी घर में देखा, जो कि सड़क किनारे ही था। केवल १ मिनिट के दृश्य के लिये भी कभी कभी इंसान कितने ही दिन सोचने पर मजबूर हो जाता है।
अच्छी पोस्ट है
केवल १ मिनिट के दृश्य के लिये भी कभी कभी इंसान कितने ही दिन सोचने पर मजबूर हो जाता है।
सत्य वचन!
badhiya baat kahi..par pehli pankti kuch adhoori lagi ek baar padhiyega…
nice u & ur दृश्य
1 मिनट तो जिन्दगी का नजरिया बदल सकता है
भाव पूर्ण आलेख प्रस्तुति के लिए आभार…
@दिलिप जी – गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिये शुक्रिया, भाव अब पूरे लगते हैं।
जीवन में हर क्षण में कुछ न कुछ सीखने को मिल जाता है .. बस ध्सीखने की ओर ध्यान हेना चाहिए !!
कहते हैं कि भोजन का स्वाद भूख से आता है । दिनभर थके और भूखे मानुष के लिये चावल भात सबकुछ है ।
एक पल काफी है और सब बदल जाता है.
सच कहा।
🙂