हाँ तुमने आकर, मेरी जिंदगी सँवार दी है …

तुमने मेरे अंदर,
प्रेम पल्लवित किया है,
तुमने मेरे अंदर्,
ऊष्मा भर दी है
तुमने जिंदगी को नये,
तरीके से जीना सिखाया है
हाँ तुमने आकर,
मेरी जिंदगी सँवार दी है

अब तुम,
मुझसे अलग नहीं हो,
तुम मुझमें इस तरह,
सम्मिलित हो गयी हो
इसलिये तुम्हरा,
अहसास ही नहीं होता
अहसास तो उसका होता,
है जो अपने मैं नहीं होता
हाँ तुमने आकर,
मेरी जिंदगी सँवार दी है ।

14 thoughts on “हाँ तुमने आकर, मेरी जिंदगी सँवार दी है …

  1. प्रवीण जी,

    पक्का हमारी घरवाली ही है, अरे अब वो हमारी जिंदगी में रच बस गई हैं, किसी ओर के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं, उनकी बड़ी शिकायत थी कि आप शादी के पहले बहुत कविता करते थे पर अब नहीं, तो अब जिंदगी के जहाज में तूफ़ान आना कम हो गये हैं, इसलिये फ़िर से मेरा कवि मन जागृत हो गया है। हाँ अब बस कविता उनके लिये ही होगी या सामयिक होगी संदर्भ हमेशा साथ में रहेगा।

    धन्यवाद आपका
    विवेक रस्तोगी

  2. विवेक भाई,

    जब अपनी गिच्ची (गला) ही हमेशा उन जी के हाथों में रहना है तो फिर क्या अहसास और क्या सांस…सब उन्हीं के रहमो-करम पर चलता है…मैं आपकी नहीं अपनी बात कर रहा हूं…

    जय हिंद…

  3. अच्छा लगा जान कर कि किसी नारी ने आपकी जिन्दगी संवार दी …और आप उसे कबूल भी कर रहे है …मानते तो और भी होंगे मगर प्रत्यक्षतः पति तो अक्सर तो स्यापा करते ही नजर आते हैं…. 🙂 !!

  4. वाणी गीत जी,
    जी हाँ सच कहा आपने नारी किसी की भी जिन्दगी सँवार सकती है और किसी की उजाड़ भी सकती है, घर को स्वर्ग और नरक बनाने में उसका ही १००% योगदान होता है। पतियों को अपनी पत्नियों की अहमियत समझनी चाहिये और उन्हें जताना ही चाहिये कि हाँ हम प्यार करते हैं, केवल दिल में रखने से प्यार दिखता नहीं है।

  5. अहसास तो उसका होता,
    है जो अपने मैं नहीं होता
    बहुत सही और सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई

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